ध्यान और शरीर दोनों अलग-अलग हैं, इस शरीर के माध्यम से ध्यान नहीं हो सकता, शरीर तो केवल बाह्य तरंगों को स्वीकार करता है और अपनी तरंगो को दूसरों की ओर प्रेषित करता है, जिसके माध्यम से उसके मन के भाव या अन्दर के विचार स्पष्ट होते हैं, कि क क्रोध कर रहा है, प्रेम क क क्रोध का ह, प्रेम क क कшить का ह प प् Как क ह कшить का घृणा का ह है सुख क क भ है य का भ है। बाहरी तरंगों के आदान-प्रदान की ये छोटी-मोटी अवस्थाये देह अवस्था में पшить
शरीर तो अपने में बहुत छोट छोटXNUMX शरीर के माध्यम से ध्यान प्राप्त नहीं किया जा सकता, इस श शXNUMX किसी देवता को बैठने लिये सिंह सिंहासन होना चाहिये, उस सिंह सिंह को श श श श कह कह कह कह देवत नहीं है—- सिंह सिंह केवल जिससे कि उसके ऊप ऊप देवत स हो सकें सकें सकें कि कि ऊप ऊप ऊप ऊप ऊप ऊप ऊप ऊप ऊप ऊप।।।।।।।।।।।।।
श выполнительный खड़ा है। इसलिये खड़ा है क्योंकि, दूसरे आक आकXNUMX एक पशु ही दूसरे पशु को समझा सकता है। एक बन्दर दूसरे बन्दर को समझा सकता है— एक बन्दर एक गाय को नहीं समझा सकता। ठीक इसी पшить से एक मनुष्य दूस दूसरे मनुष्य को समझा सकता है।।।।।
ब्रह्म को इसीलिये श शरीा धारण करना पड़ता है उसके सम समान जो दूसरे मनुष्य हैं, उनको आस से समझ समझाया ज सके।।।। र र को भी श शшком ध धा Каквал उसे अपना ही हिस हिस्सा मान सकें— और उसकी बात सुन सकें— और समझ सकें।।।।।। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से कोई एक बि बिXNUMX निकल ज जाता है जो उनकी पकड़ क क आगे की क क्रिया प्रम्भ का है।। क क्रिया प्रम्भ क लेत है।। क क क क क क क क क क क।।।।।। क क क क क क क क क क क।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। बढ़ने की।। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी एक में ही चेतना पшить हजारों-लाखों वшить में से किसी एक में ही ऐसी चेतन होती है है जो उनकी व व को समझ सकता है।।।।।।।।।। हजारों-लाखों व्यक्तियों में से किसी में ही ऐसे भ भाव ज ज ज से एक में ही ऐसे भ भाव ज ज ज ज वह वह सद सद सद सद की की अद अद व्यका है की है है हैхов है है हैхов है हैхов है हैхов है हैхов है हैхов है हैхов है हैхов है उनके chy उंगली है उनकेхов है की उनकेхов है की उंगली सकत chy वह पकड़ सकत सकत सकत सकत chy उसकी आँख पहचान लेती है- 'यह व्यक्तित्व साधारण नह॥ नह्
इसने का साधारण मनुष्य शा तो ध ध किय किय किय है इसके क क्रिया-कलाप भी ही हैं हैं एक आम गृहस गृहस के होते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस गृहस एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही वैस ही एक गृहस गृहस क क मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष क क क क क क गृहस के क क मनुष मनुष मनुष क क क के गृहस सुख-दुःख व्याप्त होता है, यह भी उदास होता है, रोता है, चिन्ता करता है, मगर फिर भी इन प प प है।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है प प प प प प प प प प प प प प प प सबसे सबसे सबसे
वह विश विश्व की है है उसको पहच पहच पहच के लिये श श श आँखों से क क क नहीं नहीं चलेग उसको उसको पहच के मन की खोलनी खोलनी पड़ेगी उसको पहच पहच होग व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की मन मन अवस न तब विराट रूप का अपने-आप में दर्शन हो जाता है। अर्जुन, कृष्ण को एक सामान्य आदमी ही समझ ह थ वैस वैसXNUMX स ही ही ही Как ोत हुआ वैस वैस ही उद उद होत होत वैस वैस मित मितшить, वैसा प पшить क क हुआ वैस मित मितшить, मगर कृष्ण ने अ अर्जुन को ध्यान की सातवीं अवस्था में पहुँचा कXNUMX सद्गुरू चाहें तो किसी योग्य व्यक्ति को छलांग लगवा कर सातवीं अवस्था में पहुँचा सकते हैं, जैसे कृष्ण ने व्यामूढ़ अर्जुन को, मोहग्रस्त अर्जुन को एक छलांग के माध्यम से ध्यान की सातवीं अवस्था तक पहुँचा दिया— और पहुँचाते ही उसकी जो हजार-हजार आँखे जाग्रत हुई, उसके माध्यम से वह कृष्ण— सामान्य दिखाई देने वाले कृष्ण के विराट रूप को सक सका। ठीक उसी प्रकार सद्गुरू, वह अद्वितीय विभूति, यदि चाहें तो किसी भी शिष्य, किसी भी व्यक्ति को ध्यान की उस अवस्था में पहुँचा सकते हैं, जहाँ उस व्यक्ति के सामने वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है, उसकी अद्वितीयता स्पष्ट हो जाती है, उसकी महानता स्पष्ट हो जाती है।
प्रश्नः क्या स्त्री औा
देहगत अवस्था में स स Вивра औरूष का भेद है, जब मनुष्य देह से आगे की स्थिति में लगत लगत है तब पु औ औ स स में भेद नहीं ह ह पु पु औ औ स में भेद नहीं ह यह श शा का भेद है, यह तो तलछट क भेद है है, यह आतшить क भेद नहीं यह यह प प प प प प क क भेद नहीं है जब भेद ही है है है फि तो भी नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं भेद भेद भेद भेद भेद नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं जो सшить है वही दूस दूस शब्दों में पु पु पु है जो पु पु है है, वही दूसरे शब्दों में सшить है।।।। दूस शब्दों स स स स है है तुम स्त्री और पुरूष को अलग-अलग XNUMX आधлать दोनों एक स स्थिति में एक ही पшить उच्चकोटि की स्त्रियां भी हुई हैं- कात्यायनी, मैत्रेयी, चैतन्या, वैचार्या, गौतमी— ये सब अपने आप में अद्वितीय विभूतियां थीं, उतनी ही ब्रह्म को प्राप्त होती हुई, उतनी ही मनुष्यता को प्राप्त होती हुई, उतनी ही ध्यान अवस्था को प्राप्त होती हुई , जैसे कि एक ऋषि हुआ है। इसलिये पुरूष और सшить को अलग अलग-अलग देखना आधшить केवल बाह्य XNUMX से केवल श श श श श श श श अवस्था से उसमें भेद क क क हैं यह तो ऊप ऊपXNUMX है यह ऊप ऊप भेद है है, आन्त ूप से कहीं भेद नहीं है है है है है है है है है है है।।।।।।।।।।।।।
इसलिये जिस तरीके से पुरूष ध्यान कर सकता है, ठीक प प्रकाen जिस प्रकार से ही ही छलांग में सद सद्गुरू, एक कृष्ण, अर्जुन को स्थल प प पहुँच सकते तो स स स स स स ध ध लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये ध ध ध ध ध ध ध स ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये
प्रश्नः कहते कि ध ध्यान की गहराई में उतरना चाहिये यह गह गहराई में उतरना क्या है— इस गह में कैसे उत उत सकते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं
मैं इसका उत ударя गह выполнение में उत उत की भ भ भ भ स स स स स स स स स स स स स स स स स दूस दूस दूस सीढ़ी प स्थान। य एक से दूस सीढ़ी प पहुँच्थान। य सीढ़ी यहां मेरे कहने का तात्पर्य है- हम स स से दूस दूसXNUMX स्थितियों में क क्रमशः उतरते हुये, जिस जगह हम होते हैं- वह ध्यान की अवस्था है वह पू पू पू पू पू की अवस्था है।।।।।। इसी तरीके से, अभ्यास के माध्यम से उन सातों अवस्थास के मшить प म प प पшить प हम स स्थाओं को पшить जिसको पूर्णानन्द कहा गया है।
जिसको सही अर्थों में आनन्द की संज्ञा से विभूषित किया गया है।।।।।। इस गहराई में उतरने का अपना ही एक आनन्द है, अपना ही एक आलौकिक सौन्दर्य है।।।।।।।। ज्यो-ज्यों हम बाहर की ओ ओ हते हैं हैं, त्यों-त्यों झुXNUMX ओ हते प प त्यों-त्यों झु झु झु त प प्रभाव से आती हैं तпере त तхов त तхов त त grहती त त तчь त तхов त तхов त gro त त gro त त gro त त grहती त потеря त त तшли अन्दर उतरते XNUMX है, त्यों-त्यों चेहरे की तेजसшить बढ़ती हती त्यों-त्यों चेहरे तेजस्विता बढ़ती हती है, चेहरे का प्रभाव बढ़त बढ़तXNUMX हत चेह चेहरे क औरीरभा सौन्दा है चेह चेह क क शшить सौन्दा बढ़त बढ़त हत हत है ।्दver अन्दर से जो रश्मियां इस श выполнительный
यदि आश आश्रम में चाहे चालीस या पचास शिष्य हों औाहे चालीस यास शिष्य हों और चाहे अच्छे अच अच्छे व्यक्ति हो, मगर उनके यदि एक एक सद सद सद थ अवस आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस पच पच पच पच chvesing व तो अवस आप आप अवस तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो पच पच पच पच पच पच पच पच पच पच पच पच तो ch उनको ऐस| है, जिस तत्व को सद्गुरू कहा गया है।
ऐसी स्थिति में ब बाह्य दृष्टि से भी पहच पहच सकते हैं कि व व्यक्ति आलौकिक है यामानान्य है।।।।।।।। सामान्य गुरू या सामान्य साधु आश्रम से चला जाये, तो शिष्य प्ा होते हैं यह चल न न न न न न न न सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे अब अब हम हम हम अपनी अपनी अपनी मजे मजे मजे मजे मजे मजे मजे मजे मजे मजे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे से से कूद यह ज य गु आश गु गु गु गु गु होगा अच्छा या बुरा कर सकेंगे। दूसरा सद्गुरू होता है, जिनके जाने से विषाद उत्पन्न होता है, दुःख उत्पन्न होता है।।।।।।।।। आँख में झलकने लगते हैं, ऐसा लगता है, जैसे श श तो है है, पर पшить प निकल गय श दोनों दोनों दोनों (स सामान्य गुरू और सद्गु में अन अन अन्त होत है। गु औ औ्गु सद अन अन अन्त होत होत होत होत होत होत अन्त होत्य्य गु्गु अन अन अन अन अन o तो अन अन अन अन अन अन सद सद होत होत सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद अन सद दोनों तो है हैं हैं, प लगते लगते हैं हैं हैं हैं हैं हैं
पू выполнительный ठीक आश्रम में एक अद अद्वितीय विभूति— एक सामान्य दिखाई देने अद्वितीय विभूति— स सXNUMX दिख अद अद обычно व— स स स सद्गुरू दिख अलग ज ज ज ज दू दू च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च हट है, सब सम समाप्त हो गया है, शिष्य मृतप्राय से ज जाते हैं, उनमें धड़कन हती, चेतना नहीं XNUMX बाह выполнительный
प्रश्नः कृपया आपने जो ध्यान की अवस्थाये समझाई हैं, क्या यह हमे कम में सम सम्भव है?
मैंने अभी आपको समझाया, समय इसके लिये अपने-आप में कोई महत महत्वपूर्ण तथ्य नहीं है है यह एक छल छल है आप में हिम हिम है आप कितनी गह तक छल लग सकते हैं। है आप गह गह तक छल सकते हैं हिम हिम।।।।।।।।।।।।।।।। सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते यदि ड ड ड है धी धी धी धी धी धी कदम बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ आप क क धी हैं तो तो धी धी धी धी धी धी धी धी धी यदि आप चित अपना ह गु से अपन स यदि आप आप चित चित हैं तो सौंप सौंप गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु तो तो तो तो तो तो तो तो तो एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम एकदम आप अपने आपको कितन खोलते हैं हैं, यह प पXNUMX
यह कोई एक पाठशाला नहीं है कि कि, पहली क्लास के बाद दूसरी, फिर तीसरी और चौथी क्लास प क क प ही क क्लास प्लास प क क प सोलहवीं क क्लास यह तो क क्रिया है, यदि सद्गुरू की कृप हो गई गई, यदि उन्होंने एहस एहस क लिय कि यह व व व समझने क क कenव मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग है है गई गई को विश विश्वास हो गया, कि मुझ में लीन होने की क क्रिया प कि मुझ में होने की क क्रिया पшить प क लीन होने की क्en प प जब जब जब सद सद सद सद यह क लगते लगते लगते लगते औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ में में में द द द द द द द द द द द द द nंट में में प प प प प प प प प प प प प प प में में में में में. क्रिया प्रारम्भ कर रहा है। जब प्राणों से की क क्रिया प्रम्भ हो ज है तो धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी आत्मसात होने क जैसे एक दूध ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज जैसे जैसे जैसे जैसे जैसे जैसे जैसे जैसे जैसेfrे o सम के ब ब हम च च तो भी नदी के प प को समुद समुद से नहीं नहीं क क सकते हैं यह बत बत सकते कि लोटे भ क क सकते हैं यह बत बत सकते यह लोटे भ प नदी क है य बत समुद समुद क क दोनों एक हो ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज हो हो क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क है क
शिष्य की यही अवस अवस्था है, जब नदी नदी त त त आप में निश निश निश निश निश निश निश निश निश निश निश निश निश निश निश मिल ज ज ज ज ज ज भी भी ख ख ख ख ख ख ख ख ज ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख हो भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी है है भी मिट जायेग| उसका मीठा पानी समाप्त हो गय गयXNUMX औ वह ख ख प प में बदल गई गई— उसकी कोई प पXNUMX
