मेरे पास युवा समस्या लेकर आते हैं। मैं कहता हूं, तुम इतने दुःखी क्यों हो? जीवन में प्रसन्न रहने की जीवटता प्राप्त हुई है तब इतने उदास हो? जो आदमी रात्रि को संतोष लेकर सोता है और सुबह उत ्साह लेकर जागता है वही आध्यात्मिक है। Просмотреть еще े में परिवर्तित करने की विधि हैं।
हमारे जीवन के संदेह, मोह और भ्रम मिटते हैं। जन्म और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं लेकिन जीवन ह मारे हाथ में हैं। तो इस जीवन को नकारात्मक सोच से बर्बाद करने की ब जाय सकारात्मक सोच से हम समृद्ध करें। आज के समय में हम धैर्य रखेंगे तब ही सकारात्मक स ्वरूप में सभी धारणायें, इच्छायें पूर्ण हो सकें गी।
मनुष्य का इतिहास देखेंगे तो पाएंगें कि कितनी भी विकट परिस्थितियां हों, जीने की इच्छा इतनी बल Закрыть िया है। ВАЖНО! जीवन की ओर नई आशा से, नई ऊर्जा से देखा है। हर विपत्ति का हमने धैर्य, विवेक और कर्मठता से स ामना किया है। यह दौर भी वैसा ही है, हताश और निराश होने की आवश् यकता नहीं क्योंकि हममें जीने की अथक जिजीविषा ह ै। यह समय हमें नए अनुभव दे रहा है। थोड़ा ठहरकर ध्यान लगाना है, जो आत्मकल्याण में सहायक हो और इसके लिए बैठकर आत्मचिंतन करना होगा । अपने प्रति, अपने परिवार के प्रति और दूसरों के प ्रति, देश के प्रति।
एक तरह का मानव निर्मित स्वभाव या आदत, जो व्यक्त ित्व का अंग बन जाए, उसे व्यसन कह सकते हैं। हर व्यसन का मूलतः स्वरूप व्यक्ति को अपने पाश म ें जकड़ लेना है। फिर इसकी पकड़ से छूट पाना भी उतना ही कठिन होता है। देखा जाए तो जीवन का सबसे बड़ा व्यसन भोजन है। नहीं मिले तो व्यक्ति अनर्गल गाली-गलौज, मार-पीट, अपशब्द भाषा का प्रयोग प्रारम्भ कर देता है, कभी- कभी अपराध करने को मजबूर हो जाता है। कुछ व्यसन व्यक्ति की परिस्थितियों के कारण होन े वाले मानसिक प्रभाव से पैदा होते हैं। कुछ व्यसन भोग की प्रवृत्ति के कारण होते हैं। कुछ लोग अधिक खाने के शौकीन होते हैं। Просмотреть еще ा पीना, नशे में ही रहे, हर समय इसी तरह के भाव-चिंतन मस्तिष्क में चलते रहते हैं। Закрыть क। हर व्यसन के पीछे व्यक्ति की इच्छा शक्ति कार्य करती है। Закрыть Просмотреть еще ि सम्भवतः उक्त व्यसन से मुझे असीम आनन्द की प्रा प्ति होगी जबकि वह व्यसन से जीवन को नारकीय बना ल॥ ता है। साथ ही सकारात्मक जान पड़ने वाले व्यसन भी अन्त तः हानिकारक ही प्रमाणित होते हैं। इसीलिए व्यसनों का सभी धर्मों में निषेध है अर् थात् अति सर्वत्र वर्जयेत की युक्ति चरितार्थ हो जाती है तात्पर्य यही है कि अपने शरीर, देह को अने क-अनेक व्यसनों से जुड़ाव उत्पन्न कर देने से विक ारों की वृद्धि होती है।
सभी व्यसन या तो अज्ञानतावश शुरू होते हैं, अथवा मन की किसी अभावग्रस्त स्थिति में। गांव का बालक छोटी उम्र में ही बीड़ी पीना सीख जा ता है। वह कुछ तो घर में देखता है, कुछ संगत का प्रभाव हो ता है। साथ ही इसमें अज्ञानता का अंश अधिक होता है। थोड़े से स्व नियंत्रण से व्यसन से मुक्त कराया जा सकता है। बड़ी उम्र के व्यसनों में मन की अभावग्रस्त दशा अधिक झलकती है। Закрыть ती है, तो अपराध बोध भी देखा जा सकता है, जिस बालक को बचपन में माँ का प्यार नहीं मिले, उसका दूध पीने क ो नहीं मिले, उसके व्यसन अभावग्रस्त जैसे होंगे। जिसे