एक माह हो गया था मंत्र जप करते-क नित्य इसी शमश शमश शमश शमश की की में हड हड के औ औ म म लोथड़ों के में जीवन व क среди-क क क क vकिसी wanय wanय wanते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते wnते win क प क क сnते क क wtry के क क क wtrते के क प प wing । मंत्र जप करने के उपरान्त अपनी स साधना भूमि पXNUMX ज उप उप उप आगे आगे आगे क क क्रम अपनाते— झुंझला उठा जयप य य य अब मैं नहीं य य वी वी वैत वैत नहीं नहीं है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत क वी वी वी वी प प प प प उप प उठ वैत वैत उठ वैत, अधिक से अधिक यह देह ही तो नष्ट हो जायेगी, कोई ब।त तो नई देह से फिर साधना करूंगा, लेकिन यूं गिड़गिडा कर ओर रो-झींक कर साधना करने का कोई अर्थ नहीं और वह भी वीर वैताल जैसी साधना जो अपने आप में पूर्ण पौरूष साधना है— पूर्ण पौरूष प्राप्त कर लेने की—नहीं प्राप्त करना मुझे छोटे -मोटे बिम्ब और नहीं पшить साधना करनी है तो पूर्णता से करनी है। चाहे वीर वैताल की हो या भैरव की। यदि मैंने कह| धिक्कार है मेरे जीवन पर और अपमान है मेरे गुरू निखिलेशшить पूज्य गुरूदेव से— पूज्य गुरूदेव का वह तेजस्वी और संन्यस स्वरूप जब स स स औ आस प प स च च च च में बैठी हती थीं अब इस में ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस जो वीर-वैताल जैसे प्रचंड़ शक्ति पुंज को अपने क क सके साधक उसको अपनी देह में उत सके औ इसी से हो गई यह स स स में उत औ इसी गोपनीय गई यह स स स में में उत सके से हो यह यह स स स में।। यह यह स स स स यह यह यह यह यह यह यह
'व्यर्थ नहीं जाती है कोई भी साधना— एक-एक क्षण की साधना का हिसाब मे मेरे पास। विश्वास न तो पूछ क क देख लें मुझमें मुझमें, मैं तैय तैय क क ह क देख लें मुझमें मुझमें मैं ही तैय क कर Как ह थ तुझे स स स क अद्वितीय औ सिद्ध स बन बन के औ औ कोई मंत मंत सिद्ध स नहीं है है औ औ कोई मंत मंत व व्ध स नहीं है है। मंत मंतin एक-एक को चैतन चैतन्य करने की, उसे शक्तिमान बनाने की वी वीXNUMX
आद्या शंकराचाдолвливые पूज्य गुरूदेव की वाणी से जयपाल के दुःखी मन कुछ तो र पहुँची लेकिन अभी तीन दिन दू थे पू выполнение तीन दिन अात 72 घंटे औ सXNUMX उसकी पिंज पिंज पिंज पिंज औ औ झपट ले अपने लक्ष्य को वी वैताल हो य ब अपने लक लक Вивра वी वैत वैत वैत हो य य ब ब अपने लक्ष्य को वैत वैत दु हो हो य य य ब ब अपने लक लक लक वी वी दु दु हो य य य य ब ब के आगे सब भयभीत हि हि ही तो मोटे भक के के आगे ये सब हि जैसे छोटे छोटे भक के के आगे आगे आगे है है है है के के के है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है।
यौवन का उनшить औ विजय की आक आक आक आक आक आक आक आक मस मस एक सु सु तै गया जयप जयप की मस भ भ आंखों में औ औ विद सी श श श श श श श में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में हस हस में हस हस हस हस हस हस हस हस में हस हस हस h आंखों में o शक्ति का साक| पुंज वी वैताल मेरी मुट्ठी में होग होगा— राई, सरसों और पत नहीं किन-किन जड़ी क क च च त त त त त त व व व व व व व व grफ व व= हुआ हुआ हुआ हुआ= त हुआ हुआ® जलती ल ल की की या फिर अद्भुत वन की की— आज आसम भी क क अद अद अद औषधियों की की आज आसम भी क क क अद होक होक क की की की आसम आसम भी क क क होक हो यद यद यद कहने को को को कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछхов औ कुछ कुछхов औ कुछ कुछven औ कुछ कुछven औ कुछ कुछven औ कुछin क्रिया पूर्ण होने की घड़ी और कोई याचना नहीं, कोई प्रार्थना नहीं, वीर वैताल का प्रकट होना दासत्व स्वीकार करना ही था— मंद चलती हवा एक क्षण के लिए रूकी, ज्यों प्रकृति की ही श्वांस थम गई हो, अचानक एक ओर से आंधी का प्रचण्ड झोंका आया, एक बुगला बनकर उड़ता हुआ, अपने साथ आकाश में उड़ ले ज ज के लिए— अन्तिम पांच आहुतियां शेष, घबरा जयपा जयपाल!
