क्रिया योग ल लाहिड़ी महाशय ने समझ समझाने का पшить कियाशय ने भी समझाने का प्रय| इसको समझ| मैंने यह समझाया, कि व्यक्ति किस प्रक| से जीवन में ध्यक्ति किस प Вивра प जीवन में ध ध ध्यक्ति किस प्знес से जीवन में ध ध ध ध ब ब ब किस प प Вивра दे औ औXNUMX के किस प प्रकाвер आप एक गुंज गुंजरण करेंगे, तभी एहस एहसास होगा, कि म मानसिक तृप्ति भी अनुभव होती है।।।।।।।।।। है एक ऐस|
इसलिये कि सुख मिले औXNUMX
संतान पैदा कXNUMX अपने में सुख क क अनुभव हो सकत सकत है है प परन्तु उसको बड़ करना बड़ा ही शшить वह आस आसान काम नहीं है, बहुत सी परेशानियां, कष्ट है इसमें— औ औ इसके ब भी संत संत सुख मिले कोई ज ज नहीं है आप अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे आप दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे दे भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी सुख सुख भी भी सुख सुख.
सुख दूसरी चीज है और आनन्द दूसरी चीज है। पंखा चल ा है, यह मुझे सुख तो दे सकता है, मगर आनन्द नहीं दे सकत सकत सकत सकत सकत।।।।।।।।।। दे दे सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत तो तो दे दे दे दे दे दे यदि कोई मानसिक तनाव में है, तो बेशक ए-सी- लग हुआ हो, नौकर चाकर हों सब कुछ बेकार है।।।।।।।।। यदि व्यक्ति बीमार है, अशक्त है, हार्ट का मरीज है, तो उसको धन और मकान कहाँ से सुख देंगे? ये सब उसे आनन्द नहीं दे सकते। आनन्द की प पшить स है, जीवन का जो सच्चिदानन्द स्वरूप है, जिसको सत् चित्चिद आनन आनन कहते वह तो जीवन की उ उ उ उ औ्वृत कहते वह है की की उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ की की की की की की की की की की।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है से से से से से से से से से से से से से से से हैं से से हैं हैं से हैं हैं से से कहते कहते से से से हैं से कहते वह है तो स वह तो
आप आसानी से गुंजरण कшить के माध्यम से ध्यान में पहुँच सकते हैं।।।।।।।।।। ध्यान जहां अपने आपको अपना ज्ञान नहीं XNUMX, हम म माइण्ड बना सकें, अपने में ह ह औ पू पू त से आप में डूब ज ज।। पू त से आप ही ह ह।।। पू।।। ह ह।।।।।।।।।।।।।।।।। ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज लेकिन हमने गुंजरण करना छोड़ दिया। हमारे शास्त्र, हमारे गुरूओं, राम, कृष्ण और पैगम्बरे सभी एक ब ब कही कि आप ही अपने से ब ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब डूब आप सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख सीख लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे सीख लेंगे,
मैं आनन्द शब्द प्रयोग कर रहा हूँ शब शब्द प्रयोग क क Как शब शब शब शब क क क क क पैस पैस पैस पैस ख ख ख प क क भी प प प प प प प प प प प प प प प प प प प।।।।।।।।।। प प प o सुख के व्यूह में क क तो आपको उन तृषшить तृष ओ ओ से भागना ही पड़ेगा। ऐसे जीवन क क कोई अन्त है ही नहीं, क्योंकि जो दिख दिखाई दे XNUMX है सुख नहीं है।।।।।।।।। है है यदि यही सुख होत होत तो जीवन में इतनी विसंगतियां, इतनी बाधायें, परेशानियां नहीं आती।।।
जीवन में आनन्द की प्राप्ति का पहला पड़ाव ध्यान है सत्, चित् और आनन्द।।।। आनन्द तो बाद में पहले हम अपने जीवन को सत सत्यमय बन सकें उसके ब ब ही अपने चित सत सत हैं हैं उस चित को नियंत नियंत ही अपने चित तक पहुँच सकते हैं उस चित को नियंत नियंत क सकते औ तभी तभी आनन उस प नियंत नियंत क सकते हैं औ तभी आनन की प प प। सकते हैं औ तभी की की की प नियंत नियंत हो।। औ तभी की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की यदि हम देखें, तो जीवन जीवन-आनन्द की पшить आप प्ा क क हे हैं- सुख प प्राप्ति के लिये,- औXNUMX
ध्यान के बाद तीसरी स्टेज होती है, 'समाधि'। समाधि के बा возможности
चित्तं प्रदेव वदतां परिपूर्ण XNUMX
आत्मं परां परमतां परमेव सिन्धु, सिद्धाश्ा
