यहां एक बात समझ ज जXNUMX है क क क क क तो कोई औ औ आपको बंधन में ड डXNUMX है, जिस क क की यह यह च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी आस आस आस आस आस आस औ औ Закрыть इसलिये बंधन तोड़ना बहुत मुश्किल भी है और आसान भी भी! मुश्किल इसलिए जब आपने ही अपने को ब बXNUMX कोई दूसरा बांधता, तो आपको उस बंधन मे XNUMX होत होत आपने ही ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब तो को प प्रीतिकर समझकर बांधा है तोड़न तोड़न मुश है है प पtrain समझक समझक समझक ब ब ब है मुश मुश है प प प प o आसान भी है, क्योंकि आपने ही बXNUMX किसी औ ने बांधा होता तो मुक मुक्त होने की आक आक आक आक आक आक आक लिये लिये संघ संघा क कXNUMX अगर बांधनेवाला शक्तिशाली होता तो बंधन से छूटन छूटनXNUMX
हमने ही ब| चाहे रस भ्रांत ही क्यों न हो! चाहे स प्रतीत ही क्यों न होता हो, वस्तुतः न हो फि फि क भी होत होत वस्तुतः ही हो फि फि भी भी होग होग होग ही सही सही, च म म दिख पड़ती पड़त औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ chy निर्णय करने की सुविधा नहीं है कि वह क क क कि जल दू दूर दिखाई पड़त पड़त वह है भी या नहीं? दौडे़गा।
यह सारी दौड़ सुख-दुःख के आसपास है। इसलिये सुख-दुःख तत तत्व में भीतर प्रवेश कर जाना जा ज है।।।।।। शायद सुख-दुःख की संभावना ही बंधन का कारण है। सुख क्या है? और दुःख क्या है? ऊपर से प पXNUMX है, दोनों विप विपरीत है, एक दूसरे के बिल्कुल दुश्मन है।।।।।।।।।।।। ऐसा है नहीं। सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू है। इसलिये एक की घटन घटती घटती लेकिन हम ख ख Виврая नहीं क प प जिसे हम आज सुख सुख हैं हैं वहीं कल दुःख हो ज है औ जिसे आज हम कहते है वह सुख हो है। जिसे हम दुःख है कल सुख हो सकत।।। है सुख सुख सुख हो हो हो हो हो कल तो दू दू है जिसे सुख कहते है है, क्षण भर बाद दुःख हो सकता है। यह भी हो सकत है कि जब हम कह XNUMX है सुख तभी तभी दुःख हो गय गय गय हो।। जो गहन क करते मनुष मनुष्य के मन की, वे तो कहते है कि जब कोई व व्यक्ति कहत है यह है तभी वह हो गय गय होत होत है है।।।।। तभी दुःख हो गय होत होत होत है है है।। क्योंकि जब वह सुख होत होता है, तब तक यह की भी सुविध नहीं मिलती कि यह सुख है।।।।।
सुख-दुःख संबंध में पहली ब ब समझ लेनी ज выполнительный हम सब जानते है, हमने सुखों को दुःख में प परिवा होते देख देख है।।।। लेकिन देखकर भी हमने निष्कर्ष नहीं लिये। शायद निषшить निष के लिये हम अपने मन अवस अवस नहीं देते है। एक सुख बन ज जाता है, तब तत तत्काल दूस दूस की तल तल तल में चल चल पड़ते है ूकते नहीं ठह ठह ठह देखते कि कल सुख सुख ज तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो फिर दुःख हो जायेगा? ऐसा मन कहता है यह हो हो गया दुःख, कोई बात नहीं, कहीं भूल हो गयी गयी, यह दुख ा ही होग होग हमने भ भ से सुख समझ लिय लिय था। होग होग हमने भ भ से समझ समझ लिय लिय थ थ ही होग होग हमने भ से सुख समझ लिय लिय लिय लिय लिय लिय लिय लिय थ थ थ होग होग होग लिय लिय लिय लिय
जिस चीज आप जितन बड़XNUMX जिस चीज आप जшить अनुपात वही होगा। इसलिये उदाहरण के कहत कहत हूं हूं-अग किसी कXNUMX प्रेम-विवाह जितना दुःख लात| तो टुटेगा क्या? बिगडेगा क्या? बिखरेगा क्या? जितनी बड़ी अपेक्षा, उतना बड़ा दुःख फलित हो सक।ा ा
इसलिये पश्चिम ने सोचा था इधर पचास-सौ वा में कि प्रेम-विवाह बहुत ले आयेग आयेगा। उन्होंने ठीक सोचा था। लेकिन उन्हें दूसरी बात का पता नहीं था कि प्रेम-विवाह बहुत दुःख भी आयेग आयेगXNUMX जितन बड़XNUMX
पूरब के होशिय होशियार थे एक लिहाज से, उन्होंने एक दूस कोशिश की की उन उन्होंने कोशिश की सुख अपेक अपेक अपेक अपेक ही कम क उन्होंने कोशिश की सुख की अपेक अपेक अपेक को कम क क क कोशिश यह की सुख अपेक अपेक अपेक अपेक को कम क त जब प प प हो हो दुःख ही ही ही ही ही ही ही ही ही दुःख दुःख हो हो हो न न न न न न न न न न न न न न न न हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो प प प प औ आयोजित विव| इसलिये विव विव विव चल सकता है, प्रेम विवाह चल सकत सकत क क्योंकि इतने बड़े सुख की आश जब बड़े दुःख में ज है है च च की आश जब बड़े में बदल ज है-