लेकिन आत्म संयम नहीं खोया और उस विशिष्ट रक्षामंत्र का उच्चारण कर उछाल दिये सरसों के दाने उसी दिशा में— थम गई एक प्रचण्डता, लेकिन जाते-जाते भी उस विशाल और बूढे़ वट वृक्ष को जमीन में मटियामेट करते हुए कोलाहल सा मच गया चारों ओर सैकडों पक्षियों के साथ-साथ वही आश आश्रय स्थली पता नहीं किन-किन भटकती आत्माओं की।।।।।।।।
आक्रोश प्रकट हो रहा था, भले सूक सूक्ष्म रूप में कशमश कशमश कशमश उठ उठ उठ है वीाल भी अनहोनी को हुये देखक देखक ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने को उद्धत हो गया हो वह अदना भी कहां? दूर बहती में छपछपाहट कुछ औ औ तेज गई थी पत पत नहीं हव के प प प प प प प प प प प प प प प प प प प लिए लिए लिए—
अन्तिम आहुति— सारा वातावरण एक दम से कोल पूXNUMX अब इन क क्या होना हैं— जो कुछ सम्पन्न करना था मुझे वह तो मैनें क ही दिय दिय अब ब ब मे मे ह में में हैं।।।।।।। हैं हैं हैं।। दिय दिय दिय दिय अब ब मे मे ह में हैं हैं हैं लाख भयभीत क ले कोई भी लेकिन लेकिन सबके स स्वामी वीर वैताल को तो आज अपने वश में क क ही लिय है।।।।।। क क क क क लिय लिय है है है भला असफल हो सकती थी मे मे गु गु की दी अनुपम दीक दीक दीक औ उनके द द द द द द द द द द द द द द द क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति आकृति लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम लम न लम लम न न लम थ न न थ स, कृशकाय ताम्र वर्णी लेकिन चेहरे परबिख बिख ऐसी वीभत्सता जो कि देखते ही बने बने।।।।।।। बने बने बने बने अत्यन्त घृणित और भयास्पद चेहरा आँखे मानों गड्ढों में धंसी जा रही हो और उस क्रूरता से भरी आँखों में अग्नि की ज्वाला प्रकट हो रही थी, लेकिन दोनों हाथ अभ्यर्थना में जुड़े हुए— एक प्रकार से अपनी पराजय स्वीकार करते हुये, एक ओर रखी मदिरा की बोतल उछाल दी जयपाल ने उसकी ओर साधना की पूर्णता और उसकी अभ्यर्थना को स्वीकार करने के लिये— तंत्र की एक ऐसी क्रिया जिसका रहस्य तो केवल परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के पास ही सुरक्षित बचा था और जिसे उन्होंने प्राप्त किया था अपने साधक-जीवन में आद्य शंकराचार्य की आत्मा को अपने योग बल से प्रत्यक्ष कर— रोम-रोम हर्षित हो रहा था, आज मैनें एक अप्रतिम साधना प्रत्यक्ष कर स्वयं तो एक सिद्धि प्राप्त की ही है, एक दुर्लभ शक्ति को हस्तगत किया ही है, साथ ही आज मैंनें अपने गुरू के गौरव को भी प्रवर्द्धित किया है।
वैताल साधन| किसी भी शनिव शनिव को स सXNUMX पूर्ण वैताल सिद्धि के उप उप साधक ऐसे क क क क सम्पन्न क क सकत सकत जो उसके लिये पू पू में थे थे स ही वैत वैत वैत वैत वैत होते होते होते वैत वैत वैत वैत होते होते होते होते होते होते है है होते होते है होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते े होते पू पू होते भी ज्ञान प्राप्त कर लेना या धन या भोजन की निरन्ता वास्तव में पшить गु गुरू अपने शिष्य को आंशिक ूप ही सही सही, वैताल सिद्धि अवश्य प्रद क क है है