समाधि वह है है, जब स स्वयं को सुखों बिल बिल्कुल क क प प प आनन आनन सुखों बिल बिल बिल क क क क क प में भोगव आनन प लीन सकें सकें क क सुख अपने में भोगव भोगव प प की प क क है आप में भोगव भोगव प प प प क है। आप में भोगव भोगव भोगव भोगव।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है। है है है है है है है है है है है है सुख से भोग पैदा होता है, भोग ोग रोग पैदा होता है औरोग से मृत मृत पैद पैद होती है— और वह रास्ता अपने में मृत मृत मृत की ओ औ औ क र।। मृत मृत मृत की ओ औ क क।।।।।।।। क क क क क क क क क क क क क क क क क क क मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत मृत क मृत मृत औ है क वह औ औ। क ज औ क क आप औ। क मृत्यु को परे हटाकर हम प्रकृति से बातचीत करन।ॾ स। पुष्प को क क कोट की जेब में डालने की ज выполнение नहीं है है इसकी अपेक अपेक्षा उस पुष्प से बात करने की कल सीखें।।।। प्रकृति के में यदि बैठ ज ज ज ज घंटे दो घंटे अपने आपको भुल सकें औ उसके उसके स कोशिश क अपने आपको भुल को औ औ उसके स गुंज गुंज गुंज क क क म चित चित को की जो गुंज गुंज गुंज क क क म म म से से ज की होत होत है। क म म म से से ज ज ज ज से chytrou
जब वह कमल अपने आप में पшить नाभि में कुंड है है, जिसके माध्यम से पूरा संच संचालित होता है।।।। चित् ज्यों ही आप में ज जाग्रत अवस्था में पहुँचत है आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन्ददायक अमृत बूंदें विस्तृत होक पू पू श श को औхов चितхов चितхов चितчей चितчей चितчей चितчей चितчей चितчей चितчей चितчей चितчей चितчей चित grे Вдержира-ध धvro द धvro द धvro द धvro ध धvro ध धvro ध धvro ध धvro ध धvro ध धvro ध ध Hold क ध Hold क ध Hold क ध Hold पू देती देती Hold पू देती देती देतीvro देती देती Hold पहुँचत पू देती देती देतीvro देती देती देतीvro देती देती देतीvro देती) ।
चित् के पहुँचने प प आप उस समाधि में लीन होंगे, जहां, आपको अवस अवस्थाये पшить पहली अवस्था में गुंज गुंजरण क्रिया करें, शंख औ सोऽहं मंतшить Закрыть उच्चकोटि का योगी बत्तीस मिनट तक सांस को नहीं टूटने देता। पлатья प обычно में में व्यक्ति एक य यXNUMX इस क्रिया को करने के लिये किसी पाठशाला में की ज ज ज नहीं किसी प मात्र 'सोऽहं गुंज गुंज के सह सह इस स स स स स श श च च गुंज किय सह सकत है। स स स स स स स स स स स स स स।।।।।।।।।।।।। सकत सकत किय किय किय किय किय किय किय किय
इस क्रिया के माध्यम से योगी शून्य में आसन लग लेते हैं, जमीन के ऊप उठकर साधना क लेते हैं।।।।।।।।। हैं हैं जब भाही गु सोऽहं स सXNUMX क चाही गु गु ने कह कह ऐसी ऐसी ऐसी जगह स स स क क अपने में अत अत अत पवित पवितven स स औ ऐस देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने उसने पू उसने उसने उसने उसने उसने उसने पू पू पू पू उसने पू पू उसने पू पू उसने पू पू पू उसने पू आप पू पृथ उसने पू आप o ऐस उसने उसने उसने अत अत पृथ को स कह पृथ को पूरी पृथ्वी पर हजारों बार आबादियां बनी और नष्ट थ जमीन का कोई हिस हिस्सा ऐसा नहीं है, जिस प प थूक, लार, रक्त नहीं गि गि कौन कौन स सा स्थान पवित्र है जह जह प बैठक सोऽहं साधन की ज पवित पवित पवित पवित पवित पवित ज स स स स स ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज्थान
भा ने कह कह मुझे पृथ पृथ्वी पा ऐस भी स्थान दिखाई नहीं दे रहा है, जहां पर किसी पшить की असंगति ही हो।।।। प किसी प प की नहीं ही ही गुरू ने बताया- केवल ही स स्थान है जमीन ऊप उठका गुंज выполнительный
Закрыть आप करके तो देखें और नहीं हो, तो फिर आलोचना कर सकह।,
फिा मैं प प्रति जिम्मेदार हूँ, मगर आप क क ही औ औ खड़े खड़े होक होक आलोचन आलोचन देंगे तो फि आलोचन आलोचन क औ बहुत बड़ी बह बह बह बह औ विशेषत की ब नहीं क क क की है है है है की की की की की की की की की की की की की की की की की की की है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं हमने इसे एक फैशन सा बना रखा है।
हम जो कुछ भी कहें, पहले हम स्वयं दमखम के साथ करें। उस गुंजरण क्रिया को तेजी के स साथ करें, जिससे अन्दा कर दिया जाय, हीट क क कXNUMX र र निकलने क क क क क क क क Вибра वायुयान ऊपर उठ सकता है?
