प्राедадол यज्ञ की के आस आस पास घूमता स साधक याचक भी पत्नी मांगता है पुताधक याचक भी पत्नी म म म, पुत्र मांगता है, धन म म है, यश, ана सम्र म म म है। यश, असल में जिसके चित्त में संस संसXNUMX जिसके चित्त में वासनाओं का जाल है उसके पшить यहां एक बात और समझ ज जरूरी है जब कहते हैं हैं, सांसारिक मांग नहीं, तो ब ब मन में खय खय उठत है तो गै गै स अनेक म तो सकती न न है तो गै गै स अनेक तो सकती न न है तो गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै गै तो तो न न न जब कहते हैं, संसार की वस्तुओं की कोई चाह नहीं, तो खयाल उठ सकत सकत है कि मोक्ष की वस्तुओं की च तो सकती है न न! नहीं मांगते संसार को, नहीं मांगते धन को, नहीं मांगते वस्तुओं को।। मांगते है शांति को, आनंद को। छोडे़, इन्हें भी नहीं मांगते है प्रभु के दर्शन को, मुक्ति को, ज्ञान को।।।।।।।।।।। ईश्वर को पुकारा गया है बहुत नामों से। अनेक-अनेक संबंध मनुष्य ने ईशшить के साथ स्थापित किये हैं। कहीं ईश्वर को पिता, कहीं माता, कहीं प्रेमी, कहीं मित्र कहीं कुछ औ औ ऐसे बहुत संबंध आदमी ने प सत सत के स स स स क संबंध कोशिश की सत सत के स स स स क की की है सत सत सत सत सत सत की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की इसे थोड़ा समझ लेना आवश्यक है। यह बड़ी अंतर्दृष्टि है। परमात्मा को प प्रेम से पिता, माता पुकार सकते हैं हैं लेकिन उसे पुक पुक पुक समझ कम औ नासमझी जшить है।।।।।।।।।। परमात्मा से हम कXNUMX क्यो? क्योंकि संबंध एक अनिव अनिवXNUMX मैं हूँ, मेरे पिता हैं तो दोनों का होना जरूरी है। मैं य या मेरी माँ है, तो दोनो का होना जXNUMX है तो, तो प प प प प प प प प हो हो हो हो होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत है है मिट मिट मिट मिट मिट मिट से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से कभी कभी से से कभी कभी
कबीर ने कहा है- 'खोजने निकला था, बहुत खोज की औ तुझे नहीं पाया। खोजते-खोजते खुद खो गया तब तू मिला।' वह खोजने थे वह जब तक थ थ तब तक उनसे कोई मिलन हुआ औ जब खोजते खोजते तू तो न मिल लेकिन खोजने व व खो गय खोजते तू तो न मिल लेकिन खोजने व व खो गय तब तुझसे मिलन मिलन हुआ।।।। हुआ इसका तो मतलब हुआ कि मनुष्य का पXNUMX क्योंकि जब तक मनुष्य XNUMX है, परमात्मा नहीं होता औरहत जब परमात्मा होता है मनुष मनुष्य नहीं होता। दोनों का मिलना कभी नहीं होता। इसलिये इस में जितने सम्बन्ध है है, उनमें कोई कोई सम सम्बन्ध हम परमात्मा पागू करके भूल क हैं।।।।।।। हैं हैं हैं क क हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क पिता से मिला जा सकता है बिना मिटे, मात| Закрыть सम्बन्ध होता है दो के औ और परमात्मा से होत होत है तब तब जब दो नहीं होते।।।।।।। होते होते होते इसलिये संबंध बिल्कुल उल्टा है। उस अस्तित्व की और गहनता में और गहराई में प्रवेश करना हो तो कुछ और निषेध समझ लेने ज जरूरी हैं।।।।
कल हमने समझा, शरीर नहीं हूँ मैं, इद्रियाँ नहीं, मन हूँ, बुद्धि नहीं, चैतन्य हूँ।।।।।।। चैतन चैतन चैतन्य लेकिन उससे भी सूक्ष्म आवरण है और वे सूक Вивра आवरण सिफऱ् समीप होने के कारण निर्मित हो ज हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। चैतन्य, जो भी उसके समीप होता है, उसे आपूरित कर दर ैा जैसे प्रकाश, जो भी समीप होता है, उसे प्रकाशित कर द द दीया जलाया हमने, जलते दीये के के जो भी उस के घे घे में पड़ ज जXNUMX
