जैसा कि प्रзнес में कह कहा गया है यह जीवन की दो ध ध ध ध हैं हैं अ अ औ औ औ दोनों ही गतिशील तो को को को को को को को को को को को हेय हेय हेय हेय हेय हेय हेय हेय हेय हेय हेय दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष दृष की है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है अंतर केवल इतना होता है जह जहां गृहस्थ जीवन की ध ध ध ब ब ब कि जह अटकते कम से गतिशील हती है वहीं संन संन अटकते के की की ध ध ध की ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज प पvenत प प प पvenत प प पvenप प नि पvenप प नि प पvenप प नि प पvenप प नि नि प प प प प प तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीव तीवven त तीव तीव गतिशील गतिशील की chy ध से गतिशील से की ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध गतिशील हती हती. एक गृहस्थ की अपेक्षा अधिक तीव्रता से गतिशील है। संन्यास चट्टानों को लुढ़काने की, अटकाव साफ कर देने ही क कшить क है है।।।। जीवन गति लेने की ही ध ध ध ध ध है है औ यह ध ध ध ध यह गति कोई भी) तो है किन्तु अनेक दुर्गन्धों से भरका पीड़ा की काई को ऊपर झलकाता हुआ, उदास और मलिन।।।।।।। औ औ औ औ औ औ है है है औ औ औ औ औ है।।।।।।।।।।।।।।।।। मलिन मलिन मलिन मलिन मलिन मलिन मलिन
यदि अपने आस-पास देखे तो सैकड़ो वшить सहज आनन्द, सहज हास्य, सहज उनके जीवन में सम समाप्त हो गयी है।।।। उन्हें यही पत पता है कि जीवन में लक्ष्य निर्धारित क्या करें? Закрыть किन्तु यह किसी भी साधक, शिष्य, विचारशील व्यक्ति काधक शिष्य
जीवन की इसी विसंगति, गृहस्थ व संन्यस्त, दोनों ही धाराओं में प्रवाह की न्यूनता को समझ कर सिद्धाश्रम ने यह व्यवस्था दी जिससे साधक अपने जीवन की खोई हुई गति प्राप्त कर सके, चाहे वह साधना के माध्यम से हो या शक्तिपात दीक्षा के द्वारा, जिससे अटकाव दूर हो सके, जीवन में प प्रतिदिन की सुबह उद उदासी और घिसापिटा क्रम लेक आक खड़ी ज ज है है क क्रम समाप त हो।।। ज है क क्रम सम हो हो।। ज ज है प्रतिदिन नवीनता का अनुभव हो।
Закрыть ओं, न्यूनताओं, साधना में असफलता, विकार, अष्ट पाशो ं, धनहीनता की समाप्ति हेतु सद्गुरूदेव से गृहस् थ चेतना युक्त सिद्धाश्रम शक्ति दीक्षा प्राप्त कर सद्गुरूदेव जी की ही भांति गृहस्थ और संन्यास जीवन को पूर्णता से आत्मासात कर सकेंगे और गृहस्थ के सभी रंगों से सराबोर होंगे।
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