अन्य भाई-बहनों के अनुपात में कम प्यार मिल े, उपेक्षा का बोध हो, अथवा भेद-भाव की क्रिया का वि स्तार होने पर उसके व्यसन अलग स्वरूप लिए होते है ं। छात्रवासों में धनी वर्ग के लड़के-लड़कियों के व्यसन सोच-समझकर पाले हुए होते हैं। यौनाचार इसका भयंकरतम रूप है। जीवन को नारकीय बनाकर ही छोड़ता है। उनके भविष्य निर्माण की उम्र कुव्यसनो में ही व ्यतीत हो जाती है। परिणाम में भी केवल पशुभाव ही मिलता है। Просмотреть еще ति का बन गया। लाखों की संख्या में इसने मनोरोगी पैदा कर दिए ह ैं। टी-वी- इंटरनेट ने आग में घी का ही काम किया है। यह भोगवादी संस्कृति का चरम बिन्दु बन गया। आज-कल तो इंटरनेट और मोबाइल फोन से लोगों से चैट करना, फिल्में देखना भी युवाओं में एक व्यसन बन गय ा है, अतः जिस उम्र में ज्ञान, शिक्षा के माध्यम से अपने जीवन को उज्ज्वलमय स्वरूप प्रदान कर सकें, उ स समय का उपयोग यदि उक्त अनर्गल कार्यों और क्रियाओं में करते हैं तो वह बालक या छात्र जीवन के लक्ष्यों से भटक जाता है और उसका जीवन नारकीय बन जाता है इसका बड़ा कारण है श िक्षा में मन और मन की वृत्तियों के ज्ञान का अभाव । शिक्षा व्यक्ति परक न होकर विषय परक हो गई। व्यक्ति स्वयं के जीवन का आकलन कर ही नहीं पाता अ र्थात् जीवन को सर्वश्रेष्ठमय बनाना है अथवा अध Закрыть गई क्रियाओं के फलस्वरूप ही स्थितियां प्राप्त ह ोती हैं। यदि बीस वर्ष का बालक कहता है कि मैं गरीब हूं तो इसका तात्पर्य परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत न्य ून है और यदि वही बालक 30 वर्ष की उम्र में कहता है क ि मैं गरीब ही हूं तो वह निर्धन रूप में न्यूनता उ स बालक की स्वयं की है क्योंकि जीवन का अधिकांश समय व्यतीत करने के बाद भी अपने Просмотреть еще । तात्पर्य यही है कि उसमें संघर्ष की भावना, इच्छ ा नहीं है और वह कर्म करने से भाग रहा है।
मां-बाप के चंगुल से भागना चाहता है। अपराध से होने वाली ग्लानि की चर्चा भी किसी से न हीं करता। व्यसन में समा जाना चाहता है। मानव स्वभाव से पशु होता है। पशु योनियों से चलता-चलता ही मानव योनि में आता ह ै। उसके सभी संस्कार उसके साथ आते हैं। मानव समाज पाशविक संसшить क्रोध, हिंसा, लोभ आदि सभी वृत्तियां तो प्राकृत िक ही हैं। इन वृत्तियों को स्वीकार करना अथवा दबा देना ही व्यसन का जनक होता है। इन वृत्तियों को दबाना भी हिंसा का ही रूप है। Просмотреть еще दूसरों के प्रति। जिस वृत्ति को भी व्यक्ति दबाने का प्रयास करता है, वही उसके अचेतन मन में पहुंच जाती है। फिर वह जाग्रत होकर भीतर ही प्रस्फुटित होती है ।
किसी भी एक भाव की निरन्तरता बने रहने से वृत्ति व्यसन रूप में प्रकट होती है। दबी हुई वृत्ति ही भय का कारण बनती है। भय के कारण व्यक्ति अपनी पशु वृत्ति को स्वीकार नहीं करता है। हमारी सारी की सारी चेतना इन्हीं दबी हुई वृत्त ियों का संग्रहालय है। Закрыть भी ढका रह जाता है। अपनी कमजोरी को स्वीकार करना ही श्रेष्ठ मार्ग है। साथ ही उस न्यूनता से निकलने का भाव-चिंतन भी होन ा चाहिये तब ही जो उसकी कमजोरी है वह समाप्त हो सक ेगी। अतः कहा जाता है कि- पशुता से मानवता की ओर अग्रस र होना है। तब नारायणमय बनने का मार्ग खुलेगा।
