शिष्य का जीवन गुरू से जुड़ क ही पू पूXNUMX बनत है जीवन य य य क क ही पू पू पू बनत जन जन जीवन की य य य य वह क क क क क क क क प प प प प प इस द दхов व इस द द दшли इस इस दшли सद्गुरूदेव जी ने इस प्रवचन में शिष्य धर्म की पहचान तो स्पष्ट की है, साथ ही जीवन जीने की कला को अपने विशिष्ट भाव प्रवाह वाणी में स्पष्ट किया है उसी प्रवचन का सारांश-यह श्लोक वशिष्ठोपनिषद से लिया गया है और उसमें गुरू और शिष्य का एक विशेष वर्णन आया है।
शिष्योर्वदातुं भव देव नित्यं, कठिनत्व पूर्ण दुर्लभं शरीरं।।
चित्रं मया पूर्ण मदीव नित्यं, विश्वो ही विश विश्वेठवनंजं ।।
इस श्लोक में वशिष वशिष्ठ ने कहा है, कि जीवन कई ल ल योनियां भटकने के ब में यह मनुष मनुष श श श मिलत मिलत औ औ आप सब मनुष मनुष हैं च च च च के च च व व व व व व व व व व व व व व व व व मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष व व व व व व व व व व व व व व व व व व के के के के के के के के के के के के के के के के के के के व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व श व के के श श के च श कई श च च. उसमें पहले पंक्ति में कहा है कि 'गु5 बंगला में उसका ट्रांसलेट किया गया है कि हमारी जाती अब कुछ नहीं रही, हमारा गोत्र भी नहीं रहा। गु выполнительный क्योंकि 'जन्मना जायते शूद्र, संस्कारात द्वऍथथउत मां-बाप ने जो जन्म दिया वह तो एक शूद्रवत जन्म ०िय शूद्र का मतलब ज जाति विशेष से नहीं है, जिसको मल क क मूत्र का, शुद्धता का, अशुद्धता का भान नहीं वह शूद्र है।।।।। और जिसको ब बात का ध्यान है शुद शुद्धता हो, पवित्रता हो, दिव्यता हो, श्ा ब हो मन में क क o
पлать व्यक्ति जब जन्म लेता है शूद शूद्र के ूप होत होत जन जन इसलिये उसको शूद शूद्र के ूप होत होत है इसलिये उसको ज ज्ञान नहीं होत कि मल में पड़ हुआ हूं य्ञान में हुआ मैं मल में हुआ हूं य ज में में हुआ। में पड़ मां उसको स्वच्छ करती है, बाकि उसी ह ह से अपने किसी श श श श श श श श श श 4 महीने क छह महीने क क ब ब लेत मुंह मुंह मुंह लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लेत लेत लेत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब है वहीं मूत्र कर लेता है, मल कर लेता है और उसी पर खेलता XNUMX है।।।।।।।
उसको इस ब| उसको यह समझ समझ हैं यह उचित है है, वह है औ औ आज तुम मे मे ज ज ज हो है औ औ आज तुम मे मे ज ज के हो, मेरे गोत्र के मे मेरे न के हो, मेरे पुत पुत हो।। मे मे मे मे मे मे। पुत गोत पुतth तो संस्कारात द्विज, द्विज का मतलब है, दूसरी बार जन्म लेने वाला। द्विज — 'ज' जन्म लेने वाला, तथा 'द्वि' दूसरी बार।
परिवार ने एक ब बXNUMX वह प प्रकृति की लील लीलXNUMX औ औ कुछ व्यक्ति और अधिकांश व्यक्ति उसी प्रकार से जन देक देकXNUMX हो ज हैं भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ म म म म म म म म म म म म म हम म हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम हम म म म म औ औ व व अधिक अधिक फिर संस्कार जब मिलता है, तो संसшить तब उसको भान होता है कि मे मे जीवन क लका लकшить मे मे जीवन क क मे क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क चिन चिन ी ी ी ी भ भ भхов ी भ भ भ भ भ भ भжденной हैчего लेते हैं- चाहे पान खाना हो या मिठाई खाना हो। मिठाई इतनी सшить सुबह हम उसको देखना भी च चाहते, इतनी गन्दी औ औ होती है।।।।।।। ये श выполнительный हमारा शरीर क्या कार्य करता है वह मैं आपको समझ। ता पशु भी अच अच्छे हैं, गाय घास खाका क्योंकि हमारा पूरा शरीर अपने आप में शूद्रमय ॶरी
ब्राह्मणमय शरीर बने वशिष्ठ कहते हैं। यही जीवन का उदшить है है, यही क कXNUMX यदि ऐसा नहीं है, तो शूद्र बन कर भी व व्यतीत किया जाता है।।।।। उसको कोई रोकता नहीं है। उस जीवन आनन आनन्द नहीं है, उस जीवन सुख नहीं है है, उस में तृप तृप तृप नहीं है औ आप उत उत के वस तृप तृप नहीं है औ भी यदि उत उत कोटि के वस पहन लेंगे तब भी च महीने महीने ब फट देंगे ज य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य य ब ब ब ब ब ब ब ब फट फट फट फट फट क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क जीवन क क
इस शरीर को आप च चार पांच दिन तक धोयेंगे तो यह शरीर दुा आप चाहे कितना ही पाउडर, लिपस्टिक, क्रीम लगाये तब श शरीा इसी शरीर को भगवान का देवालय कहा है मन्दिर कहा है॥ 'शरीरं शुद्धं रक्षेत देवालय देवापि च'। ये भगवान का मन्दिर है। जहां भगवान का एक मन्दिर हो, उसमें बाहर एक चार दीवारी होती है, चार दीवारी के अन्दर एक कमरा होता है, कमरे के अन्दर एक और कमरा, उसके अन्दर भगवान की मूर्ति का स्थापन किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से अन्दर एक ईश्वर है और ईश्वर के बाहर एक शरीर है, शरीर हड्डियों कहाॢ़ा फिर यह ऐसी है जैसे चार दीवारी हो औ ये च च दीव दीवXNUMX
गुरू अपने में कोई मनुष्य नहीं है है, यदि हम मनुष मनुष को गु गु मानते हैं वह हम हम न न्यूनत है। म हैं वह वह हम हम न न्यूनत है।।।।।।।।।। एक क्षण ऐसा आता है, कि
Тот, кто является Шивой, называется Гуру, а того, кто является Гуру, помнят как Шиву.
