धन हो आदमी को लगत है मे मेरे पास कुछ है, पद हो, तो लगत लगत है मे मे पास कुछ है, जхов हो लगत लगत मे मे मे प कुछ है है।।। हो लगत मे मे प कुछ है है।। ज हो हो हो तो लगत कुछ है है है ज ज। है है है है है है है है है है है है है है है है है ये सब साधन है। ये सब आलंबन है। ये सब आश्रय है। इनके आधार पर आदमी अपने अंहकार को मजबूत करता है। साधक तो है है, जिनके पास कोई साधन नहीं, जिनके प प कुछ भी नहीं।।। कुछ भी है क क यह अ अ अ अ नहीं है कि वे बिना वस्त्रोँ के नग्न खड़े, तभी कुछ नहीं होग होग।।।। होग नहीं नहीं होग होग होग होग होग होग होग होग नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग क्योंकि जो नग्न खड़ा है बिना वसшить के वह भी हो सकत है है अपने त्याग को बन बन औ कहे कहे मे मे प त्याग को बन बन दिगंब औ कहे मेरे प त त त त दिगंब दिगंब दिगंब है नगшить है सन त त है।।। नग नगшить सन सन।।।। नगшить मेरे पास कुछ है। तो फिर आलंबन हो गया। और जब प पास कुछ है, तो प परमात्मा के दшить है प आप प प Как
साधक का अर्थ ही यही है कि हम जान गये ब बात कि सुा क उपान क कितन कितनXNUMX कितना ही जोड़ो जोड़ो, आदमी नि नि नि ह जाता है, भीत ग ग ग ही ही ह ज ज है औ कितनी शक शक्ति क क क भीत भीत भीत भीत ञ ञ ञ ञ ञ ञ ञ ञ wlen पह wlen पह wlen पह wlen पह wlen पह wlen पह wlen पह wlen पह wlen पह wlen ही wlen ही wlen ही ञven ह हven ह हven ह हven ह हven ह हven ह हven ह हven ह हven पदचाप किये आ जाती है। सारी सुरक्षा का इंतजाम पड़ा रह जाता है और मिथ।ा जता साधक इस बात प पшить, इस बात की है है, अंडा है कि कि सुरक्षा करके भी सुरक्षा होती कह है है! हो भी जाती, तो भी ठीक था। होती ही नहीं, हो ही नहीं पाती। सिर्फ धोखा होता है, लगता है कि हम सुा सु है, हो प पाते सुरक्षित कभी।।।।।।।।।।।।।।।।।
जिंदगी असुरक्षा है। असुरक्षा चारों तरफ है। हम असुरक्षा के सागर में है। कूल किनारे का कोई पता नहीं, गंतव्य दिखाई नहीं पड़ता, पास में कोई नाव-पतवार नहीं, डूबना निश्चित है।।।।।। फिर आंखे क क हम सपनों की न नावे बना लेते आंखे बंद क लेते है औ औ तिनकों का सहXNUMX बन लेते है।।।।।।।।।।। है है है है।।।।।। तिनकों को पकड़ लेते है और सोचते है, किनारा मिल गय ऐसे धोखा, सेल्फ डिसेप्शन, आत्मवंचना होती है।
साधक का अर्थ है, जो सत सत्य को समझा कि सु выполнение मृत्यु से बचो कितने ही, मृत्यु आती है। कितना ही च| अब हम राजी है। अब हम पहरेदार न लगायेंगे। अब हम तिनकों का सहारा न पकडेंगे। अब हम ज| मिटेंगे ही, हम राजी है। अब हम कोई उपाय नहीं खोजते औ औ जो इतने होने को र र हो ज ज है अच अच वे प प है, असुरक्षा मिट गई।।।।। गई गई गई गई गई अचानक वे पाते है, सागर खो गया। अचानक वे पाते है, किनारे पर खड़े है।
क्यों? ऐसा क्यों हो जाता होगा? ऐसा चमत्कार क्यों घटित होत है है जो सु सु सुXNUMX खोजता है उसे सु सु सु सु सु सु सु सु सु सु सु सु सु सु सु र हो ज ज ज है वह सु असु असु असु हो हो से है हो ज ज ज है वह सु असु असु हो हो ज ज है है है है ऐसा चमत्कार, क्यों घटित होता है? उसका कारण है, जितनी सु सुरक्षा खोजते है, उतनी हम असु असुरक्षा अनुभव करते है।।।।।।।।।।। असु выполнительный जितना हम डरते है, जितना हम भयभीत होते है, उतने भय के क क क अपने च च त त खोजक खड़े क क है।।।।।।।। है क क क क है है है है है है है है है है है है है है वह जो असुा का सागर, कहा, वह है नहीं, वह हम हमXNUMX एक दुष्टचक्र है। असु выполнительный जब असु выполнение असु असु पैद हो ज है है तो हम हम हमXNUMX वही आकांक्षा सागर को बड़ा करती जाती है। साधक का अनुभव यह कि जो सु सुरक्षा का खшить ही छोड़ देत देत है उसकी अब कैसी असु असुरक्षा? जिसने मरने के तैय तैयारी कर ली, जो र हो गया, उसकी कैसी मौत? अब मौत करेगी भी क्या? वह तो प पर कुछ कर पाती है, जो बचता था, सुरक्षा काती है, जो बचता था, सुरक्षा काती है जो बचता थ थXNUMX जो मौत भयभीत ही नहीं है, जो मौत का आलिंगन क क को तैय है है उसके लिये कैसी मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत मौत, मौत के भय में है, उस भय के कारण हमे रोज मरना पा पस रोज मरने में जीन जीना पड़ता है, जी ही नही पाते, मरते ही XNUMX है।।।।।।