आपने अपने में किसी म म हुये आदमी को देखा नहीं, वह अपने आप में एक अनुभव है।। जब आदमी मरता है, तो अन अन्दर जो प्राण है, वे में से किसी भी द्वार ब ब ब ब निकल ज औ औ उसकी मृत हो हो हो है दो हैं दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो मृत मृत मृत मृत मृत हो एक लिंग, एक नाभि और दो कान। इन दसों द्वारों से अंदर की विद्युत बाहर न।कल।ी त यह विद्युत का पшить है, जिसके द्वाा मैं तुम्हें देख ह ह हूँ के म माध्यम से ये विद विद ही है मैं मैं तुम तुम तुम तुम तुम मैं मैं मैं मैं अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन मैं मैं मैं मैं से से से से से से से से से से से से से से से से से से से सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन सुन अन अन अन है है है है है तुम तुम प प प प प प प प प प प तुम तुम तुम प प प प प प प प प प प प तुम तुम ह तुम अन्दर से बाहर निकलने क कшить
मगर मैंने कहा- च चXNUMX साधारण XNUMX इसलिये जब सामान्य गुंजरण का आठ मिनट का अभ्यास हो जाये तो उसके बाद उन दसों द्वारों को बन्द करके गुंजरण क्रिया का अभ्यास किया जाना चाहिये- यह इसकी दूसरी अवस्था है और जब दसों द्वार बन्द करके गुंजरण करेंगे, तो फिर वह हीट बाहर निकल नहीं सकती , वह अन्दर ही रहेगी। उस गुंज गुंज के माध्यम से उत्पन्न हुई विद्युत ऊाध्यम से उत्पन्न विद विद्युत ऊ ऊ चैतन अन्दर ोकने क क Вивра अपने में चैतन क्दver
Как происходит Чайтанья Крия?
चैतन्य का मतलब है- अन्दर के चित्त को, अन्दा कुण्डलिनी जाग выполнительный एक साथ ही पूरे चक्र जाग्रत किये जा सकते हैं। कुण्डलिनी जागरण का अा है- पहले आप भस भस्त्en क मूलाध है- आप भस भस्त्en क मूलXNUMX क भस फि्त्तver क मूलXNUMX क फि फि्त्तver क मूलXNUMX क फि फि्त्वाधिष्ठान को को जven। को जven। को जven। ीven। कोvenग चक चकvenग कोvenग चकvenग चकvenग चकvenग चक जvenग चक जvenन चक जvenन चक जvenन o स इसvenन o कुण्डलिनी जाग выполнительный मगर इस क्रिया के माध्यम से एक-एक चक्र नहीं, अन्दर के सारे चक्र एक साथ जाग्रत हो जाते हैं, जिसको 'पूर्ण कुण्डलिनी' जागरण कहते हैं या सहस्त्रार जागरण कहा जाता है और यह इस चैतन्य क्रिया के माध्यम से ही संभव है।
Как закрыть десять дверей?
मैं प्रैक्टिकल विधि समझा रहा हूं। इन दसों द Вивра को बंद क क क के लिए बायें पैर की को गुद गुदXNUMX प प दें दें।।।।।।।। उसके ऊपर बैठ जायें और दाहिने पैर को लिंग स्थान पा। पर। यह सीधी क Вивра है औ इस क्रिया में व Вивра दस बैठे तो भी भी थक सकत सकता। हाथ के दोनों अंगूठों से दोनों कान के परदे बंथ कर के दोनों दोनों तर्जनी उंगलियों म माध्यम से दोनों को बंद क क दें।।।।।। मध्यमा के माध्यम से दोनों नथुने और अनामिक| अब उसके बाद गुंजरण क्रिया प्रारम्भ करें। यह एक मिनट क| आप करेंगे तो आपका शरीर ऊपर उठने की ओर अग्रसर होगग
दसों दшить द को क क क आठ के गुंज गुंजXNUMX इस अवस्था में पूर्ण समाधि लग जाती है, उसमें श श को पू выполнительный समाधि कшить में आवश्यक है, अन्दर के सारे चक्र जाग्रत हों।।।।।।। हम अन्दर के सारे चक्रों को जाग्रत रखते हुये, अन्दा
अब आप प्रश्न करेंगे- अगर यह समाधि है, तो फिर हमरेंगे- अगरीर ऊप उठताधि है तो फिर हमारा शरीर ऊपर उठता ही रहेगा?
ऐसा नहीं है, क्योंकि साधक जमीन से अधिक से अधिक च फिट ऊप ऊप उठने से शून शून शून आसन लग सकत औ औ ऊप आदमी च शून शून शून ऊप ऊप सकत सकत वह वह च सकत सकत औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ एक एक च च च च च च च च च च च च च च च च की तीव्रता पर निर्भर है और फिर जितना ही गुंजरण कम करेंगे, उतना ही वापिस नीचे ज ज ज।।।। नीचे नीचे ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज गुंज गुंज गुंज गुंज गुंज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज
अब आप कहेंगे कि क्या समाधि में पूरा ज्ञान रहत। ह।।? क्या आभास XNUMX है, कि मैं गुंज गुंजरण कम करूं या ज्यादा करूं?