आदमी चल सकता है जमीन प प जहां बहुत खाइंया और बहुत शिखर नहीं है।।।।। जहां शिखरों से खाइयों में गिरना पड़ता हो, उस पर ज्यादा देर चला नहीं जा सकता। Upd पांच हजाा समतल भूमि थी-न बड़ी खाइयां थी, न बड़े शिखर थे। लेकिन पश्चिम सौ वर्ष भी प्रेम विवाह की धारणा को चलाने में सम выполнение अब वह| अगर सुख ज्यादा चाहिये तो विवाह छोड़ दो। अब फिर वहीं भूल हो रही है। क्योंकि ख्याल यह था कि सुख अगर ज्यादा चाहिये तो आयोजित विवाह छोड़ दो, प्रेम-विवाह ज्यादा सुख देगा।।, अब प्रेम विवाह ने ज्यादा सुख क क्षण भर को दिया औXNUMX उस सुख की तुलना में यह खाई बहुत बड़ी मालूम पडथही ी
अब फि वही भूल पश्चिम की बुद्धि करही है, वह यह—- अगर और ज्यादा सुख चाहिये तो विव ही दो।।।।।। दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो उन्हें पता नहीं कि औ और ज्यादा सुख औ औ दुःख में छोड़ जायेगा।। पर वह स स्वाभाविक है, क्योंकि हम सुख-दुःख विप विपरीत मानते है, कन्वर्टिबल नहीं- वे एक-दूस में ज ज है है।।। कि कि एक दूस में ज है है।।।।।। बदलते ही रहते है। एक क्षण को भी बदलाहट रूकती नहीं। इस समझ के कारण पूरब ने एक और प्रयोग किया। उसने प प्रयोग किया कि जब सुख दुःख में बदल जाता है, तो क्या हम दुःख सुख में नहीं बदल बदल सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते
तपश्चर्या का सूत्र इस समझ से निकला। बहुत अनूठा सूख तपश तपशшить तपश क क इस समझ से निकल कि जब सुख दुःख में बदल ज ज है तो कौन अड़चन है कि सुख में न बदल ज ज ज ज तो सी है कि सुख न बदल बदल ज ज ज ज ज तो अड़चन है दुःख में और हमने दुःख को भी सुख में बदल कर देखा। अगर आप में ebrहने र राजी हो जाये, तो सुख में बदलने को तैय तैय हो जाता है।।।।।।।।।।। में बदलने बदलने अग выполнение आप में XNUMX
र ever असल में आपके राजी होते ही बदलाहट शुरू हो जाती हैै जैसे ही कह कहा कि बस मिल मिल गया, अब मै इसमें ही रहना च सुख हूं गय अब मै इसमें हन हन च च हूं अब मैं बदलन नहीं च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च। हुई हुई।। हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई हुई।। अग अग दुःख भी यही कह सके कि दुःख मिल गय गय मैं इसमें र कह सके कि दुःख मिल गय गय मैं इसमें र हूँ अब मैं इसे बदलन नहीं च च इसमें तपश तपश तपश अब अब इसे इसे बदलन नहीं च च यही तपश तपशшить हूँ सूत सूत है कि दुःख आय आय आय मैं मैं र र मैं च है दुःख दुःख आय आय आय आय आय आय मैं र र र र र र र र मैं मैं।। आय आय आय आय आय आय आय आय।। आय मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं आय आय आय आय मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं यही यही मैं
बड़े मजे की बात है कि दुःख सुख में बदल जाता है और अगर इन दोनों में ही चुनना हो, तो सुख को दुःख में बदलने की कला के बजाय दुःख को सुख में बदलने की कला ज्यादा बुद्धिमानी है। क्यों? उसका कारण है, क्योंकि दुःख को जो सुख में बदल लेत है है, उसका सुख फि दुःख में बदल सकत सकता। उसका कारण है कि दुःख तक को सुख में बदल लेत लेत है है उसक उसक सुख दुःख दुःख बन सकेगा? जो दुःख को सुख में बदल लेत लेत है है उसका सुख अब प प काम नहीं क पXNUMX, बदलाहट होगी उसे।।।।।। उसे।। असल में दुःख को सुख में बदल लेता है, वह सुख की आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक आक की की की की की की की बदल प है।। और जब की कोई आकांक्षा नहीं होती होती, तो दुःख में बदलने की कшить खो देत देत है।।।।।।।।
आकांक्षा से क्षमता निर्मित होती है। इसे कभी प्रयोग करके देखे और आप बहुत हैरान हो थांयो यह मनुष्य के भीत выполнительный जब दुःख आपके ऊपर आये तो उसे स्वीकार कर लें। इनकार से वह दुःख है है, अस्वीकार से वह दुःख है, उसे स्वीकार क क समग समग मन से र हो ज कहे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे हेंगे औ औ औ औ कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई कोई दुःख की तरह देखा था, वह सुख हो गया है?