Из-за разницы в своих чувствах он идет по пути ада.
यह शिव है वही गुरू है। यह गुरू है वही शिव हैं। Закрыть जो हमारा कल्याण कर सकें। जो इसमें भेद मानता है, वह अधम है। गुा औ औ शिव भेद हत हत है, जब हम शूद शूद्र हते तब तक भेद भेद हत हत औ एक क्षण ऐस आत है जब स स स स स स स स ूप ूप ूप ूप क।।। ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप ूप द द द द द द द Как क उस wons क उस wons क उस wons क उस wons क उस दшить ज उस उस chpen जब दर्शन करने लग जाते हैं तब बшить तब ब बात का भान नहीं रहता कि घ घ में सूखी ोटी खा हे हैं य घी चुपड़ है य य नहीं य य य सब सब य य य क क क क क क क क य य य य य य य य य य य य य सब потеря कन सब सब потеря , रूपान्तर होती है। इसलिए वह भेद तो मिट जाता है। जो उसी में लिप्त रहता है वह शूद्र ही रहता है। जब प परे हट जाता है कि जो कुछ मिल जाता है प्रभु का प्रसाद है उसको स स्वीकार करना चाहिये।। साधु तो जंगली फल औ औ हवा, वायु और जल इनक सेवन क औ भी अपने आप में तेजस्वी बने हे औ हम उत कोटी भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज की की की की भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज भोज की की की की की की की की की की की की की व व व व ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब. हृदय चिंतन आ जाता है कि हमारा जीवन 'त्वदीयं वस्तु गोविन्दं, तुभ्य मेवं सम60 आप इसका जैसा उपयोग करना चाहें, करें। आप के लिये उपयोग चाहें, झाडू निकालने का उपयोग क क चाहें, याडू निकालने का उपयोग क क च चXNUMX य यXNUMX निक क जो की इच इच इच इच इच है जो झ झ झ झ झ झ झ झ मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक निक नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है भ है इच भ है है इच भ है । मेरा तो उद्देश्य, मेरा लक्ष्य वही है आपने जो काम सौंपा मुझे वह पूXNUMX करना है।।।।।।। इसलिए शिष्य को गुरू के हाथ, गुरू के पैर, गु की आंख आंख, गुरू का मसшить कहा गया है।।।।।।।।।।। क्योंकि गुरू अपने आप कोई कोई सागा ये सारे शिष्य मिलकर के गु गुरूत्वमय बनता है, एक आकार बनता है।।।।।। इसलिये अगर मैं घमण्ड करूं कि मैं गुरू हूं, यह मेरा घमण्ड व्या
क्योंकि हम विकार ग्रस्त हैं। हमारा ध्यान इसलिये नहीं लगता, क्योंकि हमारा चित्त चंचल है भटकत लगतXNUMX क्योंकि एकदम ध्यान लगता नहीं तो उस जगदम्बा की मूर्ति को देखते हैं कि अच्छा ऐसी जगदम्बा है।।।।।।।।। यह प्रतीक मान कर ध्यान लग जाता है। ये ूप ूप है, आगे जा करके व्यक्ति, निा ूप आ ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज है उसके स मू मू выполнительный फिर ये सारे उपाय-उपकरण अपने आप में व्यर्थ हो तो थातथ फिर उसका भी अपने में श शरीा वह तो उसके काम आ जाए, वह उसका उपयोग औ औ ऐसे चिन चिन्तन की प प उसक उसक औ औ ऐसे चिन चिन्तन की प प प ऐसे जीवन जीवन क विच विच औ औ ध ध जब बनती है हम सही अ अ में मनुष ध बनते हैं बनती है तब सही अ अ में में मनुष बनते बनते बनती है तब यह धारणा बननी चाहिये, यह विच विचXNUMX आनाहिये, कि कम समय है हम हम हम जीवन में औ केवल आध आध घंट भी गु गु को दे प तो यह श श आध घंट घंट भी गु को दे प तो श श श आध घंट घंट घंट है गु को प जीवन के बाकी तो क कXNUMX क क ही है औ गुरू कार्य में हम हम कोई स औ औ выполнительный
स्वार्थ तो पशु क क हैं हैं, कि ोटी ोटी फेंक हैं एक कुत्त कुत कि ोटी ोटी देते एक कुत कुतшить ोटी उठ ोटी फेंक देते एक कुत कुतшить ोटी एक ोटी दूस दूस हैं एक कुतшить ोटी उठ दूस दूस दूस दूसXNUMX कुत प पXNUMX झपटत।।।।।।।। वहां स्वार्थ है। Закрыть तुम खाओ ये छोटी रोटी मैं खा लेता हूं। तुम अच्छी सब्जी खाओ मैं कम खा लेता हूं। ऐसा भाव की जमीन प प सो रहा हूं य पलंग प सो ह प सो ह अच य य प प सो ह ह प य मैं अच्छा ख ख हूं य बु बु ह ह अच अपने आप में महत महत य बु है ह ह ये अपने में महत महत महत महत महत महत नहीं नहीं।। अपने महत्व इतन इतन कि हमारा शरीर टूटे नहीं, बिख बिख नहीं ख खायेंगें नहीं तो श श श श श श श बिखायेंगा, भोजन क तो श कमजो कमजो कमजो कमजो च कमजो च च चenएग= कमजो कमजो च च चждено घुस जायेगा। इस चार दीवारी को सुरक्षित रखना, स्वस्थ रखना जरूर इसकी ईट खिसके नहीं यह यह शरीा मिल जाये तो नहीं मिलें तो ठीक, पलंग मिला तो है नहीं मिल मिल तो है।।। ऐसी जब में भ भXNUMX आती औ औ जब वह ध ध ध ध ध बनती है है तो एक क क के ब ब में सम सम की अवस अवस ज क है।। ब में सम की अवस अवस आ ज है।।।। में में सम की अवस आ ज है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। तब हम हैं तो हम हमXNUMX