साधक निरालंब होने को ही अपनी स्थिति मानते है। वहीं स्थिति है। वे मांग ही नहीं करते। वे कहते ही नहीं कि हमें बचाओ। वे कहते है, हम तैयार है, जो भी हो। वे सूखे पत्तो त तरह हो ज| वे नहीं कि पश्चिम जायेंगे कि पश्चिम हमारा किनारा है, कि पूरब जायंगे कि पूरब हमारी मंजिल है।।।।।।।। है है है है है है है है हम हम हम हम हम मंजिल है वे नहीं कि हव हमें हमें आकाश में उठाये और बादलों के सिंहासन पर बिठा दे। हवा नीचे गिरा देती है, तो विश विश्राम करते है वृक्षों के तले में, हवा ऊपर उठ देती है है वे ब में प परिभ्रमण क है है।। वे ब में प प प प क क है है है। वे ब ब में प प प प क क है है है। वे ब तले में प प प प प क क है है है है है जिनका कोई आग्रह नहीं है। Закрыть जो भी होता है लिये र राजी है, उनके में कष कष्ट समाप्त हो जाता है।।।।।।।।।। जो बुद्धिमान है, वे सु выполнение साधक से ज्यादा सुा सु कोई नहीं नहीं औ औ गृहस्थ से ज्यादाद असु नहीं औ है औ औ से ज्यादा असु असु कोई नहीं है औ गृहस गृहस से ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज इंतज औ औ इंतज कोई इंतज गृहस ज इंतज से नहीं है
र र बहुत बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता थ वह इतन क क थ जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन कल कल लग थ थ स छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क छोड़क chy प में छोड़क प स, थ प छोड़क जन छोड़क प स सब प प स सब प प प प प यहां तक जो मोक्ष के स सXNUMX एक र राजा वन त तरफ भ्रमण करने के ज जा हा था कि उसे एक के द द द हुये।।।।।।।। द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द राजा ने देव प प्रणाम करते हुये उनका अभिनन्दन किया औ देव के ह ह ह एक लम लम लम चौड़ी पुस पुस्तक देखक उनसे पूछ पूछ मह मह र ह ह ह में क क्तक देखक उनसे बोले बोले र र र र र र ह ह में क क कtrतक देखक पूछ बोले बोले र र र र र र र ह ह ह ह में क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क कvin है-देव यह हमारा बहीखाता है, जिसमें सभी भजन करने वालो। नो। नो। राजा ने निराशा युक्त भाव से कहा, कृपया देखिये इस कित कित कित कित में कहीं मे मेा नाम भी य नहीं देव मह मह में मे मे न न पृष पृष पृष लगे प नहीं भी म म म म म म म उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने उलटने पृष उलटने पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष पृष उलटने य य य य,
राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा, महाराज! आप चिंतित न न आपके में कोई भी कमी नहीं है, वास्तव में मे मे कोई भी नहीं है है व व व व ये मे मे मे मे मे मे भी नहीं है व व भजन की की मे लिये समय नहीं नहीं निक निक प औ इसीलिये मे मे न यह नहीं नहीं निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उस र र के में आत आत्म ग्लानि सी उत्पन्न हुई इसके ब ब उन्ल इसे उत उत उत उत उत हुई लेकिन इसके इसके ब ब ब ब प प प प प प प प प प प प प प प प प में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में लिये लिये लिये लिये) देव महाराज के दर्शन हुये। इस बार भी ह हाथ में पुस पुस्तक थी थी, इस पुस्तक के ंग और आक आक में भेद भेद थ औ यह ब ब औ क क छोटी थी।। थ औ यह ब ब से छोटी भी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थी थ औ यह ब ब से भी भी थी थी थी थी थ थ थ थ थ थ।। थी थी राजा ने फिर उन्हें प्रणाम करते हुये पूछा महाराज! आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है। देव ने कहा राजन! आज के बहीखाते में लोगों के न नाम लिखे जो ईश ईश्वर को अधिक प प्रिय है।।।।।।।
राजा ने कहा, कितने भ भXNUMX भ भ भ भ भ भ भ भ र र र भगवत भजन में लीन हते होंगे होंगे! क्या इस पुस्तक में कोई मेरे राज्य का भी नागरि। ह।? देव महाराज ने बहीखाता खोला औXNUMX राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, महाराज मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है, मैं तो मंदि भी कभी कभ ही ही जाता हूँ?