सुख दुःख में बदल सकता है, दुःख सुख में क्योंे? क्योंकि वे एक ही सिक्के के दो पहलू है और बदल क्या यड़ क्योंकि इस बदलने का क्या कारण है? असल में एक आदमी सुख में जीत जीत है है तो सुख से भी ऊब जाता है।।। जो चीज भी निरन्तर मिलती है उससे ऊब पैदा हो जाती ह ऊब स्वाभाविक है। सुख भी ऊबाने लगता है। असल में भी आप ज ज लेते है है, उसी चित चित्त ऊबने लगत है है जिसे भी आप पू पू ज लेते है उसी चित ऊबने लगत है।।।।।।।।। ऊबने ऊबने ऊबने ऊबने ऊबने ऊबने ऊबने चित्त नये तल तलाश पर निकल जाता है, ा आज जो अच अच्छा लगा है, भूलकर कल उसे मत करना, परसों उसे मत दोहराना, नहीं ूचि ूचि अरूचि बन ज।।।। ूचि ूचि ूचि अ ज ज ज ज ज ज ज ूचि ूचि अ बन ज ज ज ज ज ज ज ज यह ऋषि है है- '' जो रूचिकर वस्तु की इच्छा है, वही है है, औ औ जो अ अ्तु की) रूचि अरूचि में बदल जाती है, अरूचि रूचि में बहल जा जा
ऋषि ने कहा, इंद्रियों के लिये अनुकूल है है, सानुकूल है, वह रूचिकर है।।।। आपके लिये नहीं, इंद्रियों के लिये जो अनुकूल है वह ूचिक है, और इंद्रियों के लिये अनुकूल नहीं है वह अ अ है।।।।।।। है है है वह अ अ अ है है है है है है संगीत बज रहा है कान को रूचिका उससे व्याघाद पैदा नहीं होता, उपद्रव पैदा नहीं होता, बल्कि विपXNUMX लेकिन जरूरी नहीं है। अगर बहुत शांत व्यक्ति हो, तो संगीत अ अ выполнение है, क्योंकि तब संगीत भी व वшить
पश्चिम का एक बड़ बड़ा संगीतज्ञ सुबXNUMX कह कहXNUMX थ संगीत संगीतज संबंध में में, खुद बड़ा संगीतज्ञ थ वह कह क क थ में खुद है संगीतज्ञ थ वह कह क क क समूह जो जो है वह सबसे सबसे अ अ है है है है सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे है है है है है है है है है है अ अ अ अ अ अ अ कम कम कम सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे सबसे कम सबसे सबसे सबसे अ अ सबसे वह अ, सबसे कम उपद्रव है उसमें। है तो उपद्रव, क्योंकि है तो आखिर स्वरों का आघाऀ ह इसलिये परम संगीत शून शून्य है लेकिन जिसने शून्य को जाना उसे भी अ अरूचिकर मालूम पड़ेगा, उसके कान को।।।।।।। क क क क को को को को चीन का एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ हुआ, हुई हाई। जैसे जैसे उसक उसका गहरा होता चला गया, वैसे-वैसे उसकाद्य शांत होता चला गया। एक दिन उसने अपने वाद्य को उठाकर फेंक दिया। दूर-दू लोक-लोकांतर तक खब खब पहुंच गयी थी थी, हजारों मील चलक लोग उसके प प प थे थे।।।।।।।।। थे थे थे और जब दूसरे दिन सुबह नये यात्री आये उसक संगीत सुनने औ उसे उन उन य य य बैठ बैठ वृक वृक के नीचे देख बिन औ औ उसे उन उन बैठ बैठ वृक के नीचे नीचे देख देख बिना वाद्य के तो उन उन्होंने पूछ तुम्हा वाद्य के तो उन उन पूछ तुमждения तुम तुम्हा व व्य कह है उन उन पूछ तुमждения तुम तुम्हा व वXNUMX तो हुई हाई ने कहा अब वाद्य भी संगीत में बाधा हाा गय और हुई हाई ने कहा कि जब संगीत पूर्ण हो जाता है वीण वीणा तोड़ देनी पड़ती है।।।।।।।।। है है उसका कारण है—-
अग बहुत से समझें तो क क के लिये जो ध ध्वनियां पшить लगती है वे इसीलिए प प ध Виана प प लगती है है इसीलिए प पшить लगती हैं कि भीत भीत औ औ अपve wअप औ ध gh औ ध ghin Как हैшли लगती whrवwinंчитано लगती wध whrव whrवwinं wध औ हैvenवनियwerवनिय wअप औ हैvenवनियwin ीतिक है ghro ीतिक है है Wh है हैvenवनियчитавший है हैvenवनियчитанный उस अराजकता में यह सुलानेवाली दवा की तरह मालू।म पा सुखद लगता हे, सांत्वना देता है, एक तरह की शांति को जन्म देता है। रूचिकर है।
लेकिन, अगर संगीत अस्तव्यस्यस हो, सिर्फ शोरगुल हो आवाजों का तो अा हो ज जाता है, क्योंकि क को पीड़ होती है।।।। पीड़ा इसलिये होती कि क कXNUMX सारे शरीा में हमने हमने— इंद्रियों की जो व्यवस्था है हमने हमने— इंद्रियों की व व्यवस्था है हम हमने इंद— इंद्रियों की व व्यवस्था है हम हम हम इंद इंदtra है गшить, ब ब ब जगत में जो घटित हो रहा है भीत भीत ले के है जो घटित हो ह उसे भीत ले ज द जो घटित।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। इन इंद्रियों को प्रीतिकार मालूम होता है वह वही जो इन इंद इंद्रियों को शांत करता है, अप्ा बस, इससे ज्यादा प्रीतिकर, अप्रीतिकर का कोई अर्हथ न लेकिन जो इंद इंद्रियों को आज शांत करती है, कल अश क क सकती है है, क्योंकि इंदшить