ऐसी ही चेतना जो हमारे भीतर है, उसके जो भी है वह सभी प्रकाशित हो जाता है।।।।।।।।। उस प्रकाशित होने में ही कठिनाई शुरू होती है। अगर दीये भी होश आ जाये— दीया नहीं था, अंधेा था, तब कुछ भी दिख दिख नहीं पड़त पड़ता थ फिXNUMX जल अग दीये में भी भी चेतन हो जो जो जो प प ही हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ क्योंकि जब नहीं होत होत तब यह कुछ भी नहीं होत होत न दीव दीव दिख दिख पड़ती हैं कम की होत फ फ फ फ फ फ फ फ होत नहीं होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत स्वभावतः, सीधा ता है कि मेरे होने में इनक इनका होना भी समाया हुआ है।।।।।।।।।। चैतन्य का भी अनुभव है है, चैतन्य अगर नहीं होत तो न श श होत चैतन्य अग नहीं होत तो न श श होत होत होत न मन होत न बुद बुद बुद होती न इंद इंद होती है कुछ भी नहीं होत चैतन चैतन चैतन अवि है ही ही ही होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन होती होती के चैतन होती होती के चैतन्य अगर बेहोश ज जाये, गहन निदшить में खो ज ज ज तो श शरीर का पता नहीं चलता फिर बुद्धि क कोई पता चलत चलता। चैतन्य जिस को भी प्रकाशित कXNUMX यही हमारी सारी भूल है औXNUMX
जीवन में भी प पाने योग्य है, वह जीवन में ही पाया जा सकता है।।।।। Закрыть बहुत लोग है कि देह में, जीवन में में, संसार में हक कैसे प प ज जीवन में संस संस में हक हक कैसे प प प ज ज में सत्य को, ब्रह्म को, मुक्ति को! लेकिन जो में नहीं प पXNUMX
जीवन तो अवस अवस है पाने का, चाहे पत्थर जुटाने में समाप्त कXNUMX जीवन तो बिल्कुल तटस्थ अवसर है। जीवन आपसे कहता नहीं, क्या पायें। कंकड़-पत्थर बीनें, व्यर्थ की चीजें संग्रहीत करें, अहंकारравило बढ़ बढ़ में में अहंकारहीत क क समाप को बढ़ बढ़ में में अहंक को को फुल में सम सम सम क दे जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन जीवन तो तो तो तो तो तो तो मत मत मत मत मत मत मत मत मत मत मत मत क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क लगा दें, तो जीवन ब बXNUMX जीवन को वहीं उपलब्ध होते हैं जो स्वयं के औ सर्व के भीतर परमात्मा को क क लेते हैं।।।।। क क क हैं हैं इस अभाव में हम श शरीा स्वयं को श शरी возможности मात्र ही जानता है, वह होक होक भी जीवन को नहीं जानता है।।।।
जीवन की अनादि, अनंत धारा से अभी उसका परिचय नहीं औ उस प प प प के अभ अभ में आनंद नहीं हो प प है है।।।।। है आनंद आनंद नहीं प प प प प प प आत्म-अजховность
एक आकाश, एक स्पेस बाहर है, जिसमें हम हैं हैं, उठते हैं, बैठते हैं, जहाँ भवन निर्मित होते औ औ जह पक पक उड़ते हैं।।।।।।।।।।।।।।। नि नि नि होते यह आकाश हमारे बाहर है। किंतु यह आकाश जो बाहर फैला है, यही अकेला आकाश २हही एक और भी आकाश है, वह हमारे भीतर है। जो आकाश हमारे बाहर है वह असीम है। Закрыть लेकिन जो आकाश हमारे भीतर फैला है, बाहर का आकाश उसके सामने कुछ भी नहीं है।।।।।।।। है है है कहें कि वह असीम से भी ज्यादा असीम है। अनंत आयामी उसकी असीमता है। बाहर के आकाश में चलना-उठना होता है, भीता बाहर के आकाश में कшить
जो बाहर के आक आकXNUMX उसकी चेतना से कभी भेंट न होगी। उसका परमात्मा से कभी मिलन न होगा। ज्यादा से ज्याद| जीवन के सत्य को पान| लेकिन हमें अंतर-आकाश कोई भी अनुभव नहीं है। हमने भीत भीत के आक आक में कोई उड़ उड़ उड़ भ भ भ है भीत भीत के आक आक आक में एक च भी ख रखा है, हम भीत की त गये ही नहीं।।।।। ख ख हम भीत की त गये ही नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं हमारा सब जाना बाहर की तरफ है। हम जब भी जाते हैं बाहर ही जाते हैं। इस अंतर-आकाश के संबंध में उसे भी समझ लेना उपयोही ी ी यह प्रश्न सदा ही साधक के मन में उठत उठत कि जब मेरा स्वभाव शुद्ध है तो अशुद अशुद कह कह से आ जाती है? और जब मैं स्वभाव से अमृत तो यह मृत्यु कैसे घटि। हह औा जब भीत कोई विक विक ही है है, निा से नि नि निXNUMX क आव है सद से से से से, तो विक विक के ब कैसे घि जाते हैं हैं तो ये विक विक विक के ब कैसे घि जाते हैं हैं हैं ये ये विक विक विक विक विक विक विक ये हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं से कहा से इनका जन्म होता है? कहां इनका उद्गम है? इसे समझने के लिये थोड़ी सी गहराई में जाना पड़ेगग पहली बात तो समझनी पड़ेगी कि जह जहXNUMX ध्यान रखे अचेतन का अर्थ होता है, चेतन, जो सो गय गया चेतन, जो कि छिप गया! यह चेतना की ही क्षमता है कि वह अचेतन हो सकती है। जड़ की यह क्षमता नहीं है। आप पत्थर को यह नहीं कह सकते कि तू अचेतन है। जो चेतन नहीं हो सकता वह अचेतन भी नहीं हो सकता।
ध्यान रखें, जो सो नहीं सकता वह जागेगा कैसे? चेतना की ही क्षमता है अचेतन हो जाना। अचेतन का अर्थ होता है, चेतन, जो कि सो गया। चेतन, जो कि छिप गया! यह चेतना की ही क्षमता है अचेतन हो जाना। अचेतन का अर्थ चेतना का नाश नहीं है। अचेतन का अर्थ है, चेतना का पшить चेतना का मतलब है च चाहे तो प्रकट हो, चाहे तो अप्रकट हो जाये। यही चेतना का सшить अगर चेतना अचेतन होने स स्वतंत्र न तो चेतन चेतना पा हो जायेगी। फिर आत्मा की कोई स्वतंत्रता न होगी।
इसे ऐसे कि अग आपको बु बु बु होने स स Вивра ही न तो आपके भले होने होने का अर्थ क्या होगा? अगर आपको बेईमान होने स स्वतंत्रता ही न हो आपके ईम ईमXNUMX होने क क कोई अ अ नहीं होत होत है।। जब भी किसी व व्यक्ति को कहते हैं कि वह ईम ईमXNUMX है इसमें निहित है है कि वह च च तो तो बेईम हो सकत थ थ प नहीं हुआ।।।।।।।।।।।।।। च च च।। बेईम बेईम बेईम हो।।। अगर हो न सकता हो बेईमान तो ईमानदारी का कोई मतलब होत होता।। ईमानदारी का मूल्य बेईमान होने क्षमता और संभावना में छिपा है।।।।।।
एक अंधेरी रात की भ| इतना ही होत तब भी ठीक थ थXNUMX इतना भी बन बना XNUMX कि मैं अंधक अंधक अंधक हूँ, तो खोजत खोजत है है तड़पत तड़पत है प प प लिये लिये प खोजत खोजत खोजत है है तड़पत टटोलत टटोलत टटोलत टटोलत प प गि गि के उठत उठत उठत उठत है गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत है है है है है है है है है म है म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म, समझ ले जब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद ही हो गय गय गय गय गय गय।।।।।।।। हो
एक पुरानी कथा है। एक सम्राट को ज्योतिषियों ने कहा कि इस वर्ष पैदा व वाले बच्चों में कोई तुम तुम्हारे जीवन का घाती होगा। सम्राट ने बच बच्चे उस वर्ष पैदा हुये, सभी क कारागृह में डाल दिया, मारा नहीं।।।।।।।। क्योंकि सम्राट को लगा कि कोई एक इनमें से हत्या कXNUMX औ सभी की हत इनमें हत्या करेगा और सभी की हत्या मैं क्यों करू यह महाप हो ज ज ज ज ज्या क क्यों क यह मह मह ज ज ज ज ज्या मैं क्यों क यह मह मह ज ज जven छोटे-छोटे बच्चे बड़ी जंजी जंजी जंजी में भ भ के कोठ कोठ कोठ में डाल दिये गये।।।।। जंजीरों में बंधे- बंधे हुये ही वे बडे़ हुये। उन्हें याद भी ही रही कि कभी ऐसा भी कोई क्षण था जब जंजी जंजी उनके ह ह में न हीं हों।।।।।।।।।।। जंजीरों को उन्होंने जीवन के अंग की तरह ही पाय।ा औन उन्हें याद भी तो नहीं हो सकती थी, कि कभी वे मुक्त त त गुलामी ही थी औ औ इसीलिये उन्हें कभी गुलामी अखरी नहीं क्योंकि तुलना हो तो तकलीपफ़ होती है।।।।।।।। है है है है तुलना का कोई उपाय नहीं था। Закрыть गुलामी ही उनका सार- सा था तुलना नहीं था स्वतंत्रता की और दीवारो से थे थे।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