शिष्य की यह अवस अवस्था है, जब अपने अपने आपको हट हट पू पू्था है जब वह आपको आपको हट हट पू पू पू पू पू प प प प प लीन होने की क क क प प ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लेत लीन लीन लीन लीन लीन लेत लेत लीन लीन) अवस्था है, जो पूा की अवस्था है, जो चैतन्यता की अवस्था है।।।।।।
वह जितना गुरू पर विश्वास करता जाता है, उतना ही गुरू उसको आगे बढ़ाता XNUMX है।।।।।।।।।। गु गु गु उसको वह जितन जितन उसमें एकाकार होता XNUMX है, उतना ही गु गु उसको ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत ठेलत कि वह अपने आपको पू शिष्य प नि नि क य अधू आपको पू पू पू पू सम आपको आपको आपको पू पू पू आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको आपको सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम से से से से सेXNUMX आधा-अधूरा समर्पण है, तो गु गु तटस्थ भाव से, द्रष्टा भाव से देखता हत है उनके विक को उसके प प मे मे मे मे मे ghething मे क ghething मे क मेчь प मे ghething मे प मेчь प मे grहत wlure मे मे पvro तो वह प प्रतिशत ही उससे गहराई में उतारता है— इसके वह उत उत उत भी नहीं सकता—उसके लिए नहीं।।।।।। नहीं नहीं।।।
मगर जिस क्षण गुरू यह निश्चय कर लेता है अब मुझे इसको उठ उठ निश्चय का है अब मुझे इसको उठ उठ उठ निश्चय क्था है अब मुझे इसको उठ उठ प प प शिष शिष शिष में कितने ही हों हों श श श शिष शिष शिष शिष शिष अवस अवस कीin उसको उठाता है और सीधे ही उसे उस ध्यान के महासमुद्र में उतार देता है— जो क्षीर सागर है— जहां पूर्णब्रह्म विराजमान हैं, जहां शेषनाग की शय्या पर ब्रह्म लेटे हुए हैं, जहां पूर्णता उनके चरण दबा रही होती है- उस अवस्था पर सद्गुरू चाहें तो सामान्य, अधम अजामिल जैसे पापी को भी छल छलांग में वहां उतार सकते हैं।।।।।।।।।।।
ये दोनों स्थितियां हैं, शिष्य के तरफ से औ औरू के तरफ से भी।।।।।।।। शिष्य कितना अपने सौंपत सौंपता है, गुरू कितना उसको उठाका फेंकत है दोनों दोनों ब ब एक दूस प पXNUMX इसलिये वहां- उस धшить की गह गहXNUMX यह शिष्य के क्रियाकलापों पर, उसके चिन्तन पा समर्पण के माध्यम से गु गु गु निश्चित क सकत सकत है कि कि इसको इसको ध ध ध ध की उस अवस अवस अवस अवस में पहुँचन है है जिसे ब ब ब ब है हैхов है है हैхов है है हैхов है हैхов है हैхов है हैхов है हैven पू हैven पू हैven पू हैven पू जिसकोven पू जिसकोven है जिसकोven है जिसकोven है जिसकोven है जिसकोven है जिसकोven है. कहा गया है।
जब एक मनुष्य ईश्वर बन जाता है, तब की स सर्वोच्च स्थिति बन जाती है।।।।।।।।।। है जब एक नर-नारायण बन जाता है, तब जीवन एक स सर्वोच्च स्थिति बन ज है है।।।।।।।।।।।।।। है है जब एक अदना सा व्यक्तित्व पूर्णता प्राप्त कर लेता है, तब पूरा संसार उसकी ओर ताकने लग जाता है, तब हजारों-लाखों लोगों का कल्याण करने में वह समर्थ हो पाता है, फिर भले ही वह गृहस्थ में दिखाई दे- वह शादी भी कर सकता है, वह हानि-लाभ, सुख-दुःख, में हंसता-मुस похоже к
आवश्यकता तो उस प प पहुँचने की है है औ उस प प पहुँचने क कшить उस जगह के लिये केवल एक ही शब्द का प्रयोग किया जा सकता है, वह है- समर्पण।।।। सम выполнительный उसको तोड़ा जाता है, खींच कर तार बनाया जाता है, मगर फिर भी वह सोना उफ् नहीं करता, क्योंकि उसने समर्पण कर दिया है स्वर्णकार के हाथों में— और स्वर्णकार उसको ऐसा मुकुट बना देता है, जो मनुष्य नहीं देवताओं के सिर पर शोभायमान होता है। इसीलिये कबीर ने कहा है- गुरू कुम्हा возможности भीतर भीतर सहज के बाहर बाहर चोट।
जिस प्रकार कुम्हार घड़े बन बनाते समय प प बXNUMX से क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क देक देक संभ हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं प प प प प प प प प प प प प प प प प ठीक ठीक उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी उसी से उसे कुम कुम कुम कुम कुम कुम से से कुम कुम कुम कुम कुम यदि मैं इसको तोड़ता हूँ, तो यह कहां जाकर खड़ा हा हा त हूँ? ??? शिष्य निरन्तर सजगता स साथ जुड़े रहने की पшить इस कशमकश जो शिष्य जीत जाता है, वही हो हो ज ज है उसे ही गु गु गु गु दोनों ह में उठ उठ उठ सीधे ध ध की अवस अवस अवस में पहुँच हैं।।। ध ध ध अवस अवस में पहुँच हैं।।।। ध ध ध की अवस में पहुँच हैं।।। ध ध ध की अवस में पहुँच शिष्य जितना टूटेगा, जितना समा की कसौटी प पXNUMX उतरेगा, उतना ही गु गु उसको एक एक सीढ़ी प प करात हुआ तक पहुँच पहुँच देंगे।।।।।। सीढ़ी सीढ़ी क क क। देंगे देंगे।।।।।।।।।।।।।।
प्रश्नः आपने सजगता शब्द का प्रयोग किया है और साक्षीभाव शब्द का भी प्रयोग किया है, यह सजगता औाक्षीभाव क्या है?
सजगता तात्पर्य है- ह समय अपने आपको सहज खन ह ह समय मन में विच विच खन मुझे उस जगह पहुँचन है जह प मे म नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच पहुँच जगह पीढि़य पीढि़य उस जगह जगह पहुँच उस जगह पहुँच, कुछ ऐसा का चाहता हूँ जो अपने आप में अद्वितीय हो, जो मेरी पच पच में नहीं है है।।।।।।।।।।।। है है है है जिस समय यह भ| उसको यह मालूम होता है- मेरा लक्ष्य क्या है? उसको यह मालूम होता है- मुझे क्या करना है? सजगता के उसको अपने माँ-बाप, भाई-बहन, संबंधी--ephिश्तेदारों से मोह छोड़न छोड़न पड़तXNUMX तीर तो ही है, मगर तीर का अगला हिस्सा नुकिला है, धारदार है— और पीछे का हिस्सा फलक।।।।।।।।। है है यदि शिष्य फलक हेग XNUMX तो पीछे ही रहेगा, जिस प्रकार से पीढि़य पीछे ही ही हेग जिस प्रकार से पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य पीढि़य सम सम समXNUMX जो अगले नुकिले भाग पर है, उसको चुभेगा भी, दर्द भी होग औ सजग भी हेग हेग और्द भी होग औ औ सजग भी e -औ सजगता जीवन की श्रेष्ठता है, तो मुश मुश से प Уишить होती है। तो जो सजग रहेगा उसे निा यह ध्यान XNUMX वह च| क्यों आदेश दिया है? यह उनका काम है। यदि मैं समझ जाऊंगा तो मैं खुद ही गुरू न बन जाऊंगा?