जैसे, एक नया आदमी रेलवे की नौकरी पर जाता है, स्टेशन परी प नहीं आती आती स स स स प सोत सोत है इंजन नींद आव है स शंटिग है औ उपद त त त त त त उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद शो शो शो औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ शो शो औ शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो शो की औ औ त है है नौक नौक ेलवे ेलवे ेलवे ेलवे है कान। लेकिन नींद एक जरूरी चीज है। आज कल कल, इस को एक त त дети नींद शु शु हो ज ज है त लेकिन बहुत जल जल वह वक वक आ ज ज कि आदमी अब अपने घ घ सकत सकत सकत सकत क गय उपद इसकी इसकी नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद नींद अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव अनिव सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क सकत सकत क सकत ज ज यह क अनिव सकत, तो यह हो तो ही यह सो सकता है, यह न हो तो यह नहीं सथाा यह इसका क्रियाकांड का हिस्सा हो गया। इतना उपद्रव चाहिये ही।
बहुत मे मेरे पास आते है, वे कहते हैं कि मुसीबत है, बड़ी है है, बड़ी श श श है।।।।।। मैं भ भांति जानता हूं कि अग अग सब बेचैनी औ औ सब अशांति छीन ली ज ज फौ प प औ सब अश अश ली ली ज ज तो फौ पXNUMX उनको पता नहीं है वह उनक उनका कшить इसलिये अगर उन्हें एकांत में भेज दिया जाये, तो च च दिन वे कहते कहते कि कि वापिस जाना है, यहां बहुत ख ख ख ख लगत है यहां कोई स नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। स स स स स स स स स स स स स स स स स स सार वहीं है, जहां सारा उपद्रव चल रहा है। क्यो?
इंद्रिया—– अग आप अ अ अ कXNUMX आपक आपकXNUMX का भोजन बार- ब लेने धी धी धी धी धी धी इंद्रियो क कXNUMX
एक बड़े कवि मुझे मिलने आये थे। बातचीत चलती थी, तभी एक संगीतज्ञ भी आ गये। उन संगीतज्ञ ने कवि को कहा कि कोई एकाध कविता सुना௯ उन कवि ने कहा, क्षमा करें। कविता से बुरी तरह ऊब गया हूं कि कुछ और चलेगा, क।विन बड़े कवि है, कविता से ऊब गये है। ऊब ही ज|
बड़े बुद्धिमान आदमी ब बार बड़े गैरबुद्धिमानी के क क क लग लग जाते है, वह सि सि बदल बदल है वह सि सि सि बदल है ऊब गये है है।। है वह सि सि सि है ऊब गये है है है है है है है है है।।।।। है है है है है है है है है है है।।।। है है है है। गये गये है है है है है है।।।।।। है है।।।।।।।।।।।।। बदल।। है है। इसलिये कभी-कभी दिखाई पड़त है कि ग ग क क स स स स स स स है है कोई है कुछ कीमत कीमत नहीं है कोई अनुभव है है कोई गह नहीं है है लेकिन ह ह को को को चीफ जस जस उसके में हुआ हुआ है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है क्या हो गया है इस हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को? यह ऊब गया है बुद्धिमानी से। काफी बुद्धि इसने झेल ली। अब यह गै बुद्धिमानी का काम न करे, तो अपने से ही छुटक छुटकारा नहीं है।।।।।।।।।।।।। है है फिा इसको देखक न म म कितने न न इसके पीछे आयेंगे आयेंगे आयेंगे, क्योंकि वे बुद बुद्धिमान समझक समझक आ हे है— कि यह बुद बुद्धिमान समझक समझक चले हे है— कि यह बुद बुद्धिमान ज ज चले कहीं तो अब गे बुद बुद गय गय गय गय गय गय गय बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद्धिम बुद बुद बुद बुद chven बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद बुद गे गे गे बुद बुद गे गे बुद बुद गे गे बुद बुद गे गे बुद बुद जब वे बुद बुद, और उन्हें पता नहीं कि यह ज जXNUMX ह सि सि सि सि इसलिये कि यह बुद बुद्धि से बुरी तरह ऊब गय है।।।।।।।।। त त ऊब गय है है है।। त त त त ऊब गय है है बुरी तरह ऊब गया है——!