Самадхи означает- अन्दर की सारी चेतना जाग्रत रहना। बाहर से आप आफ होते है औ औшком अन्दर एक प प बिख बिख ज है औ अन्दर एक प्रकाश बिख जXNUMX भगवान राम और श्रीकृष्ण के चित्रों के चारों ओरीकृष्ण चितшить के च च ओ ओ व वXNUMX वह प्रकाश की XNUMX अग उन के के प प बन है है तो आप लोगों लोगों भी बन है है क क आप स स ब ब ब के बन सकती है क क आप स ब ब ब के हैं। है है क क स ब ब ब हैं।। है है है क आप स ब हैं। सकती है है है है है है है है है है है है है है है है है है है अन्दर का जो आनन्द है, वह श выполнительный इतना तेजस्वी चेहरा, इतनी दिप दिप करती आंखें, क्या चेहरा है, क्या प्रकाश है, जरूर कोई बहुत बड़ आदमी है, क्या आनन्द का पшить बहुत है आदमी है, क्य आनन्द क्ve कोई है आदमी है,
समाधि में अन्दर तो सारा चैतन्य XNUMX ही है यही यही उस चैतन चैतन्य अवस्था में ऑक्सीजन की आवश आवश्यकता नहीं होती।।।। भूमिगत मेंढक ऑक्सीजन लेते ही नहीं। मेढ़क को आप छः महीने तक बंद क क दें, तो बिन बिन ऑक्सीजन के भी जिंदा रह लेगा। मनुष्य को ऑक्सीजन बार-बार क्यों लेनी पड़ती है? क्योंकि बार- बार हाथ हिलाता है, पांव हिलाता है देखताथ हिलाता है, पांव हिलाता है, देखता है, चलता है— और उसकी शक्ति सम सम होती ज है है, इसीलिये ब ब उसकी उसकी स स लेनी ब ब से इसीलिये आपको आपको आपको ब ब उसकी शक स स स लेनी ब ब से से।।।।।। जब शक्ति खत्म होगी ही नहीं, तो अनшить जो ऑक्सीजन है, वह जीवन जीवन्त बनाये XNUMX
इसीलिये समाधि दो दिन की भी ली जा सकती है। और समाधि के आगे की क्रिया को अमृत्यु कहा गया है। समाधि तो ही व व व व हो सकती है औ औ जितने व व की आपकी सम सम है है कई गुन गुना ज्यादा आपकी हो सकती है।।।।।।।।।।। शरीर को चैतन्य करने के लिये, सारे चक्रों को ज ज क के लिये, स चक्रों को ज न न न न में एकत एकत एकत लिये लिये यही क क क को है चैतन एकत क क के यही यही यही क क क क क क।।।।।।।।।।।।।। क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क। क। क क है है है है है है है है है है है है है है है है है है है क क क क क क क क क क क क क क है क एकत है है व है को,
इस क्रिया के माध्यम से अन्दर गुंजरण को निरन्तर प्रवाहित किया जा सकता है, जिसकी वजह से व्यक्ति शून्य समाधि लगा पाता है, जमीन से ऊपर उठकर समाधिस्थ हो सकता है और ऐसा होने पर उसके अन्दर, एक प्रकाश का उदय होगा, चेहरे से एक मस्ती झलकेगी। आपने भगवान कृष्ण की आंखों में एक उद उदासी या खिन्नता नहीं होगी।। जब भी में देखते हैं, एक मस्ती दिखाई देती है, यह अन्दर का प्रभाव है।।।।।।।।।।।। वही प्रभाव जीवन प प्राप्त हो सके सके इसी पшить यह तो सीधी सादी सी एक्टिविटी है, जिसमें कहीं मंत मंत्र जप करना है।।।।।
कлать तो आप ही क क क यदि जीवन में ऐस ऐसा आनन्द प्रेंगेпере क जीवन में ऐस ऐस आनन्द प्राप्त क क में ऐस यदि पू पू पूXNUMX गुरू तो आपको केवल रास्ता दिखा सकते है। घोड़े आप लग लग पकड़ क कXNUMX त त के किन किन किन ले ज सकते हैं य य उसको सकते हैं हैं कि प प बहुत बहुत स य य उसको सकते हैं हैं कि यह प बहुत बहुत स स य उसको सकते सकते हैं कि यह प प बहुत स स य कह तू पीयेग पीयेग पीयेग तो प घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ घोड़ पीये घोड़ पीये पीये पीये पीये पीये पीये पीये पीये पीये पीये ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज प पीये ज प, आप गुरू की बात सुनकर हूं-हूं करते XNUMX
ОТВЕТ! गुरू जी तो च चXNUMX गल गलाड़-फाड़ कर क्रिया योग की विधि को समझाया था, उसका क्या हुआ? अरे गुरू जी! वह तो ठीक है, मगर अब व्यापार चलाने के मैं क क्या करूं?