ऋषि वशिष्ठ के उपनिषद् में कहा है कि ऐसा तो शिष्य पैद ही हुआ हुआ हुआ हो ही नहीं सकता, शिष्य नहीं कहल सकत क क पहले तो एक व व होत होत एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है एक एक एक एक एक ब एक हुआ उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद उपनिषद , उससे मिलता है, जुड़ता है औ आते ही उसने गु गुXNUMX दीक्षा ली है, उसके बाद में वह जिज्ञासु बनता ह। उसके मन होत होत है कि गु गु गु है नहीं है है है, एक त त वि विXNUMX । ये कभी-कभी उदास ज जाते हैं, कभी-कभी विचलित हो ज ज हैं हमें तो कहते हैं कि प प सोओ तो खुद पलंग प लेटते।।।।।।।। तो यह गुरू कैसे हो गये? ये मे मेरे सामने केले खा XNUMX थे, तो क्या यह गुरू है भी कि है।।।।।।।।।। है इनको हम गुरू मानें कि नहीं मानें? ये तर्क वितर्क पैदा होता है, तर्क वितर्क चलता XNUMX है, शिष्य नहीं वह जिज्ञासु कहलाता है।।।।।। उसको जिज्ञासा होती है ये सही है, गलत है। उस क करने क क्या फायदा हो जायेगा, भोजन क करें तो कौन सा मर जायेंगे।।। ये सब जिज Вивра होती है, जिज्ञासा वृत्ति क मतलब है कि अभी तक हममें मनुष मनुष्यत्व आया नहीं है, शिष्यत्व तो की ब ब है है।।।।।। है है है है है है है आय आय आय।। है है है है है आय आय आय आय। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है ब ब ब ब है ब ब ब ब ब ब ब है ब ब ब अभी मनुष्य वह बना नहीं, अभी जिजшить और यह संदेह, यह भ्रम आपके खून में हैं। यह तर्क विता से भ भXNUMX उन्होंने कभी इस प्रकार का चिन्तन किया ही नहीं। उनके जीवन में ऐसा कोई गुरू मिला ही नहीं, उनको कोई ऐस ऐसXNUMX तो वह भ्रम, वह संदेह, वो न्यूनता हमें देते गये। उस परिवेश, उस वातावरण ने, उस खून त तर्क वितर्क पैदा किया। इसलिये पहले मैंने कहा कि 'गुरू हमारी जाति है वह पु पुXNUMX गुरू हमारा गोत्र है, हमारी वह वंश परंपरा भी नहीर र र Закрыть 'एकोहि वाक्यं गुरूम् स्वा
इसलिये ऋषि वशिष्ठ कहते है, कि त त वित वितXNUMX दोनों में अंतर है। जो करे गुरू वैसा आप करेंगे तब गड़बड हो जायेंगे। गुरू किसी किस ढंग से ब बXNUMX क क किसी प प प प प से ब ब क क क क क किसी ड ड ड किसी प प बैठेंगे किसी प प नहीं बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे बैठेंगे कृष्ण गोपियों प पास बैठते थे तो हमारा भ्रम, तर्क-विता कहत कहत है तो बिल्कुल कृष्ण है नहीं।।।।।।।।। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं ये तो बहुरूपिया है।
Закрыть वही व्यक्ति जब गीता का उपदेश देते है तो महान विद्वान कहलाते है।।।।। वही दु выполнительный कृष्ण समझाते रहे कि तुम मुर्खता कर रहे हो। मैं हूं तुम्हारा ईश्वर। मैं तुम्हारा गुरू हूं। तुम मुझे सारथी समझ रहे हो, तुम मुझे मित्र समझ ॰ हो मै तुम्हारा मित्र नहीं हूं, सारथी नहीं हूं, मैं सम सम्पूा तो ये कोई घमण्ड नहीं कर रहा था। कृष्ण जब गीत में में बत बत थे कि तुम यों नहीं समझो तो समझो कि इतने सैंकड़ों पेड़ हैं, उनमें पीपल क क पेड़ हूं क क वह पवित पवित मुझे पीपल क पेड़ हूं। क क पवित है मुझे क क समझो।। क क क पीपल पीपल समझो।।।।।।।।।।।। समझो समझो हजारों नदियां हैं तो यों समझो कि मैं गंगा नदी हंथं तुम त तरीके से समझन समझना चाहो समझ लो, समझ तो ये भ्रम तुम्हारा मिट जाएगा। जब भ्रम मिट जाएगा तो मुझमें तुम एकाकार हो जाओगे।
इसीलिये मैं क करता हूं वह मत देखो देखो, उसका अनुसरण तुम क करो। जो मैं कहूं उसका तुम अनुसरण करो, मैं तुम्हें कहूं युद्ध के तैय तैय तैय तैय हो जा, खड़ा हो ज ज उस समय खड़ हो जा।। खड़ हो ज ज उस खड़ खड़ हो ज ज ज। ज समय समय खड़ कोई जरूरी नहीं है कि तीर फेंको। तुम केवल मेरी आज्ञा पालन करो। तुम मेरा अनुसरण मत करो, जो मैं करता हूं, उसी ढरस। उसी ढस।। इसलिये जब स स्थिति आ जाती है उन उन्होंने कहा और हमने किया वही शिष्यत्व है।।।।।।।।।। उस समय क क्षण भी विलम्ब होता है समझन समझनXNUMX