रूचिकर सदा रूचिकर नहीं रहता। इसके और भी कारण है, क्योंकि आप पूरे समय विकसहथथहर हर बच्चा है, खिलौना रूचिकर लगता है, लेकिन एक उम्र आ जायेगी कि खिलौन खिलौनXNUMX खिलौने फेंकने पडेंगे औ औ ये ही खिलौने है जो अग अग टूट ज ज तो बच्चा समझत कि जैसे उसका प्रियजन मर गय है।।।।।।। इन्हीं को वह छोड़कर एक दिन हट जायेगा। क्योंकि उसकी चेतना विकसित हो रही है।
जो कल रूचिकर था, वह आज रूचिकर नहीं रहा। आज वह खिलौने खोजेग खोजेगा, हालांकि उसे ख्याल में होग होगा, ये भी खिलौने है।।।।।।।।।। कल उसने गुडि़या सजाई थी, आज वह पत्नी सजायेगा। सजावट वही होगी, ढंग वही होगा। लोग उसकी गुडि़या की प्रशंसा करें, यह कल चाहा था, आज उसकी पत्नी की प्रशंसा करें, यह चाहा जायेगा। लेकिन गुडि़या थी गुडि़या, इसलिये किसी फेंक दिय दिया तो कठिनाई हुई। अब पत पत्नी को फेंकना इतनान पड़नेवाला नहीं औ औ नहीं कल कल, इसके भी प प हो ज ज मन तब बेचैनी होगी होगी पु पु पु पु किये किये औ औ आश आश ब होगी बनेंगे पु पु पु किये औ औ आश आश ब होगी बनेंगे।। आश ब ब बनेंगे बनेंगे बनेंगे बनेंगे बनेंगे बनेंगे बनेंगे बनेंगे बनेंगे होगी होगी होगी होगी होगी होगी होगी होगी होगी ब ब ब ब ब ब ब ब तब से ही बंध हुआ हुआ प प प प है——–
जवान आदमी था, मंदिा ूचिक नहीं मालूम पड़ता था, निकला था उसके सामने से, समझता था पागल उसके भीत गये होंगे।।।।। होंगे होंगे होंगे होंगे भीत भीत भीत भीत गये होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे अभी मंदिर बिलकुल नासमझों की जमात दिखाई पड़ती थी लेकिन आज नहीं कल, मंदिर सार्थक हो जायेगा। काा गुस्ताफ जुंग अपने जीवन के संस संस्मरणों में लिख है मे मे मे प इल संस्मरणों लिख है कि मे मे मे प प आये आये जो जो जो जो जो जो क क क क क क क आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये आये वे वे वे वे वे वे उनकी अड़चन नहीं, एक उनकी बीम बीमारी है, कि उन्हें मंदि क क पत बीम बीम ही नहीं कि मंदि भी औ औ औ च क स की उम उम नहीं कि मंदि भी औ औ औ च च स की उम उम ब ब मंदि का द द द हो शु शु शु हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो ज ज्वा द होन होन होन हो्वा द होन ch ज ज ch द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द औ o बच्चे के है, जवान के खिलौने है, बूढे़ के है औ औ एक उससे भी भी ऊब आ ज है औ जब तक से कोई मुक ऊब आ हो है है औ तक खिलौनों ही मुक हती हती हो हो ज ज ज तब सम हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती हती होती सम सम सम सम सम उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद उपद तक उपद उपद
जो मे मेरी इंद्रिय को क क्षण में सुखद मालूम पड़ता है, संगीतपूा म म पड़त है अनुकूल म म पड़त पड़त है उसे कहत कहत हूं 'सुख जो आज इस क इसके पड़त उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत कहत उसे उसे है उसे है है है है है है है है है सुख को मैं चाहता हुं, दुख मैं मैं नहीं चाहता हूं, सुख मिल ज ज ज पू पू औ दुःख बिलकुल न मिले, यह मेरी आकांक्षा है।।।।।।।। यह आक आकXNUMX ही श श क से बंधने क कXNUMX क बन ज है है कшить श श क ही इंद इंद के द द्व है उन उन उन से सुख मिलत औ औ उन से से से से ोक ोक उन सकत से। औ उन उन से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से chytre इसलिये चेतना शाथ के साथ सम्मिश्रित होकर बंध ज है औ औ जब तक कोई सुख दुःख को ठीक से समझक प प न हो तब श श के प नहीं सकत सकत सकत न हो तक श श के प नहीं सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो
इसलिये पांच शरीरों के बाद तत्काल ऋषि ने सुख दुःख च चXNUMX यह सुख-दुःख च चर्चा अा अ अ है इसलिये कि यह प प शXNUMX श श तक श श च च च बंधने कुछ भी न होग जब तक श श श के बंधने बंधने क क ही है में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में ख ख ख ख ख ख ख ख ख ख chingroty हम में में ख ख® इससे विपरीत अगर हम कर सकें, उसी का नाम तप है। सुख की आकांक्षा न करें, दुःख हट हटाने का खшить सुख को जो मांगेगा, दुःख जो जो बचेगXNUMX सुख की जो मांग नहीं करेगा, दुःख मिल जाये तो राजी हो जायेगा, वह शख्स—–