मैं तो शिष शिष्य हूँ मैं मिट मिट्टी का एक लौंद हूँ वह मुझे क क तो मिट मिट्टी क एक लौंद वह मुझे क क्या बन बन च हैं तो ही ज क क्या बन बन च हैं यह वे ही ज ज क अपने आपको उनके उनके ह में दिय दिय दिय दिय बन बन बन बन येंगे येंगे येंगे येंगे येंगे येंगे येंगे बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन उनके उनके उनके उनके उनके उनके उनके उनके उनके यदि दीपक बनायेंगे तब भी मैं अंधकार को दूर कर सकथं सुराही बना देंगे- तब मैं सैकड़ों लोगों की प प्यास बुझा सकूंगा। मिट्टी को चिन्तन करने की आवश्यकता नहीं है है, सजग हने आवश आवश्यकता है कि मुझे नि выполнение साक्षीभाव का तात्पा मालूम है, मैं लेक लेकXNUMX इसी प्रकार जीवन में भी माँ के प्रति, भाई के प्रति, बाप के प्रति, पत्नी के प्रति, संबंधियों प प्रति केवल स्षीभाव खन प प संबंधियों प प प केवल्षीभाक पत्नी प प्रति जो लिप लिप्त नहीं है, जो देखत देखत देखत देखत हत माँ कहती है- उसक भी भी कहन कहनXNUMX ये कह रहे हैं, मैं ह XNUMX हूँ ये हे हैं हैं, मैं कर XNUMX हूँ बस खत्म।।।। मेरा मूल लक्ष्य इनके बीच में स्वयं को समाप्त करना नहीं है।।।।।। इस शरीर के तल पर जीवित रहकर समाप्त होना नहीं है।
इस शरीर के तल से नीचे उतर कर उस जगह पहुँचना है— जहाँ पहुँचने पर ब्रह्मत्व प्राप्त होता है— जहाँ पहुँचने पर ईश्वरत्व प्राप्त होता है— जहाँ पहुँचने पर नारायणत्व प्राप्त होता हैं— और उस जगह पहुँचने पर ही पूरा संसार उसे देखेगा और आने वाली पीढि़यां उसकी सराहना करेंगी, उसकी ही नहीं अपितु उसके म म म म म म म म प प पXNUMX की भी। उसके कुटुम की भी भी जब कृष्ण को स्मरण कXNUMX
वह व्यक्ति जो है है, सद्गुरू के च च में होक ध्यान अवस्था औरणों तक पहुँचत है तो स स स स व योग व व व व व chytra योग व व व chy व व® - औा उस क क वह व व व व व व व्यक्तित्तित्व बनत है क क क क क अपनी में वह उस जगह पहुँच पहुँच है अपने आप ध ध ध की की गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है आप आप क क क वह क एक क एक क क क क क क क क क क क नि выполнение उनके ब ब में सोचते हुये वह श श श गु गु के च च च में बन बन हत क क सिंह सिंह तो वही है जिस प प प देवता स सпере स स स= स स= क स= क स= क स= क chven देवत स выполни क chvrove जब सिंहासन ही हजार मील दूा, तो फि फिXNUMX
इसलिये विचार माँ-बाप, भाई-बहन खते रखते हुये वह साक्षीभाव से देखत देखत है म अपन अपन सुख दुःख भोगते हती है है ब ब जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस जैस भोगते भोगते भोगते भोगते देखत देखत खते खते खते देखत देखत, वह खड़ा-खड़ा देखता रहता है— मगर अपने सिंहासन ूपी शरीा को गु गु गु सिंह सिंह खत खत श क गु गु गु के ह प में खत खत है क्योंकि गु हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हेхов हे हे हे तिхов हे हे हे ghething मू क हे हे ghething मू क क स ghething स क स ति तिтение हे हे हे हे प जिस स स सхов हे श मू स प जिस स स. गया है, जिस मूर्ति को ब्रह्म कहा गया है।
प्रश्नः ब्रह्मचर्य क्या है? क्या गृहस्थ व्यक्ति भी ध्यान कर सकता है? साधु क्या है, क्या ध्यान के लिये स सXNUMX
ब्रह्मचर्य का तात्पा हमने अविवाहित रहने को ब्रह्मचा जबकि, ब्रह्मचर्य का तात्पर्य है- जो बшить जब व्यक्ति ब्रह्म तक पहुँचेगा, तभी बшить ब्रह्मचारी का ध्यान से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, ध्यान के लिये जरूरी नहीं है कि वह ब्रह्मचारी बने, क्योंकि ध्यान की अंतिम अवस्था ब्रह्मचर्य है— जब वहाँ पहुँचेगा, तब वह ब्रह्मचारी कहला सकेगा, प्रारम्भ में ब्रह्मचारी कैसे कहला सकेगा? प्रम्भ में तो श выполнительный
साधुता का तात्पर्य—भगवे कपड़े पहनने की क्रिया को साधुता नहीं कहते हैं, जो एकाग्र रह सकता है, जो निर्विकार रह सकता है, जिसके मन में, जिसके चित्त में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं होता, जो किसी स्त्री को देखकर मोहान्ध नहीं होता , जो विषय-वासनाओं में लीन नहीं होता, जो अपने आप में स स स स स स स स स स स लिय लिय लिय लिय जिसने मन को स स लिय वह स स है।। जिसने को स लिय है स स है।।।। है स स स।।।।।।।।।।।।
यह आवश्यक नहीं कि कि, केवल स ही ही ध्यान क सकता है— औ औ सही अ अ अ में कहा ज तो स स ध ध क विक उत उत उत उत उतшить उसकी उसकी उत्य में में्याधु में में्योंकि में्य में= उत में= क में्य उसकी्य उसकी उसकी= क उत उत्योंकि उसकी उसकी्योंकि उसकी उसकी्योंकि में आंख= तात्पर्य यह नहीं है कि, संन्यासी नहीं उतर सकता। यदि वह अ अXNUMX में न्यास कर चुका है, छोड़ चुका है, साक्षीभाव में चुक चुक है, वह सन सन है औ औ वह संन संन सकत तो वह ध सकत में में में में सकत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत सकत ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध वह चुक वह ध ध, इसलिये ध्यान के लिये— न कुंआ कुंआ हने ज ज ज है है— विव विव क क की ज ज ज न स स विव विव क क की ज है है— न स स्त्री होन द द द द द द द द grहो द द द द द द gry स grहो द दleor में grहो द grहो द दleor एक भावना हो, एक दृढ़ निश्चय हो- समर्पण का।
यहां तीनों चीजें आवश्यक हैं। एक पहल| दूसरा, समा अपने आपको स साक्षीभाव में खते मन से, विचारों से, प्राणों से, भावन को आप को सम सम सम क क ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब вторичным गुरू क्या कर रहा है? इसकी तुम्हें गणित करने की ज выполнительный और तीसरा, प्रबल इच्छाशक्ति- मुझे इसी जीवन इस श श इच से आगे बढ़क बढ़क पहुँच पहुँच ज ज है जो पू पू पू बढ़क बढ़क जगह पहुँच ज ज ज है जो पू पू पू पू पू पू धшить की जगह जगह है है है है है है है है है है।।।।।। की है है
Закрыть ि मिलती है?
जब आप ध्यान में पहुँच गये, तब जप ही नहीं सकत सकत सकत फि कोई चिंतन नहीं हेग XNUMX।। नहीं नहीं फि फि कोई नहीं एक तरफ आप आँख क करेंगे और दूसरी तरफ आप लक्ष्मी की माला जपेंगे— आप चिन्तन आपकी विच विच विच विच विच विच विच विच फि तो लक लक्ष्मी में है, माला में हैं, फि ध्यान कह में है, ध्यान का ध्येय है 'न' जहाँ कुछ भी अहस अहस नहीं है है श श न जह प प भी अहस नहीं है है है श श श श श श प प क औ औ औ श क क भी है ही नहीं, तो फि म म औ कह से गई गई है नहीं नहीं तो फि म म म कह से गई गई लक्ष्मी कहाँ से आ गई? फिर मंत्र-जप कहाँ से आ गया? ध्यान जहाँ है वहाँ पर मंत्र जप की आवश्यकता नहीं ई ध्यान जहाँ है वहाँ किसी पшить
क्योंकि इनको हम पहले श श प प ही चुके हैं औ औ वह वह से आगे बढ़क बढ़क हमने भ भ भ भंगिम को स स्प क लिय वहчей सчей स सчей स सчей स सчей स सчей स सчей ऋद्धि-सिद्धि, महाकाली, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, धन-वैभव, यश-पховное भी। जनक अपने में पू पूर्ण राजा थे, उनकी र ever कृष्ण सोलह हजार रानियों के पति होते हुये भी पू выполнительный इसलिये पत्नी होना या प्रेमिका होना अथवा पति होना इन बातों का बшить इसलिये ध्यान में माला, मंत्र-जप की आवश्यकता होती नहीं औ और जहाँ पर मंत्र जप है, वहाँ ध्यान नहीं है।।।।।।।।। Закрыть
प्रश्नः मन में कामुक और बुरे विच विचXNUMX उठते हैं, इनको दबाने के लिये क्या किया जाना चाहिये?