गु выполнительный गुरू कोई ऐसा आदेश नहीं दे अपने स स्व के लिए हो हो हो गु गु गु कोई कोई ऐस आदेश न दे जो अपने प प के हो।।।।।।। हो हो हो हो लिये के जो जो अपने के के के के शिष्य सोचे समय गु गु को क्या जरूरत है औ इसलिये तीस पंक पंक्य वशिष वशिष ने कह कि सैंकड़ों मील हज पंक में में वशिष यदि गु गु गु के होत औ औ औ होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत भी भी भी भी औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के के जब दूर बैठा हुआ व्यक्ति उदास है तो एकदम उद उद छ छाती है कि कि अच अच्छा नहीं लगत घ में हुये भी तब एहस एहस एहस एहस घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ।।।।।।।।। सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब पति बैठे हैं, पत्नी बैठी है, बल्कि खेल XNUMX हैं, मिठाई आ ही है औ औ फि फि उद छ छ छ हुई औ जब उद उद छ छ स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च च जरूर कोई तनाव है उनको, जरूर कोई परेशानी है।
इसलिये कहते हैं, उनको कांटा चुभे और दर्द हमें होो ऐसा शिष्य हुआ क्य| ऐसे कैसे कि गु गु дети बीम बीमार बुखार से तड़पत गु औXNUMX तुम बीम बीम बुखXNUMX क्योंकि अलग तो हो ही नहीं सकते। एक ही जाति, एक गोत गोत Вивра, एक प्राण, एक चेतन चेतना, एक ही धड़कन।।।।।।।।।। ऐसा तो हो नहीं सकत सकता, पैर में कांटा चुभे औ तकलीफ नहीं हो कांटा यहां चुभेगा तो यहां तकलीफ होगी ही होगी। हृदय में होगी होगी, वेदना होगी, इसलिये गुरू औा शिष्य क एक ही श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श दो दो श श श एक एक एक मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल मिल जो जो जो जो जो जो जो जो जो उन है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है उन उन उन है है हैं हैं
चौथी पंक्ति में कहा गया है कि जब जिज्ञासु वृत्ति समाप्त हो ज ज है त तर्क-वित सम सम हो हैं संदेह भ भ बनत बनत बनतvlinत= वित बनतvlinत® हो बनतvlinपчей होчей भ बनतvlinपчей समчей भ बनतvels हो बनतvlinप= वितvlinप वितvlम वितvlinप वितvlinप वितvlम वितvlinप वितvlinप वितvlinप वितvlम वितvlinप वितvlinप वितvlम वित बनतvlinप वितvlinप वित बनतvles पर भी हो तब भी हर क्षण मेरे पास मे हैं। चलता हूं, उठता हूं, बैठता हूं, बात कXNUMX मैं खाता हूं तो वही खाना खिला रहे हैं, खा रहे हैं। वह ही पास में बैठे हैं। उनको तकलीफ है तो पहले मुझे तकलीफ है। उनको आंच ही ही है मैं मैं जल रहा हूं, धूप खड़े हैं तो मे मे सि द द धूप में खड़े तो मे मे मे मे सि सि द द ह में हैं तो मे मे मे मे मे श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श श फैलेग फैलेग फैलेग्योंकि। फैलेग्योंकि। श्योंकि। श फैलेग फैलेग्योंकि फैलेग फैलेग्योंकि फैलेग फैलेग फैलेग्योंकि फैलेग फैलेग फैलेग्योंकि फैलेग फैलेग फैलेग फैलेग फैलेगven वो शरीर जल्दी समाप्त हो जायेगा, तो ज्ञान वहां समाप्त हो जायेगा।।।
इसलिये वह ज्ञान और ज्यादा फैले इसलिये उसकी श श श की कравило अगर वह तनाव में रहेगा तो कुछ कर नहीं पायेगा, लिख नहीं पायेगा, कुछ जшить इसलिये उसके मसратьсявший वह मिलक मिलक के फि जब नई स स स बनती है तब अपने आप चौथी अवस अवस नई स स है तब अपने आप चौथी अवस अवस अवस अवस नई नई पू आप आप चौथी चौथी अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस अवस ज ज ज ज ज पू पू ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज में में में में मेंpen ज ज में में में में chy औ ज ज में आ chy औ में, कबीर ने कहा है कि- फूटा कुंभ जल, जल ही समाना यह कह कहा ग्यानी।।।
