पांच हजाा नेपाल के सшить की पूज पूजXNUMX हे हेXNUMX मिस्र में एक्टन के नाम से और मेसोपोटेमिया में स्वस्तिक को शक्ति का प्रतीक माना गया है।।।।।।।।।।।।।।।। शक्ति हिटलर ने भी स्वस्तिक के निशान को महत्वपूर्ण ८ान
Закрыть वास्तु शास्त्रानुसравия हिन्दू धर्म के प्रत्येक मांगलिक कार्य अथवा किसी पшить साथ ही चिन चिन्ह धन की अधिषшить
ब्रह्माण्ड में आकाश तत्व के अन्तर्गत सभी सौर मंडल एक विशेष चुम्बकीय शक्ति के आकर्षन से निश्चित गति में गतिशील रहते हैं उसी तरह से सौर मंडल में पृथ्वी भी अपनी धुरी पर निश्चित गति से गतिशील रहती है तथा इसका चुम्बकीय आकर्षण उत्तरायन से दक्षिणायन की ओर होता है । पृथ्वी को देने व वXNUMX यही संकेत स्वास्तिक देता, उसे किसी भी दिशा में रखे वह बायें से द दXNUMX इस प्रकार भूमण्डल की चारों दिशाओं के विकास, निर्माण, संरचना एवं गतिशीलता का प्रतीक है स्वास्तिक।।
मनुष्य एवं अन्य जीवों के श श के ब ब ब भी अदृश्य ऊ ऊ श श श श ऊ ऊшить ऊ ऊ ऊшить ऊ ऊ ऊ ऊXNUMX ऊ o यदि मनुष्य स्वस्तिक, ऊँ देव शक शक्तियों के प्रतीक चिन्ह को अपनी पूज देव शक्तियों के प्रतीक चिन्ह को अपनी पूज पूज स स्तियों के प्знес चिन्ह को अपनी पूज पूज पूज पूज पूज पूज पूज पूज पूज पूज पूज पूज स स स उपासना में सम्मिलित क क तो तो वह स स स को को अपनी अपनी कхов अपनी अपनी ऊ कшить अपनी अपनी chpen ऊ अपनी कшли
यही क क क है भवन नि निाधन, बहीखाता के प्रथम पृष्ठ, साधना, पूजा, अनेक-अनेक मांगलिक क कXNUMX जिससे वह ऊा शक्ति हमारे जीवन को सौभाग्यता व शुभता प्रदान कर सके।।।।।।।। इसके साथ स्वस्तिक को भगवान गणेश का प्रतीक चिन्ह माना जाता है और धन की देवी महालक्ष्मी का भी, गणपति के द्वारा विघ्नों का नाश होता है और महालक्ष्मी के द्वारा सकारात्मक ऊर्जा का आगमन अर्थात शुभ व सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
सीमेन्ट, कंक्रीट की इमारतें, धागो के द्वारा निर्मित वसшить जिसका म मXNUMX जिससे स्वास्थ्य में न्यूनता आती है, ये निगेटिव ऊ ऊ ऊ पॉजिटिव ऊ ऊXNUMX क क क ऊ हैं इसलिये सद ऊ ऊXNUMX भवन निर्माण की प्ा में उत्तर दिशा का अधिक महत्व है औ औ्तर दिश अधिक से अधिक खुल खुल है औ उतθдол इसी प्ाеда से पू पू पू पूXNUMX दिश खुल खुल खुल खुल खुल क क्रमुख कारण सू की कि कि को प्रमुख म म म म म म डी डी डी डी डी डी ज जчего ज डी जчего ज जчего ज जчего ज जчего ज जчего ज जчего ज जчего ज जчего ज जчего
वास्तु शास्त्र में सू सू सू को मुख्य ऊर्जा का स्रोत माना गया है तथ| सू выполнительныйРадиоактивный) से युक्त हानिकारक होती है। इसलिये भवन निाण के समय पू पूXNUMX
जीवनदायिनी शक्ति से युक्त ये किरणे उत्ता इसलिये उत्तर दिशा नीची तथा दक्षिण दिशा ऊँची होना शुभ माना जाता है।।।।।। उत्तर पूर्व दिशा नीची, हल्की एवं खाली होनी चाहिये और दक्षिण, पश्चिम दिशा भारी ऊँची तथ ढकी होनी चाहिये।। इसी प्रकार से दक्षिण पश्चिमी को (नैऋत्य) दिशा भारी, ऊँची, ढ़की हुई एवं उत्तर पूर्व कोण (ईशान) दिश खुली खुली तथ तथ्की होन उचित ईश ईश ईश ईश है है।।।। ईश ईश होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत कोण होत होत होत होत भ होत होत होत कोण भ कोण भ दिश होत इसी प्रकार से पश्चिम उत्तर कोण (वायव्य) एवं पूर्व दक्षिण कोण कोण (आग्नेय) दिशा को समतल Как वास्तु शास्त желать इन सभी का कारण यही होता है।
हमारे जीवन और भवन में सकारात्मक व संवृद्ध शक्तियों का आगमन नि выполнение इस पшить प नियम जो सुखमय जीवन के आवश आवश्यक है, इन प भवन बन बन समय अवश्य अमल करना चाहिये। क्योंकि भवन बनाने का उद्देश्य सुख सौभाग्य व ऊ ऊ ऊXNUMX से ओत ओत प प होना ही होत होत जो ध ध अ अXNUMX
आज कल ऐसा भी देखा जाता है मनुष मनुष्य जैसे घ घ में प्रवेश करता है तनाव अनिद्रा को क करने लगता है।।।।।। इसका मुख्य कारण चुम्बकीय एवं पшить सौर मण्डल में ग्रह सूर्य की परिक्रमा अपनी प परिधि पर करते हुये दूस दूसXNUMX
वास्तु शास्त्र में पूजा घान कोण में बनाने का नियम है है यदि पूजा घान क्षेत्र में होत तो प प पшить क श श शшить क श Как श Как श श Как श Как श Как श После इससे स्वच्छ एवं शुद्ध वायु मण्डलीय वातावावरण में एक्ध वраться चूंकि आराधना के हम हम श выполнительный
Закрыть ईशान कोण पूज पूज| वास्तु शास्त्र के सिद्धान्त हमें स्वस्थ रखने के लिये उचित ऊर्जा प्रदान करते हैं तथा भवन निर्माण में धार्मिक क्रियाओं द्वारा परब्रह्म परमेश्वर से जीवात्मा का सम्बन्ध स्थापित करते है और पूजा, आराधाना व साधना के लिये भवन में ही उपयुक्त चेतना व शुद्धता का मार्ग प्रशस्त होता है ।
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