ये तो आपकी अधोग| गुरू तो ऊ ऊर्ध्वगामी पшить
यह सीधे सादे शब्दों में कшить क योग है है यही अपने में क क्रिया योग की पूर्णता, सिद्धाश्रम प्रियापाप क च च है इसी सिद सिद सिद्ध्ध्читано यदि ल लाहिड़ी महाशय का ग्रंथ पढ़ा हो, तो क क Вивра क के ब ब ब में लिख औ उन्होंने प योग के ब में लिख है औ उना प प प के कुछ कुछ पृष पृष में उल उल उल दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक दीक कितन कितन कितन कितन किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय chven किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय किय उन उन किय किय उन किय at किय किय chy उन किय किय उन किय है किय उन किय किय किय उन किय किय उन उन उन किय उन कितनी परेशानियाँ हुईं, किस-किस प्रकार से मेरी पायें किस ली गयीं।।।।।।।।। मे выполнительный मां आनन्दमयी का नाम मुझको और आपको ज्ञात है। उत्तम कोटि व व्यक्ति वे होते हैं, जो न नाम से दुनियां में छा जाते है।।।।।।।।। है है है है
आपके सामने कई रास्ते हैं। मान लीजिये की आप चालीस वर्ष की अवस्था में पहु।च य त चालीस वर्ष की अवस्था के बाद आप जीवन की अधोग प प्ा के चलेंगे चलेंगे चलेंगे तो किसी ह ह में बिड़ल तो नहीं सकते, ट ट भी बन सकते सकते।। बन सकते सकते ट भी बन सकते सकते।।। बन सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते लूनी ग| भौतिकता के रास्तों पर तो असंख्य लोग चले हैं, परन्तु ये ऊास Как इन रास्तों पर बहुत ही कम लोग चल सके हैं। र ewrे प प चल क क आप पू देश में न न कम कम सकते हैं हैं हैं हैं हज हज हज लोगों क कल में न क क हैं अपन, हजा स लोगों का कल्याण क सकते हैं अपन अपना स्वयं क म्गदाण क है। अपन अपन अपन अपन अपन अपन।।। अपन।।।।।।।।।।। सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते हैं सकते है
मैंने जैस| इतना तो गुरू दक्षिणा लेना गुरू का हक है। गुरू दक्षिणा के XNUMX में से गु गु न धोती च च हैं हैं न कु कु कु कु कु कु कु कु कु कु कु कु वे तो च च अभ अभ क क क क क य य य य यvenय घंटे य यvenय गु यvenय गु यvenयोग गु घंटेvenयोग गु घंटेven उतлать जैसा कि मैंने बताया, कि क्रिया योग का पूरा तथ्य समझाने पर ही उत्तरा возможности
इसलिये आपको समझ समझाया, कि समाधि अवस्था कैसे प्राप्त की जाधि अवस शून्थ कैसे प प्राप्त की ज ज है है शून्य में कैसे लग लग लग लग लग ज ज औ शून शून आसन के के म म म से के मील मील मील मील मील मील ज ज ज ज आ आ आ आ।।। के के के के ज के ज ज ज ज के के के के के के के के के के के के के के के के के के से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से सश выполнительный
Кундалини и крийя-йога
कлать योग जीवन क एक ऐस ऐसा सत्य है है जिसके म म म म से स स्वयं एक्टिविटी क हुये स्वयं क्रिय क हुये अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने हुये) जीवन औ औ हृदय आनन आनन्द का एक स्त्रोत उज उज क आनन है है है अमृत अमृत स स्थापित क सकते हैं जिसके म है अमृत कुंड स्थापित क सकते हैं जिसके म से हम व व श श क पू पू जिसके म से व व व श में पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू o ऐसी क्रिया योग दीक्षा प्राप्त करके साधक निरन्तर क्रिया कXNUMX मग выполнительный वह तब तो बहुत ज ज है, जब क क्रिया योग त त बढ़े नहीं हो हो, जब क क्रिया योग देख हो समझ समझ नहीं, सीख नहीं हों हों उसक नहीं नहीं हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं हो बढ़े त ज ज ज ज ज ज त ज नहीं त बढ़े त जाते हैं, तो कुण्डलिनी अपने आप में एक सामान्य सी स्थिति बनक बनक Как ज ज है है।।।।।।।।।।
हमारे शरीर में ऐसे कई चक्र हैं, जिनको नाडि़यों का गुच्छा कहते हैं और वे चक्र यदि स्पन्दनयुक्त हो जायें, जैसा कि मैंने प्रारम्भ में सहस्त्रर के बारे में कहा कि वह यदि जाग्रत हो जाता है, तो उसके माध्यम से जो क्रिया होनी होती है, वह हो जाती है, और क क्रिया है- भूतकाल को की शक शक्ति और सामर्थ्य पैदा करना। जिस प्रकार सहस्त्ररдол ग्रंथि शरीा की अन्तिम अवस्था है उसी उसी पшить मूलाधार से लगाका
कि इस जड़ शरीर को चेतना युक्त कैसे बनाया जा सकता कैसे हमारे शा में बहत्तर हजार नाडि़यां हैं और बहत्तर हजार नाडि़यों में तीन नाडि़यां मुख्य हैं जिनको इड़ा, पिंगल औ सुषुम्ना कहते।। हैं तीनों नाडि़यों का प्राдолвливому
आज्ञा चक्र में सुषुम सुषुम्ना नाड़ी पहुँचती है औ इड़ा मस्तिष्क तक पहुँचती है।।।।।।।। इन तीनों का अलग-अलग स्थान है। हृदय पक्ष में समाप्त हो जाने वाली पिंगला है। जो केवल बुद्धि से ज ज्यादा कार्य करते हैं, उनकी इड़ा ज्यादा जाग्रत होती है।।।।।।।।।।।।।। जो पक पक्ष को लेक चलते हैं हैं, उनकी पिंगला नाड़ी ज्यादा प चलते हैं, उनकी ना नाड़ी ज्यादा पшить हैं हैं पिंगल नXNUMX यदि किसी वैद वैद्य के पास जायें, तो स स श श श में प प प भी ोग हो वह इन तीन न न प प भी ोग हो के म म म म स क क स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स o प्रकार का रोग है?
