ऐसा व्यक्ति केवल अपने घर परिवार के भरण-पोषण तक सीमित नहीं नहीं हत हत वंश के लिये औ सम सम के भी बहुत क क में सम औ हत है। भी बहुत क क सम सम हत हत। भी बहुत कुछ क में सम औ।। भी बहुत कुछ में में सम औ।।। बहुत बहुत। में में।।।।।।। अपने लिये पशु भी जीते हैं हैं कीट भी जीवन य यापन करते हैं मनुष मनुष मनुष मनुष क भी भ यापन क हैं लेकिन मनुष मनुष मनुष क इस भ बिताने के लिए प athrय क हुआ है। बिताने के प प प प है है।।।।। है है है है है है है है मनुष्य क क तो बन बन ही है कि वह अपने जीवन में लक लक्ष्य को प प वह अपने जीवन अपने लक लक्ष्य को प प कि अपने में अपने लक लक्ष्य को प प क क में लक लक्ष्य को प प क औ ध ध ध ध ध ध ध ध ध अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ chvредил अ अ अ अ मोकvvредил
जिसके जीवन ड ड है, भय है, आशंका है व व्यक्ति अपने में कुछ भी नहीं नहीं क सकत सकत जिसने जीवन में भय कुछ भी नहीं क क सकत हैं जिसने जीवन भय भय कुछ भी नहीं क क सकत हैं जिसने जीवन भय भय ड भी नहीं क क सकत हैं जिसने जीवन में भय ड ड औ आशंक को हट दिय है अपन जीवन उत ूप ूप ूप सकत है हट।।। जीवन उत उत ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप उत उत उत उत उत उत उत उत जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन में में जिस प्रकार दीवाली के शुभ अवसर पर लक्ष्मी की साधना का विशेष महत्व है, उसी प्रकार होली तांत्रेक्त साधनाओं के साथ नृसिंह साधना सम्पन्न करने का महान पर्व है, जिससे यह प्रेरणा प्राप्त होती है कि वीर व्यक्ति के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं है और जिन्होंने भी नृसिंह साधना सम्पन्न की है उनके लिए शमशान साधनायें, वीर साधनाये, वैताल साधनायें, महाविद्या साधनायें सम्पन्न करना अत्यन्त सरल हो जाता है क्योंकि तीव्र साधनायें करने से पहले आत्मबल का जागरण भी आवश्यक है और यह आत्मबल आता है नृसिंह साधना करने से अपने जीवन को नृसिंह बनाने से।
नृसिंह का तात्पर्य है जो नर अर्थात् मनुष्यों में भी सिंह की भांति हो, जिस प्रकार जंगल में सिंह बिना रोक-टोक, निर्भय और गर्व से विचरण करता है उस ी प्रकार मनुष्य भी अपने जीवन की बाधाओं पर विजय प्राप्त करता हुआ सिंह के समान जीवन जिये जिसे किसी भी प्रकार की आशंका, डर और भय नहीं हो।
नृसिंह ूप ूप समझने से पहले जो पु पु पु पु इनकी अवत अवत कथ कथ कथ आती उसे उसे समझन समझन भी आवश आवश है जिससे ज ज ज ज ज होत होत कि किस किस प प प प प प प प प के के के के के के के के के के के के के के केшить के प के के्णु विष केанв भगवान नृसिंह वराह अवतार के रूप में पृथ्वी का उद्धार करने हेतु भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध किया था, इससे उसके बड़े भाई हिरण्याकश्यप अत्यन्त दुःखी हुआ और उसने अजेय होने का संकल्प लिया, भारी तपस्या कर सारी सिद्धियां प्राप्त कर ली और ब्रह्मा द्वारा उसे सारे वरदान प्राप्त हुए।
जब दैत्यराज हिरणकश्यप तपस्या में थे तो उनकी पत्नी कयादू के गर्भ में प्रहलाद थे।।।। देवताओं ने दैत्यों पा आक्रमण किया उस समय देव देवXNUMX प प आकादू किय आश समय देव देव न न न ने कय कय को अपने आश्रम में श दी औ असुXNUMX
तपस्या पूर्ण होने पर हि выполнительный अपने भाई के क कXNUMX बदल ले लिय थXNUMX इसी हि выполнительный इन दोनों गुरूओं से पшить ने ध धXNUMX शिक्षा पूा होने प पितXNUMX