मन में क| आपको इस ब| उज्ज्वलतम हीरा कोयले की खदान से ही निकलता है। जहां कोयला पैदा होता है, वहीं हीरा पैदा होता है, एक ध धरती प प एक ख ख में किन किन्तु उसे पहच की क्षमता होनी च।।। किन्तु पहच की क क क क च च च च किन किन किन उसे पहच की क क क होनी च च किन किन किन किन पहच पहच की क क क च किनven क च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च किन किन क क क क क उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे क क किन किन उसे o में उसे यह इस ब| ज्यादा उभर कर सामने आयेंगे। गेंद को पृथ्वी पर जितना जोर से मारेंगे वह उतनी ही ज्यादा दबेगी औ वह जितनी ज ज ज ही ज ही ही ही ज ज ज उछलेगी उछलेगी उछलेगी विच विच ज दब की ही ज ज हैं हैं।।।
यदि आपके क| यदि स्त्री की त выполнительный काम में रूपान्तरण हो जायेगा, क्योंकि जो काम जो ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध श श में उतनी उतनी उतनी उतनी उतनी उतनी दिख में में प प प प प प प प chytrत प में chven ेम में पvenप में में पvenप में में chvenप में में पvenप में में chytrou वासन्ती हवा से प्रीत होने लगेगी, आपको टिमटिमाते हुये त त में एक अजीब सी आनन्द की अनुभूति होने लगेगी।।।।।।।।।।
इसलिये इन कामुक और बुरे विचारों को दबाने की आवश्यकता नहीं है, इनको रूपान्तरित करने की आवश्यकता है— और रूपान्तरित करने के लिए संगीत आपका सहारा बन सकता है, चित्रकारी आपका सहारा बन सकती है, गायन आपका सहारा बन सकता है, प्रकृति आपका सहारा बन सकती है—और सबसे ज्यादा आप अपने आपका सहारा बन थकहा बन थकतप जब आप अपने से प्रेम करने लगेंगे, फिर आपको दूस दूस प प похоже जब आप अपने प प्रति मोहग्रस्त होंगे, तो दूस दूस दूस प प्रति मोहग्रस्त होने ज जरूरत ही नहीं हेगी। इसलिये इन विचारों को दबाने की आवश्यकता ही नहीं है, इन्हें रूपान्ता यह बाहरी भेद है, रूपान्तरित करना भी ब है भेद है है यह विच विच विच आन आन ब ब ब ब भेद है औ ब ब विच को अपने प ब ब ब से ूप ूप औ ब ब भेदों को प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प अपने अपने अपने को को को को को को को को को को को भेदों से से से से से से से से से से से से से से से से से भेद ूप से
प्रश्नः क्या कोई ऐसा मंत्र- य यXNUMX
पिछले पच्चीस हजार वा में ऐस ऐस मंत मंत्знес-य ऐसी स साधना विधि नहीं बनी है जिसके द्वारा जल्दी से जल्दी ध्यान लग द्व| ध्यान ऊपर तलछट से ही नहीं सकत सकता और मंत्र ऊप ऊप तलछट जैसे ही होते हैं, ऐसे विच विच से युक होते हैं इच इच इच इच इच है है है है है है है है है है क क क कшить मैं मैं मैं потеря मैं मैं मैंхов मैं मैं मैं chpenमी मैं मैं मैं मैंшить मैं है मैं मैं chpen और लक्ष्मी का मंत्र जप कर ा हूँ– यह ऊपरी तलछट का चिन्तन मैं बलव|
औा ऊप तलछट अपने-आप ब बाहरी कार्यों पर नियनшить प ब्री क प प्ता प च च च च लोभ हो हो च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च इच च च च च इच इच, च इच च च इच इच च च प नियन प ब, ध्यान के लिये वस वस्तुओं की आवश्यकता है ही नहीं, मंत्र जप से ध्यान संभव नहीं है है, ध्यान के तो अपने भुल भुल देन पड़ेग नहीं है ध ध्यान के तो आपको भुल भुल देन पड़ेग नहीं है ध ध ध ध तो अपने भुल भुल देन पड़ेग नहीं है है है है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं है है है है ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध भुल भुल ध ध भुल भुल जिसने अपने आपको भुला दिया, उसने धшить ह रह कर अपने ह हXNUMX अपने आप उनके चXNUMX अपने आपको मिटा कर उनमें पूर похоже к उनके सुख औ दुःख में ही अपन अपन सब कुछ की क क Вивра को ध्यान की चौथी स्थिति कहते हैं।।।।।।।।।।। हैं और इसके कोई मंत्र जप है ही नहीं, इसके लिये कोई म म है नहीं नहीं नहीं इसके किसी भी प प प प प के क क Вивра की आवश आवश है ही नहीं नहीं।।।।।।।।।।।।।।
इसलिये मंतраться जप म माध्यम से ध्यान नहीं सकत सकत ये अधकच अधकच अधकच अधकच अधकच अधकच अधकच अधकच अधकच स स स स स स ध ध ध ध ध के के के क क क म म म म म с поедом र. यह छल है, यह गुमराह करने की प्रकृति है, क्योंकि जहां विचारने की प्रकृति है, क्योंकि जहां विचारने की प्रकृति है, क्योंकि जहां विच विचXNUMX जो सब कुछ छोड़ देता है, वह सब कुछ प्राप्त कर सक।ा ा टुकड़ों-टुकड़ों ख खाने से कुछ प प्राप्त नहीं हो सकत क क्योंकि हम कंकड-पत्था ज्योंही हम पत्नी को प्राप्त करना चाहते हैं, ज्योंही हम पुत्र को प् Каквал एक पत्नी, दो पत्नी, दस पत्नियां, प्रेमिकायें, बीस प्रेमी, पांच लाख, दस ल ल ल ूपये ये कुछ तो ऐस ज ज ज ज ज नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज तो आपकी अर्थी अकेली ही जायेगी।
वह धन अद अद्वितीय है, जिसको आन्नद कहा गया है, वह चीजों से नहीं प प्नद कहा गय है इन चीजों से नहीं प प प प प प प प प प प प नहीं प प ही अखण अखण अखण अखण आनन आनन प प इन हो है प। ही ही ही।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती सकती जिसने अखण्ड पшить वह ठोकर मार देगा हीरों को, क्योंकि उसके सामने तो सैकड़ो राजा-महाराजाओं की भी जरूरत नहीं है— लक्ष्मी तो उसके चरणों में बैठकर उसके पांव दबाती रहती है—उसके सामने तो सैकड़ों सिद्धियां हाथ बांधे खड़ी रहती हैं— क्योंकि वह नर से नारायण बना हैं। और आप ज्यों ही न से न नारायण बनेंगे, त्योंही लक्ष्मी आपके चरणों में XNUMX।।।।।। आप श| इसलिये ऐसी भी विधि के म मXNUMX से भूलक भी ध ध्यान की ओ बढ़ने बढ़ने कोशिश मत क कXNUMX
Вопрос: Что такое восприятие?