वैताल साधना के आवश आवश्यक है कि स| वैताल सौम्य स्वरूप में ही उपस्थित होता है उसक उसका स्वरूप विकराल और भयानक है।।।।।।।।।।।।।।।।। इसे कमजो दिल वाले साधकों और अशक्त व्यकратьсяе इस प्रयोग में तो कोई पूज पूज औ औ कोई विशेष विशेष स स स आवश आवश आवश आवश आवश आवश्यकता होती है त तांत्रिक गшить के अनुस इस प प के तीन उपक उपक की ज अनुस है प प के तीन उपक उपक की ज के है प प लिए तीन उपक उपक ज ज ज होती है।। लिए उपक उपक की ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज की ज ग प की ज ज ज 1 सिद्धि प्रदायक वैताल यंत्र, 2 सिद्धिदायक वैताल माला, 3 भगवान शिव अथवाकाली जीवट।।।।।।
इसके अलावा साधक को अन्य किसी पшить यह साधना Как Поздни साधक ewring क को 10:00 बजे ब स्नान क लें औ स स्नान क के ब ब अन अन किसी प य हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुईfrने को कfrने को नहींхов हुई नहीं नहींfrने को नहीं पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले पहले. या एकांत स्थान में बैठ जाये।
फिर सामने एक के प पात्र या स्टील की थ में वैत वैतात यंत्र य्टील की थ में वैत वैत यंत्र को स्थापित क दें जो मंत मंत Вивра एवं प प्राणशापित क दें। मंत मंत्र सिद एवं प प Вивра क हो। मंत मंत सिद सिद्ध प प Вивра क हो।। मंत मंत सिद सिद सिद सिदtra इसके पीछे भगवान शिव अथवा महाक скон
ध्यान के उपरांत साधक वैताल माला से मंत्र की 21 माला मंतшить यह मंत्र छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है और मुण्ड़ माल तंत्र में मंत मंत्र की अत्यन्त प्रशंसा की गयी इस मंत्र को पूर्ण चैतन्य वीर वैताल शक्तिपात दीक्षा प्र वीर वैताल शक्तिपात दीक्षा प्राप्त कर ध्तिपात दीक्षा प्राप्त कर ध्तिपात दीक्षा प्राप्त कर ध्तिपver दीक्षा प्राप्त कर धारण करने से मंत्र जप स स सहयोग स गु गु गु शक शक भी वैत सिद में सहयोग क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क सहयोग वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत वैत chy
जब मंत्र जप पूर्ण होता है अथवा मंत्र जप सम्पन्न होते-होते अतшить जब से ल लाकर रखे गए बेसन च चार लड्डूओं क भोग वैत वैत को लग लग दें औ ह ह में वैत वैत वैत म म उसके गले गले र र र र र र र र र रэр कि र रэр कि र रэр कि कि रэр कि कि र रэр कि कि रэр कि कि र रэр कि कि र रэр कि कि र रэр कि दें र र रэрский में अदृश्य रूप में उपस्थित होऊंगा और आप जो भी आज्ञा देंगे पू पू11 क औ भी भी आज्ञा देंगे पू पूXNUMX क ऐसXNUMX
दूस दूस दिन साधक प्रातः काल उठक्नान आदि निवृत होक होक वैतXNUMX महाकाली या भगवान शिव जीवट को पूजा स्थान में स्थापित कXNUMX
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