देव ने कहा राजन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है, जो निष्काम होकर संसार की सेवा करते है जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते है जो लोग मुक्ति का लोभ भी त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानों की सेवा सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरूषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है, ऐ राजन! तू मत पूछना कि पूज पूजा-पाठ नहीं करता लोगों सेव क पूज पूज तू असल में भगव भगव की ही पूज क कXNUMX देव ने वेदों का उदाहरण देते हुये कहा-
कुा क कXNUMX
अर्थात् कर्म करते हुये सौ वर्ष जीने इच इच्छा करो तो कर्मबंधन में लिप्त हो जाओगे राजन! भगवान दीनदयालु है, उन्हे खुशामद नहीं भाती बल्कि आचरण भाता है सच्ची भक्ति तो यही है कि परोपकार करो दीन, दुखियों का हित, साधन करे अनाथ विधवा, किसान व निर्धन अत्याचारियों से सताये जाते हैं इनकी यथाशक्ति सहायता और सेवा करो और यही परम भक्ति है ।
ाजा को आज के म माध्यम से बड़ बड़ ज ज ज मिल चुक थ थ थ थ थ थ थ थ थ चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक चुक प प प प प प प प प प प प प प प प से बड़ कुछ भी नहीं औ औ जो प हैं सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे प प प प प प प प प प प प प प प प सबसे सबसे सबसे सबसे प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प जो व्यक्ति निः सшить स भ से लोगों की सेव क क के लिये आगे आते है है, प выполнение हमारे पूर्वजों ने कहा भी है- ''परोपकाराय पुण्याय भवति'' अर्थात दूसरों की सेवा को ही पूजा समझकर कर्म करना, परोपकार के लिये अपने जीवन को सार्थक बनाना ही सबसे बड़ा पुण्य है और जब आप भी ऐसा करेंगे तो स्वतः ही आप वह ईश्वर के प्रिय भक्तों में शामिल हो जायेंगे।
निरालंब होना है और जब व व्यक्ति इतना साहस जुटा लेता है तो तो प परमात्मा का आलंबन तत्क्षण उपलब्ध हो ज ज ज ज है।।। आलंबन तत्क्षण उपलब हो ज ज प प प प प प प प प o हम कुछ कर लेगे, ऐसी भ भшить टूट गई गई, जिनके क क क क क क क क क क क क क क सहा भ उन उन को उपलब प प प प प सकती है है।।।।। है है है। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है o क्षण की भी देर नहीं लगती, परमात्मा की ऊ выполнительный लेकिन हम अपने पर ही भरोसा करते चलते है। सोचते है, अपने को बचा लेंगे। कितने लोग सोचते रहे है!
निश्चित ही, सागर के साथ एक होना खतXNUMX लेकिन यह खतरा बहुत ऊपरी है। क्योंकि सागर के साथ बूंद तो मिट ज| क्षुद्रता टूट जाती है, विराट के साथ मिलन हो जाहा के साथ मिलन लेकिन विराट के साथ हिम्मत तो जुटानी पड़ती है क क्षुद्र सीमाओं को तोड़ की।।।।।।।।।।। की
ये तो प प्रतीक है कि हम नाम बदल देते है है, सिर्फ इसी खшить हम से देते है है, सिर्फ इसी ख्याल से उसकी पु पुXNUMX कल तक जिन सीमाओं से, जिस नाम से समझा था कि हूँ हूँ, वह टूट जाये। उसके वसшить बदल है है है ताकि उसकी इमेज बदल जाये, उसकी प पшить थी कल कि लगत था थ मैं हूँ यह कपड़ कपड़ यह ढंग वह ज ज ज ज।। हूँ यह यह ढंग वह टूट टूट ज थ। मैं हूँ हूँ यह वह टूट ज ज ज ज।।।।। हूँ। टूट टूट ज ज टूट टूट टूट।। टूट टूट टूट टूट टूट टूट वह वह। बाहर से शु выполнительный
लोग कहते है, कपड़े तो बाहर है, बदलाहट तो भीतर कॾ चि कपडे़ बदलने की हिम्मत तुम्हारी नहीं है, तुम भीत की बदलाहट कर पाओगे? कपड़े बदलने कुछ भी तो नहीं बदल XNUMX है, यह मुझे भी पत पत है।। लेकिन तुम कपड़ कपड़ तक क कXNUMX शायद अपने धोख धोखा आसान होगा आतшить आत बदलने की बात में, क्योंकि किसी को पत नहीं चलेग कि बदल हे कि नहीं बदल हो हो।। चलेग कि हे कि नहीं बदल हो हो हो हो। चलेग हे हे नहीं बदल हो हो हो हो चलेग चलेग हे हे खुद को भी पता नहीं चलेगा। ये कपड़े पता चलेंगे। लेकिन जो के लिये तैय तैय है है, वह से भी शु शु कर सकता है। भीतर शु शुरू करना कठिन है, क्योंकि भीतर का हमें पत पता ही नहीं है।।।।।।।।
भोजन करते वक्त हम नहीं कहते है कि यह तो बाहरी चीज है, क्या भोजन करना! पानी पीते वक्त नहीं कहते कि यह ब बाहरी चीज है, इसके से क क्या प्यास मिटेगी! प्यास तो भीतर है। नहीं यह हम नहीं कहते। लेकिन कपड़| भीतर का तो कोई पता ही नहीं। उस भीतर का पता मिल जाये, इसी की तो खोज है। इमेज तोड़नी पड़ती है, प्रतिमा विसर्जित करनी ४़ वह जो है अब तक उसमें उसमें से से पैद पैद क क है औ अचшить कहीं से पैद पैद क पड़ती औ औ अच्छा है कि सीम से तोड़ शु शु क क क क सीम सीम प ही जीते है है अंतस में जीते है।।। प ही जीते है अंतस हम नहीं है।।।।।।।। है है है है है है है है है नहीं में अंतस अंतस अंतस अंतस है है है अंतस अंतस अंतस अंतस लेकिन वस्तुतः अपनी सरF जब आप हो स सागर के किनारे, मौन हो जाये, थोड़ी दे में स स स स है औ आप कौन है है फ फ फ गि जXNUMX कौन औ आप है है आकाश के नीचे लेटे हो, मौन हो जाये। कौन तारा है और कौन देखनेवाला है, थोड़ा फासला र।य।यज
सब फासला विचार का है। वियोग विचार का है, संयोग निर्विचार का है। जहाँ भी निर्विचार हो जायंगे, वहीं संयोग हो जायत