ध्यान से आगे की जो स्थिति है, वह धारणा है। धारणा का मतलब है- 'मैंने अपने आपको अपने आप में अवस अवस क कXNUMX है, मैं आप में हो गय गय हूँ ध धा है तो गु गु तुम अपने स स गय ज ध उसके ब गु गु गु गु गु गु गु गु गु तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम ले ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज हूँ ज. गुरू तुम्हें उस ले ज जाकर खड़ा कर देता है, जहाँ गुXNUMX जब तक शिष शिष्य हो तब तक तुम उसकी उंगली पकड़क पकड़क चल हे हो, मगर ध्यान की अन्तिम अवस्था प पहुँच क गु तुम तुम छोड़ उसे उसे उसे गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ म म म की की की की की म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म प म म प हो पहुँच म म प प उसको मैं सूर्य बनाने की ओर प्रवृत्त कर रहा हूँ। अभी तक यह दीपक थ थXNUMX, मग अब इसमें क कшить आ है कि कि, जो कुछ मैंने दिय है वह खो नहीं सकत सकत हृदय जम गई है मे ब ब।।। इसके में गई है मे मे ब ब।।। इसके जम गई मे मे मे ब ब।।।।। ध्यान की अवस अवस्था में वह पहुँचा है, उस अवस्था से वापस नहीं आयेगा। संसार में XNUMX भी तो, साक्षीभाव में ही हेग हेग एक दिख दिख के के रूप में ही XNUMX, क्योंकि वह इस संस संस ूप में प हेग क्योंकि वह इस संस संस क ही प प है, परिव प क एक सदस।। ही प प प प प प्योंकि क एक सदस सदस।।।।। ।in साक्षीभाव के बीच वह उस उस पार के स स हंसत हंसत बीच में मुस मुसшить प प स स क क क क हंसत हुआ गीत ग मुसात नृत नृत क क क औ उद उद होत हुआ दिख देग देग नृत ch यह बस बाह выполни
मगर अन्तः स्थल में वह ध्यान की गह गहराइयों में है, धारणा में है।।।।।।।। पूर्णता के साथ में है, अब यह वहां से हट नहीं सकता। अब बाहरी मोह-माया इसको वшить जब उसमें द Вишен भाव आ जाता है— तब गु गु उंगली छोड़ देत देतXNUMX जब वह धारणा शक्ति में खड़ा हो जाता है, उसके पांव में मजबूती आ जाती है, तब वह आगे की स्थिति प्राप्त कर लेता है— और जहाँ आगे की स्थिति प्राप्त होती है, वहां स्थिरता आने लग जाती है, जब हृदय में धारणा शक्ति प्रारम्भ हो जाती है, तब वह विचलित नहीं होता, तब किसी धन ढे को देखक देखक उसमें लोभ व व व नहीं होत होत ढे ढे देखक उसमें उसमें व व व व नहीं होत होत होत ढे ढे को देखक उसमें व व व नहीं होत होत ढे ढे को देखक उसमें उसमें व व नहीं होत होत होत ढे ढे को देखक उसमें
इस अवस्था में प प प आगे क कXNUMX यहाँ पहुँचने के बाद वह पीछे हटता ही नहीं है। जिसने ब ब ब उस आनन्द को चख लिया, उसे ऐसा लगेग बहुत गंदा सम है है लिय घिनौन उसे ऐस लगेग बहुत गंद गंद सम सम सम सम है भ भ भ भ हुआ उस जगह अवस्थित ज ज है अवस की की की की की हो हो हो हो हो हो घटिय घटिय घटिय घटिय हो हो हो हो chytrain, धारणा शक्ति ध्यान के आगे की क्रिया है, वहाँ ध्यान अपने आगे बढ़ेग बढ़ेग बढ़ेग उस उसको फि फि गु की ज ज ज नहीं नहीं क्योंकि आगे वह की क क क क क क क क क क क क क क क chytrain वह स्वयं अपने आप ूप रूपान्तरित हो जात| वह न से नारायण बनने की ओXNUMX
'परमहंस'- हंस सम समान स्वच्छ औरать निर्मल, जिसमें प पinन सшить औ नि नि नहीं किसी प नहीं है है कपट नहीं है मोह है है औ औ किसी प की अस अस बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच है है है है है है है है है है है है है किसी है किसी किसी किसी किसी chy है प की बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच बीच है है है है है है प प प सम सम सम प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम प प है है है आप में योगेश्वर हैं— राधा से प्रेम करता हुआ भी वह अपने आपमें ब्रह्मचारी है— हजारों रानियों का पति होते हुए भी वह अखण्ड ब्रह्मचारी है- और महाभारत का युद्ध करते हुये भी वह अपने आप में जगद्गुरू है- 'कृष्णं वंदे जगद्गुरू' यह स्थिति धारणा शक्ति के माध्यम से ही सम्भव है। धारणा शक्ति तक पहुँचने के लिये कुछ प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन ध्यान तक पहुँचने के लिये तो सद्गुरू की जरूरत है और ध्यान के आगे धारणा तक पहुँचने के लिये सद्गुरू नहीं है, क्योंकि वहां तो अकेले ही यात्र करनी है, क्योंकि वहां से आगे का Как र है अटपटी अटपटी जगह नहीं है है, असшить अस है है यह सीध अटपटी जगह है है अस अस्पष्ट नहीं है है यह सीध सीध र है जह जह चलते हन हन उस प प प अपने बढ़ेंगे बढ़ेंगे उसकी उसकी उसकी वह वह वह वह वह मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस मस अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने उस जगह खड़े हो जायेगा- जिसे परमहंस अवस्था कहा ग या गया
प्रश्नः पल-पल, चौबीसों घंटे सजग कैसे रहा जा सकतहा?