उनकी आंखें अंधक अंधक की अधीन हो गई थीं कि वे पीछे लौटक भी नहीं देख सकते थे, जहाँ प्रकाश का जगत था। प्रकाश कष्ट देने लगा था। अंधेरे से र राजी हो गये थे, कि प पшить से र र नहीं हो प प प थी आँखें।।।।।।।।। आँखें आँखें आँखें आँखें आँखें आँखें सिर्फ अंधेरे में ही आँख थीं थीं, प्रकाश में बंद हो ज ज ज थीं।।।।।।। तुमने भी देख| जो जीवन भ भ हैं अंधक अंधकXNUMX में, वे लौट क क भी नहीं सकते थे वे दीव दीव दीव त त ही देखते थे।।।।।।।।।।।। राह पर चलते लोगों, खिड़की द्वार के पास गुज गुज गुज की छ छायायें बनती स सामने दीव प प समझते थे वे छ छ छ सत सत हैं हैं।। प समझते थे वे छ छ सत सत हैं हैं। प वे थे वे वे सत सत सत हैं हैं।। वे थे थे वे सत सत सत सत हैं हैं हैं। वे थे वे वे वे सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत प वे वे वे वे वे वे वे वे वे वे यही असली लोग हैं उस छाया को ही जगत समझते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पीछे लौट कर देखना ही बंद किर दददर पीछे लौट क देखने क क मतलब यह था, आँख आंसू आ ज ज वह पीड़ पीड़ा का जगत था। तुमने भी सत्य को देखन बंद क का है औ औ जब कोई तुम्हें सत्य दिखा देता है पीड़ पीड़ होती है।।।।। है है।।।।।।।।। जब भी कहीं कोई सत्य कह देता है तो कष्ट ही होता है।
लेकिन एक ने हिम्मत की क्योंकि उसे शक लग लगा ये छायायें, छायायें नहीं हैं।।।।।।। क्योंकि इनसे बोलो ये उत उत Вивра नहीं इन इन्हें छूओं कुछ भी हाथ में नहीं आता। इन्हें पकड़ो तो कुछ पकड़ में नहीं आता। उस आदमी ने धीरे-धीरे पीछे देखने का अभ्यास शुरकू ऱ वर्षों लग गये, बड़ा कष्ट हुआ जब भी पीछे देखत आँखें आँखें तिलमिला जातीं थी, आंसू गि लेकिन उसने अभ अभ अभ अभ ज ज ज ज ख चकित चकित हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हुआ हम हम हम हम हम हम हम हम хозяй समझ लिया है। वह पीछे में सम समXNUMX हो गय गय उसकी ग ग ग ग ग ग औ औ उसकी देखने देखने लगी ब ब ब के ंग वृक वृकtrष औ वृक वृक खिले फूल, XNUMX गुज गुज लोग।। वृक में खिले फूल फूल रंगीन थी दुनिया काफी। छाय| बच्चे नाचते गाते निकलते थे। छायाये तो बिल्कुल चुप थीं, वहाँ वाणी न थी। यहाँ पीछे छूपा हुआ असली जगत था।
उस आदमी धी धीरे-धीरे इसकी चा दूसरे कैदियों शु शुरू की।।। बाकी कैदी हंसने लगे, कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गो गि तुम्हारा हम तो सद सद यही सुनते आए है यह सत सत सत है है है जो स है औ औ हम पीछे मुड़ क क देखते तो कुछ दिख औ पड़त हम तो मुड़ क क है कुछ दिख दिख नहीं सिव सिव सिव सिव सिव सिव सिव सिव सिव सिव सिव भी नहीं नहीं नहीं ज ज हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो बंद बंद बंद बंद बंद बंद बंद बंद नहीं है कि अंधकार हो। हो सकता है, सिर्फ आँख बंद हो जाती हो। लेकिन दोष कोई अपने ऊपर कभी लेता नहीं। तो कोई तो म मXNUMX लोग मानते है, अंधकार है, इसलिए अंधकार है। मेरी आँख और बंद हो सकती है? यह कभी संभव है? हम अपनी आँख तो सदा खुली मानते हैं। अपना हृदय तो सदा प्रेम से भरपूर मानते है। अपनी प्रज्ञा तो सदा प्रज्जवलित मानते हैं। अपनी आत्मा तो सदा जाग्रत मानते है औ वही हम हम भ्रзнес म है औ वही वही हम हम हम हम हम हम हम हम संख संख संख संख संख संख संख संख संख बहुत थी वह अकेल थ थ लोग हंसे हंसे, खूब मज उन वह।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उन उन मज मज खूब खूब खूब मज मज मज मज मज मज मज खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब खूब मज हंसे संख खूब मज संख संख खूब मज मज हंसे संख, धीरे-धीरे उस आदमी को पागल मानने लगे।
जहाँ अंधों की भीड़ हो वहाँ आँखवाला पागल हो जा।ईा जहाँ मुर्खों की भीड़ हो वहाँ बुद्धिमान पागलााााा ाो जहाँ बीमारी सшить स्वाभाविक है। क्योंकि लोग को म म समझते है औ औा फि जब उनके स स हो बहुमत ही नहीं नहीं नहीं, सा उनके उनके स हो हो एक आदमी छोड़ क क सभी उनके स थे थे संदेह ही आदमी को छोड़ क सभी उनके स थे तो ही पैद को छोड़ क क सभी उनके थे थे ही पैद हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो लोग हंसे, मजाक की, उसे पागल समझा, उसका तिा किय किय उसकी उपेक्षा की, धीरे-धी लोगों ने ब ब क क क दी।।।।। दी दी दी दी।।।।।।।। धी।। दी दी दी।।। क्योंकि वह पैद पैदा का था क्योंकि कभी-कभी संदेह मन में भी उठ आत आता थ कि न हो, कही आदमी सच हो।।।।।।।। हो हो हो हो न क्योंकि अगर यह आदमी सच है तो उनकी पूरी जिंदगी बती बथी बड़ा दांव है। यह आदमी गलत होना ही चाहिए। नहीं तो पू पू जिंदगी गलत होती औ औ कोई भी आदमी नहीं च च च कि पू पू पू जिंदगी गलत सिद्ध हो।।।।।। क्योंकि इसका अर्थ हुआ तुमने यूं ही गंवाया। तुमने अवसर खो दिया। तुम मूढ़ हो, अज्ञानी हो, मूर्च्छित हो। अहंकार यह मानने को तैयार नहीं होता। अहंकार कहता है मुझसे ज्ञानी और कौन? मुझसे समझदार और कौन? ऐसे अहंकार रक्षा करता अज्ञान की। अहंकार रक्षक है, अज्ञान के ऊपर। उसके रहते अज्ञान का किला पराजित न होगा, तोड़गान स
धीरे-धीरे उन्होंने इसकी उपेक्षा कर दी, क्योंकि उससे बात करनी बेचैनी थी।।।।।। क्योंकि वह हमेशा रंगो की बात करता, रंग उनमें किसी ने भी देखे न थे।।।।।।। वह हमेशा पीछे चलनेवाले संगीत की बात करता। संगीत उनमें से किसी ने भी सुना न था। उनकी सब इन्द्रियाँ पंगु हो गई थी औरधी धी धी वह आदमी कहने लग कि ये जंजी जंजी है जिनको आभूषण समझे हो।।।।।। हो हो हो हो हो हो आखिर कैदी भी स सांत्वना तो चाहिये तो वह जंजी को आभूषण समझ लेता है।।।।। आखिर कैदी को भी जीना तो है, तो काराग्रह क।लइर समा समझ काराग्रह न केवल समझ लेता है बल्कि भीतर से सजा भी लेता है, ताकि पूरा भरोसा आ जाए, अपना घर है।।।।।।
जंजीरों पर कैदियों ने फूल पत्तिया बना ली थी। जंजीरों को घिस-घिस कर वे साफ किया करते थे। क्योंकि जिसकी जंजीर जितनी चमकदार होती, वह उतना संपतшить जिसकी जंजीर जितनी मजबूत होती, वह उतना धनी समझा तज जिसकी जंजी जितनी वजनी होती, उसकी ही ही संपदा थी स्वभावतः। अगर जंजीर कमजोर होने लगे तो वे उसे सुधार लेते थे क्योंकि जंजीर ही उनका जीवन थी और जंजीर को उन्होंने जंजीर कभी माना न था, वह आभूषण था। वही तो एकमात्र सजावट थी उनके श शXNUMX क्योंकि उसे सшить स जगत की थोडी झलक शु शु शु हो गई। एक किरण उतर आई अंधेरे में। सूरज का संदेश आ गया। अब इस अंधेरे घXNUMX धीरे-धीरे उसने जंजीर को तोड़ने की व्यवस्था कर ले
असली सवाल तो भीतर की जंजीर का टूट जाना है। बाहर की जंजीर बहुत कमजोर है। अगर तुम बंधे हो, तो भीतर की जंजीर से बंधे हो। भीतर की जंजीर है, जंजीर को आभूषण समझना। एक बार उसे समझ आ गय गय कि आभूषण नहीं है है, आधी मुक्ति हो ही गई।।।। उसी दिन उसने जंजी जंजी को घिसन घिसन क कर दिया, साफ करना बंद कर दिया, सजाना बंद कर दिया। लोग समझने लगे कि जीवन से उदास हो गया है। उदास हो गया बेचारा। उनके भाव में एक बेचारेपन की प्रतीति होती है। जिंदगी में हार गया। शायद पाया कि अंगूर खट्टे हैं। छलांग पूरी न हो सकी। कमजोर था। हम पहले से ही जानते थे कि कमजोर है। आज नहीं कल थक जायेगा और संघर्ष से अलग हो जायेगा। जंजीरें, जो कि आभूषण है, इनको सजाना बंद कर दिया। ऐसे ही सज सजाया रह XNUMX हैं आसपास की दीवार को साफ-सुथरा करना भी क कXNUMX अब पागलपन बिल्कुल पूरा हो गया है।
लेकिन उस ने धीXNUMX भीतर की जंजीर टूट जाए तो बाहर का कारागृह टूटथ ॹी ी ी आधा तो गिर ही गया। बुनियाद तो हिल ही गई। पीछे के जगत का, छिपे हुए जगत का संदेश आ जाए—— तब अनंत पुक पुक पुक उसे पुक पुक पुक पुक लगी लगी।।।।।।।। एक प्यास उसके रोएं-стран में समा गई-असली जगत में प्रवेश करना है।।।।।।।। उसने जंजीरे तोड़ी। जब प्यास पшить हो हो, तो कमजो से कमजो आदमी शक्तिशाली हो जाता है।।।।।।।।।। जब प्यास पшить न हो हो हो तो कमजो से कमजो जंजीरें भी बड़ी म म म पड़ती हैं।।।।।।।।।। हैं हैं हैं प्यास बढ़ती चली गई। पीछे का जगत ज्यादा साफ होने लगा। आँख जितनी साफ होने लगी, उतना ही सत्य का जगत ना। हो एक दिन जंजी जंजीरे तोड़ औ औ वह उस कारागृह से भ भागा। वह नाच रहा था। सूरज, पक्षी, वृक्षों में खिले फूल! बस, वास्तविक लोग, छायायें नहीं।
एक भरोसा चाहिये। भरोसे का मतलब इतना ही है, कि मैंने नहीं ज जाना है भी हो सकत सकता है। अगर तुम हो कि तुमने जो ज जXNUMX संदेह का इतना ही अर्थ है, कि मुझ पर सत्य समाप्। हो मैंने जो जान लिया, वही सत्य की भी सीमा है। मेरा अनुभव और सत्य समान है। यह संदेह है। श्रद्धा क अXNUMX मेरा छोटा आंगन है। आंगन पूरा आकाश नहीं। बड़ा आकाश है। इतना जिसे ख्याल आ जाए, जिसे प प संदेह आ जाए, वह शшить वह बड़े से बड़ा संदेह है, ध्यान रखना। जिसे संदेह प प आ जाए, जो संदेह की प प्रवृति के प्रति संदिग्ध हो ज की प प प के के प्रति संदिग्ध हो ज उसके जीवन में श शtrain क आवि आवि हो ज जीवन में श श शtra क श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श o
श्रद्धा का अर्थ है, जानने को बहुत कुछ शेष है। मैंने थोड़े कंकड़-पत्था मैंने मुट्ठी भरेत इकट्ठी कर ली है, लेकिन सागर के किनारो पर अनंत ेत शेष।।।।।।।।।।। मेरी मुट्ठी की सीमा है, सागर की सीमा नहीं है। मेरी बुद्धि की सीमा है, सत्य की सीमा नही। मैं कितना ही पшить यह तो अर्थ है परमात्मा को अनंत कहने का। तुम कितना ही पाओ, वह फिर भी पाने को शेष रहेगा। तुम पा-पा कर थक जाओगे, वह नहीं चुकेगा। तुम्हारा पात्र भर जायेगा, ऊपर से बहने लगेगा। लेकिन उसके मेघों से वर्षा जारी रहेगी। हम कण मात्र है। जब कण ख ख्याल हो जाता है कि मैं सब हूँ हूँ, वही शшить
Закрыть अनजान में प्रवेश, अज्ञात में प्रवेश, जहाँ मैं कभी गय गय जो मैं कभी नहीं, वह हो सकत सकत है।।।। वह वह सकत सकत सकत है है है वह वह वह वह जब भी ज्ञान का जन्म होता है, तभी करूणा का जन्म हा हो हो क्यों? क्योंकि अब जो जीवन ऊ ऊXNUMX वासना बन ही थी कह कहाँ जाएगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। अभी धन पीछे दौड़ती थी, पद के दौड़ती थी, महत्त्वकांक्षाए थी अनेक।।।।। अनेक-अनेक तरह के की की क| प्रकाश के जलते, ज्ञान के उदय होते वह स सXNUMX अंधकार वह भोग भोग, लिप्सा, महत्वकांक्षा ऐसे विलीन हो ज है जैसे दीये के जलते अंधक अंधक। विलीन हो है जैसे दीये के जलते जलते जलते जलते जलते जलते जलते अंधक।। हो हो ऊर्जा का क्या होगा? जो ऊा काम-वासना बनी थी थी, जो ऊXNUMX क्रोध बनती थी, जो ऊ ऊर्जा ईा बनती थी थी मत मत मत थी थी उस ऊ Как ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ उस शुद शुद chvenति क थी उस उस ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ होग होग उस in थी शक in थी शक in बनी क क क उस उस o वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। महाकरूणा का जन्म होता है और वह कXNUMX क्योंकि तुम्हारी काम-वासना औXNUMX तुम काम-वшитьв धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। तुम पद पाने के लिए धन का भी त्याग कर देते हो। चुनाव में लगा देते हो सब धन, कि किसी तरह मंत्री हो हजार कामनाएं है औ सभी में ऊ ऊXNUMX तुम एक अदम्य ऊर्जा के स्त्रोत हो जाते हो। एक प्रगाढ़ शक्ति! उस शक्ति का क्या होगा?
जब भी आनंद क| जिनके पंख ख खा गए है, उनके पंखों को सुधारने में ज जाता है कि वे फि फि से सकें सकें।।।।।।।।।। सकें जिनके पैर जाम हो गए है, उनके पैरों को फि फि देने में लग जाता है।।।।। ताकि लंगडे़ चले और अंधे देखे और बहरे सुन सकें। तुम लगड़े हो। तुम चले नहीं। यात्रा तुमने बहुत है लेकिन जब तक ती तीXNUMX ती ती ती तीXNUMX न तब तक तुम बहरे हो। तुमने सुना बहुत है, लेकिन वासना के सिवाय कोई स्वर तुमने सुन सुना और वासना भी संगीत संगीत है है है है है है है! Закрыть वासन| संगीत तो है जो तुम्हें भ दें उस अनंत आनंद से, जहाँ सब खो ज ज ज है जह चैन की ब ब ब बजती है औ औ ब ब ब कि उसक फि कभी नहीं आत औ औ ऐसी ब ब कि फि अंत आत आत औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत नहीं नहीं नहीं नहीं
तुम अंधे हो। तुमने बहुत देख देख है लेकिन जो देख देख है सब ऊप ऊप की रूपरेखा है। भीतर का सत्य तुम नहीं देख पाते। शरीर दिखता है, आत्मा नहीं दिखती। पदार्थ दिखता है, परमात्मा नहीं दिखता। दृश्य दिखाई पड़ता है, अदृश्य नहीं दिखाई पड़ता और अदृश्य ही आधा Как परमात्मा ही आध आधXNUMX फिर भी तुमने सिर्फ शरीर देखा है और आत्मा नहीथं दथथ अंधे हो तुम, पंगु हो तुम। जिसके जीवन सम समाधि खिलती वह भ भागता है उनको जगाने, जो है।। कुछ दिन तो उसने अपने को रोका।
क्योंकि वह जानता है कि वे लोग हंसेंगे। क्योंकि वह जानता है कि वे सुनेंगे नहीं। क्योंकि वह जानता है, कि जो सदा से हुआ है, वही फि। हह पत्थर और कांटों से स्वागत होगा, फूलमालाये मिलने को।। लेकिन अदम्य है करूणा। उसे रोका नहीं जा सकता।
जीवन बीतत| जब भी कोई मरता है तो मन सोचता है, मौत सदा दूसरे कहे की ी ी सोचता है आखिरी क्षण तक भी होश नहीं आता। अपने ही हाथ से अपने को सम समाप्त कर लेता है औ जो भी तुम क हे हो उसक उसक भी अत अत मूल नहीं है।।।।।।।।।।। है है है है है नहीं नहीं नहीं ऐसी दशा मनुष्य की उसे पत पत भी भी कि उसकी जड़े टूट गई हैं। उसे पता भी नहीं कि परमात्म| उसे पता भी नहीं कि के स स Вивра से उसकी स स स स अलग हो गई है।।।।। किसी ने वृक्ष को काट गिराया है। वृक्ष कट गया है, लेकिन ह ह ह ह ह है भी फूल है है है, मुाने में समय लगेग लगेग उसे पत कि जड़ों सम सम सम टूट गय ह उसे पत पत कि जमीन से कोई न ह ह उसे पत पत कि जमीन से कोई न ह ह ह ह ह ह कोई उपाय भी नहीं है उसे समझ समझXNUMX का औ जब समझ क क उप होग होग होग तब क क अ अ अ न ह ज ज जब जब आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन लेकिन आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आयेग आदमी तभी समझ पाता है, जब करने को समय ही नहीं रा जता अक्सर लोग मरने के समय में समझ पाते है कि व वшить गय गय इसके उन उन समझ की कितनी ही कोशिश क उनकी समझ में नही आत।। की कोशिश क क समझ क्योंकि कшить में वे स स देखते हते है औ उन्हे यह भ भरोसा नही आता कि आने व व है है।।।।।। व व व व है है है व व व क्योंकि बुद्धि कहे जाती है और दूसरे मरते होंगे, तुम कभी पहले म म नहीं औ औ जो नहीं हुआ हुआ वह क क्यों होगा? और जीवन को भरोसा नहीं आता कि मैं मृत्यु कैसे बन ाक प्रकाश माने भी तो कैसे माने कि मैं अंधकार हो जाऊग! अमृत को समझाये भी तो कैसे समझाये कि तू भी जकर हऋ ा ा
आप जब किसी को म म हुये देखते है तो ऐस ऐसXNUMX है है दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु कि कि जीवन क क सत। मृत ऐसी है है होनी न औ हो गई।।। है होनी न औ हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जिस दिन जन्में, उसी दिन जड़े टूट गई। जिस दिन जन्में, उसी दिन पृथ्वी से नाता विच्छन्न न न जिस दिन जन्में उसी प परमात्म| उसी दिन हम पृथक हो गये। पृथकता को अर्थ समझ लेना चाहिये। बच्चा जब पैदा होता है, एक क्षण पहले माँ का अंग था। अंग कहना भी ठीक क क्योंकि उसे यह पत पता नहीं थ कि मैं अंग वह माँ के साथ एक था। यह भी हम सोच सकते हैं, उसे भी पता नहीं था कि मैंकहथ क्योंकि एक क का भी पता तब ही चलता है, जब दो हो गये हों।।।। दो हुयें बिना एक का भी तो ख्याल नहीं आता। बच्चा सिर्फ था होना परिपूर्ण था। फिर बच्चा पैदा हुआ माँ से विच्छन्न हुआ, जड़े टूटीं, जैसे ने ने पौधा काट डाला।
जिसको हम जन्म कहते हैं, वह म म से दू दू हटने प पшить हैं वह म से दू हटने प प्रक्रिया है औ फि जिसको हम कहते हैं हैं, वह रोज-ोज दू ज ज क न है है। वह पहले बच्चा माँ के ग выполнительный फिर भी वह माँ के आसपास घूमता रहेगा। लेकिन जल्द ही वह सम्बन्ध भी टूट जायेगा। ऐसे दू दूर जा XNUMX है और जितना दूर जायेगा उतना अहंकार मजबूत होगा। जितना माँ के पास था, उतना निरअहंकार भाव था। जब माँ के गर्भ में था, एक था, तो कोई अहंकार न था।
ज्योति जब ज जाये अंधे अंधेरे का अंत हो जाता है प् похоже अंधे अंधे क हो ज ज ज है है पшить प ही तिमि टिक नही प प पXNUMX क्यों, इसलिये प पшить की उपस्थिति उसके अस्तित्व को क क देती देती है।।।।।। चुपके अंधक अंधकार उस अवस्था की प्रतीक्षा में होत है दीप बुझ बुझ ज ज औ औ स स स प प प क सकूं औ ऐस ऐस ही ही स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स है है है है बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत बुझत है बुझत प बुझत है मन के कोने में जब सत्य का दीप बिखे बिखेरता है, तब अज्ञान तिमिर छंटने लगत है और अभीप्सा के स्वर मुखरित होने हैं।।।। o सत्य की पुकार जब अस्तित्व के किसी कोने को क क लगती है है तब स स्वयं में सक सक्रिय रूपांतरण घटित लगत लगत है।।।।। सक Как इसी अवस अवस में अभीप अभीपшить पीड़ा बनने लगे औ पीड़XNUMX अंत में सत्य-क्रांति के स्वर जाग्रत होने लगते हे ऐसे अवसर ही स्वयं को उस अद्भुत उपलब्धि में सшить करते हैं, जहाँ स्वयं है।।।।।।।। आश्चर्य है कि पीड़ा का समाधान स्वयं है।
समाधान में तृप्ति है। अस्तित्व का प्रत्येक कोना समाधान की ओ जब अगшить चूक भी उन्हीं क्षणों में होती है, जब निकटता हो। हाथ लगा समाधान बिखर जाता है, पाया स्वबोध विलीन ज जाता है औXNUMX निकट आया और उपलब्ध हुआ 'स्वयं' कहां खो जाता है? जागरूकता के अभाव में चूक होती है।
किनारे आकर ही डूबने की आशंका बढ़ने लगती है। क्यों? क्योंकि किनारे की निकटता का बोध शिथिलता को जन्म देता है, पा कभी अधिक ज जXNUMX
अपनी अभीप्सा की पीड़ा में, गहरी पीड़ा में पा प प Как यह छटपटाहट ही पर से स्व की ओर चेतना को आमंत्रण देगी और यəव ओ выполнительный अपने अन्दर में संलग्न चेतना के अंतर्मुख होना ही असшить
Закрыть एक क्षण की सावध|
जागो, गहरी निद्रा से जागो। अस्तित्व तुम्हें आमंत्रण दे रहा है। पुकार, आत्म पुकार तुम में निरन्तर ध्वनित हो र।ी र।ी पुकार इस पुकार और अभीप्सा में तुम्हारी सावध|
उठो, जागो और संभलों कि पा सकों स्वयं को, जान सको स्वयं के आत्मा को।।।।।।।।। परमशांति के तुम तुम्हारे स्वागत के खड़े है औ प्enश तुम्वागत के खड़े औ औ प्знес तुम्हें दिव दिव ओ औ ज प्रकाश तुम्हें दिव्यता की ओ ले ज को आतु आत आतхов तुम मчей सको मчей सको मчей सको मчей सको म म chpen सको म मждено
Его Святейшество Садхгурудев
Г-н Кайлаш Чандра Шримали
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