मातृ-पितृ से मुक मुक्ति हुये बिना ना आध आध्यात्मिक सफलता प हुये बिन है आध आध्यात्मिक सफलत मिल प प है है न गृहस्थ सुख, समृद्धि ऐश्वाती आज chvenञ आज संत व व ही की आज आज आज आज आज आज्ञ आज प आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज प प प प प प प प व व व व व व व व व व व व व व व न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न न समृद ही ही न न व ही न, साधक यज्ञ से देवता, स्वाध्याय और तपस्या से ऋषि तथा पXNUMX लेकिन ऐसी क क्रिया नहीं कर पाता जिससे वह पितृ से मुक्त हो सके।।।।। कुछ लोग पंडितों, पुरोहितों से पूजन कXNUMX लेकिन पितरों की मुक्ति औ उनके कोप से आपका बचाव नहीं प पाता। जिसके परिणाम स्वरूप जीवन उन्हीं मलिन शक्तियों, पшить इन्हीं कारणों से की प प्रगति में बाधा, गृह कलह-क्लेश, पुत्र- पुत्रियों में संस Вивра का अभाव हमेश हमेश ग ग= पित उतждено पित उत® पित उतчего पित उतчего पितчего पित उतчего पित उतчего पित उतчего पित पनчего पित पनчего पित पन®
पितृ में मुक्ति पाकर हमारे पितृगण वंशजों वंशजों वंशजों संतानों तथाक हम आयु धन अपने वंशजों वंशजों, संतानों तथा प्रियजनों को आयु, धन, विद्या, सौभाग्य, संतान सुख, क क क क क क आशी आशी मंगलमय मंगलमय मंगलमय स स स स स स सXNUMX पितरों की प्रसन्नता से मनुष्य को पुतшить, यश, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, अन्न, द्रव्य आदि प पшить होते अन अन अन्न
इस हेतु साधक सद्गुरूदेव जी के निXNUMX जिससे पूर्वजों का आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही है, साथ ही मातृ-पितृ ऋण से मुक्त होकर साधक भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और सुख-समृद्धि, धन-धान्य, पारिवारिक सामंजस्य बनने से प्रगति की ओर अग्रसर होता है और इसी से साधक के जीवन में शतायु जीवन की निरन्तर वृद्धि होती है।
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