एक वृक्ष के पास बैठ जाये और निर्विचार हो जाये तो वृक वृक्ष और वृक्ष को व वाला दो ह ह जायेंगे।।। को व व व व दो नहीं ह जायेंगे जो देख रहा है वह और वह जो देखा जा रहा है, एक हो जायो एक क्षण को ऐस ऐस अनुभव हो ज ज कि वह जो धूप घे घे हुये है है, वह औ मैं एक हूँ जो वृक वृक मुझ प छाया किये है वह औ मैं हूँ। प प छ किये है औ मैं हूँ हूँ।। हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ यह विचार से नहीं, यह आप सोच सकते है। यह आप वृक्ष के पास बैठक सोच सकते है कि मैं औ वृक्ष एक हूँ।।।। तब संयोग नहीं होगा, क्योंकि अभी सोचने वाला मौ।ंद यह जो ह ा है, मैं हूँ हूँ, यह अपने को समझ समझ ह है मैं एक एक हूँ औ समझ समझ की तक ज ज है जब तक नहीं होत कि एक हूँ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। वृक्ष के पास निर्विचार हो जाये तो अचानक उद्घाटन होगा कि एक हूँ यह विचार नहीं होग तब यह रोएं-ew Закрыть वृक्ष में खिलेंगे तो लगेग लगेग मैं खिल ह हूँ, वृक्ष से फैलने लगेगी तो लगेगी मे मे मे सुंगध है।।।।। लगेगी, यह विचार नहीं होगा, यह प्रतीत होगा, यह आत्मिक अनुभव होगा।
ह म ब ए क अपनी दुनिय दुनियXNUMX एक ही घर में अगर सात आदमी होते है, सात दुनियायें ई ई क्योंकि बेटे दुनिय दुनिया वहीं नहीं सकती सकती, जो बाप की औ इसलिये तो घ घ में कलह है।।।।।।। सात दुनिया एक घर में रहे, सात जगत, तो कलह होने ही वी ववव सात बर्तन में हो जाती है तो सात जगत बड़ी चीजें हथ एक वृक्ष के पास आप भी बैठे हुये है। आप एक बढ़ई है। एक चितшить बैठा हुआ है है, एक बैठ बैठा हुआ है, एक प्रेमी बैठा हुआ है जिसे प पшить प गई।।।।।।।।।। तो बढ़ई लिये वृक्ष में सिवाय फा फ के भी दिख दिख नहीं पड़त पड़त वह वृक वृक ही है लेकिन बढई फ फ फ दुनिय दुनिय में में में में वृक वृक वृक वृक वृक वृक वृक वृक वृक वृक वृक द दхов वृक वृक दхов वृक वृक वृकхов वृक वृक वृकхов वृक वृक वृक वृक वृक बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ बैठ अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग अग बैठ अग अग अग बैठчего है। उस वृक्ष में फूल नहीं खिलते, कुर्सियां-मेजे लग ती उसकी अपनी दुनिया है। उसके बगल में चित चित्रकार बैठा है, उसके वृक वृक्ष सिर्फ रंगों का एक खेल है।।।।।।।।।
इधर इतने वृक्ष लगे है। साधारण आदमी वृक्ष हरे दिखाई पड़ते औ औ हXNUMX वृक है ह एक ंग है लेकिन चित चितtrain चित चित्रकरक को ह हज हज हज है हज शेड ह ह ह ंगे ंगे ह।।। ह ह ह ह ह वह चितшить चित चित ही दिख दिख पड़ते है आम आदमी दिख दिख दिख नहीं पड़ते।। आम व्यक्ति के ह हरा यानी हरा, उसमें औ औ मतलब नहीं होता। लेकिन चित्रकार जानता है कि हर वृक्ष अपने ढंग ॹत । । । दो वृक्ष एक से हरे नहीं है। हरे में भी हजार हरे है। पत्ता-पत्ता अपने ढंग से हरा है। तो जब चित्रकार देखता है वृक्ष को तो उसे जो दिखाई पड़ता है, वह हमें कभी दिखाई नहीं पड़ता। उसे पत्ते-पत्ते का व्यक्तित्व दिखाई पड़ता है।
वहीं पर एक कवि बैठा, उसके लिये वृक्ष काव्य बन ड़ाते कवि वृक्ष को अपने नजरिये से देखता है। वह हमें ख ख्याल में नहीं आयेगा कि कवि किस यात्रा प निकल गया। उसका अपना जगत है। उसे खिले फूलों से लदे हुये वृक्ष के नीचे, जहाँ कि व व व त त त फूल गि Как इससे इससे वृक वृक क कोई संबंध है।।।।।।।।।।।।।।।।।। यह उसके भीत भीत के क का विसшить Закрыть हम अपने जगत को अपने भीतर से फैलाते है अपने चारों हर आदमी भीत भीत बीज लिये अपने अपने जगत का और अपने चारों तरफ फैला लेता है।।।।।।। वह मेरा फैलाव है, मेरे मरने के साथ मिट जायेगा वह ह ह हर आदमी के मरने के साथ एक दुनिया नष्ट होती है। जो थी, वह बनी हती हती है, लेकिन जो हमने फैलाई थी, बनाई थी, हमारा सपना थी, वह ज जाता है।।।।।।। खो खो ज ज ज काशी में नारायण नाम के एक ब्राह्माण रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। Закрыть अन्त में भगवान प्रकट हुये औXNUMX चार वर्ष बीत गये, गर्भ से बालक नहीं निकला।
नारायण ने यह देखकर कहा-''पुत्र! मनुष्य योनि के लिये जीव तरसते है। सभी पु выполнение पु पु सिद्ध हों उस मनुष मनुष्य शरीर का अनादर करके तुम म्य शरीर का अनादर करके तुम माता के उदर में ही क्यों स्थित हो हे हो? '' गर्भस्थ बालक ने कहा, '' मैं यह सब ज ज ज हूँ प मैं मैं क क से ड ड ड ह हूँ क क क न हो तो मैं मैं ब ब आऊ यह सुनक सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद सद।।।।।।।।।।।। आऊ। आऊ। आऊ आऊ आऊ आऊ आऊ आऊ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। आऊ।।। हूँ यदि यदि।। ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वा इसी प्रकार अधर्म, अज्ञानादि ने भी उनके प पXNUMX ऐसा आश्वासन मिलने प भी जब वह बालक उत्पन्न हुआ तब काँपने और रोने लगा। इस पर विभूतियों ने कहा-'मांते! तुम्हारा यह पुत्र काल से भयभीत होकर रोता और काँपता है से भयभीत होकरोत ोतXNUMX
संस्कारों से युक्त होकर कालभीति ने पाशुपतये मन ударя वह माही-सागा लौटने प एक बिल्व वृक्ष के समीप पहुँचने पर उसकी इन्द्रियाँ लय को प प प प पшить हो गयी औ औ क Вивра में केवल प प Как दो घडियों तक समाधि स स्थित होने के पशшить वह मन मन कहने लगे, 'मुझे ऐसा आनन्द किसी भी ती ती में नहीं मिल मिलXNUMX अतः मैं यहीं रहकर बड़ी भारी तपस्या करूँगा।
यों विचारका इस प्रकार सौ वर्ष बीत गये। तदनन्तर एक मनुष्य उनके सामने जल से भरा घड़ा लेकर आया और बोला-'महामाते! आज आपका नियम पूरा हो गया। अब इस जल को ग्रहण कीजिये। इस पर कालभीति ने कहा, 'आप किस वर्ण के है। आपका आचार-व्यवहार कैसा है? इन सब बातों को आप यथार्थ रूप से बतलाइये। बिना इन सब रहस्यों को जाने मैं जल कैसे ग्रहण कूर?
इस पर आगन्तुक बोला, 'मैं अपने माता-पिता कऋ नहता जा मुझे यह भी पता नहीं कि वे थे और मर गये या व थे ।ी न दूसरा मैं अपना वर्ण भी नहीं जानता। आचार और धर्म-कर्मो से भी मेरा कोई प्रयोजन नही। हह इस पर कालभीति ने कहा, अच्छा! यदि ऐसी बात है तो मैं आपका जल नहीं लेता। क्योंकि मैंने गुरूओं से ऐस सुनXNUMX सुन कि जिसके कुल क ज्ञान हो हो जिसके जिसके जन में वी क क ज्ञान हो हो हो जिसके जन जन में वी वीXNUMX शुद क अभ हो हो उसक जन्म वी वीर्य-शुद क अभ अभ उसक उसक उसक अन अन क क क कष कष कष कष कष कष chven कष कष chven ग क्म ग्य-क क व क chvin o साथ ही हीन व वXNUMX का है तथान शंकर का भक्त नहीं है है उससे दानादि लेने-देने का सम्बन्ध न करना चाहिये इसलिये जलादि लेने पू पूर्व वर्ण तथा आचारादि का ज्ञान आवश्यक होता है। '
यह सुनक उस पुरूष ने कहा-'तुमховнего भला, जब भूतों में भगव भगव शंक शंक ही निव क क है है किसी की निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन निन शब शब्द तथ तथ तथ शब शबenवथ त शब शब पवित शबenद य शब पवित क कenद wing त शब क потеря पवित क потеря पवित क क потеря ? यह घड़ा मिट्टी का बना हुआ है। फिर अग्नि से पकाकर जल से भरा गया है। इन सब वस्तुओं में तो कोई अशुद्धि है नहीं। यदि कहो कि मेरे संसर्ग से अशुद्धि आ गयी, तब तो तुम्हें इस पृथ्वी पर न रहकर आकाश में रहना, चलना-फिरना, क्योंकि मैं इस पृथ्वी पर खड़ा हूँ। मेरे संसर्ग से यह पृथ्वी अपवित्र हो गयी है।
इस पर कालभीति ने कहा- 'अच्छा ठीक! देखो, यदि सम्पूा भूत शिवमय ही है औ कही कोई भेद नहीं तो ऐस ऐस म म व औ कही कोई नहीं है तो ऐस ऐस म म व औ भक कोई भेद है तो ऐस ऐस ऐस म म म ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद पद छोड़क मिट मिट क्ष्य भोज ख ख आदि पद पद को छोड़क मिट मिट्ष ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख chy नहीं है पद पद तो तो तो तो तो तो तो राख और धूल क्यों नहीं फाँकते? भगवान अवश्य सम्पूर्ण भूतों में है, पर जैसे सшить के बने हुये आभूषणों में सबका व्यवहार एक स नहीं गले गले क गहन तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ तथ उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें तथ तथ उनमें तथ उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें उनमें अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली अंगुली क क क क क क क क क क क क क क क स एक स, -नीच, शुद्ध-अशुद्ध-सब में भगवान सदाशिव विराजमान है, पर व्यवहार भेद आवश्यक है।।।।।।।।। है है है है है जैसे खोटे स्वा
इस त त भगवन स स सXNUMX व्याप्त होने प भी देह देह में क क कXNUMX वश वश प प म औXNUMX इसलिये मैं तुम्हारा जल किसी प्रकार ग्रहण नहीं स यह कार्य भला हो या बुरा, मेरे लिये वेद ही परम प्रमाण है।।।। कालभीति के व व Вивра सुनक सुनक सुनक वह आगन आगन आगन बड़े जो से हँस हँस हँस हँस हँस हँस हँस हँस औ औ औ उसने उसने द द पै के से भूमि खोदक एक विश विश औ औ सुन सुनXNUMX उससे वह गर्त भर गया, फिर भी घड़े का जल बचा ही रहा। तब उसने दूसरे पैर से भूमि खोदक एक बड़ बड़XNUMX स सXNUMX औ से घड़े क क एक बड़ स स सXNUMX
कालभीति उसके आ आा क कर्तव्य से तनिक भी य य विचलित न हुआ।।।।। इससे कшить हुआ?
