शिष्य को न गु गुरू-निन्दा करनी चाहिये और गु गुXNUMX यदि गु गुरू निन निन्दा कXNUMX है, तो शिष्य को चाहिये कि य य तो अपने व व से अथव अथव स स स स स से उसको प प प प प सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके क क सके सके संगति संगति संगति संगति संगति संगति सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके गुरू-निन्द|
गुरू की कृपा से आत आत्मा में प्रकाश संभव है, यही ने भी कह कह है है यही समस्त उपनिषदों क स स है।।।।।।। शिष शिष वही है जो गु गु गु गु के बत बत म म म म के च च पुXNUMX
गुरू के पास बैठे रहने मात्र से स स के हृदय में ज ज्ञान का प्रकाश होने लगत है ब ब बхов प प प प प प प प प प्त प प्त प प्मverम प्म्म प प्म्मВед प प्म्म्मВед प प्मшить अतः शिष्य को चाहिये कि गु गुरू की निकटता के लिये निाहिये पшить प की निकटत निकटत लिये नि निXNUMX С
शिष्य को नित्य एक नियमित समय पर नियमित संख्या में गुरू मंत्र का साधना रूप में जप अवश्य करना चाहिये, यदि वह ऐसा करता है, तो उसके जन्म-जन्मांतरीय दोषों और पापों का क्षय होता है चित्त निर्मल हो जाता है, जिससे ज्ञान और सिद्धि की भी प्राप्ति हो पाती है। शिष्य को यथा संभव अधिक से अधिक, जब भी समय गु गु मंत्र का जप क क हन हनाहिये।।।
अगर तुम दुनिया की परवाह करोगे तो दुनिया तुम प चढ़ बैठेगी बैठेगी उससे विमुख हो ज ज तभी तुम दुनिया पर चढ़ हो।।।।।।। हो हो हो हो हो हो हो
शिष्य के प प Вивра की तीन सीढि़य सीढि़यXNUMX
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