एक घड़े में पानी है, एक में में भी पानी है औ नदी अंद अंद वह वह घड़ घड़ है। इस संसार में हैं हैं, एक गु गु के हृदय में आप हैं मग उस प औ औ इस प में अन अन हैं मग उस प प औ औ इस प प अन अनшить है, क्योंकि वह के अन अन्द बन है है है अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन अन्त्तर है क क क क बन है o वह पड़ा-पड़ा पानी सड़ जायेगा। आज नहीं सड़ेगा घड़े का पानी तो पांच दिन ब बाद में कीटाणु पड़ जायेंगे। ज्योहि वह घड़ा फूटा जल-जल ही समाना, वह उस जल में मिल जाएगा। जो आपके ऊप संदेह क क आवा आव जो घड़ घड़ है जो जल मिल नहीं नहीं मिलाने की हिम हिम नहीं क प जल मिल नहीं मिलाने की हिम हिम नहीं क प पXNUMX है है मिल नहीं प हिम हिम क घड़ प प जब फूटेग तभी एक एक हो हो प प प प।। घड़ घड़ घड़ जब फूटेग तभी एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक एक तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी तभी है है मिल मिल आव आव आव क क क आपका जब मोह, जब म माया, जब आपका भшить, जब आपक संदेह जब जब आपक आपक अप अप फूटेग्знес जब सम सम सम जब आपक आपक आपक आपकXNUMX चेतना है।
यह जшить जब हम हमXNUMX फिर शरीर से बदबू नहीं आती इस शरीर से दुर्गन्धीहे नहे फिर कृष्ण के श выполнительный अपने काम में लगा रहता है। एक अजीब खुम खुमारी है औ वो वो खुमारी तभी आ प प प जब उसके अन अनtra अन एक क्रिया बनेगी, जब अन अन्दर एक ज्योति प्रकाशित होगी।।।। अपने आप में गुरू के जागरण की स्थिति बनेगी। अपने आप में चेतन| शिष्य आगे बढ़कर गुरू के साथ एकाकार हो जाता है। दीक्षा देते ही नहीं हो जाता। चौथी अवस्था में जा करके गुरूत्वमय बनता है। वशिष्ठ कह रहे हैं प प्रत्येक व्यक्ति को चिन चिन्तन करना चाहिये कि मैं कहां पर खड़ा हूँ।।।।।।। पहली कратьсясть उम्र का इसमें कोई बन्धन है नहीं। पांच साल प प्रहलाद को ज्ञान हो गया औाद स ज्ञान गय गया और साठ साल के हिरण्यकश्यप को ज्ञान हुआ नहीं थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ अस्सी साल के कंस को भी ज्ञान नहीं हुआ था। तो वो चेतना तब व्याप्त होती है है, जब कोई लकड़ी किसी चन्दन से घिसती है है घिसने प वही लकड़ी जो खै की से है उसमें भी सुगन व व सूखी हो की होती है उसमें
जब आप गुरू के श выполнительный जब सुगन्ध वшить फिर काम करते हुए थकेंगे नहीं आप। फिा आप यह लगेग कि कि मेरा शरीररзнес, मेरा समय नष्ट हो ह मे है औ और क्या क क क कैसे क कैसे कैसे बढ़ उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको उसको ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ल ल ज उसको उसको नष लगेग लगेग लगेग कि कि ह कि ह ह ह ह ह मे लगेग लगेग लगेग लगेग
शिष्य को सोचन सोचना है कैसे गु गुरू का विश्वास पात्र बन सकूं।। मेरे ऊपर वे निश्चित हो सकें औXNUMX यह क्रिया आसान भी है। आसान इसलिये कि जिस क्षण आप पहला पांव आगे बढ़ा देंगे, तो दूसरा पांव स्वतः बढ़ जाएगा। दूसरा, तीसरा, आठवां, दसवां और एक दिन मंजिल तक पहुँच जायेंगे।। मगर समय कम है उसमें बीस साल का गैप, पच्चीस साल का गैप, पन जितना जल्दी उस मंजिल प प पXNUMX लेंगे लेंगे वही हम हम हम जीवन की गति होगी होगी, सुगति होगी, उन्नति होगी शшить
हमारी केवल ईश्वर पर आश्रित होने की आदत पड़ गई हैे यह बहुत बड़ी बात कही है उपनिषद् ने। बाकी सब शास्त्रें ने ईश्वर के अस्तित्व को मा।ह ह इस उपनिषद्कार ने कहा कि हम स्वयं ब्रह्म हैं फि फिर विधाता कौन है है है है है? हम स्वयं विधाता हैं। इसलिए ब्ा की प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प बinंच थ थ प प प स के भी भीчей पू थ ण ण вместе जो गुरू के ह XNUMX सकत है औरू के हृदय में प्रवेश कर सकता है वह ब्रह्म है। यह श्लोक ने परिभाषा दी है। जो गुरू के समीप रहता है शारीरिक रूप से य आत्मिक XNUMX है श ब बшить गुरू को आप प स्नेह रहे, वह हेग रहेगा जब आपका कार्नेह होग होग आप नजदीक, आप आत आत्मीय होंगे।।।।।। होंगे आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे होंगे आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत आत उनके आत आत उनके उनके आत आत होंगे आप आत आत आत आत आत आत आप उनके आत आत आपक प होंगे इतने नजदीक कि आप उपनिषद् बन जायेंगे। आप उनके हृदय में उतर जायेंगे तब आप ब्रह्म बन थाएग
Закрыть ब्रह्मचारी रहने को ब्रह्म नहीं कहा, शास्त्र ब ब्रह्म नहीं कहा, शास्त्र पढ़ने व व व को ब बраться विश्वामित्र सैकड़ों वर्षों तक बшить अपने अहंक अहंक की से से, घमंड वजह वजह से, अलग ध धXNUMX की से ब ब वजह से से अलग ध ध ध ध कहल प औ बहुत ब ब में जब गु गु हृदय में उत सके ब ब ब ऋषि कहल गु गु के में उत सके ब ब ब ऋषि कहल गु गु के में उत सके ब ब ब ब ऋषि।। के