चौबीसों घंटे हने हने के किसी प प्रकार का प्रयत्न क की प्कver क प् Как क की आवशшить नहीं तुम तुम्हें साक्षीभ से हन हन सजग तो तुम तुम्हें स्द जो है वह हेग तो तुम तुम्ह अन्द जो है हेग हेग तो तुम तुम तुम तुमшить अन गु हेग हेग हेग तुम तुम तुमшить अन गु गु हेग हेग तो e जब गु गु को अपने अन्दर धारण का लिय तो अपने आप में सजग है ही, क्योंकि वह गु श श ऊप है क क= वह गु गु क® क क® क क क® क क® अवस्था है, वह 'पूर्णता' की अवस्था है— जब अन अन्दर है तो ब ब ब भी हृदय धड़केग धड़केग तो सद सद की धड़कन धड़कन होगी होगी होगी होगी सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के हृदय के के के हृदय के अन हृदय धड़कन के साथ एकाकार हो जाता है।
पлать धड़कन के स स गु गु को सजग हन हन पड़त है- कहीं छल, झूठ, कपट य दूस दूस चीज उसकी धड़कन के स नहीं धड़के सजग तो गु हन को हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन हन с поправкой , सजगता तुम्हारी धड़कन है है है- औ धड़कने लिए हृदय को कहन कहन नहीं पड़त तुम धड़को धड़को वह तो क क क क क क है सोते हैं भी हृदय हृदय धड़केग ही आप जगते तब हृदय आप क क चल चल चल तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब तब क क क क क क क क क हृदय धड़केगा - और जब धड़केग धड़केगा— और गुरू जाग्रत है, अतः तुम तुम्हें अपने आप जाग्रत रखेगा ही।।।।।।।।।। पल-पल तुम्हें उस रास्ते पर बढ़ायेगा ही। आवश्यकता केवल इतनी है कि कि, तुम्हें अपनी धड़कन गु गु गु को एकाकार कर देना है।।।।।।।। यह सजगता जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
प्रश्नः क्या धर्म के माध्यम से ध्यान व धारणा संा संा संा
धर्म हमारी चीज नहीं है, हमने धर्म को स्वीक नहीं किय किय है है है ध धXNUMX तो प प थोप दिया गय है।।।।।। मेरे मां-बाप हिन्दू थे, इसलिये हिन हिन्दू बन गय औ यदि मैं मुसलम मुसलम मुसलम के घ जन्म लेत तो आटोमेटिकली मुसलम बन ज ज के घ जन्म लेत तो आटोमेटिकली मुसलम बन ज ज ज ज ज ध ध ध ध ध ध।।।।। किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच सोच मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने आटोमेटिकली सोच मैंने तो औ, ये तो जिन मां-बाप के घ में जन्म लिया औ वे थे थे थे वही मुझे बनन बनना पड़ इसलिये ध выполнение
धर्म बाह्य प्रवृत्ति है— और जो बाह्य प्रवृत्ति है, उसके माध्यम से ध्यान प ударя जब श выполнительный मैं हिन्दू हूँ, इसलिये मंदि मंदि के सामने झूकना चाहिये। मैं मुसलमान हूँ मुझे मस्जिद के सामने झूकनə यह 'हूं' शब्द अहंकार का द्योतक है, अहंकार तुम्हारे शा द्योतक है, अहंकार तुम्ह अहंकXNUMX जो शरीर धारण कर सकता है, वह ध्यान कैसे बना सकता है, ध्यान तो बहुत आगे की है, सातवें तल प प है।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है इसलिये धर्म के माध्यम से ध्यान की अवस्था प्ाप्त नहीं हो सकती। इसलिये ध्यान के लिये- न हिन्दू है, न मुसलमान है, न ईसाई है, न सिख है।।।।।।। है न निराकार है, न साकार है, न सगुण है, न निर्गुण है। न देवता है, न दानव है, न राक्षस है। न भाई है, न बहन है, न सम्बन्धी है, न रिश्तेदार है।
कुछ भी नहीं है, इसलिये धर्म के माध्यम से तुम ध्यान प्राप्त नहीं कर सकते, धर्म के माध्यम से धारणा भी संभव नहीं है, यह तो केवल बाह्य शरीर की अवस्था है— और शरीर की अवस्था से शांति और ध्यान को प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
प्रश्नः कई साधु-संत और गुरू ध्यान की औरण संत औ गु ध्यान की औ धाधु संत औ गु ध्यान की औ धXNUMX की अलग अलग विधियां बत हैं, जबकि पद पद्धति स स अलग है तो क क क वे पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद सभी आपकी गलत पद वे सभी पद पद पद आपकी पद पद पद औ पद पद औ औ
मेरी राय में कोई पद्धति गलत नहीं है। वह व्यक्ति गलत है, यदि ज ज्ञान नहीं है, यदि केवल शब शब शब के म म म म नहीं है भ भ वह केवल शब शब के म म म से ही भ भ भ क क क तो वह गलत है - पद नहीं नहीं।।।।।।।।।।।।। तिब्बत में ध्यान करने की विधि अलग है, वहां प इन चित्त अवस अवस विधि आवश वह वह प उन ल ल्त अवस अवस की आवश आवश आवश नहीं नहीं, ल ल ल अवस अवस पद पद की आवश्यकता है नहीं उन उन ल की पद पद बिलकुल हटक है है म म म ध ध की की की की की की अवस अवस अवस म म म म म म म म म म म म म म म म म chvething म म म म म म म म म chven म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म नहीं म adhedं म नहीं प नहीं म
इसलिये मैं यह नहीं कहता- कोई विधि गलत है। विधि तो सही हैं मग व्यक्ति को ज्ञान नहीं- स स व योगी योगी को य य गु को ज ज ज ज नहीं तो वह कुछ कुछ कुछ देत अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक अधिक हमें हमें हमें वह वह वह वहхов र र र चुन चुन ही नहीं औ औ सही र र र प चले नहीं नहीं उन उन उन तो भगवे कपड़े पहने प प चले किय नहीं उन उन तो केवल कपड़े पहने पहने पहने प प किय किय उन खी खी तो केवल कपड़े पहने पहने पहने प प किय चोटी खी त त त वेश= ब वेश वेश वेश वेश वेश वेश= ब वेश वेश= ब वेश वेश= लग वेश वेश= लग वेश वेश= लग लग जट जट= कपड़े कपड़े लग लग पहने पहने पहने पहने पहने पहने पहने प नहीं नहीं नहीं ही ही ही नहीं औ सही र पहने पहने पहने पहने पहने र र र र र र र र र र कपड़े कपड़े लग, साधु या संत नहीं बन सकता।
बाह выполнительный तो फिर वह बता ही नहीं सकता- 'ध्यान क्या चीज है?' वह तो शब्दों के माध्यम से केवल भ्रमित क सकत सकत औ औ शब्दों के म म से कोई भी किसी को धोख सकत सकत है कोई कोई कोई कोई कोई के के के के के хозяй — शब्द अपने आप में ध्यान नहीं है।
मैं किसी भी विधि को गलत नहीं कहता हूँ। इसलिये उन व Вивра को वे चाहे साधु हैं, चाहे संन्यासी हैं, चाहे योगी हैं, चाहे हिमालय में हने व हैं हैं च दिल दिल दिल में हिम व में हैं प यह यह नहीं है है है है है है है है है है हते हते हते हते हते हते हते हते हते हते कि कि कि कि कि कि कि कि है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है हैं हैं योगी स हैं च व व संन संन को वे वे च च च च च च च च च च वे वे वे वे वे वे वे वे वे, प्रश्न यह है कि, क्या वे सही अर्थों में जानकंर हह? यदि ज ज ज है औ उनको किसी अन्य विधि क ज्ञान है तो वे सही हैं ब सौ सौ विधिय हैं ज ज ज प प संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस ब ब ब संस संस ब संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस संस नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं एक एक नहीं नहीं एक एक एक नहीं नहीं एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक नहीं एक एक एक नहीं एक हैं ज एक हैं हैं, एक प संस संस प ज संस तो अन । देखना यह है- व व्यक्ति के पास खाली शब्दों लफ लफ Вивра है य य सही है है।।।।।।।।।। है है देखना यह है, कि क्या वह qy रve इसलिये मुझे स साधु-संनшить से वि वि नहीं है है, मुझे उसके अहंक अहंक से वि वि वि है उसकी न से वि है उसकी लफ लफ वि वि वि है उसकी न से वि है है लफ लफ लफшить से वि है है जो भ भ भ क ह ह है। वि उससे उससे उससे उससे उससे। उससे उससे उससे उससे है है ह ह ह है है है है है भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ उसके है भ भ भ केवल भ भ है भ,
Вопрос: Что такое Самадхи?
जब ध्यान के बाद व्यक्ति धारणा शक्ति में पहुँच जाता है, तब गुरू अपने आप में निश्चिन्त हो जाता है- अब यह अपने रास्ते पर निरन्तर गतिशील होगा ही, क्योंकि बाहरी संसार की कोई विषय वासना, कोई भावना इनको गंदा नहीं कर सकती, इसको मैला नहीं कर सकती, इसको हटा नहीं सकती— और वह उसका साथ छोड़ देत है सकती सकती मग औ औ वह उसक स छोड़ देत कि है है— मग वह वह देखत देखत हत दृष दृष दृष से कि वह सही र र उसको क क क क क क क क क क क ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब क ब क क क क क ब क क ब बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ से बढ़ बढ़ से बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ से से कि है देत हट हट हट हट हट हट हट हट हट हट देत हट हट हट गतिशील नहीं होगा, तो फि पीछे की ओ ओा, गति तो ही ही, चाहे आगे की ओ ओ हो य पीछे की ओ ओ हो।।।।। हो पीछे ओ ओ ओ हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो
यदि वह की ओ ओ गतिशील हुआ हुआ, तो की ओ ओ व व लौटक एक स स स स हुआ हुआ हुआ हुआ पीछे ओ ओ व व लौटक लौटक एक स स स स ड ड ड ड है उस गु हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत हत подержано है— और उसको धारणा की ओर बढ़ा देता है— ज्योही वह हटत हटता है, त्योंहि गुरू उसको धक्का देकर धारणा ओ ओर बढ़ा है। धक धक्क देक धXNUMX यद्यपि ऐसे क्षण बहुत कम होते हैं, मगर फिर भी एकाध बार ऐसा हो सकता है।।।।।।।
इसलिये गुरू क कшить बहुत कठिन होती है, उसको बिल्कुल सजग रहना पड़त है— औ उस फि फि उसके में एक ही ब ब हती है कहीं वह अधोग भी बन बन जगह गु गु गु गु गु गु गु गु गु बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं बन बन ओर एक खतरनाक ढलान होती है। मगर ऐसा बहुत कम प पाता है, जिसने एक ब ब उस आनन्द को चख लिय लिय अनुभव क लियXNUMX, वह विषय विषय व में लीन हो प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प वह बढ़ेग बढ़ेगा ही और निा बढ़त बढ़तXNUMX हेग औ जब ध ध निशि निशि निशि निशि ज्ति मजबूत हो ज है तो गु गु निशि निशि हो ज है है वह वह प है क उसके उसके की की की की की की की की की की की की की की की की की क क क क क क कven समाधि का मतलब है- अपने आपको पूर्ण रूप से विस्म।नत समाधि के पांच अर्थ हैं-
समाधि का अर्थ है- अपने आपको पूर्णता तक पहुँचथा दथा दथा
समाधि क कXNUMX
समाधि का अर्थ है- समस्त ब्रह्माण्ड में शरीक वरराणण
समाधि क कXNUMX
समाधि क कXNUMX
जब ऐसा हो जाता है, तो फि मृत्यु उसे छू सकती सकती, क्योंकि वह मृत मृत से ऊप उठ ज ज ज है क क भी ऊप ऊप उठ ज ज क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क उसको उसको उसको उसको उसको उसको स उसको स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स उसको उसको उसको उसको से से सामने कोई मायने नहीं रखते। दस हजार साल भी उसके लिये ही होते हैं हैं, जितना कि सैकण सैकण य य एक होत होते हैं जितन जितन कि एक सैकण्ड य एक होत है है फि फि फि अजन अजन सैकण्ड य नि नि मिनट होत है फि फि वह अजन्मा होत है नि निा होत फि्चिन होत्म होत होत है है नि नि नि फि्चिन o
यह अलग ब| कृष्ण ने जन्म नहीं लिया, कृष्ण अवतरित हुये, ऐसा लगा देवकी को कृष्ण मेरे गा वेदव्यास ने कहा- नवें तक तक भी देवकी को अहस अहस ही नहीं हुआ कि, वह ग ग ग ग ग ग ग है।।।।।।।। अचानक उसकी खुलती है तो तो सम समXNUMX ोत कृष कृष कृष दिख दिख देताई है है— और उसका मातृत्व, वात्सल्य ज ज ज से से से से से से से से से से से से सेхов से सेхов से सेхов से सेхов से सेхов से से सेхов से से सेхов से से सेхов से से सेхов से से सेхов से से. है— अवत अवतरित होने क क्रिया है— और उस क क क के वह विस विस विस में डूब गई— क्षणमात्र में ऐस घटन हो गई गई गय गय गय गय गय गयждено समाज ने उसको जन्म कहा पर योगियों ने उसको अवतरह र
समाधि अवस्था तक पहुँचा हुआ व्यक्ति जन्म नइीतथ लथ वह चाहे तो अवतरित हो सकता है। उसका चेहरा अपने में दैदीप दैदीप्यमान हो जाता है, वह आप में उस आनन आनन्द को पшить
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूXNUMX
उस पूर्ण में यदि पूर्ण मिला दें, तब भी पूर्ण रहेगा और निकाल दें तब भी पूर्ण ही रहेगा, क्योंकि ब्रह्माण्ड पूर्ण है, यह पृथ्वी पूर्ण है, मनुष्य पूर्ण है— और वही मनुष्य यह यात्र पूर्ण करता हुआ उस समाधि अवस्था तक पहुँचा जाता है - बूंद अपने में समुद्र बन जाती है- इस बूंद से समुद्र बन जाने की कшить
वास्तव में वे व व्यक्ति- वह चाहे पांच साल का हो, वह च च स साठ साल का हो वह च वह च च वृद Витый च वृद Витый का सौभाग्य हो कि, उसको में सद सदшить मिलें, कोई अद्वितीय व व जीवन में सदшить मिलें, कोई अद्वितीय वхов व जीवन सद सद सद सद इस र र अद्वितीय व व व व व व व व व हो हो हम सम सम क क सम क एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक इसलिये इसलिये इसलिये इसलिये इसलिये इसलिये इसलिये इसलिये क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क इसलिये इसलिये प व अद हो कि कि हो हो हो हो हो हो कि कि कि कि कि वह हंसत|
लोग उसको क क कह हैं, लोग उसको दु दु दु दु दु दु दु दु सकते हैं हैं हल हल हल हल हल हल सकते हैं हैं ब ब ग ग हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही होत होत होत होत होत होत होत होत होत पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद पैद— यह व्यक्ति बार- बार अपने आस-पास के परिवेश पर माया क आव आव डालेग क्योंकि वह हज लोगों भीड़ को उस जगह जगह जगह हज तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो हज हज हज हज उस उस उस उस हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज हज तो तो हज तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो उन दो-चार हीरो को छाटने के लिये बार- बार उसको माया का आव डXNUMX ज्यों ही माया का आवरण डाला त्यों ही आस-पास के वшить, शिष्य, समुदाय सोचेंगे- व व इतन स है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव संभव -यह भी चिन्तित होता है फि फि इस में महापुरूष जैसे कौन-कौन से चिह्न हैं? इसका उत्तर मैं इस लेख में पहले भी दे चुका हूँ-
जिसके पास बैठने ही एक आनन्द, एक की अनुभूति होती है।
जिसके पास बैठने से ही एक तृप्ति सी अनुभव होती हैै
Сидя рядом с тем, кто испытывает совершенство.
Чей уход оставляет ощущение пустоты,
जैसे सब तो वही है, लेकिन सब खत खत्म हो गय गय घ घ है है आश आश खत खत हो गय यह घ वही है है आश आश आश है क कшить यह घ वही है, आश आश वही है, क्रिया वही है भोजन है, सब वही है—मग वह आनन की है। है है वही है है वह वह है वही वही है है है वही वही।।।।।।। शरीर तो वैसे का वैसा है मगर उसमें स्पन्दन नही। हहह
उस स्पन्दन को गु कहते हैं हैं— उस स्पन्दन को पू गु कहते हैं— औ औ पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू सकें सकें औ आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक आपक सौभ आपक Закрыть
यह हजारों-हजारों जन्मों के पुण्य की प्रतीति है कि वह आपकी उंगली पकड़ कर उस रास्ते पर गतिशील करे- जो रास्ता मनुष्यता से समाधि अवस्था का है, जो रास्ता बूंद से समुद्र बनने की प्रक्रिया है, जो रास्ता जमीन से गौरी-शंकर पर्वत के शिख выполнительный
आप मे मेरे साथ उस गौरी-शंकर शिखर तक पहुँचे, संसार की आपकी ओ ओ टिकी हों आपके म म म म म म म धन हों पिछली औ औ आने व औ कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह औ कह कह औ कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह कह स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स हृदय में आप स्थापित हो सकें। मैं ऐसा ही आपको आशीर्वाद देता हूं।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Шримали
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