संसार में मनुष्य जीवन ही सर्वश्रेष्ठ कहा जाता हैं, और जो मनुष्य अपना जीवन पूर्णता के साथ जीता हैं, अर्थात् जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त करता हैं, आनन्द प्राप्त करता है उसका जीवन ही श्रेष्ठ कहा जा सकता हैं। सृष्टि का नियम कि संस संसार में जो वस वस्तु उतшить होती उसक उसक उसक क में अ वस्तु उत्पन्न होती उसक उसक उसक उसक क क अ अ अ अ अ हैं हैं क क क कुछ स स स स सшить चलत स स सшить चलत स सшить नि स सшить नि स सшить नि स सшить नि स wons हत औvреди उत औvin हत कvin हत कvцин उत कvinपतver अर्थात् नि выполнительный यही जगत के प्रमुख देव ब्रह्मा, विष्णु, महऍश करा का का
Закрыть उनके पित| तप स्थली से वापस आकर जब उन्होंने कामधेनु को आश्रम में नहीं देखा तो अत्यधिक क्रोधाग्नि से उदिग्न होकर सहस्त्रबाहु की सेना से युद्ध में अपने फरसे से उसका सर काटकर अपने पिताश्री के चरणों में रख दिया और कामधेनु गौ वापस आश्रम में ले आये। लेकिन इसके बाद भी सहस्त्रबाहु के पुत्रे ने ऋषि के आश्रम पर पुनः आक्रमण कर जमदग्नि का मस्तक काटकर ले गयें, भगवान परशुराम को जब यह विदित हुआ तो उन्होंने संकल्प लिया कि मैं पूरी पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दुंगा, तब ही फरसे को नीचे रखूंगा। पुनः युद्ध कर अपने पिता का मस्तक लेका
अक्षय तृतीया जो वैश वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय के दिन आती है वी वी्ल पक की तृतीय के दिन है है वी वी सिद्ल हैं तृतीय तृतीय वी दिन आती है वी वी सिद सिद दिवस इस दिन वी वी भ भ प पenश हेतु लियेvenश के लियेven क लियेven कvenश केven कvenश केven कvenश केven कvlुओं कven कvlुओं कvenश केvenश केven कven कvenश केvenश केvenश केvenश केvenश केvenश hvel क कven कvenश केvenश के कven क कven क कven क कven क कven क कven क भ Венок इसके अलावा अक्षय तृतीया में औXNUMX
सर्वसौभाग्य प्राप्ति दिवस अक्षय तृतीया दिवस सबसे बड़ बड़ गुण यह है कि पू पू व व में भी तिथि क हो कभी कभी कभी कभी कभी कभी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी पक पक पक पक पकven पू भी chven पू यह णतven पक यह पकven पक यह शुकven पक यह शुकven शुक शुक chven शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक शुक तिथि o भी शुक, क्षय हो जाती है, दीपावली, अमावस्या, चर्तुदशी को सम्पन्न करनी पडती है, लेकिन अक्षय तृतीय की कभी क क क नहीं होती
यह सौभाग्य सिद्धि दिवस हैं, इस कारण स्त्enं अपने प प प प प प प प पXNUMX हैं के लिये विशेष विशेष व व व व व व व व व o
अक्षय तृतीया लक्ष्मी सिद्धि दिवस है इस इस कारण लकшить
मनुष्य प्रत्येक शुभ कार्य मुहूर्त इत्यादि देखकर करता है लेकिन अक्षय तृतीया ऐसा पर्व है दिन नि नि नि नि नि नय gro क glenह vlerम werय werय werय vlerम werय werय werय vlerम werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय werय प प glo प glo प glo प य власть देखक देखक.
इस दिन भी पшить की की सXNUMX
श्रेष्ठ वर अथवा वधू की प्राप्ति के लिये और विवाह बाधा दोष निवारण के भी यह श श Вивра पर्व है।।।।।।।।।।।।
प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती है उसके प लकास लक्ष्मी ूप में क क स उसके भास लक औ औ किसी भी प क क्थ आ दृष औ पू भी प प wonsing र दृष दृष हो सिद र र ghrot लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नहीं हैं, यह तो लक्ष्मी का एक अत्यन्त छोटा सा रूप हैं, महाकाव्यों में आदि ग्रन्थों में लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों का, विभिन्न नामों का जो वर्णन आया है, उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही सही रूप में लक्ष्मी को प्राप्त करना हैं।
लक्ष्मी का तात्पर्य हैं- सौभाग्य, समृद्धि, धन-दौलत, भाग्योदय, सफलता, सम्पन्नता, प्रियता, लावण्य, आभा, कान्ति तथा राजकीय शक्ति ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं और इन्हीं गुणों के कारण भगवान विष्णु ने भी लक्ष्मी को अपनी पत्नी बनाया, जब इन गुणों क समा समावेश होता है और जो इनको प्राप्त कर लेता है, वही वास्तविक रूप से लक्ष्मीपति हैं।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं
मनुष्य क्या है- आदि पुरूष भगवान विष्णु का अंश, उनकी सृष्टि का एक लघु स्वरूप, फिर क्या कारण है, कि उसके पास लक्ष्मी का एक छोटा सा भी स्वरूप नहीं है, यह सत्य है कि लक्ष्मी के ये स्वरूप यदि किसी व्यक्ति के पास हो जाय तो वह पूर्ण पुरूष हो जाता है, यह संभव है। लक्ष्मी जीतने की वस्तु नहीं है, जिसे जुये में प्राप्त किया जा सके, लक्ष्मी तो मन्थन अर्थात् प्रयत्न अथक प्रयत्न, गहनतम साधनाओं का वह सुन्दर परिणाम हैं, जो साधक को उसकी साधनाओं के कार्यों के श्रीफल के रूप में उसे प्राप्त होती हैं, उस लक्ष्मी को अपने प पास स्थायी भाव से रख सकता हैं, आवश्यकतायी भ भ ख सकत सकत हैं क आवश्यकता इस ब की है कि कुछ क क औ औ कुछ के के लिये उसके म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म मшен केवल धन की प्राप्ति ही सब कुछ नहीं है, धन तो लक्ष्मी का एक अंश हैं, क्या धन से रूप, सौन्दर्य प्राप्त कर सकते है, क्या धन से कान्ति, आभा प्राप्त कर सकते हैं? क्या धन से सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं?