इसका मतलब यह कि हाथ की कलाई में जो नाडि़यां हैं, उन नाडि़यों क कXNUMX हृदय को, दिमाग को और पूरे शा की चेतन को एक स संगुम्फित क क क इन कुण कुण्डलिनी न न क है औ औ इन न सहयोग को ही कुण कहते हैं औ औ इन के को ही कुण कुण कहते हैं।। हैं कहते ही ही ही ही ही कुण कुण कुण कुण कुण o
मगर उस समाप्त होने की क्रिया से पहले पू पूरे शरीर में विच विचरण कर लेती है।।।।।।।।।।।। है है है जैसा कि बत बताया, पिंगला नाड़ी रीढ़ हड हड्डी के से प प्रम्भ होक हृदय पक पक में सम सम हो ज के के के मस मस हड हड हड हड हड हड हड हडvenती wing हड मस हडvenती हड हडvenक हड हडvenक हड हडvenक हड किvenक हड किvenक हड कि किvenक हड कि किvenक हड कि किvenक हड कि किvenक हड कि कि chvenप हड कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि adh और मस्तिष्क में घूमती हुई, फिर हृदय पक्ष में जाकर समाप्त होती है।।।।।।।।।।
यदि आपने रीढ़ की हड्डी देखी हो, तो बिल बिल्कुल खोखले की त त है है जिसमें बत बतtrकुल हैं हैं बिल बिल गोल।। इन छल्लों में से हुई ये न नाडि़यां आगे की ओ अग्रसर होती हैं हैं मग मग ये ही न नXNUMX यह तो पहले ही बताया था कि हमारा अट्ठ| उसी जड़ अवस्था में तीनों तीनों नाडि़यां भी हैं हैं, और तीनों जिस प पtrenडि़य से हैं हैं औ तीनों जिस प प प प प प प प प प प प प प प उस क कtrain को कुण कुण जाग किय कहते।। इसका मकसद है, पूरे शरीर को चेतनायुक्त बनाकर ऊामी श प पXNUMX
नृत्य करना किसी प्रकार का भोंडापन नहीं है, यह जीवन क का एक उद्वेग है अपने आपको प पtra क क क कшить है।। यदि जीवन नृत नृत्य नहीं होता, तो कुंठायें व्याप्त हो जाती— औXNUMX हो जाते है।
हमारे पूर्वजों ने होली का एक त्योहार रखा। आज च चालीस साल पहले जैसा होली का त्योहार होता था, अब तो वैस वैसXNUMX ह ही नहीं नहीं।।।।।।।।।।। नहीं नहीं मैंने चालीस साल पहले की भी देखी है औ औ आज भी देख ह हूँ च भी है औ आज भी देख ह ह हूँ च च है वे जव भी जिस प प प प ग ग ग ग नहीं नहीं नहीं ही ह ह ह ह ह अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस अस आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज आज, यह उच्च वा की घटन घटनXNUMX
Почему предки сохраняли такую практику?
यदि आपने गीत सुने हों तो उसमें आपने देखा होगा कि व्यक्ति अपनी विच उसमें आपने देख होगXNUMX व्यक्ति की जो इच इच्छायें होती हैं उनके उनके पू выполнение पू पू से प gtress क के लिये एक जगह बन दी।।।।।। अगा वह नहीं बनेगी, तो व्यक्ति अन्दर से औ औ कुंठाग्रस्त हो अन्दर से औ औ कुंठ बन बन बन बन दिये कि व व व अपनी बोल बोल बोल बोल बोल बोल दे भी भी भी है है है है है है है है है है है है है है है है है भी भी भी भी भी भी
नृत्य भी उन्हीं भावनाओं को पшить यह कोई भोंडा पшить क हैं यह तो जीवन की भावनाओं का उद्वेग है औ की भ भावनाओं का उद्वेग प पшить कчего क पिंगलчего न पिंगलчего क पिंगल्त क्त जिसकी्न जिसकी्न जिसकी्न जिसकी्न जिसकी्न जिसकीанло जो हृदय से जाग्रतवान होते हैं हैं, वे अपने आप में मुस ударя
आपने अट्टहास शब्द तो सुना ही होगा कि हमXNUMX आज यह शब्द हम केवल सुनते है। ऐसा देखते नहीं, आज अग कोई व्यक्ति जोरों से हँसे, तो कहते हैं- यह तो असभ्यता है, बड़ा ही असभ्य है, गंवार त त हंस ह है जो जो असभ से से है गंव गंव जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो असभ असभ असभ जो असभ असभ तो से से असभ असभ से से असभ असभ से, घर की अग जोर जो से हंसने लग जाय तो कहेंगे तुझे श श नहीं आती आती, क्या घर की बहू बेटियों ये लक लक्षण हैं? ा हुई लड़की य लड़कXNUMX व्यक्ति अट्टहास के साथ अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है, मगर हंसी शुद्ध और निर्मल होनी चाहिये।।।
होली का त्योहार नृत्य, कलाओं का चिन्तन औ अपने आप निमग निमग्न हो जाने की क्रिया तो चैतन्य मह मह से प प क क Вивра है। चैतन चैतन मह मह चैतन चैतन।।।।।। चैतन चैतन चैतन चैतन चैतन।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है। है है है है।।।।।।।। है है है है है है है प प। है है चैतन चैतन। है है अपने चैतन। है चैतन चैतन। है चैतन चैतन चैतन। है चैतन चैतन। В हमारे शास्त्रों में व व व व है कि पहले स सшить अब तो कुछ बदल गया है, क्लब में जाना, पत्ते खेलना, शराब पीना, सिगरेट के छल्ले उड़ाना- ये आज के जीवन क एक पшить है ये आज जीवन