सुख की अपेक्षा, दुःख भय भय— श выполнительный भोग और तप का यही भेद है। सुख मांगते है ब बXNUMX इसलिये चेतन| तप का अर्थ है— कि नहीं, सुख की कोई आकांक्षा नहीं क क क बहुत सुख ज औ औ उनको में बदलते देख देख।। सुख औ उनको बदलते देख देख देख।।। देख देख बदलते देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख देख अब सुख नहीं ज जXNUMX औ अब को भी हटाने की इच इच्छा नहीं है।।।।।। क्योंकि दुःख को हटा-हटाकर देख लिया, वह हटता कहहं ं ं वह बना ही रहा चला जाता है। उलटे उसे हटाने औ औ सुख भोगन भोगनXNUMX न ही को हट हटाते है, न ही सुख को मांगते है, अब र राजी है, जो जैसा है।।।।।। यात्र भीतर की तरफ शुरू हो गयी, बाहर कोई संघर्र ह न न न यह अंतर्यात्र ही शरीरों से छुटकारा दिला सकती ह॥
सुख-दुःख लिये जो क्रियाएं करता है वшить, ऋषि ने उसे ही क क क क क क क क क क क क क क सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख क क क मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे मुझे कि कि कि कि कि जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो सुख सुख सुख लिये लिये लिये के के ही ही ही ही ही क क क क क क क क क लेकिन जो कहत है कि जो ठीक ठीक, न मिले, ठीक, दोनों भेद ही नहीं क ठीक न मिले, ठीक, दोनों भेद नहीं क क क क यह यह अक ठीक दोनों भेद ही नहीं क क क क डुअ डुअ डुअ डुअ हो ज ज ज ज होत होत होतXNUMX इसी से भाग्य की कीमती धारणा पैदा हुई।
भाग्य का मतलब ज्योतिषी से नहीं है, भाग्य का खшить उसका हाथ की रेखाओं से कुछ लेना-देना नहीं, उसका भविष्य से कोई नहीं नहीं, उससे ew भाग्य की ध| इससे पैद पैद हुई जब जब मैं क क क नहीं हूं हूं हूं औ औ चीजें तो हो ही ही है तो घटित हो ही ही है औ मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क हूं क क क हूं हूं क क हूं तो क क दुःख न मिले, तब तक संघर्ष करता हूं तो कर्ता होता ंा दुःख न मिले अब का नहीं रहा, अब जो मिल जाये ठीक है, न ज ज ज ठीक है है मैंने मैंने फिक ही छोड़ दी न मिलने की आये तो मैं फिक फिक नहीं क क कि कि मैं मैं फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक फिक क क क क सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख सुख धी выполнительный
ऐसी जो निा है इसमें क क कXNUMX तो ज ज ज जXNUMX करना था ही क्या? एक ही था, सुख कैसे पाये और दुःख से कैसे बचें——- व।ह। व।ही अब कर्म का कोई उपाय न रहा—– फिर भी चीजें तो होती ही चली जाती है-जब व्यक्ति कर्ता नहीं रह जाता तो परमात्मा कर्ता हो जाता है और जब परमात्मा ही कर्ता हो जाता है, इस भावदशा का नाम ही भाग्य है, विधि है । ऐसे व्यक्ति की गर्दन काट दो तो वह कहता है, कटनी थी वह इसमें भी दोषी नहीं ठहराता है क काटी, क्योंकि अब वह मानता है है क क क नहीं अब वह म म म क क कXNUMX विलीन हो गय कोई नहीं।। ऐसे व्यक्ति को जहर पिला दो तो कहत कहता है— पीना था, होना थ औ औ जो व्यक्ति जहर पिलाते वक्त भी ज हो कि पिलшить भ सकत सकतшить भ सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकतшить को सकत्य उसके्य उसके्य उसके्य उसके्य उसके्य उसके क्य chybre थ क पिलшить क क जिसने chven क chven क क्य chy पीन क ति क्य chy पीन सकत को क chpen थ में्य chy पीन सकत क)
क्योंकि अब म मानता ही नहीं कि कोई कXNUMX है इसलिये अब दोष दोष दोष दोष नहीं कोई क क इसलिये कोई जिम अब दोष दोष दोष सम समाप हुआ हुआ इसलिये अब कोई जिम हो प प है नियति नियति नियति नियति क क क क क व क क व व व व व व व व व® ऐसा व्यक्ति अगर परम शांति को, परम संतोष उपलब उपलब्ध हो जाये तो आश्चर्य क्या है?
जो सुख-दुःख बीच चुन चुनाव का है, वह कभी को उपलब उपलब नहीं हो हो सकत सकत जो सुख में भेद क क क क वह संतोष नहीं प सकत सकत दुःख भेद क क क है संतोष नहीं प प सकत सकत में भेद क क क कभी नहीं नहीं प सकत सकत। भेद भेद भेद भेद। Закрыть इसलिये लोग समझ समझ|
लोग कहते है, संतोष में ही सुख है। पागल है बिलकुल, उन्हें संतोष का पता ही नहीं नहीं, अभी वे सुख को ही संतोष के साथ एक क Как हे है! औ выполнительный जो सुख च| तो संतुष्ट कैसे होगा? सुख संतोष नहीं है। संतोष सुख नहीं है, संतोष सुख-दुःख के पार है। और संतुष्ट वही है, जिसने सुख-दुःख का भेद ही त्ााग संतोष दोनों को अतिक्रमण करता है। इसलिये आप अग कभी सुख मानकर संतोष कर रहे हों तो भ्रांति में मत पड़ना आपका संतोष निपट धोखा है।।।।।।। नियति, भाग्य, विधि, परम आध्यात्मिक शब्द है। व्यक्ति अहंकार से मुक्त हुआ, यह उनका प्रयोजन है, अस्मिता नहीं है।।।।।।।।।।
इंद्रियां ही सुख और दुःख के कारण है। '' 'शब्द, स्पर्श, रूप, औ गंध गंध ही सुख के क क क है।' '' '' ' तब उसे उप| W श выполнительный अपने को और जो नहीं है वह समझने लगा।
शरीर हूं मैं, यह क्यो पैदा हो जाता है? वही सुख-दुःख क कारण, क्योंकि जिससे सुख-दुःख मिलते है, जब सुख-दुःख की— सुख की आंक आंक आंक औ दुःख बचने क क की सुख की आंक आंक आंक होत औ दुःख बचने क भ प प प होत होत है। औ से क क भ प प होत होत है है औ दुःख बचने क भ की की प प प होत होत है है है है।। दुःख बचने इसीलिये जिससे सुख मिलत है है हम अपने को एक क क लेते।। जिससे दुःख मिलता हो, उससे बड़ा फासला करते है, उससे है है, उसे देखना भी नहीं च च उसके प नहीं होन होन च जिससे दुःख मिलत मिलत है है उसे हम दू दू क प मिलत मिलत है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है अब यह बहुत मजे की बात है, जब भी हमें सुख मिलता है तो हम समझते है वह हमारे शरीर से मिल रहा है और जब भी दुःख मिलता है हम समझते है वह दूसरे के शरीर से मिल रहा है। यह बहुत मजे का मामला है। यह बहुत ही मजे का राज है। जब भी सुख मिलत मिलत है तो हम समझते हम हमXNUMX सुख के हम कभी किसी दूस दूस को जिम्मेवार नहीं ठह ठह ठह के लिये हम हम सद स्वयं ही जिमшить होते है औ दुःख लिये हम सद सद दूस को जिम जिम जिम ठह है।
लेकिन हमारी तरकीब यह है कि हम अपने समझ समझ लेते कि मैं समस समस सुखों को प प क अधिक लेते है मैं समस समस समस सुखों को को प प तो दूस की कृप कृप से अग अग मुझे मिलते है तो दूस दूस की कृप से सद दूस क क है। दूस दूस दूस दूस की की से से सद क है।।।।।।।।।।।।।।।।। इसीलिये कोई आदमी यह नही पूछता कि संसार में सु। नु। मुझसे लोग आकर पूछते है, संसार में इतना दुःख क्यऋं? अभी मुझे आदमी नहीं मिल मिल जिसने आक पूछXNUMX उसको तो वह म| होना ही चाहिये, ऐसा है। दुःख क्यों है यह सवाल है। कोई मुझसे आकर नहीं पूछता कि आदमी जीता क्यो है? ??? जीवन तो होना ही चाहिये? लेकिन मृत्यु क्यों? ऐसा लगता है कि तो हम हम हमXNUMX तो मृत्यु को सद सद दू सोचते है है— कहीं बाहर से है औ हमको हमको मXNUMX आती है, लेकिन है बाहर। आती है और हमको मार डालती है-इससे कैसे बचे? और हम है जीवन।
हमारी सदा की त выполнительный Upd यह सब कठिन| भगवान दयालु है समझ में आता है। लेकिन फिर एक छोटा सा बच्चा कैन्सर से मर जाता है, तो अब क्या करे? कि इस बच्चे ने अभी कोई प पाप किया, न इसने कोई चो चो की न न हत्या की न कुछ किय औ औ यह कैन न हत्या की न कुछ किय औ यह यह कैन कैन म म म म गय गय गय गय गय न यह मरा हुआ ही पैदा हुआ। अगा म ही पैदा होना था, तो इस भगवान ने पैद पैद ही किसलिये क क्या? जब मरा हुआ ही पैदा करना था तो यह नासमझी क्यों की? याने कम कम भगव भगव को तो इतन इतना पता होना ही च कि म म म हुआ ही पैदा होगा होन यह च कि कि म म म म ही पैद पैद होग तो यह पैद क क कXNUMX उपद क्यो का?
हमें एक दूसरा व्यक्तित्व खोजना पड़ता है, क्योंकि भगवान से हम अपने को जोड़ना चाहते है।।।।।। अगर भगवान भी ऐसा करता है बच बच्चो को कैनшить दे देत है है है, बूढे़ म म म म म म है औ औ म म सकते, घसिटते हते है है सड़ते है युद युद युद युद युद युद युद युद युद युद युद युद युद युद युद होत होत होत होत होत होत होत होत युद युद युद युद युद युद, अगर भगवान को भी सब कुछ है तो फि फि हम भगव भगव अपने को एक नहीं क क पायेंगे।।। Выбрать अब यह बुरा कहां जाये? यह कौन कर रहा है? तो इसके लिये एक दूसरा भगवान पैदा करना पड़ता है। उसको हम शैतान कहते है। वह बुराई का भगवान है। वह करवा रहा है। डेविल-वह यह सब काम कर रहा हैं
हिन्दू धर्म एकमात्र धर्म है पृथ्वी पर, जिसने प परमात्मा में को खने की हिम हिम है सि सिर्फ।। इसीलिये मैं मानता हूँ, कि हिन्दु, जितने गहरे जा सके है के सत सत सत को में में उतना कोई नहीं ज सका सक।। में उतन कोई भी ज ज सक सक सक सत सत सत सत सत सत सत सत सत सत सक सक सक सक सक सक सक सक सक सक सक ज ज ज ज ज ज जिसे हिंदुओं ने 'महादेव' कहा है, 'शिव' कहा है, उसे एकस एकसाथ कहा है-बनXNUMX वही— जहर भी, अमृत भी-एक। बड़ी हिम्मत की बात है यह कहनी और ऐसे भगवान के साथ अपने को एक समझना बड़ी क्रांति है, क्योंकि हमारा सारा तर्क गिर जायेगा वह जो तर्क है हमारा अच्छे को अपने साथ जोड़ने का और बुरे को कहीं और हटा देने का, वह तर्क गिर जायेगा । अगर आप चोरी करते है तो आप कहते है शैतान ने करवायी औा बहुत मजेदार आदमी है! अगर दान देते तो आप दे हे XNUMX
भले से हम अपने को जोड़ना चाहते है, बुरे से नहीं। लेकिन जगत दोनों का जोड़ है। या तो दोनों इनक इनकXNUMX इस शरीर के साथ हमारा बंधन इसलिये निर्मित हो जाताथ कि हम कहते है, सुख इससे मिलता है, दुःख दूस दूस देते।।।।।।।।। इससे इससे मिलत मिलत मिलत कोई दूस देते।। इससे इससे सुख इससे मिलता है, इसलिये दूस दूस से बचो बचो, या दूसरों को ज ज य य जब तक दूस दूस देते म पड़ते है तब तक उनके स स Как जब देते म म पड़ते तो ज ज ज हो हो हो जब देते म पड़ते उनसे ज ज ज ज।।।।।।।।।।। विवाह और तलाक की सारी वшить
एक मित्र मेरे पास आते थे, सदा आकर कहते कि मे मे बुद्धि कैसे विकसित हो, वे कैसे जागे? मैं उनको कहता था, जागेगा, संभावना है, प्रयास कयास करनानाना बड़े खुश लौटते थे-संभावना से, जागता-वागता नहीं संभावना से, जगाना पड़ता है, लेकिन खुश लौटते थे। यह भी काफी उनकी प्रसन्नता थी। महीने-पन्द्रह दिन में आकर मुझसे वे यह सुन जाते थथ इससे उनको फि से मिल ज जाती थी दस-पन्द्читанный काफी दिन चल चला, मैंने कहा कि अब यह कोई संभावना तो व वास्तविक भी नहीं सकती इस ढंग से।।।।।।।।।।। एक दिन आये तो मैंने कहा कि अब यह कोई संभावना नहीत? कहा, कोई भी संभावना नहीं, बुद्धि तुम में है नहीं नहीं, जो हो सके औ औ विवेक इतनी आसान बात नहीं? तुम्हारे बस की नहीं, तुम छोड़ो यह ख्याल। एकदम चेहरे पर से उनका रंग उड़ गया, बड़े दुःखी ॲौटट अब मेरे खिलाफ हो गये है कि यह आदमी ठीक नहीं है। तब तक मैं ठीक था, जब तक कहता था, संभावना है। प्रसन्न होकर वे लौटते थे-प्रफुल्लित— गद्गद्! अब मैं बुरा हो गया हूँ।
यह बड़े की ब ब है है मैं तक ठीक थ थ थ तक सुखद थ औ औ जब में सुखद थ थ वे सुखद थ औ औ जब में सुखद थ तब तक अपने को ही श शшить अब मैं हो गय गया, क्योंकि मैंने कहा कि नहीं, कुछ उप उप है नहीं तुम्हारे साथ, तुम्हारा तर्क निश्चित है।।।।।। है हम अपने को जोड़न चXNUMX है है, जिससे लगत लगत है है, मिल ह ह है, उससे अपने को एक म म लगते है जिससे मिल ह ह अपने हम अपने को तोड़न च च है हम अपने अपने अपने श श श को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को सुख मिल रहा है, हम शरीर के साथ बंध जाते है।
आत्मा जब श выполнительный यही है उपाधि, यही है बीमारी। इस बीमारी से क क एक ही उप उप है– जिससे न दुःख मिलता, न सुख मिलता, जिससे आनंद मिथ हा आनंद न दुःख है, न सुख, आनंद दोनों का अभाव है। उस खोज पर हम निकलें।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Чандра Шримали
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