जो व्यक्ति लकшить क कXNUMX अपितु सौभाग्य में भी वृद्धि हो, राजकीय सुख एवं शक्ति प्राप्त हो, वह जो कार्य करे, उसी के अनुरूप उसे यश प्राप्त हो और यह यश श्रेष्ठ दिशा में होना चाहिये, लक्ष्मी के सम्बन्ध में जितने ग्रंथ लिखे गये हैं, उतने ग्रंथ शायद ही किसी अन्य विषय पर लिखे गये हों, जब व्यक्ति लक्ष्मी को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लेता है, तो वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है, भौतिक सुख पूर्ण रूप से प्राप्त होने पर ही वह ज्ञान और वैराग्य के मार्ग पर बढ़ सकता है।
मेरा तो कहन कहन है कि यदि कंगाल, निर्धन व्यक्ति घ छोड़ क क कंगXNUMX की ओ हिमालय ओ ओ संन संन संन की हैं हैं हैं हैं हैं खinग ख हैं खtrय ख खtrय ख खvenगчита सकता है? सूर्य तो अपनी स सшить है, व्यक्ति अपनी के स सामने पर्दा कर देता है।।।।।।।।।।।।।।। उसी प्रकार जो लक्ष्मी को तुच्छ कहते हैं, उसके संबंध में निन्दात्मक वाक्य लिखते हैं, वे व्यक्ति वास्तव में डरपोक, निर्बल और कायर हैं, जो जीवन में कुछ प्राप्त करने में असमर्थ होने पर इस जीवन के महत्व को ही नकारना चाहते हैं, लेकिन सत्य तो सूर्य की भांति हैं, जो छिप नहीं सकता।
अक्षय तृतीय का महत्व भी उतना ही है, जितना विजयादशमी या दीप क उतन03 है है जितनXNUMX स स सिद्धांत महाग्रंथ में अक्षय तृतीय के सम्बन्ध में लिखा है, कि यह दिवस स की अक अक ख ख हैं उसमें से जितन जितन प Как क क उतन स स स जितन स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त बढ़त अक्षय तृतीया लक्ष्मी का पूर्ण दिवस है। Закрыть गृहस्थ पत्नी को लक लकшить कहता है, उसके अक अक्षय तृतीया अनंग साधना का दिवस है।।।।।।।।।।।
शाक्त प्रमोद में लिखा हैं कि जो साधक अक्षय तृतीया के महत्व को ज ज भी पूज पूजा, साधना नहीं करता दु दुानते हुये पूज स स स। क क क दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु भी पूज है है। क क क क दु दु दु हुये पूज पूज है है।। क क क्व दु दु भी पूज पूज है है।।।।।।।। है है है।। है।।। है।।।।।।।।
अक्षय तृतीया के पूजन मंगल घट घट क, रक
इस लक्ष्मी प्रदायक दिवस का साधना विधान अत्यन्त सरल है और यही बात है कि प्रत्येक गृहस्थ को इसे सम्पन्न करना चाहिये, लक्ष्मी का विशेष स्वरूप गृहस्थ से ही जुड़ा रहता है और गृहस्थ व्यक्ति ही अपने जीवन में इच्छाओं, कामनाओं के साथ बाधाओं, भय, यश -अपयश, सौभाग्य-दुर्भाग्य से जुड़ा होता है, इस कारण गृहस्थ तथा गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले व्यक ति यह आवश प प प क क क क क क क क क प प प प प है है है हैtrयक। क o
सर्व प्रथम तो यह आवश्यक हैं, कि आपका घाफ सुथXNUMX
अपने पूजा स्थान में, साधन|
पति-पत पत दोनों साथ-साथ पूज पूज सकते हैं हैं इस विशेष दिन यदि किसी क क क क क क पति न न पति घ में नहीं हैं तो पत पति पति न न क क संकल भ क क तो पत पति के क सकती क संकल भ क क स स सम पति क क सकती है। भ भ स स स सम सम स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स हैं दिन स स स,
साधना पूजा स्थान में सुगन्धित महकता हुआ वातावरण रखें इसके लिये सुगन्धित अगरबत्ती पूजा से ही जल लें उस स सtrथ प्र इत इत छिड़कें। लें स स स पраться
साधक, सामग्री की पूर्व व्यवस्था कर साधना स्थल पXNUMX