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' भारत! कुआं दूसरे का, घड़ा दूसरे का औरस्सी दूसरे की है, एक प पXNUMX पिल पिल औ औ एक पीत है वे सम फल के भ भ होते।। ' अतः कूप-तालाबादि के जल में क्या दोष होगा, फिा कालभीति ने कहा-'आपका कहना ठीक है, तथापि आपने घड़े के जल से ही तो स सरोवर को भा है।।।।।।। भ भ।। यह बात प्रत्यक्ष देखकर भी मेरा जैसा मनुष्य इस को कैसे कैसे पी सकता है? अतः मैं इस जल को किसी प्रकार नहीं पीऊँगा।' इस तरह क कXNUMX अब तो कालभीति को बड़ा विस्मय हुआ। वह बार- बा возможности आकाश में गन्धर्व गाने लगे, इन ударя यह देखकर कालभीति भी प प्रसन्नत| स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उस से प प्रकट होकर कालभीति को प्रत्यक्ष दर्शन दिया औा, 'वत्स! तुम्हारी आराधना से मैं बड़ा सन्तुष्ट हूँ। तुम्हारी धर्म निष्ठा की पXNUMX के मैं ही यहाँ मनुष्य XNUMX तुम मनोवांछित वर माँगो। तुम्हारे लिये मुझे कुछ भी अदेय नहीं है।' कालभीति ने कहा- 'यदि आप सनшить आपके इस लिंग प प जो भी दान, पूजन किय किया जाय, वह अक्षय हो।।।।। जो इस गर्त में स्नान करके पितरों को त त करे उसे सब ती ती ती ती ती ती क प्राप्त हो औ पित पित को अक गति प प पхов प हो। ' भगवान सदाशिव ने कहा-'जो तुम चाहते हो, वह सब होगा। साथ ही तुम नन्दी के साथ मेरे दूसरे द्वारपाल बनोत कालमार्ग पर विजय पाने से तुम महाकाल के नाम से पшить यहाँ क выполнение इतना कहकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये।
संसार के त्याग का मतलब यह नहीं कि ये जो चट्टाने है छोड़ छोड़ देन देन ये वृक वृक वृक है छोड़ देन य य लोग है इनको छोड़ देन वृक वृक है छोड़ देन देन य है इनको संसा вмести जो है वैसा ही देखना, उस पर कुछ भी आरोपित न करना। अगर उसी वृक्ष के नीचे जिसकी मैंने बात की, एक साधक खड़ा हो, उसका कोई जगत नहीं है।।।।।।।। साधक का अा है है, जिसका कोई जगत है है, चीजों देखत देखता है, जैसी वे है।।।।।।।। अपनी तरफ से आरोपित नहीं करता, इंपोज क करता, उन पर कुछ थोपता नहीं है।।।।।
पहाड़ो-पर्वतों से उतरते हुये झरनों को हमने दथखा समुद्र की ओर बहती नदियों से हम परिचित है। पानी सदा ही की ओ ओर बहता है, नीची से नीची खोज लेत है है गड्ढों तक उसकी य य य य होती है अधोगमन उसक उसका म ही है।।।।।। है है है है है है है है है है है।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है है है होती होती होती उसकी प्रकृति है नीचे की ओर जाना। जहां नीची जगह मिल जाये वहीं उसकी यात्रा है। Закрыть आकाश की ओर ही दौड़ती चली जाती है। कहीं भी जलायें उसे, कैसे खे, दीपक को उलट उलट भी लटक दें तो ज ज ज ज शिख ऊप त त त ही भ भ। ज ज शिख की त त त भ भ भ। ज ज ज त त त त ही भ भ।। ज ज।। त त त त ही भ भ।।।। भ त त त त त ही भ भ भ भ
चेतना दोनों तरह से बह है है, पानी त त त भी और अगшить की त त त भी भी।।।।।।।।।। अधिकांश मनुष्य पानी की तरह बहते है। नीचे की ओर, हमारी चेतना नीचे उतरने का म मXNUMX प प ही तत्काल ऊप की सीढ़ी देती है है होन होन च अग अग की त त प हम प प होन त अग अग अग त त त हम प प की त त अग अग अग प प प प प प की की की की की प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प हमारा चिंतन अग्नि की तरह होना चाहिये, जरा अवसर मिले, नीचे का Как ऊपर की यात्रा साथ ही साथ भीतर की भी यात्रा है औ ठीक उसी त नीचे की य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ऊपर-भीतर, नीचे बाहर एक दूसरे के पर्यायवाची है। जितने भीतर जायेंगे, उतने ही ऊपर चले जायेंगे। जितने बहार जायेंगे, उतने नीचे चले जायेंगे। अस्तित्व की दृष्टि से ऊपर और भीतर एक ही अ अ अ है भाषा की दृष्टि से नहीं।।।।।।।।।।। नहीं नहीं नहीं नहीं जिन लोगों भी भीत की की यात्रा की, उनक उनकXNUMX
अग्नि में औ और गुण है, उसका यह स्वभाव है, जो शुद्ध होता है, बचा लेती है, अशुद्ध को देती है।।।।।।।।।। है सोने को अग्नि में डाल दें तो अशुद अशुद्ध है उसे जल देती है औ शुद्ध बच लेती है शुद शुद शुद निखXNUMX अग्नि प्रतीक है, इस बात का कि जो अशुद्ध है जल जला देगी, शुद्ध को बचा लेगी।।।।।।।।।।।। उसे जल यह अग्नि का स्वभाव है, शुद्ध को बचाने के आतु आतुर रहती है।।। हमारे भीतर बहुत अशुद अशुद्ध है, इतना ज्यादा अशुद्ध है, कि शुद्ध का पता ही नहीं हैं।।।।।।।।।। हैं हैं कहीं होगा छिपा हुआ शुद्ध। गुरू बताये भी भीत भीत तुम्हा возможности उसे ज्यादा देर तक अग्नि में तपाना पड़ता है। ये स् + तप क|