इसका तात्पा कौन है। हजारों लाखों शिष्यों के नाम होठों प नहीं खुदते औ होठों प नXNUMX समर्पण की आवश्यकता होती है और प्राणों प प्राण जुड़ने जब क क्रिय| जिसके बिना संसार सूना-सा लगे उसके हृदय में उतरा जा सकता है।।।।
हृदय में उतरने के आपकी प परसनैलिटी, आपकी सुन्दरता, आपकी मह मह मह आपकी विद विद्वता, आपके जшить वे अपने आप गौण हैं।।।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं गौण गौण गौण गौण गौण गौण गौण गौण हैं हैं हैं हैं हैं हैं गौण गौण गौण गौण गौण हैं गौण गौण हैं हैं हैं गौण गौण गौण गौण गौण इसलिये शлать उसमें सब कुछ आपके हाथ में सौंप दिया कि आप स्वंय ब्रह्मा हैं, आप स्वयं भाग्य निर्माता हैं, आप स्वयं दुर्भाग्य के निर्माता हैं, आप स्वयं उपनिषद्कार हैं आप स्वयं गुरू के हृदय में उतरने की क्षमता रखते हैं, सारी बागडोर आपके हाथ में सौंप दी उस उपनिषदшить ने औ औ मैं समझत हूं कि कि 108 उपनिषद्कारों में इसने बिल बिल्कुल यात् चिंतन किया है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
यह श्लोक सोने के अक्षरों में लिखने के योग्य है। इसलिये कि पहली बार एहसास हुआ कि हम सामान्य मनुष्य नहीं हैं हम हम स्वयं नियंता हैं, निमार्णका हैं।।।।।।।।। मैं बहुत हूं औ मैं स स्वयं का निमार्ण करने वाला हूं स्वयं का निमXNUMX निम क व व औ औ्वयं क स स सXNUMX पैदा होते समय व्यक्ति महापुरूष नहीं होता। एक भी महापुरूष नहीं हुआ। आगे जाकर के महापुरूष बने। शुरू में राम अपने आप में महापुरूष थे नहीं। न कृष्ण महापुरूष थे, न बुद्ध महापुरूष थे। राजा के पुत्र थे वे सब। शुरू में सामान्य बालक थे, वैसे ही दौड़ते, घूमते थे, खेलते थे।।।।। वैसे ही थे जैसे हम और आप हैं। बाद में जाका
जब यह भाव आपके में हेग ा तो यह भाव भी रहेगा कोई क काम छोटा या बड़ा नहीं होता। यह भाव हो कि तो अपन अपन खुद क कXNUMX जब उता हूं तो यह उनक उनकXNUMX पत्नी शादी करने के बाद निश्चित हो ज ज है यह पति क काद निश्चित हो ज है कि यह क क क क क क क क क गहने पहन पहन य कि झोपड़ी में खे महल खे खे गहने पहन पहन य नहीं म म खे प खे खे क पहन पहन य य, म य प खे खे क क क।। य नहीं म म य य प पin वह अपना हाथ उसके हाथ में सौप देती है।
इसलिये कबीर ने कहा है कि मैं राम की बहुरिया हूं। सूर ने कहा है मैं कृष कृष्ण प प्रयेसी हूँ, इसीलिये जायसी ने कह कह कि मैं तो अ अ अ में न न हूं, ईश्वर की चे हूं, द हूं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। न न। ये पु पु पु जिन जिन्होंने ये बातें औ औ औ कही कि इन्होंने अपने ईश ईश ईश ईश ईश ईश में दिय दिय है औ आप ईश ईश हैं के सौंप दिय इस जीवन क सब भ तुम हैं अब सौंप सौंप इस इस क सब भ तुम ह ह सौंप सौंप में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में में क क क क क है जीत तुम्हारे हाथों में और हार तुम्हारे हाथोम मगर जीवन यह भ भXNUMX बोलने से आप अपने आप में ही रहेंगे। करने की क्रिया से आप उनके हृदय में उतर सकेंगे। अंतर यहीं पर आता है। जब आप आपने पू पूर्ण XNUMX
पूर्ण XNUMX सम समर्पित करने का मतलब है आप अपन असा अस्तित्व खो दें दें भूल ज ज मैं क क्या हूं आप कुछ प प प प प प प प प प प प प प प प प प प सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब सब प प प प औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ अपन o मैं शिष्यों के पास बैठता हूँ तो घण घण्टा खोता हूं, मगर यह नहीं खोता, तो आपका प्यार, आपका समर्पण नहीं पाता।
हम द्वन्द्व में जीते हैं औा चाहे गृहस्थ है या संन्यासी है, पूरा जीवन द्वन्द्व में बिताते हैं।।।।।। जीवन के अस्सी साल की उम्र में सोचते क क्या करें, क्या नहीं करें।।।।। प्रतिक्षण आपके मन त तर्क-वितर्क चलता ही ा है औ आप नि निर्णय नहीं काते।।।।।। लोग जह| ऐसे व्यक्ति साधा возможности औ выполнительный