अपने सामने एक बाजोट पर पीला सुन्दर रेशमी वस्त्र बिछाकर उसके बीचों-बीच चावल की ढ़ेरी बनाकर उस पर पुष्प रखें, और फिर मंगल घट अर्थात् कलश स्थापित कर दें, साबुत कच्चे चावल से आधे भरे इस कलश पर नारियल स्थापित करें, अब पूजा स्थान में घी का दीपक जला दें, एक ओर सुगन्धित धूप जला दें, अब इस मंगल घट के सामने चावल की ढेरी बनाकर मोती शंख स्थापित करें, इसके आगे विशिष्ट मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित युक्त अक्षय लक्ष्मी यंत्र स्थापित करें, प्रत्येक के ऊपर चन्दन तथा केसर का टीका लगायें एक-एक पुष्प रखें, मौली चढ़ाये तथा मंगल के प पास पूजा हेतु आवश्यक प्रसाद नैवेद्य अर्पित करें।
साधक मूल पूजा आरम्भ करता है, लेकिन उसके पहले विशेष बात तो आवश्यक हैं कि इस सब व्यवस्था के पश्चात् साधक अपने आसन पर जिस प्रकार भी आराम से बैठ सकता है, पहले कम से कम दस मिनट तक गुरू का ध्यान करें, मस्तिष्क में विचारों का प्रवाह चलता रहेगा- उसे चलने दें, अपनी आँखे बन्द рени औ अपने संकल संकल को दोह न कि लक लक लक потеря को धी धी धी धी धी एक पू श श श श श श श श श श श श श श श पू पू पू पू पू® श श श®
अब आप दायें हाथ में जल लेका अपनी ग्यारह शक्तियों सहित यहां स्थित होकर मेा पूजन क क क और अभिष्ट सिद्धि प्राप्त क हेतु श श में यह स आपको अपन अपन पूजन पूजन है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन अपन अपन अपन अपन अपन अपन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन पूजन सम सम पूजन सम सम पूजन पूजन सम सम पूजन सम सम क o पूजन पूजन मध्य में 11 हुये में से न न5 अक्षय लक्ष्मी के ग्यारह स्वरूपों का पूजन प्रारम्भ होता है, मोती शंख के आगे बीज मंत्र का सम्पुट देते हुये उस पर पुष्प, चावल, कुंकुम, चंदन तथा सुपारी अर्पित करें, प्रत्येक बार अर्पण के समय नीचे दिये गये मंत्र का क्रमानुसार जप करें, इस पлать अक्षय लक्ष्मी सिद्ध यंत्र के निम्न मंत्र की XNUMX आवृति सम सम्पुटित करें।।।
ऊँ श्रीं अनुरागाय अक्षय लक्ष्मी बाणाय श्रीम नमम
Просмотреть еще
Просмотреть еще
ऊँ Камале Валлабхая Акшая Лакшми Банайя Камале Намах
ऊँ कमलालयेमदाय अक्षय लक्ष्मी बाणाय कमलालये नमय
ऊँ प्रसीद हर्षाय अक्षय लक्ष्मी बाणाय प्रसीम नमम
ऊँ Прасиддха Балая Акшая Лакшми Баная Прасиддхи Намах
ऊँ Шрим Теджасе Акшая Лакшми Банайя Шрим Намах
ऊँ ह्रीं वीर्याय अक्षय लक्ष्मी बाणाय ह्रीं नम ः
ऊँ श्रीं ऐश्वर्याय अक्षय लक्ष्मी बाणाय श्रीम नन
Выбрать
इस प्रकार पूजन पूरा करने से अक्षय लक्ष्ी अप।ेे Просмотреть еще साधक अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर मोती शंख पर पर ्षय लक्ष्मी यंत्र पर अर्पित करे और 11 часов त्र का जप करें।
अब एक थाली में 'स्वास्तिक' कुंकुम से बना कर उस पर दीपक अथवा आरती रख कर पूर्व मनोयोग से लक्ष्मी की आरती सम्पन्न करें तथा आरती के पश्चात् मानसिक रूप से गुरू ध्यान कर गुरू आशीर्वाद प्राप्त कर अपना स्थान छोड़ दें। यह पूजा, साधना अत्यन्त ही पшить
Обязательно получить Гуру дикша от почитаемого Гурудева до выполнения любой садханы или принятия любой другой дикши. Пожалуйста свяжитесь Кайлаш Сиддхашрам, Джодхпур через Эл. адрес , WhatsApp, Телефон or Отправить запрос чтобы получить посвященный энергией и освященный мантрой материал садханы и дальнейшее руководство,
Отправить по: