भगवान श्रीकृष्ण ने पूर्ण पुरूष और महामानव के रूप में धर्म पालन, आध्यात्मिक विचार, ज्ञान-विज्ञान, मैत्री, गुरू भक्ति, मातृ-पितृ सेवा, पत्नी प्रेम, स्त्री सम्मान व आदर, राजनीति, रण कौशल, विविध कला निपुणता, असुरवृति युक्त अत्याचारियों का शमन, मानवीय भावन|
अर्थात् ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य इन छः का नाम भग है औ ये भगव के स छः हैं हैं। है है औ भगव के स छः क हैं। भग है है है क क क हैं हैं। भग भग है है हैं क हैं हैं हैं।। भग है है हैं हैं हैं हैं हैं हैं।।।। हैं हैं हैं हैं हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। न। न न न न न न ऐश्वर्य- उस सर्व वशीकारिता शक्ति को कहते हैं, जो प पर निर्बाध ूप से अपना प ударя धर्म- उसका नाम है, जिससे सभी का मंगल और उद्धार ॹोर ॹोई यश- अनन्त ब्रह्माण्ड व्यापिनी मंगल कीर्ति है। श्री- बшить ज्ञान- ज्ञान तो स्वयं भगवान का दिव्य स्वरूप ही हहहहहहै वैराग्य- साम्राज्य, शक्ति, यश में जो सшить सर्वकाल की समस्त वस्तुओं के साक्षात्काा
श्री कृष्ण प्रकारान्तर से चौसठ कला युक्त है। इनमें पच पचास तो उच्चभूमि पाित जीवों में उन उन उन की कृप से ज ज ज होते हैं, किन्तु इसके अति अति अति प गुण हैं हैं जो जो श Как में। श श में में में प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प।।। होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते होते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं प ऐसे ऐसे ज ऐसे ज प प प प उच उच उच उच उच उच उच उच उच उच उच उच उच उच ज ऐसे ऐसे किन्तु चार ऐसे हैं हैं, जिनका पूर्ण पшить वे गुण हैं- लीला माधुरी, प्रेम माधुरी, रूप माधुरी और वेणु माधुरी इन चारों दिव्य गुणों क क ही वे मधु इन हैं।। गुणों के क ही
योगेश्वर कृष्णमय चौसठ कला चैतन्य दीक्षा धारण कर निश्चित ूप चैतन्य दीक्षा धारण कर निश्चित रूप से जीवन के पшить साथ ही कृष्णमय कला से जीवन शौर्य, प्रेम, मित्रता, सम्मोहन, आकर्षण जीवन संग्रзнес वीरता, राजनीति कल कल Как कलFतFrवीण venभчитал व venभ=Fत venभ недели साथ ही धन-लक्ष्मी, भोग, आनन्द, भौतिक समृद्धि, सम्मोहन, सौन्दा इसी के फलस्वरूप योग व भोग दोनों पक्षों को पूा से ग्रहण कर सकेंगे।।
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