श्रद्धा तथा आश्चर्य से भर कर नारद जी ने पूछा- ''भगग! अन्नत विश्व की संरचना में इतना श्रम और समय नहीं लगा होगा, जितना कि इस छोटी सी प्रतिमा में दिय दिय है।।।।।। है दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय प प प प प प आपने दिय है है दिय है दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय है है है है में में में में में में ВАЖНО! इसमें क्या विशेषता आप संचरित करना चाहते हैं?''
ब्रह्मा जी ने मुस्करा कर कहा- ''हे नारद! तुम सर्वज्ञ हो। इस प्रश्न का स्वयं समाधान कर सकते हो। मानव-जाति की न नXNUMX तुम भूत-भविषхов के संद्रष्टा हो, एवं अपनी ब्रह्म-ज्ञान की पद्धति से नव नव नि मूXNUMX
नारद ने नतमस्तक होकर निवेदन किया- ''परम श्रेष्ठ! Закрыть अस्तु, आपके श्री मुख से ही मैं इस मानव-प похоже के भ उपलब उपलब मैं इस मानव-प похоже के भ उपलब उपलब की वшить
– ''तो सुनो, मुनि प्रवर!''
विश्व के नियन्ता ने थोड़ा विश्राम करने के उप Как ब्रह्म ज्ञान के विचार में यह जल की भांति त выполнительный इस प्रतिमा में अन्य स्वयंभू मानव की भांति 180 अवयव होंगे, किन्तु प выполнение के अनु अनु वे बदलते हेंगे। माता बनने पर अपना अमृतोपम पय-पान करा कर, अपने म मातृ धXNUMX
आदि प्रजापति अपनी नव-नि выполнительный ब्रह्मज्ञानी महर्षि का आश्चर्य बढ़ता ही गयमा- ''पिा- ''! परंब्रह्म!! आपका आशय समझन|
ब्रह्मा बोले- '' 'इसकी गोद अपनी संतान के निमित्त कोमल बिछौन बनेगी किन किन किन उसकी क क निमित्त कोमल खड़ी खड़ी किन किन्तु उसकी क क के निमित निमित जब यह हो ज ज तो की कोई विघ chvenन ब जब इसक अव जगत की कोई विघ विघ विघ विघ विघ विघ विघ o इसके चुम्बन मात्र से घाव और पीड़ा समाप्त हो जायो इसकी प्रमुख विशेषता होगी- इसके आठ हाथ!''
'' प्रभुवर! क्या कहा आपने? ''- हड़बड़ाहट में नारद जी व वाणी गिरते-गिरते बची '' मुझको तो केवल दो ह ही दिखते हैं। ''
सुस्मित मुद्रा में सृष्टि संरचना के प् Каквал मैं सत्य बताता हूँ। यह नारी, पत्नी तथा माता के रूप में भविष्य में वन्दित होगी एवं मेरी आदि शक्ति जगतजननी दुर्गा की अंश तथा प्रतीक बनेगी, किन्तु इसकी चरम विशेषता इसकी आंखों में परिलक्षित होगी, यह त्रिनेत्र है।'' महर्षि नारद किंकर्त्तव्यविमूढ़ होकर भगवान के चरणों में गिर पड़े-
"'देवाधिदेव यह भेद मेरी बुद्धि के परे है। हे कृपानिधान! अब इसका समाधान आप ही क क।। '' '' समस्त विश्व उत उत्पतхов क के। '' समस्त विश्व उत gtrपत क के स स с поедом समस स्व की gtrout , अतएव इस तथ्य को समझने में असमर्थ हो।
यह मूर्ति प्राणवन्त होकXNUMX दूस выполнительный
- '' और उसके तृतीय नेत्र? '' - '' 'वह उसके मुख सम सम्मुख भाग में स्थापित होक उसके श श सौन्द भ स्थापित होक उसके श शшить सौन्दर्य का आक आक्रमण प्रमाणित होंगे।।।।।।।।। o सम्मुख के नेत्र उसके हृदय की भावनाओं एवं विचXNUMX जब श श श श बालक पिटने के भय से कांपता हुआ स स एक अप अप भय से क क क क सि सि हुआ चुपच स खड़ अप अप अप तब तब व व उसमें उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके बच बच बचvenगले= झुक उसके o इस प्रकार माता के नेत्रों में सदैव करूणा, क्षमा औXNUMX
महर्षि नारद ने उस नव प् Каквал की स सादरद उस नव प प प प प उसके उसके अंग अंग पшить को छूक फिXNUMX यह अत्यन्त कोमल होगी?''
'' अवश्यमेव! किन्तु ब्रह्म रूप में कुसुम-कोमल होक भी यह कठिन कठिन से संघ संघर्षरत होने पर वज्रादपि-ग प्रमाणित होगी।।।।।। होगी प वज Как मानव-जाति की उत्पत्ति, विकास एवं प Вивра की भावी अभिनेत्री माता बन कर क्या कर सकती है है है है है है है? क्या सह सकती है? यह सब कल्पनातीत है।''
''धन्य, धन्य, प्रभुवर! काश मेरी भी कोई माता होती!
– ''Вау! क्या मैं इसका मुख छू सकता हूँ?''
– ''अवश्य, ऋषि प्रवर!''
नारद जी की मू मू मू मू की आंखों के नीचे पहुँच क अचXNUMX इस अवधि जगत जगत-पिता त्रिदेवा में प्रथम पद के अधिक अधिक देवाधिदेव ब्रह्मा ने कमण कमण से अमृत जल लेक मू मू के मुख में ड डाल दिय औ औ प प की की की की संज प प मुस प मुस प मुस प मुस प प प प प chvin प वह chvinve
इस अप्रत्याशित प выполнительный ह जोड़ क क इस संज संज्ञा से अनुप्राणित देवी सम सम्मुख शीश झुका कXNUMX क्षमा करें, लगता है, भूल या प्रमाद वश आंखों को मैंने छू लिय लिय जिसके अभ्यांत से क श मैंने कोई ब ब ब अभ्यांत से टूट क श कोई मोती ब ब जिसके अभ्यांत से? ''
– ''नारद जी, यह मोती नहीं, आंसू की बूंदे हैं।''
– ''यह किस लिये प्रभुवर?''
-'' 'ये आंसू, नारी सुलभ लज्जा, प्रसन्नता, दुःख, उदासी, निराशा, एकाकीपन एवं विश्व-विजय तथा आत्म-गौ के श एक्तीक हैं। तथ तथ आत आत्म-गौ के प विश्व विजय तथ तथ तथ विश विश विशtrव-विजय नारी इनके आधार पर ही जगत में पूज्य होगी।''
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