व्यक्ति की जितनी भ भाग्य में लिखी है, वह है है, पाग यदि व व है वह सही है है प प पXNUMX यदि व नित नित प है है है प प प पXNUMX यदि व नित नित प प है है है प प प प प क क तो जितने समय समय तक वह प्राणों आय उतन ही समय समय तक तक समय समय समय समय तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक तक आयु आयु को को को आय को आय आय आय आय आय आय आय ch शरीर-शास्त्र के अनुसार इसकी व्याख्या करें, तो यदि श्वास-प्रश्वास की गति को लयबद्ध किया जाय, तो शरीर में स्थित समस्त परमाणु एक निश्चित गति के साथ गतिशील होने लगेंगे तथा विभिन्न दिशाओं में भागने वाला चंचल मन अन्तर्मुखी होकर इच्छाशक्ति में परिणित हो जाएगा । यह दृढ़ इच्छाशक्ति जब स्नायु प्रवाह में प выполнительный यह एकमुखी गति श्वास-प्रश्वास केन्द्र प्वास-प похоже к प्राणायाम मुख्यतः आठ प्रकार के होते हैं, जिन्हें योग्य गुरू के सानिध्य में रहकर ही सीखना चाहिये, साथ ही साथ प्राणायाम के अच्छे अभ्यास के लिये नाड़ी शोधन कर अपनी आधारशिला भी मजबूत बना लेनी चाहिये, जो कि प्राणायाम का प्रथम चरण है।
импульсный процесс очистки
पद्मासन में बैठकर दायें हाथ के से द द नथुने को दब दबाक पाथ के से द द नथुने को दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब दब o दब अन अन अन अन भ प पшить कि प्ियver र व वшить कि व वшить कि वшить कि व्िया एहस वшить कि व्।ा आपको वшли. फिर बिना कुम्भक किये ही दहिने नथुने से धीरे-धी Как क करें, अर्थात् श्वास पू पूरी तरह से बाहर निकाल दें।।।।।।।।।। दें दें।। इसी प्रकार नासिका के बायें छिदшить से पूा प्राण वायु का पूरक करके बिना कुम्भक किये ेचक कर दें। यह एक क्रिया हुई। नित्य अभ्यास से इनकी संख्या बढ़ाते हुये 60 तक ले ल।
यह क्रिया सिद्ध होने पर शरीर की छोटी-बड़ी सभीी नता तथा शिराओं की शुद्धि होकर शरीर में सर्वत्र रक।र,रक।त, Просмотреть еще ाधार से उठकर उर्वमुखी हो जाती है, कुण्डलिनी जाग्ी जाग्ी हो का क्रम प्रारम्भ हो जाता है तथा ध्यान की स्थिरता बढ़ जाती है।
Водолей Пранаяма
Он бывает двух видов-
क) Пранаяма с беременными семенами– सुखासन में बैठकर बांई नासिका दшить. पू выполнительный
इसके बाद 32 बार 'ऊँ' का उच्चारण करते हुये दाहिनी नासिका से ा यही क्रिया दूसरी नासिका से दोहरायें। बीस मात्र का यह प्राणравия कनिष्ठ पшить मध्यम प्राणाम से ज्ञान तन्तुओं से स्पन्दन प्राдолвли
(б) Кумбхак Пранаяма с Нигарбхой- यह सगर्भ कुम्भक के समान ही होता है, प выполнительный
Сурья Бхеди Пранаяма
Закрыть ं बैठकर सूर्य नाड़ी या पिंगला अर्थात् दायें ।थ।२थ् Закрыть ाण वायु को कंठ, हृदय और उदर में भरकर यथाशक्ककि ।ुम ं।
इस क्रिया में ऐसा अहसास होना चाहिए, कि शिख से लेक लेक32 जब घब घबराहट प प्रतीत होने लगे लगे, तब दायें नथुने दब दब्रतीत होने लगे तब द द नथुने को दब प्ाक होने लगे लगे द द नथुने को दब दब चन्द्दравия इस प्राणायाम में ब बXNUMX पлатья प्रम्भ में प्राणाम को प|
Уджайи Пранаяма
पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या किसी भी ध्यानासन में बैठक दोनों नथुनों से धी धीरे-धीरे श्वास ले तथ व व को ऊप तालु प अनुभव क ले इस व को ऊप तालु प क क तथ तथ तथ व व अब निगलने सी क्रिया करते हुए गर्दन को आगे झुक कXNUMX इस अवस्था में सिर औा सामर्थ्यानुसार इस स्थिति में रहे। अब धीरे-धीरे बायी नासिका से XNUMX इस क्रिया को उज्जायी प्राणायाम कहते है। इस प्राणायाम के अभ्यास से कफ जनित रोग नष्ट होह। त।
Шитали Пранаяма
जीभ को थोड़| अब सीत्कार का सшить उत्पन्न करते हुए जो से श्वास लें जीभ प इसकXNUMX तत्पश्चात् दोनों नासिकाओं से रेचक करें। यह प्राणायाम श्वसन संस्थान की रोग पшить
Бхасрика Пранаяма
यह प् Каквал सिर्फ ध्यान रखने की बात यह है, कि सामर्थ्यानुसार साधक लुहार की धौंकनी के समान श्वसन-प्रश्वास की गति को वेग पूर्वक, लयात्मक स्थिति रखते हुए उस समय तक करता रहे, जब तक कि वह पसीने-पसीने न हो जाएं, इस बात का ध्यान रखें, कि श्वास-प्रश्वास लम्बा और पूरा हो।
Бхрамари Пранаяма
सुखासन या पद्मासन में सीधे बैठक बैठक न नXNUMX तत्पश्चात् मुख और नासिका से भृंगी कीट के सम सम संगीतमय स्वर उत्पन्न करते हुए धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़े। इस प्रकार का अभ्यास हो जाने पर कानों को करके पूXNUMX नि выполнительный
Пранаяма Водолея в обмороке
मे выполнительный अब समस्त विकारों को त्यागते हुए मन को भृकृटि में एकाग्र करें जिससे निद्रा जैसी स्थिति उत्पन न जाय। यह प्राणायाम मानसिक चिन्ताओं और तनावों को दूर क चित को श श क तन सह होत दू क तथ चित चित को को श क में सह सह होत है है तथ नि नि o
Кевали Пранаяма
24 घण्टे निरन्तर किया जा सकता है। इसमें श्वास-प похоже к इसбина प्र्रстравные जब श्वास भीतर जाये, तो वह ऐसा अनुभव करें, कि उसमें दिव्य प्रकार है, जो 'सोऽहम्' मंत्र के उच्चारण के साथ भृकुटि और हृदय से होता हुआ मूलाधार में जा रहा है और पुनः उसी मार्ग से वह प्रकाश युक्त प्राणों का प्रवाह बाहर निकल कर दिव्य चेतना के सागर में विलीन हो रहा है।
प्राणायाम क्रिया द्वारा ध्यान की स्थिरता द असीम आनन आनन Вивра की स्थिरता होने से असीम आनन्द की प्राप्ति होती तथ तथ प प्राण औ मन सभी सभी से पूчей से सेчей से से प पूшить से प पूжде
Нидхи Шримали
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