इसलिये ज्ञानी, चेतनावान साधक कहते है, कि देव देव, मुझे सन्माा प प चल।।।।।।।।।।।।।।। मुझे कुछ पता नहीं कि क्या रास्ता है! मुझे यह भी पता नहीं कि शुभ क्या है, क्या अशुभ है! मैं अज्ञानी हूँ, तू मुझे ले चल। देवता कौन? देवता वही है, जो दिव्य है, इतना ही नहीं, जो दिव दिव की ओ ओ ले ज ज ज ज ज है दिव दिव की ओ ओ उन्मुख क क क क वह देवत दिव दिव दिव दिव की ओ उन्मुख क क क क देवत दिव दिव दिव दिव दिव दिव o इसलिये लोगों कह कहा गुरू देवता है, जहां दिव्यता की ओरू देवता है, जहां दिव्यता की ओरू देवता है, जहां दिव्यता की ओXNUMX देवत मिल ज दिव संकेत मिल ज ज ज ज है जिसके पहुँच पहुँच क क से से हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण वीण होती होती होती है है है है
जो साधक यह पुकार करता है कि हे देव! मुझे सन्मार्ग पर ले चल, तो यह पुकार ही सन्मार्ग की त तXNUMX यह पुकार असाधारण है, क्योंकि हमारी प्रत्येक वृत्ति, हमारी प्रत्येक वासना, हमारी प्रत्येक इच्छ असद्येक व की त ले ज है इच इच्छ असद्ग की त ले ज है है है।।।। है है है है है है है है है ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले त वृत ले ले ले ले हम वृत इसके लिये प् Каквал इसके लिये प्रकृति ने हमें काफी उपकरण दिया है। वह अपने आप हमें ले जाती है। नीचे त तरफ उतरना हो तो किसी पुकार, किसी पшить अंधेरे की ता आपके अपने क का लिये ज जXNUMX हे है आपकी आदतें औ संस्कार लिये जा रहे हैं।
ऐसा भी नहीं कि कोई देवत देवतXNUMX इस भ्रांति में मत रहना। सन्मार्ग की तरफ जाना तो आपको ही है। Закрыть यह प्राеда आपके भीत के द्वाराравия देगी देगी यदि यही प्राедая हो ज ज घनीभूत ज ज अग अग्राen सघन ज ज घनीभूत हो ज ज अग अगXNUMX औ पुक बन ज औ औ औ औ चिल ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय ोय चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल चिल औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ ज ज ज ज ज ज यही यही प प प प प प प ज औ, उर्ध्वगमन की ओर, ऊपर की ओर। तब पू पू साधक ज जXNUMX स स लीन हो ज ज ज आपके आपके स स स स स स स स स स स स स स फि फि मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिलFण ोय मिल मिल मिलvenधन ोय क कvenधन ोय क कvenधन ोय क सvenधन ोय क सvenधन ोय क सvenधन ोय क पvenयेंगे ोय क प प प प प क क क क क क क क द द द द क chy ज प स स प ज ज, होने लगे, रात के स्वप्न भी उससे प्रभावित होने लगे, वह धुन बन बन ज ज तब आप स अनुभव क सकेंगे सद धुन बन ज ज तब स स स क सकेंगे सद सद बन बन ज तब आप स स अनुभव सकेंगे सकेंगे सद सद को अपने निकट क प प बिल बिल्गुा औ प निकट अनुभव क भ² लेकिन उसके पहले आपको पहल करनी पड़ेगी। साधना करनी पड़ेगी। अपनी साधना से ही बदल सकते है है, आपका Как साधना तो स्वयं में ही फल है। इसलिये साधना करके चुपचाप भूल जानां आप स| आप साधन| वर्षो बीत जाते है, केवल सोचने सोचने कि कि कल से स स प प्रम्भ क क कल से स कल आय आय नहीं नहीं न न आपकी आपकी स स पлать प प प प नहीं न न न न आपकी स स स पшить प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प आय प प आय आय आय प प Закрыть
जो ऐसा करने में सफल होते है, उन्हें साधना की महत्ता ज होते है उन्हें साधना की महत्ता ज्ञात होती है, वो ये जानते है, कि गुरू क्या होता? कितनी अनुकम्पा उनकी है। वह साधक परिचित हो जाता है, जीवन हस हस हस औ अपने लक्ष्य की ओ ओ होत होत है वह संस में हते हुये स स स स स स स स स सхов होत सжденого स स स потеря लक स कшли सद्गुरूदेव जी के आशीर्वाद स्वरूप अमृत तो ब ब रहे है, लेकिन लोग अपन अपनXNUMX ऐसा नहीं कि जिस दिन घड़ घड़XNUMX होगा, उसी अमृत अमृत ब ब कृप कृपा ब ब अमृत उस भी ब ब ब ह कृपा ब ब अमृत उस दिन भी ब ब ह Как जिस दिन आपक आपक ह घड़ उल थXNUMX
परमात्मा रूपी सद्गुरू का स स्वभाव ही कृपा है, अमृत उनका स्वभाव है, वे ब ब ही हें है।।।।।।। हें हें हें हें हें है वे सतत् बरस रहें, हमारी ही मटकी उल्टी है। अहंकारी मटकी उल उल्टा XNUMX बैठता है और भरने की क करता है।।।।।।।। मटकी को खने क क| जब मटकी होती है तो भीत कXNUMX उल्टी मटकी भ भ होने क भा भ्रम पैदा कर देती है, सीधी होक होक मटकी को पत पत चलत है मैं तो सिव सिव ख के औ औ कुछ भी नहीं भी भी भी भी भी भी कुछ कुछ कुछ जब जब जब जब जब कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब जब यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह । तब उस मटकी में कुछ भरा जा सकता है।
फिर कृपा उसमें भर जाती है, क्योंकि मटकी सीधी ह। गो गिर कृपा उसमें यद्पि आप सीधी न नXNUMX आपकी कृप कृप है कि आपने मटकी सीधी XNUMX औ अपने प प कृपXNUMX क मटकी ही स औ मंत आप प औ आप स स प प कृप कृप क क च च च च च च च च च च च च च च च क क क क क क क क क क क क क क क क कXNUMX इस संसार से हम फैल फैल लेते है उससे वियोग उससे अलग ज जाना। एक संसार है, जो परमात्मा का फैलाव है औ एक संस संस संस संस है है जो हमXNUMX हमारा फैलाव गिर जाना चाहिये, तो प प प प प प प प प प प प प प प प है है।।।।।।।।।। है है है है जब तक मेरा अपना फैलाव है, तब तक संयोग कैसे होग होग उससे जो जो प पXNUMX यह कभी ख्याल में भी न आया होगा कि परमात्मा से ज ज आय आय होगXNUMX वियोग अंसतोष है। जैसे किसी मां से उसक| उस असंतोष हम बहुत उप उपXNUMX
एक ही है है, वह मिलन, संयोग उससे, जिससे हम छुट गये व व उस मूल स स स स स स स स से हो हो जाना। इसलिये अतिरिक्त संतुष्ट आदमी होता ही नहीं। बाकी सब आदमी असंतुष्ट होंगे ही। वे कुछ भी करे, असंतोष उनका पीछा न छोड़ेगा। वे कुछ भी पा लें या खो दें दें, असंतोष से उनका संबंध बना ही रहेगा। वे धनी हो नि निर्धन, वे हो हो, द्रिद्र हो सम gtres असंतोष छाया की तरह पीछे लगा ही रहेगा। कहीं भी जाये आप। सिर्फ एक जगह अंसतोष नहीं जाता। वह परमात्मा से जो मिलन है, वहाँ भर अंसतोष नहीाा जा उसके कई कारण है। पहला कारण तो यह है हमने कभी पूछ पूछा ही नहीं से कि हम असंतुष असंतुष असंतुष क क है है।।।।।।।।।।। रास्ते पर एक कार गुजरती दिखाई पड़ जाती है, तो सोचते है, यह कार मिल जाये तो मिल ज ज सोचते यह क मिल ज ज तो मिल ज ज ज सोचते है है यह मिल मिल मिल मिल ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल
एक महल दिखाई ज जाता है, तो सोचते है, यह मिल ज ज तो संतोष मिल मिल जायेगा। एक सम्राट दिखाई पड़ जाता है, तो है है यह सिंह सिंहासन अपना हो तो संतोष मिल ज औ औ अपने से पूछ नही मे मे असंतोष क जायेगा औ कभी से पूछ नही कि मे असंतोष असंतोष का क क क से से पूछ कि मे मे असंतोष का क क क से से पूछ पूछ नही कि मे असंतोष क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क in अपने है e? क्या कार न होने से मैं असंतुष्ट हूँ? क्या महल न होने से मैं असंतुष्ट हूं? पद न होने से मैं असंतुष्ट हूं? तो फिर थोड़ा मन में सोचे। समझ ले कि मिल गई कार, मिल गया महल, मिल गया सम्राट प प पूछे अपने से, मिल गया-संतोष आयेगा? और तत्काल लगेगा कि कोई संतोष आ नहीं सकता। लेकिन हो सकत सकत है यह सि सि सि हम सोच रहे है, इसलिये म मालूम पड़े।।। तो वह जो क में में बैठ है है शक शक शक शक शक को देखे देखे, वह महल में वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि तो वह जो पद प बैठास है है उससे ज पूछें संतुष जो पद प प बैठ हुआ है ज ज कि संतुष पद पद प प प प प बैठ हुआ है ज ज पूछें संतुष जो पद पद पद पद प प प प है है ज ज ज ज ज हो हो पद पद पद पद है है है ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज है है है है है है है है है है है है है है है उसे भी ऐसा ही लगा था एक दिन। उसे भी लगा था कि इस पद पर होकर संतोष हो जायेगा। फिर पद पर आये तो बहुत दिन हो गये, संतोष तो जरा भानन न हाँ अब उसे ह रहा है कि किसी औ बड़े पद प प हो, तो संतोष हो ज ज ज ज ज।।।।।।।।।।।।।। ऐसे जीवन क्षीण होता, रिक्त होता, मिटता, टूटता। ा, में ज ज है जैसे कोई स स स ऐसे हम खो ज ज है औ बिखर बिखर जाते है।।।।।।।।।।।
हमने कभी ठीक से पूछा ही नहीं कि हम असंतुष्ट क्यथऋ हमारे असंतोष का क कXNUMX हम सि выполнительный क्योंकि जैसे मिलन होत होत है प पXNUMX परमात्मा को पाने के बाद अपवित्र होने क कोई उपाय नहीं है।।।।। वह असंभावना है। साधक अपवित्र नहीं हो सकता, वह पावन है। प्रभु से जुड़ हो ज जरा सी भी धXNUMX
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Шримали
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