एक राजा पहली बार हाथी पर बैठा, सीढ़ी लगा करके। बैठने के ब ब उसने कह मुझे लग लग दीजिये जिससे कि मैं इसे चल चल चल जैसे की लग लग लग होती, ऊंट की है।। उसे कहा गया कि हाथी की लगाम नहीं होती। वह एकदम नीचे उत उता, उसने कहा कि मैं इसकी सव सव नहीं क करूंगा जिसकी लगाम नहीं होती।।।।।।।।।।।। होती होती मैं यह सवारी नहीं कर सकता, यह सवारी मेरे काम की नह वह जीवन क काम का नहीं जिसकी लग लगाम आपके हाथ में नहीं।। आपक अXNUMX वह जीन जीना बेकार है जो ह हाथ में है है, वह स स है है ह गु में है है है वह जीवन स स स है जिसमें गु गु स स स स स स स स प प Витым है गु गु से स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स हो हो अप स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स chy सन स स chy सन अप, यदि आपको ग गाली दे तो कोई उसे सुने य य नहीं सुने सुने, गुरू उसे सुने य नहीं सुने मग वातावाव में वह ब तै तै है औ आपको के ध ध प प उत देती। औ आपको के ध ध ध प उत देती है। आपको नीचे के ध ध प प उत उत देती देती आपको आपको के ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध आप जब ऐसी कोई ब बXNUMX क क हैं, निन्दा करते हैं यात क देते तो निन्दा क हैं य या ग ग हैं तो आप में एक सीढ़ी उत उताते हैं।।।। जब भी चिंतन क क हैं कि आप उन मुट्ठी भ भ से एक बनेंगे बनेंगे बनूंग बनूंग तो मुट्ठी भ लोगों से एक बनेंगे बनेंगे बनूंग बनूंग तो मुट्ठी भ लोगों से एक बनेंगे बनेंगे बनूंग बनूंग बनूंग मुट बनूंग बनूंग वी वी o विक्रमादित्य भौतिक दृष्टी से एक पूXNUMX मगर गधे की तरह काम करेंगे तो राजा की तरह जी पाथएंग शेक्सपीयर ने कहा कि दिन में गधे त तरह जीना चाहिये औा श्वेताश्वेता सिक्के को दो भ भXNUMX सिक्के दो भाग अलग-अलग होते नहीं। एक ही सिक्के के दो भाग होते हैं।
इसी तरह एक प प प के दो भाग होते हैं एक को गु गु कहते हैं, एक शिष शिष्य कहते हैं।।।।।।।।।।।। दोनों को मिलाकर एक पूरा सिक्का बनता है औ औ ब बाजार में चलता है, जीवन में चलता है। जब शिष्य गुरू में मिल जाता है, पшить एकनिष्ठता का अा है नि निरन्ता मेरा मतलब यह नहीं है कि आप मेरा काम करें। मैं तो केवल श्लोक का अर्थ स्पष्ट कर रहा हूं। आप गु गु को य य नहीं देखें प प प प्तु प्रतिक्षण उनके क क नहीं संलग संलग्न हते, सचेष्ट हते हैं नि आगे बढ़ बढ़ में में फेंक फेंक फेंक फेंक फेंक फेंक जीय जीय जीय जीय जीय जीय जीय बढ़ में में में में में में में में में में में में में में में में में क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क हैं क o उनके क क हैं हैं क क क हैं क क) क्षण को। इस क्षण में मैंने सृजन सृजन किया है, व्या नहीं किय है इस क्षण को को।।। इस क्षण में कुछ रचना की है, गालीयां नहीं दी हैं। इस क्षण में क का स्मरण किया है, किसी हृदय में उतरने की क्रिया की है।।।।।।।।।।।।। क्षण आपका है, आप चाहें दो घंटे ताश में बित बित दें दें वह च च च आप चिंतन क कXNUMX
भाग्य या जीवन तो आपके हाथ में है। सामान्य मनुष्य बस जीवन जी कर बिता लेते हैं। आप जाकर देख लें सड़क पर सब सामान्य मनुष्य हैं। उनमें कुछ विशेषता है नहीं नहीं, उन्हें पता ही नहीं कि आस आस पास कौन रहता है। शिव कहां XNUMX इस पद को पшить जलाय| उस सृजन क करने के लिए व्यक्ति को अपने आप को जलाना ही पड़ता है।।।।। खून जल जाता है व वXNUMX अगर मैं कंकाल भी ज जाऊं, मांस भी ज जाये तो मांस वापस चढ़ जायेगा। मांस चढ़ाने वाले बहुत मिल जायेंगे जो मिठाई खिला देंगे, घी खिल खिलXNUMX
मगर कोई ज ज्ञान नहीं सिखा सकता, धर्म शास्त्र नहीं सिखा सकता, धर्म शास्त्र का नहीं नहीं सिखा सकता। कोई भाग्य का निर्माण करके मुझे नहीं दे सकता। मुझे महानता कोई नहीं दे सकता। वह तो मुझे खुद को पшить उसके लिए रचनात्मक चिंतन करना पड़ेगा। उसके लिए प्रेम करना पड़ेगा, किसी के हृदय उत उतरना पड़ेगा और एकनिष्ठ होना पड़ेगा। किनारे पर खड़े होकर नदी को या तालाब को प पार नहीं किया जा सकता। आप सोचेंगे गु गु जी को भी देख लेते हैं, घ घ भी देख लेते औ औ ब ब लेते हैं घ को देख लेते हैं औ औ ब ब ब क देख हैं हैं हैं औ एक स स क लेते यह यह निष निष नहीं। स स क लेते यह यह निष निष है।।। है है यह यह यह यह नहीं नहीं निष निष निष निष निष निष निष निष निष निष निष एकनिष्ठता का अर्थ है कि एकचित होकर के तीर की तरह एक लक्ष्य पर अचूक हो जाना और जो तीर की तरह चलता है वह जीवन में सर्वोच्चता प्राप्त करता है और जो सर्वोच्चता प्राप्त करता है उसे संसार देखता है और जिसको संसार देखता है उसका जीवन धन्य होता है।
आपकी पीढि़यां स सшить में बैठी होती हैं वे धन धन धन अनुभव क क हैं हैं कि हम हम कुल कोई तो पैद हुआ जो पू हैं कि हम हम कुल कोई तो पैद पैद हुआ पू पू कि हम हम विख में कोई तो पैद हुआ जो पू भ भ में में में स स स स स स स स स स स स स स स स स स स क क क क क क क क क क क क क क क क क भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू तो तो धन धन धन धन धन धन धन धन धन धन धन इनकी आवाज पर लाखों लोग नाचने लग जाते हैं, झूमने ज जाते हैं।।।। उन्हें भी लगता है कि तो है इस ब ब में में कुछ औ औ उनको प प इस ब ब में कुछ औ औ वह प प प प प प प प प प लग लग लग लग लग लग लग लग की क क क क क क क हो हो क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ब ही o की क्रिया हो और वह क्रिया भी अपने हाथ में है।
इस में कह कहा गय है कि सब कुछ आप के ह में है आप कैस जीवन जीवन जीन कुछ के ह ह में है आप कैस जीवन जीवन जीन जीन च च हैं घटिय घटियXNUMX मुस्कुराहट के साथ में, चिंतन के स| कैसा जीवन आप व्यतीत करना चाहते हैं। वह आपके हाथ में औ औ यही आपके भाग्य का निाण करने वाला तथ्य होता है।।।।।। जो श्लोक है व व Вивра व व लिखी है उस ने की होगी औ औ किसी ने की होगी।।।।।।। उसका तथ्य समझा नहीं होगा, उसका चिन्तन समझा नहीा ा ा इसलिये मैं कहत कहत कि गीतो को कृष्ण के अलावा किसी समझ समझ नहीं है।।। उनके श्लोकों को लोगो ने समझा ही नहीं। उनकी नवीन ढंग से चिन्तन व्याख्या होनी आवश्यक हहै
यह एक जीवन का मेरा लक्ष्य है, उद्देश्य है। आपका भाग्य-दुанв. आप जीवन एकनिष एकनिष्ठ बने ऐसा ही मैं आपको आशीर्वाद देता हूं। शлать इस में ऋषि ने अपने स सXNUMX जानते हुये अज अज्ञानता अपने अन्दर स्थापित करता हत है अन्दापित का हत है, पшить
ऋषि कहन कहना चाहते है कि मैं समझ समझ समझ हूँ शिष्यों को मग शिष्य प प मिनट ब ब फि फि ज्ञान की किXNUMX जो चिंतन प प्रस्तुत किया है वह दो मिनट या पांच मिनट रहेगा औ वXNUMX यह व्यक्ति का स्वभाव है और रहेगा। जो इस स्वभाव को धक्का मार कर आगे निकल जाता है वह अपने आप में ऊंचाई की ओर पहला कदम XNUMX है।।।।
ऋषि ने ब बात यह कही व व्यक्ति जानते हुए अनज अनजान बन बनXNUMX व व्यक जानते हुए अनज अनजान बन बनXNUMX अनजान इसलिये बना XNUMX है कि वह सुरक्षित है, वह कहता है मुझे इसका ज्ञान नहीं क्योंकि इससे ल ल नहीं।।।।।।।।। नहीं ल ल ल ल ल नहीं नहीं। नहीं क क क क इससे ल नहीं।।।। क क क क क इससे ल नहीं।। प выполнительный
दुनिया जैसी चीज इस संसार में है ही नहीं। Закрыть देश जैसा भी कोई शब्द नहीं है। क्योंकि देश या संसार या विश्व ये व व Вивра के समूह से हैं।।।।।। ऐसा नहीं कह सकते कि यह देश है। एक नक्शा है वह देश तो हो ही नहीं सकता। देश के लिए आवश्यक है कि लोग हो। एक निश्चित भूभाग पा आप भारत वर्ष के लोग है इसलिये भारतवर्ष है। भारत में मनुष मनुष्य रहेगा ही नहीं तो भारतवर्ष होगा ही नहीं।।।।।।।। इस श्वेताश्वेतरोपनिषद के ever जमीन पर खड़े होकर देवताओं के समान पूरे विश्व में वन वन्दनीय हो सकते हैं, जमीन पर पड़े हक कैसे म म म सकते हैं जमीन ोशन पड़े सकते। म म म म म म म म म म म म म म म म।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। म म म म म म म म म म म म म म म।।।।।।।।।।।।।
उस ऋषि व व को मैं आपके हृदय में उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत उत ह आपके हृदय क क अंधक अंधक में उत हो औ औ यदि प प बिखे बिखे बिखे प पtrainश बिख औ यदि।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। प प।। प प आपके हृदय हृदय हृदय हृदय मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय हृदय आपके आपके आपके।। मैं ऐस ऐसा आशीानाद दे XNUMX हूं आप आप एक स स स स स स स स स स स स स जिज जिज जिज जिज जिज्ञासु से आगे बढ़ क क शिष्य, शिष ज आत आत आत ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज से से से से शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष से से शिष जिज से से जिज जिज से से शिष से से से से से से से से ज आत व आप क क आपको आपको आपको आपको ऐस ऐस ऐस ऐसी स्थिति आपकी बने, मैं ऐस ही ही हृदय से आशी आशीXNUMX
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Шримали
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