हर व्यसन के साथ एक भय भी होता है। यह भय मन को द्वन्द् की स्थिति में खड़ा कर देता है। मन की इच्छाशक्ति इस पाशविक शक्ति के आगे हार जा ती है। इचшить मूल बात यह है कि व्यसन व्यक्तित्व की एक खण्डित अवस्था है। इससे मुक्त होना पूर्णता का मार्ग है। Просмотреть еще ी है। यह तो व्यसन की गहनता पर ही निर्भर करेगा। इस कीमत से ही व्यसन मुक्त होने का महत्त्व समझा जा सकता है। एक भय को दबाने के लिए व्यसन शुरू होता है। मुक्त होने के लिये भय का साहस के साथ मुकाबला कर ना होता है। प्रकृति के तीन कड़वे नियम, जो सत्य है। Закрыть ाएं, तो कुदरत उसे घास-फूस से भर देती हैं। ठीक उसी तरह से दिमाग में सकारात्मक विचार न भरे जाएँ, तो नकारात्मक विचार अपनी जगह बना ही लेती ह ै।
Закрыть वहीं बांटता है।
1-सुखी सुख बांटता है। 2-दुःखी दुःख बांटता है। 3-ज्ञानी ज्ञान बांटता है। 4-भ्रमित भ्रम बांटता हैं। 5-भयभीत भय बांटता हैं। प्रकृति का तीसरा नियमः आपको जीवन में जो भी मिल े, उसे पचाना सीखो क्योंकि-
1- Когда пища не переваривается, болезни увеличиваются. 2- Когда деньги не перевариваются, понты увеличиваются. 3- Когда дело не переваривается, сплетни увеличиваются. 4. Когда похвала не переваривается, эго возрастает. 5- Когда критика не переваривается, враждебность возрастает. 6- Если секрет не переварен, опасность возрастает. 7. Когда печаль не переваривается, отчаяние увеличивается. 8-Грех увеличивается, когда счастье не переваривается.
आदमी खुद तो अंधेरे में जीता है, इस बात को भुलान े के लिए अक्सर दूसरों से प्रकाश की बात करने लगता है। इससे थोडे़ सावधान होने की जरूरत है। आपको पता ही नहीं होता वह बात भी आप दूसरे को बता ने लगते है। लेकिन ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है। जो इतना नियम मानता हो, इतना संयम और मर्यादा रखत ा हो कि जो जानता है वही बताएगा, जो नहीं जानता है नहीं बताएगा। गुरू अपने को गुरू समझता हो तो कुछ भी न होगा, क्य ोंकि वह देने को तैयार है, लेकिन साथ होने को तैया र नहीं है, और साथ हुए बिना दिया नहीं जा सकता।
इसलिए साधक जब खोजने जाता हैं, गुरू तो जिस जगह व ह अपने गुरू के पास रहता है। उसको कहते है, गुरूकुल-द फॅमिली ऑफ द मास्टर। वह केवल गुरू का परिवार है, उसमें जाकर वह सम्मिल ित हो जाता है। पर यह निकटता दोहरी है, सभी निकटताएं दोहरी होती है। इसलिए गुरू कहता है, हम दोनों एक साथ पुरूषार्थ क रें, पराक्रम करें, श्रम करें, साधना करें। गुरू भी एक बड़ी साधना है। सभी जानने वाले गुरू नहीं हो पाते। इस जमीन पर बहुत लोग जान लेते हैं, लेकिन जना नही ं पातें जान लेना इतना कठिन नहीं। एक राजा को राज भोगते हुये अनेक वर्ष व्यतीत हो ग ये थे। बाल भी सफेद होने लगे थे तथा शरीर भी धीरे-धीरे क ृषकने अपने दरबार में उत ्सव रखा और अपने राजगुरु व मित्र देश के राजाओं को आमंत्रित किया।
उत्सव को रोचक बनाने के लिये राज्य की सुप्रसिद ्ध नर्तकी को बुलाया गया, राजा ने कुछ स्वर्ण मुद॥ राये अपने राजगुरु भी दी ताकि नर्तकी के अच्छे गी त और नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा, ब्रह्म मुहुर्त की बेल ा आयी नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊंघ रहा ह ै और तबले वाले को सावधान करना जरुरी है वरना राजा का क्या भरोसा कुछ भी दण्ड दे दे तो उसको जगाने के लिये Танцовщица продекламировала куплет - Бахубити остался немного, потратил каждое мгновение, ведь ни на одном мгновении не запятнать себя. अब इस दोहे को वहां देख रहे व्यक्तियों ने अलग-अल ग अपने अनुरुप अर्थ निकाला तबले वाला अब सतर्क हो कर बजाने लगा। जब यह दोहा राजगुरु ने सुना तो गुरुजी ने सारी मो हरे उस नर्तकी को अर्पण कर दी। दोहा सुनते ही राजा की लड़की ने भी अपना नौलखा हा र नर्तकी को भेंट कर दिया। दोहा सुनते ही राजा के पुत्र युवराज ने भी अपना म ुकुट उतार कर नर्तकी को समर्पित कर दिया।
राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द होकर तुमने सबको लूट ल िया। जब यह बात राजा के राजगुरु ने सुनी तो गुरु के ने त्रों में आंसू आ गये, और गुरुजी कहने लगे- राजा इसको नीच नर्तकी मत कहो, यह अब मेरी गुरु बन गई है, क्योंकि इसने दोहे से मेरी आंखे खोल दी हैं । दोहे से यह कह रही है कि मेरी सारी उम्र जंगलो मे ं भक्ति करते हुये व्यतीत हुई और आखिर समय में नर॥ तकी का मुजरा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहां चल ा आया हूं। ВАЖНО! मैं तो चला। यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े। राजा की लड़की ने कहा- पिताजी! मैं जवान हो गयी हूं, आप आंखे बंद किये बैठै हैं, म ेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैं आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद करने के लिये निकल ना चाहती थी, लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुम ति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही, क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है।
युवराज ने कहा- पिताजी आप वृद्ध हो चले है फिर भी राज नहीं दे रहे थे मैंने आज रात ही आपके सिपाहियो ं से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने समझाया कि पगले! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है। क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है धैर्य रख। जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्मज ्ञान हो गया, राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैसला लिया क्यों ना मैं अभी युव राज का राज तिलक कर दूं, फिर क्या था उसी समय राजा न े युवराज का राजतिलक किया और अपने पुत्री को कहा- ВАЖНО! दरबार में एक से बढ़कर एक युवा राजकुमार आये हुय े हैं, तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रूप में चुन सकती हो। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जं गल में गुरु की शरण में चला गया। यह सब देख कर नर्तकी ने सोचा मेरे एक दोहे से ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तियों में सुधार आ गया लेकिन मैं क ्यों नही सुधर पायी? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया, उसने उसी स मय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा नृत्य बंक द रती हूं और कहा कि ''हे प्रभु! मेरे पापो से मुझे क्षमा करना बस आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुंगी''
Бахубити оставался немного, пока проводил каждый миг
Не получайте клеймо из-за момента.
