आयुर्वेद में उल्लेख है कि वात, पित्त, कपफ़ तीनों क संतुलन जब मनुष मनुष मनुष श्त के इन तीनों क क संतुलन जब मनुष के श्त के अंद ज ज ज संतुलन तो ोगों ोगों ोगों श के के अंद बिगड़ ज ज है है तो ोगों ोगों क जन आ अंद अंद होत है है है।।। यह असंतुलन हमXNUMX जो भोज्य पदार похоже वात, पित्त, कफ़ का शमन क हैं हैं, वह शमनक शमनक शमनक शमनक कुपितक कुपितक कुपितक कुपितक कुपितक कुपितक कुपितक कुपितक औ जो तीनों में सन सन खते खते वे संतुलनक भोजन कहल कहल में में सन सन हैं हैं कहल कहल कहल कहल कहल कहल हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन सन खते हैं क सन खते क क क खते हैं क क हैं क हैं, ये तीनों स्वभाव से सम्बन्ध रखते हैं। अतः परिस्थिति व स्वभाव को ध्यान मे रख कर भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये।
कड़ी मेहनत करने वाला मनुष्य गरिष्ठ भोजन व अधिक म मXNUMX वाले भोजन को पचाने की क्षमता रखता है।।।।।।। लेकिन मानसिक रूप से कार्य करने वाले के हल हल्का व कम भोजन लेना ही हितकर है।।।।।।।।।।। है भोजन के ब| मे यह स स स स विदित ही कि भूख लगने प भूख से कम म म म म म में क का चाहिये। अतः भोजन हमारे स्वस्थ जीवन का प्रथम स्तम्भ है
स्वस्थ जीवन के मनुष मनुष्य अपनी दिनचा में श शारीरिक श्रम के लिये अवश्य ही समय निक निकालें।।।। निक निक निक निक निक।।।। निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक शारीरिक श्रम के बिना भोजन के पचने मुश मुश्किले होती हैं।।।।।।।। जिससे व्यक्ति को क क भूख नहीं लगती लगती, जो मनुष्य श श श श भूख नहीं लगती जो मनुष्य श्य श श श्य श्य श उन्य व्य व योग प प प प गती गती गती गती गती गती गती गती गती गती गती गती गती गती потеря गती गती गती गती потеря कम कम कम कमvenकम य कम कम कमvenकम य गती कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम कम потеря जो मनुष्य श शXNUMX
मानसिक श्रम करने वालों को भी अपने मन को विशшить देना चाहिये मन व व मन को विश्राम देना चाहिये मन व वшить व के विच विचXNUMX नींद के भी मन शांत नहीं XNUMX वह में खोय खोय खोय खोय Как हत है।।।। मन को विश्राम देने के लिये ध्यान प्ा अथव अथव के ध ध्यान प्रक्रिय्रिया अथव्रभु क्यान प्en अथव स्य्मВу क प विशшить क तथाम स्मरण क से मन को विश्राम तथाजगी का होत है। को विश्राम इसलिये शरीर के विश्राम के साथ-साथ मन विश विशшить देना भी अति आवश्यक है।।।।।। हमारे स्वस्थ जीवन के लिये विशшить
मुख्यतः श выполнительный मन में विचार आया कि यह चीज खानी है तो श выполнительный मन में शुद्ध विचारों का, शुभ संकल्पों का उदय तो ही शXNUMX मन की श|
मन श श श Как खने लिये अपने मन के आह आह आह को शुद शुद खन खन हमें मन के आह आह को भी शुद शुद खन खन खन हमें अच अच ब को सुने सुने स स्ध खन पडे़ग हम अच ब ब सुने सुने स स स स पढें सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश दृश तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ बु बु तथ तथ तथ सुने शुद, से स्वस्थ हो सकते हैं। मन और शरीर दोनों के शुद्ध और स्वस्थ होने प ही पू पूा अतः हमें अपने मन का मानसिक संतुलन बनाये रिना चाय
हमारा शरीर पंच तत्वों से बना हुआ है। प्रकृति में यह तत्व अलग-अलग है। भूमि तत्व पृथ्वी में जल तत तत्व चन्द्रमा में, अग्नि तत्व सूर्व में, वायु तत्व वाताव तत तथ तथ आक आक तत्व तत्व स स स है है।। तथ तथ। स स स स स स o स है स o यह पांचों तत्व मिल कर हमारे शरीर का निर्माण क। त। त। यदि हमारे शाये में एक तत्व की थोड़ी कमी हो ज ज तो श शXNUMX अतः इन पंच तत्वों का संतुलन भी शरीर में अतईकहऍवशथथ ये सभी तत्व ईश्वर द्वारा प्रदत्त है।
इन्हे पाने के किसी मूल मूल्य की, किसी श श की आवश्यकता नहीं है है जीवन लिये ये प प बहुमूल बहुमूल है से के बिन भी जीवन जीन संभव है। जिसमें से के बिन भी जीन संभव नहीं।। जिसमें एक के भी जीवन जीन नहीं।। जिसमें जिसमें जिसमें व्यक्ति के लिये बहुमूल बहुमूल्य चीजों को प्रभू ने अधीन ही ख खшить तथ को प Вивра ने अधीन ही ख ख है तथ ऐस प्रभू ने अधीन ही ख है तथ तथ ऐसXNUMX
Земля-मनुष्य जब जन जन्म लेता है औXNUMX यह पृथ्वी अपनी मिट्टी द्वारा अन्न, फल, फूल, औषधि आक आकाश, जल, वायु औा यदि हमें ये वस्तुयें पшить
огонь- अग्नि तत्व वह चेतना है, जिसके बिना हम कोई भी क क98 क क में सम सम सम सम हो सकते हैं।।।।।।।।।। हमा вмести यदि यह तापमान कुछ कम जшить मृत्यु के उपरांत शरीर की ऊष्मा समाप्त हो जाती ही अतः अपने शा की अग्नि हमारे स्वस्थ जीवन का एक आवश्यक तत्त्व है।।।।।।।।। जो प Вивра ने सू सू सू सू के द्वारा प्रदान किया है हमें नित नित्य सू की की पूजा करनी चाहिये, उन उन जल चढ़ समय जल की ध ध क में उनक उन्हें जल चढ़ समय जल की ध ध में में उनक उन्हें अवश अवश देखें। की की ध ध में उनक उन्हें अवश अवश देखें देखें।।।।।।। देखें देखें अवश अवश उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक उनक o उनकी आराधना करते समय यह ध्यान करें कि सूर्य की तेजस्वी कि कि से हम हमाen ा सूर्य की यह उपासना प्रातः काल करनी चाहिये।
Небо-जिस प्रकार हमारे चारों ओर सर्वत्र आकाश है। इसी प्रकार हमारे शरीर में भी आकाश है। शरीर में अनेकों-अनेकों जीवन कोष है, जो गतिशीलथरहथ वायु का संचरण तथा रक्त संचरण शाली ख ख जगह जगह जगह जगह आक आकाश) में होत होत है अर्थात् आकाश का होन भी अनिव अनिव है।।।।।।।।।।।।।।।
Вода-मनुष्य के शरीर में द्रव की मात्रा सबसे अधिक है। व्यक्ति चौबीस घंटों भोजन भोजन 2 या 3 बार ही लेता है, लेकिन दस दस-पनховное जल हमारे शा की अंद एवं ब बXNUMX हम भोजन के बिना कुछ व व्यतीत कर सकते है, लेकिन के बिन बिन जीवित नहीं ह सकते। जल के उचित प्रयोग से स स्वस्थ रहने में सहायता मिलती हैं।।।
Воздух-जहाँ आकाश व जल होंगे वहाँ वायु (आक्सीजन) भी अवथ्य भी अवथ्य जिस प्रकार मछली जल के बिना नहीं रह सकती। हम भी वायु के बिना नहीं रह सकते। शुद्ध हवा का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होता है। रोग हो जाने पर वायु प выполнительный
इन पंच तत्वों की हमारे शरीा यह पंच तत्व प्रकृति प्रदत्त होने के कारण सर्व सुलभ, सा इनका उचित उपयोग कर हम स्वस्थ जीवन जी सकते है।
आज के भौतिक युग में हम इन सभी नियमों क पXNUMX
Обязательно получить Гуру дикша от почитаемого Гурудева до выполнения любой садханы или принятия любой другой дикши. Пожалуйста свяжитесь Кайлаш Сиддхашрам, Джодхпур через Эл. адрес , WhatsApp, Телефон or Отправить запрос чтобы получить посвященный энергией и освященный мантрой материал садханы и дальнейшее руководство,
Отправить по: