मेनका ने तपस तपस्या भंग की उन उन्होंने उसे पत्नी बना कर छोड़ा। राजा त्रिशंकु को इन्द्र ने स्वर्ग में प्रवेश से रोका तो उन्होंने नया स्वा विद्रोह तो उनके की धड़कन थी थी, विद्रोह का अपने आप कोई घटिय घटियापन भी नहीं।।।।।।। जिनके में स साहस का, ओज का समुद्र सा लहराहस का, ओज क समुद्र स लह लह लह लह ह होत है जिनके प प जीवन स स स सхов पक होत होत प प प र रхов प र र र र र स स सждено और साथ ही होता है दृढ़ निश्चय, वे ही विद्रोही हे त जिनके प तड़प होती है जीवन की विसंगतियों के प्रति और स्वयं को क क विसंगतियों प प्रति औ स्वयं को मिट क क भी चन औ क क की क क क मिट मिट मिट मिट क क होत होत® होत क वे वे वेven होग वेчей विद वेven होग वे वेven होग वेven पकड़ते वेven पकड़ते वेven पकड़ते कven पकड़ते कven पकड़ते कven पकड़ते कven पकड़ते कven पकड़ते कven पकड़ते कven पकड़ते कven
विश्वामित्र ने जीवन में यही किया। उन्होंने कभी भी हाथ नहीं जोड़ा गिड़गिड़ाये २हंथ उन्होंने आँखों आँखें ड डXNUMX जहां पर परम्परागत मार्गों में सफलता नहीं मिली वहां पर उन्होंने नवीन माा ही ढूंढ लिय औ औXNUMX वे ही ऋषि हुये जिन्होंने लक्ष्मी के ह हाथ नहीं जोड़े। सा नूतन पद्धति से लक्ष्मी को बाध्य कर दिया कि वह उनके आश्रम में आकर स्थापित हों।।।।।।। ऐसे ही अद्भुत ऋषि ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने जीवन की एक और निराली साधना रच डाली जिसका नाम है 'ललिताम्बा साधना' जीवन में हमें किसी के आगे हाथ न जोड़ना पड़े, हमारे मनोवांछित कार्य सम्पन्न होते रहें ऐसी जीवन शैली संभव हो सकती है विश्वामित्र प्रणीत ललिताम्बा साधना से आज युग में ऐसी ही स सXNUMX परम आवश्यक है, क्योंकि इस युग में सज्जनता का कोई स स्थ नहीं ह गया। समाज पग-पग पर पशु तुल्य व्यक्तियों से भर उठा है। जिनसे केवल तते ततेर कर ही कार्य लिया जा सकता है, आपकी विनमшить
महर्षि विश्वामित्र की साधना अपने अन्दर कुछ तिक तिक्ष्णता औXNUMX मह выполнительный
पांच दिनों इस तीव्र साधना में साधक तभी पшить उसके शरीर के अणु-अणु चैतन्य हो। साधक प्रातः सात बजे के आस पास अपने साधन скон ंग रंग के स्वच्छ वसшить वस पहने औ औ पीले ंग आसन प प बैठ ब्तver पहने पीले ंग के प प बैठ ब ब्रह्माण्ड के तेजस तेजस देव भगव सू सू ब्enण के तेजस तेजस तेजस देव भगव भगव सू क क अपने अपने अपने अपने अपने स स स स स स स स स स स हैं हैं हैं हैं हैं हैं प प प प प प अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ भगव भगव अ अ अ देव भगव य अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ भगव भगव)
Закрыть ाथ मेरे अन्दर समाहित हो रहे हैं और पूज्य गुरूदे व का स्मरण चिन्तन कर मानसिक रूप से प्रार्थना कर ें कि वे सामर्थ्य दें कि मैं इस साधना के तेज पुंज को अपने अन्दर समाहित कर सकूं। आप अपने सामने बिछे लकड़ी के बाजोट पर पुष्प की प ंखुडि़यों से दो आसन बनायें जिसमें से एक पर आप प Закрыть र भाव रखें कि महर्षि विश्वामित्र जी सूक्ष्म रूप में उपस्थित होकर आपको साधना की पूर्णता प्रदान करें।
सामान्यतः साधक का सшить स यह होत होत कि वह अपने पшить इसके लिए एक म माध्यम की आवश्यकता होती है उसकी म म त त व मंतшить जप प है जिससे म त त त व मंतшить जप प पXNUMX इसी कारणवश प्रत्येक साधना में अलग-अलग ढंग उपक उपक की आवश्यकता पड़ती है जिन जिन प प प शब्दों में 'यंत्र' की संजшить देते हैं।।।।।।।।।
इस स| दूसरी महत ударя इसके अतिरिक्त इस साधना में मूंगे के तीन टुकडों की आवश आवश्यकता पड़ती है जो कि मंत्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठित आवश आवश आवश है।।। प्राण प्ा होने आवश है है। सिद्ध इस साधन|
पांच दिनों स साधना में प्रतिदिन 51 माला मंतшить जप करना अनिव्रतिदिन 21. इस मंत्र जप अवधि में स स को अपने भीत भीत कुछ टूटत टूटत टूटत टूटत स लग सकत सकत सकत सकत है अकड़न ऐंठन सी हो सकती है किन किन किन यह संकेत है आप आप स स में छोड़न हैं हैं इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे इससे हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं छोड़न छोड़न छोड़न छोड़न छोड़न छोड़न छोड़न ढंग ढंग से से से से सही सही सही सही सही सही सही सही सही सही सही सही सही सही सही ।
इस साधना की समाप्ति पर गु выполнительный इस साधना के उपरान्त व्यक्ति के अन्दर एक पुंज सम सम हो हो ज ज औ औ धी धी धी धी उसकी व व के म म म म म औ सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम ण chven सम सम सम chven सम सम सम सम सम चेह चेह चेह चेह चेह चेह चेह चेह चेह की की की की की की की की की की की की की चेह की की चेह चेह की की चेह चेह की चेह धी धी o सम्मोहन तो एक विद्या है, सामने वाले को प्रभावित करने की, जब यह तो विशिष विशिष्ट ूप से च गय प व व व व व व व व व व व व व व व व व अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने को बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन बिन कुछ बिन अब आप ही सोचिये कि जिस वшить व के श श श में ऐसी ऊ ऊ ऊ वшить प ही तो उसके लिये किसी से अपन अपनांछित क ही हो उसके लिये किसी अपन अपनांछित क क क ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह हात ब क क कXNUMX
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