अर्थात् जीवन में जो भी सुकृत और श्रेष्ठ कार्य करें, उसमें निरन्तरता बना कर रखें, थोड़ी सी भूल भी जीवन को पूर्णरूपेण नारकीय बना सकती है। तात्पर्य यही कि छोटी सी गलती से भी जीवन कलंकित हो जाता है। जो पूरे जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। कलंक रहित जीवन के लिए निरन्तर सुकर्म करने से ह ी जीवन में सर्वेाच्चता की प्राप्ति संभव हो पात ी है। भारतीय उपनिषदों और पुराणों में कुस्थितियों औ र बुराईयों से निवृत्ति हेतु व्रत की महिमा बताई गई है, व्रत का तात्पर्य ही व्यक्ति को भाग-दौड़ स सोचने का अवसर प्रदाकक रता है। इसी से जीवन में नूतन दृष्टिकोण और भीतर में प्र ेरणा और उत्साह का स्फुरण होता है। मानसिक चिन्तन का व्रत व्यक्ति के जीवन की न्यू नता को तेजी से समाप्त करता है। अतः व्रत का तात्पर्य भूखा-प्यासा नहीं रहना वर न व्रत एक संकल्प का भाव-चिंतन है। जिस तरह से साधारण स्वरूप में व्रत के समय अन्न का परित्याग करते हैं, ठीक उसी तरह जीवन के विकार ों और व्यसनों को समाप्त करने के लिये व्रत रूपी त ंकल्प लें साथ ही दृढ़ता से अपने आत्मशक्ति को मज बूत करते हुये अटल रहें कि मेरे विकार और व्यसन प नः जीवन में लौट कर नहीं आयेंगे। सही अर्थो में यही व्रत का भाव चिन्तन होता हैं। वही मन के विकार रूप में अनर्गल व्यसनों और कुवि कारों स्वरूप में आलस्य, प्रमाद, कर्महीनता, अनर् गल खान-पान, स्वयं के प्रति लापरवाहमय स्थितियां क्रोध व दूसरों पर आधिपत्य बना कर रखना ये सभी कुस बिखराव उत्पन्न करत। है और जीवन का कोई श्रेष्ठ हेतु, उद्देश्य निर्मित नहीं होता और न ा ही गृहस्थ जीवन में उच्चता आ पाती है। अतः सही स्वरूप में व्रत का भाव-चिंतन अपने आपमे ं सुपरिवर्तन करते हुये निरन्तर जीवन को श्रेष्ठ दिशा की ओर क्रियान्वित करना ।
बुद्ध से किसी ने आकर पूछा एक दिन, कि ये दस हजार भ िक्षु हैं, आपके पास वर्षों से आप इन्हें समझाते हैं, सिखाते हैं, चलाते हैं। साधना पथ पर, कितने लोग इनमें से आप जैसे हो गये? कितने लोग बुद्ध बन गये? स्वभावत प्रश्र बिलकुल उचित था, बुद्ध की परीक् षा है इसमें कि कितने लोगों को बुद्ध बनाया। बुद्ध ने कहा कि इनमें बहुत लोग बुद्ध हो गये हं । तो उस आदमी ने पूछा कि एक भी दिखाई नहीं पड़ता तो बुद्ध ने कहा क्योंकि वे गुरू नहीं हैं। जाग जाना एक बात है, लेकिन दूसरे को जगाना बिलकुल दूसरी बात है, जरूरी नहीं है कि जागा हुआ दूसरों क ो जगा ही पाये क्योंकि जागे हुए को भी अगर दूसरे क ो जगाना हो तो वहीं आकर उतरकर खड़ा हो जाना होता ह ै जहां दूसरा खड़ा है, उन्हीं अंधेरी घाटियों में, उन्हीं लोगों के नि कट जो भटक रहे है। उन्हीं का हाथ हाथ में लेकर। कई बार तो उसे उस यात्रा पर भी थोड़ी दूर तक उनके साथ जाना पड़ता है, जहां नर्क के और कुछ भी नहीं। अगर मैं आपका हाथ पकड़कर थोड़ी दूर आपके साथ चलू ं, तो ही इतना भरोसा पैदा होता है, कि कल अगर मैं अप ने रास्ते पर आपको लेकर चलने लगूं, तो आप मेरे साथ चल पायें। शिष्य के साथ गुरू को चलना पड़ता हैं, ताकि गुरू के साथ शिष्य चल पायें। और बहुत बार शिष्य को ऐसे रास्ते पर चलना पड़ता ह ै, जिस पर उसे नहीं चलना चाहिए था, जिसे बदलना है उ सके पास आना जरूरी है।
इसलिए गुरू कहता है, हम दोनों साथ ही पराक्रम करे ं, पुरूषार्थ करें। हम दोनों साथ ही साधना करें। और गुरू वहीं हो सकता है जो शिष्य के साथ साधना क रने को तैयार हो, गुरू वही जो शिष्य के साथ पहले कद म से फिर चलने को राजी हो-अ, ब,स से यात्रा शुरू करनू को राजी हो, फिर शिष्य का हाथ पकड़कर जो वहां से शुरू कर सकता है, जहां से उसे अब शुरू के क रने की कोई जरूरत नहीं। जो मंजिल पर खड़ा है, और मंजिल प्राप्त करने के ल िये यात्रा के पहले कदम को उठाने का शिष्य के साथ थ ाहस जुटा सकता है, वहीं केवल सद्गुरू होते हैं। इसलिए गुरू कहते है, हम दोनों साथ ही पुरूषार्थ क रें। हम दोनों की विद्या तेजस्वी हो।
Если не получилось после попытки, что не так?
यानी यत्न करने के बावजूद कार्य सिद्ध न हो तो उस में मानव का क्या दोष? कई बार मनुष्य कार्य सिद्ध नहीं होने के फलस्वर ूप यही विचार करता है कि मृत्यु को प्राप्त हो जाय ें, जबकि कार्यसिद्धि में अवरोध के फलस्वरूप मृत ्यु को प्राप्त होना समाधान नहीं हैं। सही अर्थों में इन अवरोधों का सामना तीन चीजों स े किया जा सकता है- धैर्य, दूरदर्शिता और हिम्मत। इन तीनों की मदद से ही व्यक्ति समस्याओं से उबर स कता है। कुछ लोग जीवन में एक आदर्श के रूप में अपना मार्ग निर्धारित करते हैं। कोई ध्यानमार्गी है, कोई भक्तिमार्गी, कोई कर्म योगी लेकिन इसके साथ-साथ जीवन में समग्रता, संतुल न और पुरुषार्थ की पराकाष्ठा से समस्या को धराशाय ी किया जा सकता है और चुनौतियों को अपनी मजबूती म ें बदल देना चाहिये। जबकि अधिकांश सांसारिक मनुष्यों का कोई ध्येय, उद्देश्य नहीं होता, केवल मात्र मनुष्य जीवन प्रा प्त हो गया, उसे येन-केन प्रकारेण व्यतीत करना है । ऐसे मनुष्यों के जीवन का कोई हेतु, उद्देश्य नही ं होता। Закрыть ा स्वरूप में ही समाप्त हो जाता है और साथ ही आने व ाली पीढि़यों को भी ऐसी ही उक्त विषम स्थितियां प ्रदान करते हुये मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। Закрыть त है, इस समय हमारा जोर रोग प्रतिरोधक क्षमता यान ी इम्यूनिटी बढ़ाने पर भी होना चाहिए। इसके लिए रोज कम से कम एक-एक घंटे सुबह-शाम योगास न, प्राणायाम और ध्यान करें। Просмотреть еще रत हैं। यह समय अपनी सेहत सुधारने का जब शरीर से पूर्ण स् Закрыть ो सकेगी। शरीर, मन, विचार, भावनाओं के दिव्य आत्म-परिवर्तन के लिए इस समय का उपयोग करें। अपने आप को और तैयार कर लें। इस वक्त का, उपयोग हम अपने व्यक्तित्व विकास में करें। इस दौरान हमें दिव्य परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरकर दिव्य व्यक्तित्व और दिव्य जीवन की प्राप ्ति करनी चाहिए। अर्थात् जीवन को पूर्णरूपेण अंधकार से निकालकर जाज्वल्यमान प्रकाशमय निर्मित करना है।
जब हम कहते हैं कि प्रार्थना करों तो हम उच्च ऊर् जा वाले विचार बनाते हैं। इस परिस्थिति में भी उच्च ऊर्जा विचार बनाना है ं। प्रार्थना के समय यही भावना हो कि मुझे मेरी प्र ार्थना को प्रैक्टिकल में लाना है अर्थात् प्रार ्थना में जो भी भाव-चिंतन है, उसे जीवन में पूर्णर ूपेण उतारने की क्रिया करनी है तब ही हमारे द्वार Просмотреть еще ही उच्च ऊर्जा वाले Закрыть ंगे क्योंकि संकल्प से सृष्टि बनती हैं संकल्प क ी शक्ति से ही जीवन धारणायें, इच्छायें पूर्णरूप ेण सकारात्मक रूप में क्रियान्वित हो सकेंगी। सर्व शक्तिमान परमात्मा ने हमारी रचना ही इस प् रकार की हैं, कि हमें दिन और रात दोनों की अनुभूति आवश्यक हैं। इसलिए आज का यह घनघोर अंधकार कल नव प्रभात लेकर आ एगा। इसलिए हर परिस्थिति में सकारात्मक रहकर इस कठिन समय में उपजी कुण्ठा, आशंका और निराशा से बाहर नि कलें और स्वस्थ, सम्पन्न जीवन की ओर बढ़ें यह आप के साथ देश को भी नए अवसरों की ओर ले जाएगा।