हि выполнительный मंत्र बल से कृत्या राक्षसी उत्पन्न हुई वह भी प्रहलाद का अंत नहीं कर सकी।।।।।।।।।।। सकी सकी सकी हि выполнительный उन्होंने अपने पुत्र प्रहलाद को पूछा। प्रहलाद ने उतшить दिया कि मैं शक शक्ति का साधक हूँ जिसका बल समस्त चराचर जगत है।।।।।।।।।।।।।।।। व्यंग्य से राक्षस ने कहा कि क्या उस खम्ब मेवगभी ा ा प्रहलाद ने कहा निश्चय ही।
दैतлать दैत ने खम्ब तो तोड़ औ उस खम्ब से मह व्ब तो तोड़ तोड़ औ खम्ब से मह मह्ब व्यक्ति ग स्ब प प मह जिसक व्यक्ति ग ग सXNUMX उस आकृति देखक देखकर दैत्य झपटे लेकिन नृसिंह XNUMX दैत्य ने कहा कि ब ब्रह्मा का वXNUMX भवन में अथव अथव भवन ब बXNUMX भूमि, जल और गगन में भी मेरा वध नहीं हो सकेगा।
भगवान नृसिंह ने कहा कि यह संध्याकाल है। तेरे द्वार की है जो न भवन के भीत भीत औ भवन के ब ब है न भवन भीत भीत औ भवन के ब ब ब ब है मे नख शस शस शस हैं औ औ मे मे जंघ गगन власть प है власть पчей नчей नчей नчей न влади पчей नчей हैчей कर उसका अंत कर दिया। Просмотреть еще प्रहलाद के कारण ही देवताओं औा जगत में पुनः भक्ति, साधना, पूजा स्थापित हुई, जब पृथ पृथ्वी प अन्याय बढ़ ज हैं भगव पृथ किसी प ूप ूपшить प ज ज हैं भगव भगव किसी किसी ूप में प प होक उस उस अन अन अन अन अनшить क अन en
नृसिंह साधना क्यों आवश्यक? यह साधन| जीवन में वीरता का समावेश होता है और अज्ञात भय आशंक आशंका पूा पू Как दू दूर दू ज ज है।। पू पू दू दू हो ज है है।।।।। ज हो ज ज है है।। ज हो हो हो ज ज है है।। जब जीवन में भय नहीं रहता है तो साधक अपनी शक्तियों से पूर्ण रूप से कार्य कर सकता है यह त्रिदिवसीय साधना होली के तांत्रेक्त पर्व पर साधक अवश्य ही सम्पन्न करे।
यह साधना 3 दिनों की है। साधक को च| धूप तथा घी का दीपक जलाक выполни
सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गुरू पूजन करें। पहले गु выполнительный
इसके बाद सामने ताम्र पात्र पर कुकुंम य केशXNUMX साधना काल में घी का दीपक लगाकर जलते रहना चाहिय। पहले यंत्र को शुद्ध जल से स्नान कराये।
इसके बाद यंत्र को चारों दिशाओं में चार तिलक लगाय
इस संक्षिप्त यंत्र पूजन के बाद षट्कोणों में निम्न सामग्री को सшить
सिंह बीज स्थापित करें। इससे किसी शत शत्रु को क करके परास्त किया जा सकता है तथा विजय सिद्धि का प्रतिक है।।।।।।
किसी भी दुर्दान्त शत्रु को म выполнительный
वीरवटी स्थापित करने का उद्देश्य साधक में वीरता का समावेश हो सके।।।।।।
नागचक्र स्थापित इसलिये किया गया है शत शत Вивра को वश क करके नाग पाश से बXNUMX
Канавра दण्ड की स्थापना शत्रु को वशीभूत क क उचित दण्ड देने का प्रयास किया जा सके।
शौरी स्थापना का उद्देश्य साधना के बाद साधक में निXNUMX इसके बाद षट्कोणों में स्थापित सभी सामग्री पर कुकुंम का तिलक करके एक-एक पुष्प चढ़ायें। तिलक करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
इसके बाद अक्षत को कुकुंम से रंग का इसके बाद गुलाब की पंखुडि़यां यंत्र पर चढ़ाते हुए निम्न मंत्रें का उचшить
इसके ब|
यह 3 दिन प्रातःकालीन साधना है। 'रक्ताभ माला' से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जरप कर॥
इस प्रयोग को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी से आ выполнение इसके ब|
Обязательно получить Гуру дикша от почитаемого Гурудева до выполнения любой садханы или принятия любой другой дикши. Пожалуйста свяжитесь Кайлаш Сиддхашрам, Джодхпур через Эл. адрес , WhatsApp, Телефон or Отправить запрос чтобы получить посвященный энергией и освященный мантрой материал садханы и дальнейшее руководство,
Отправить по: