मैं तुमшить तुम में गति दूंग दूंगXNUMX
मैं तुम्हारे सारे दुःख, दर्द, दैन्य, अभाव, विषमता और कष्ट मिटा कर पूर्णता दूंगा।
तुम हंस औ औ मुझे अपना वाद|
और इसी व व को निभ निभ के लिये मैं इस ध ध ध पXNUMX निभ औ औ औ औ आव मैं ह ध ध प पाधन औ औ आव अपने दे हाने के लिये मे मे मे द द किय किय किय गय गय गय गय व व व व व व व व व व व व द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे द मे जिससे द मे जिससे जिससे
तुम मूढ़ हो, पगले हो, नासमझ हो, हकीकत बच बच्चों त त भोले भोले हो।।
तुम्हें ज्ञान ही नहीं कि कि साधना क्या है, तुमने गौमुखी में में हाथ डाल कर मंत्र जपने ही स स लिय लिय लिय है।।।। मंतшить को ही स स
बगुले की तरह आंख क क देने को ही ध्यान कहा है, कुंकुम च च बिखे बिखे बिखे को अ अर्चना मान लिया है।।। को अ अXNUMX म लिय है।।।।।
तुम अपने मन के नयन खोलो, सामने देखो तो——-स्वयं ब्रह्म, पूर्ण सशरीर दिखाई देंगे और इसी सजीव सप्राण चैतन्य ब्रह्म को निहारना ही अर्चना है, एकटक देखते रहना ही ध्यान है, उनसे लिपट जाना ही साधना है क्योंकि ब्रह्म को पा लेना ही तो साधना का अन्तिम लक्ष्य है, और तो गु गुXNUMX
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