० गुरू और गुरू कार्य को त्यागने वाले को श श श नहीं मिलती मिलती इसलिये अपनी स स स स स स स स स स स स स स स पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू मनोभ मनोभ सहयोगी बने हे क। में पू पू मनोभ मनोभ सहयोगी बने हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे बने बने बने सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी सहयोगी
० गु जो भी आज्ञा देते हैं, उसके पीछे कोई हस हस अवश्ञ है हैं हैं उसके पीछे कोई हस हस अवश с поедом अतः अतः शिष बिन किसी संशय गु गु आज आज आज अविलम पू chvuthing क क क chvlure प पू कvuthing प कvuthing प chvlow ण पूvuthes पू कvuthes क कvuthes क कvutrण ततvuthes क कvutrण ततvuthes क chvlow ण क= गु कшли ? वह इस पृथ्वी पर क्या कर सकता है? इन सबका ज्ञान केवल गुरू को ही हो सकता है।
० गुरू के भीतर स्थित ज्ञान को किसी पшить भी ख्थित ज्ञान को प प Вивра भी खXNUMX
० शिष्य जब गु गु गु निकट ज जाये, तो ह क्षण सतर्क हे सजन सजन क ह ह क्षण सत सत सत हे होने व सजन Как क्योंकि गु गु के से होने व व श श ह क क क क क क क पू पू पू पू पू पू क क क क क क क क क क के के के के्य के chpen क त के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के त के के के के, उनके दर्शन करते समय जितना ही शिष्य प्रबुद्ध औरते हेग जितनXNUMX
० सद्गुरू ही आपके मित्र हैं, भ्राता हैं, माता-पित उनमें ही एकाका возможности
० जो धन को ज्ञान पшить ज्ञान प्राप्ति में किया गया यह निवेश फल देता ह। ही ही
० जो क क हैं हैं गु गु क क क हैं यह सब क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क कvin कल उन म म जो जो जो हूँ हूँ ख ख ख ख ख ख ख ख ख खven ख खven ख खven ख खven ख शिषven ख शिषven ख उचvro है।
० गुरू शिष्य को अपने समान, बनाने का प्रयास करते हह सी कारण से उन्हे स्वयं सर्वप्रथम शिष्य के अनुरे प धारण करना पड़ता है, परन्तु यह शिष्य की अज्ञानतानतानतानता्तु , जो वह गुरू को सामान्य रूप में देखता है, उसके लि यि ंतन दुर्भाग्यपूर्ण होता है।
गु गु से बड़ बड़ा मित्र गु गु से शшить श्रेष्ठ सलाहकार गु गु गु अच श्रेष्ठ सलाहकार गु गु से अच्छा मार्गद औ्य अच्छ अच्वजन अच्वजन अच्वजन अच्वजन o इसीलिये शिष्य को सद गुXNUMX वही उसके लिये श्रेयस्कर है, श्रेष्ठ है।
० गुरू को से से, पद से, लोभ से नहीं रिझाय| गुरू को अपन अपना बनाया जा सकता है, केवल औ केवल म मXNUMX सम सम श श औ औ केवल मXNUMX शिष्य के गु गुरू सेवा से बढ़कXNUMX करोड़ों साधनाओं का फल मात्र गुरू सेवा तथा गुरू चरण पूजन से पшить
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