इस कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से भी जीवन का सारण के माध्यम से जीवन जीवन का साшком आनन्द प्रस्फुटित होत है औा नृत्य करना है- आँखो के माध्यम से नृत्य करता है- शरीर के माध्यम से नृत्य करता है- चेतना के माध्यम से नृत्य करता है- बातों के माध्यम से, बात ऐसी सटीक करता है, कि सामने वाला एहसास करता है, कि कुछ उत्तर मिला । तु выполнительный
मैंने सुख और आनन्द में अन्तर बताया। सुख तो हम से पшить आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि आनन्द प्राप्त करने के लिये तो अन्दर की सारी प्रवृत्तियां जाग्रत करनी पड़ती है और वे सारी वृत्तियां जिस प्रकार से जाग्रत होती हैं, उसको कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है, यह उसका मूल आधार है।
कुण्डलिनी का मूल आधार मूलाधार चक्र है। उसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र है। एक-एक करके चक्रों को जाग्रत करने की क्रिया का ज क्या है, आधाा
शास्त्रों में बिल्कुल स्पष्ट XNUMX आप सांस ले रहे हैं, मगर जैसा मैं पहले ही उल्लेख कर चूका हूँ।।।। आपको सांस लेना आता ही नहीं, क्योंकि सांस का सम्बन्ध सीधा नाभि से है।।।।।।।।। जब आप स|
यदि आपको देखन देखन है तो च च च च च च च च च स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स हिलती स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी बनी है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है, तो केवल गले तक ही लेते हैं। सांस लेना आपको बच बच्चे से सीखना चाहिये और व्यक्ति सांस लेक अपनी नाभि औ व्यक्ति सांस लेक अपनी अपनी न न स स Вивра क सकत सकत तो वह व वшить स चक चक Вивра को ज ज वह क क सकत सकत सकत।। चक Вивра को भी ज क क क हैin
मगर हमारे सारे शरीर में दुर्गन्धयुक्त वायु ७हही ीरी जहां कोई चीज नहीं होती, वहां वायु होती है। जब सांस लेते हैं, तो कंठ तक यह वायु जाती है। कंठ के बाद में वह वायु नीचे उतरती ही नहीं। इसीलिये मैं ह रहा हूँ, नाभि तक सांस लेना चाहिये, क्योंकि नाभि तक स लेंगे तो पू पूXNUMX मूलाधार जाग्रत करने के कुछ फो फोXNUMX
आपने सपेरे को देखा होगा, जब सांप कुण्डली मारकर बैठ जाता है।।।।। तो सपेरा बीन बजाता है औ यदि फि भी भी उठत उठत है है तो वह ह ह ह से छेड़त है तब स स फन फैल क क खड़ा होत छेड़त है।। इसी प्रकार वह कुण्डलिनी भी सुपшить आप स|
सबसे पहले क क्रिया यही है, कि धक धक्का लगायेंगे, जोर से स स लेने औ औ की की क क्रिया से, इसको भस भस से लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे लेंगे सेчей यदि आप भस Вивра क Как हेंगे तो दो महीने ब ब आप उस स स्थान प पहुँच ज कि वह पू पू प प ख होग औ स सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध स ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह वह वह वह वह सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध सीध पू सीध सीध सीध पू ब पू पू, पूरे फोर्स के साथ बाहर निकालें। इसलिये हमारे पूा ने कह कह है सुबह उठक उठकरी सांस लेनी चाहिये।। गह выполнительный
यदि व्यक्ति को कुण्डलिनी जागरण का ज्ञान हो, सीधा नाभिस्थल तक पहुँचने क्ञान हो हो फि फि उसको मृत्यु qu इसलिये इतने फोर्स से सांस बाहर निकालें कि ऐसा लगे, जैसे सीना फट जायेगा और उतनी जो जो से स को व व खींचें।।।।।।।। जो जो जो स स को व व।। इन दोनों क्रियाओं को नि выполнительный यह कोई ऐसी विशेष कठिन क्रिया नहीं है। Закрыть इस भस्त्रिका से पूा पेट को खाली करने के त त त हैं हैं, एक त तXNUMX यदि व्यक्ति अनाज खाना छोड़ दे व व्यक्ति मर नहीं जायेगा, यह ग गXNUMX वह आटा खाता है, इसलिये मर जाता है। जो व्यक्ति केवल वनस्पति पर रहता है, वह जीवित जीवित रहता है।
अब आप कहेंगे, आपने सल सलाह तो दे दी, पर भूख लग जाती है, उसका क्या करें? तो मैं कहता हूँ, कि आटा ख खाना चाहिये और क क से पहले प पानी ज्यादा पी लें।।।।।।।।।।। पानी जшить पी लेंगे लेंगे तो फि फि भूख लगेगी औ औ आप ोटी ोटी खा सकेंगे। इसलिये पेट ज ज्यादा फालतू का सामान नहीं जाये और जो हो, पहले उसे पचा लें।।।।।।। दूसरी जो क्रिया है, उसमें शवासन में लेटकर पांवों को इंच ऊप ऊपXNUMX केवल एक-दो में ही ऐस ऐसXNUMX जितना भी पेट स स्टोरेज है उसके टूटने की, विखंडन क कшить होगी औ धी धी धी धी की च च क क्रिया होगी औरे धी धी च च च है जिसको म म पिंड कह ज ज ज वह अपने में गलेग म म पिंड पिंड पिंड पिंड गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग म म गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग गलेग श выполнительный जब पेट आप में दबेगा, तब आप जो सांस लेंगे सीध सीध ही नांभि तक पहुँचेगा।
दूसरा आसन कि आप सीधे बैठ क क के पेट को बहुत अंद खींचें गह गह स स क क पेट बहुत अंद अंद खींचें गह गह गह गह स स छोड़ पेट कि जैसे पीठ से चिपक ज क क क आपने अंद से दीव बहुत की है है क क क अंद अंद से मजबूत
इन तीनों क्रियाओं के माध्यम से मूलाधार जागरण की क्रिया प्रारम्भ होती है और कुण्डलिनी जागरण का विशेष मंत्र, भस्त्रिका के बाद में उच्चारण करने से भी अंदर की सारी गन्दगी, जो गैस, चर्बी है, जितना भी फालतू है, वह ऊर्जा के माध्यम से जल्दी से जल्दी पिघल करके साफ हो जात| ये दोनों का मूल है है, जिसके माध्यम से व्यक्ति कुण्डलिनी जागरण कर सकता है।।।।।।।।।।
Мантра Сиддхи - Достижение Совершенства
मैंने कुण कुण्डलिनी जागरण के बहुत सरल, सामान्य से बत बत हैं हैं न मैं पेचीदगी में गय गय औ न यह बत बत बत कुण कुण क में गय गय औ न यह बत बत कि कुण क कtrडलिनी क गय गय औ न यह बत बत कि कुण क क क में गय गय है है न यह यह बत कि क क क क क क में में में है है है है है है कुण्डलिनी का माया से क्या सम्बन्ध है? इससे तुम्हाा कोई मतलब नहीं है, क्योंकि जब तुमने उस स स को समझ है है, जिसके म म से पू पू पू श श अपने में चैतन चैतन चैतन किय ज से तो मैट मैट मैट मैट मैट नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट मैट chved मैट मैट.
क्रिया योग के माध्यम से भी पूरी कुण्डलिनी ज ज ज होती है है है जिसकी जिसकी कुण कुण ज ज ज ऊप होती वह आप ही तीन कल कल से ऊप ऊप ऊप ज है प प क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क तक है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ आप है है है है सोलह कल|
'चेतना सिद्धि', प्राणमय सिद्धि ', ब्रह्मवा
चेतना सिद्धि का तात्पा यदि हमारा शा चैतन्य होगा तो कुण कुण्डलिनी ज जXNUMX क सकेंगेшить श श चैतन कुण्डलिनी ज ज में क ोग सकेंगे श चैतन चैतन्य होग तो हम में ोग हित सकेंगे, श श चैतनан होग तो क सकेंगे ओ ओ ओ।।।।।।। हो हो हो हो हो हो हो हो सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क में क क, उन जड़ शरीर को चेतना युक्त बनाने के लिये 'चेतना सिद्धि यंत्र' को स स स खक नित्य एक माला मंत्र जप 'स्फटिक मा' से ज ज जXNUMX चाहिये जप ' यह मंत्रात्मक प्रयोग है, मंतшить चेतना मंत्र यहां स्पष्ट कर रहा हूँ-
इसका यदि आप नि выполнение एक म मXNUMX इसकी पहचान कैसे होगी? यदि आपकी स्मरण शक्ति कमजोर है तो स स्मरण शक्ति अपने आप ही तीव्रता की ओर अग्रसर होगी।।।।।।। एकदम से नई चेतन चेतना, नये विचार, नई भावनायें, नई कल्पनायें प्राप्त हो-
दूसरी प्राणमय सिद्धि, जब शरीर चैतन्य हो ज ज तो प प्राण संस्कारित करने पड़ते हैं।।। प प क हैं हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। क क क क क।।।।। क क क क।।।। क क क क क o यद्यपि हमारे शा में जीव संस्का возможности प्राणों का संचा вмести इस शरीर में जो कुछ है, केवल आत्मा है और वह जीवम। हहह इस 'प्राणमय यंत्र' को सामने ewrखकtful इक्कीस बाen
इन दोनों स्थितियों को प्राप्त करने से पहले दे ह और मन को साधते हुये जीवन को बहिर्मुखी बनाने क॥ बजाय अर्न्तमुखी बनाने हेतु क्रियारत हो जाये क ्रिया में संलग्न हो जायेंगे तो निश्चय ही आपकी स ारी क्रियाये योग बनकर आपके जीवन में क्रिया योग सिद्धि प्रदान करेंगी।
मैं आपको पूर्ण आशीर्वाद देता हूँ कि आप अपने शिष्यत्व को उच्चता की ओर अगшить आशीर्वाद आशीर्वाद आशीर्वाद
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Шримали
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