संघर्षमय जीवन का उपसंहार ही हर्षमय होता है। एक-दूसरें के प्रति प्रेम ही जीवन की सार्थकता ह ै। इसलिए पहले आपको चिंता का त्याग करना है क्योंक ि इसमें बहुत ऊर्जा और समय नष्ट होता है। इसलिए चिंता छोड़ो साहस को जोड़ों जब आप यात्रा करते हैं और गाड़ी खराब हो जाती है तो क्या करते ह ैं? यात्रा रोककर गाड़ी ठीक करते हैं और फिर आगे की ओ र बढ़ते हैं। हमें इसे मिलकर ठीक करना है। साहस से ही गाड़ी आगे की ओर बढ़ चलेगी। लेकिन इसके लिए व्यक्तिगत, परिवार और सामाजिक स ्तर पर हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। अगर रास्ता बंद हैं तो इनका भी मूल्य समझिये कि ह म घरों में बंद रहकर जीवन को फिर से नए ढंग से जीना सीख रहे हैं और इसका कितना फायदा हुआ है, वह बहुत अमूल्य है। इसका आपको अंदाजा भी नहीं है। आप देखिए कि आप अपने ही पास आ गए हैं, अपने परिवार के पास, अपने वातावरण के पास आ गए हैं।
सबसे अच्छा जीवन तभी जिया जा सकता है, जब हम हरदम इसे ज्यादा से ज्यादा सरल बनाने की कोशिश में लगे रहें। जीवन में वह समय भी आता है, जब जवाबों को खोजने की जरूरत पड़ती है और कभी ऐसा वक्त भी आता है जब सवाल ों को उसी स्थिति में छोड़ देना ही बेहतर हो जाता है। अगर हर जवाब अगले सवाल भी बढ़ते जाएं तो फिर यह उ लझनों, मानसिक अशांति और जीवन में मौजूद यह शोर कभ ी खत्म नहीं होने वाला। और अगर जिंदगी इन्हीं उलझनों और त्रास में फंसी रहीं, तो जीवन के असली आनंद को महसूस कीजिए और पूर े आनंद से अपना जीवन जिएं। हमारे ज्ञान, असीमित बुद्धिमत्ता से भी हम जीवन के बारे में कुछ खास नहीं समझ सकते। आप जीवन के सार को खोजने के लिए भले ही हर संभव प् रयास करते हैं, वह सब कुछ करने की कोशिश करते हैं, ज , Закрыть । निर्वाण, मोक्ष या ठहराव तो दरअसल जीवन के विरोध ाभासों को संतुलित करने से ही मिलेगा। जीवन-मृत्यु, लेना-देना, आत्मकेंद्रित या जुडे़ रहना, साम्य या बिखराव सारा जीवन ही विरोधाभासों से भरा हुआ है। सवाल है कि इन सब विरोधाभासों के भंवर में बीच का रास्ता कैसे मिले। इन सब उलझनों और विरोधाभासों के बीच झूलते हुए, ज िंदगी में सबकुछ हासिल करने के बाद भी महसूस होता है कि जैसे हमें जीवन का मूल ही समझ नहीं आया, लगत ा है कि आज भी वहीं खड़े हैं, जहां से शुरूआत हुई थी ।
आप इस खोज में जीवन की दौड़ में भागे जा रहे हैं। क्योंकि आपको लगता है कि इस जीवन के अंतिम पड़ाव से भी आगे कोई नयी शुरूआत है। जहां से शुरू किया था, वहीं फिर से वापस आने के लि ए आप भागे जा रहे हैं। जैसे कि महान दार्शनिक उमर खय्याम ने कहा था- मं उसी दरवाजे से बाहर आया हूं जिससे मैं भीतर गया थ ा। इस दुनिया की आपसे अपेक्षायें, खुद की खुद से उम् मीदें असीम हैं, अनंत हैं, इनका कोई ओर-छोर नहीं है । ये उम्मीदें फिर उसी मानसिक अशांति को ओर ले जाए ंगी। सवाल है कि क्या यह वाकई उतना मायने रखता हैं? सवाल यह भी है कि जीवन का मकसद क्या है? फिलहाल एक काम कीजिए-एक गहरा श्वास लीजिए और धीर े से कहियें शांति! ТЫ! यानी भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान को भरपूर जियें। हां, यह बात बिल्कुल ठीक है कि सुनहरे भविष्य की कल्पना करना बुरा नहीं है। जीवन अच्छे भविष्य की कामना के साथ भी जिया जाना चाहियें। हमें इस क्षण को भी महसूस करना शुरू करना होगा। अभी मुस्कराइयें, क्योंकि खुशी-प्रसन्नता इसी क्षण सामने है और अभी है। खुशी चेहरे पर आने से , मुस्कराहटों को होंठों पर आने से मत रोकियें। जो कुछ होगा इसी क्षण में घटित होगा, होने दीजिये ं। अब फिर से एक गहरी सांस लिजियें। चेहरे पर कोई तनाव मत लाइये, रिलेक्स कीजियें और खुद को हल्का महसूस कीजियें।
आइयें जीवन के हर क्षण को महत्वपूर्ण बनायें। इस क्षण के लिए सजग, जीवंत और सचेत हो जायें। भले ही आपने जिंदगी बहुत अच्छी गुजारी हो या जीव न अभावों में गुजरा हो, जिंदगी के खेलने के बाद जा ना सबको एक ही जगह होता है। हम अपने साथ जो करते हैं, वही हमारे साथ जाता है औ र जो दूसरों के लिए करते हैं वह सब यहीं, इस दुनिया में रह जाता है। हर क्षण के बाद अगला क्षण आयेगा इसलिये हर क्षण क ो उपयोगी बनाये, हर क्षण जीवन की पूर्णता के साथ ज ियें और इस जीवन को जीवंत बनायें।
Закрыть हियें, लेकिन इस सब में मौजूदा वक्त, इस क्षण को जी ना भूलना नहीं चाहियें। वहां जैसी कोई जगह नहीं है, जहां पहुंचने की बात की जाती है। कोई अंत नहीं है, कोई शुरूआत नहीं है। जीवन एक सतत प्रवाह हैं। इसके हर पल को जिये, इसके हर पल का पूरा उपयोग करे ं। Закрыть कहें, शांति! ТЫ! यानी चिंता छोड़ वर्तमान को भरपूर जियें। अभी मुस्कुराइयें, क्योंकि खुशी-प्रसन्नता इस ी क्षण में है, जो भी सुखद अनुभूति सामने घट रहीं ह ै, उसे महसूस करके प्रसन्न होइयें। भविष्य कल घटित होगा। यह क्षण सामने है और अभी है।
Его Святейшество Садхгурудев
Г-н Кайлаш Шримали
Обязательно получить Гуру дикша от почитаемого Гурудева до выполнения любой садханы или принятия любой другой дикши. Пожалуйста свяжитесь Кайлаш Сиддхашрам, Джодхпур через Эл. адрес , WhatsApp, Телефон or Отправить запрос чтобы получить посвященный энергией и освященный мантрой материал садханы и дальнейшее руководство,
Отправить по: