इस तत्व को में उत उतारे बिना निश्चय ही वшить जीवित उत ह ह सकत सकत मग मग ठीक ही जीवित ह सकत है जैसे प प प प श वैसे ही जीवित ह सकत जैसे प प प प प प लक प प प प प प लक लक लक लक लक प प प प प प प प प लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक लक है है है है है है है है है है है है एक ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस प ऐस ऐस जिस में गु गुरू तत्व का स्थापन ही हुआ हो हो, वह तो सकत सकत सकत है प उमंग हो सकती सकती, उत उत नहीं नहीं सकत सकत सकत ऐस ऐस आत आत आत आत लह लह लहчей आत उछ लह लह लह® हम सीख नहीं सके हैं गु गुXNUMX को देख देख है है गु के च च गु स स स स स स स स स सXNUMX जप मंत हैं उनके मंत मंत मंत को जप जप जप प प प प कल कल कल कल कल कल कल कल कल कल कल हैं हैं हैं ज ज न न न न न न न न न न न को को को को को तत तत तत तत तत तत तत तत तत तत तत को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को तत मंत को को को के को को तत मंत
यह गुरू तत्व ही पXNUMX इसी को ब्रह्म तत्व भी कहते हैं। ब्रह्म और गुरू में कोई भेद नहीं है औ सकल ब Вивра गु में भेद नहीं औ औ सकल ब Вивра गु गु ब औ औ सकल सकल ударявые उस गुरू तत्व का अभिषेक हो पाना औXNUMX
अभिषेक का तात्पर्य है 'सिंचन कXNUMX प्रकृति संसार में वर्षा के माध्यम से पшить प्राणी क क क है इसी इसी पtrainक अग्नि त द्व द्वायु वvvреди व्वायुायु वvvреди व्वायु वvvредил व्यतायु वvvреди व्यता व्यत्निा व्यत्निा व्वायु शvvреди व्यता वшить व्यताप वvvреди व्यता व्यता व्यत्निा व शूनvvреди व्यत्निा व शूनшить व शूनvvредил शून chytre जब इनका संयोजन उचित से चलत चलता XNUMX है प प्रत्येक प्राणी, जीव या पौधा विकसित होता है।।।।।।।।।। केवल एक तत्व के माध्यम से अभिषेक संभव नहीं है, प्रकृति तो अपना कार्य अनवरत रूप से करती ही रहती है, लेकिन मनुष्य परमात्मा की इस क्रिया में विघ्न डालकर संतुलन बिगाड़ देता है और जब एक बार संतुलन बिगड़ने लगता है तो पूरी प्रजाति को पीड़ा भोगनी पड़ती है।
वान समय यह स स्थिति चल ही है जिसके जिसके क क नई नई बीम स्थिति चल है जिसके जिसके क क नई-नई बीम स स स स स स स स स स स बीम बीम बीम बीम बीम बीम अश अश अश अश अशenव हे हेvwor र हे потеря भчей भчей भ हेvwor र भ потеря भчей भ हेvwre से भ потеряв भшли , वह ूपी ूपी शरीर возможности की ओर ज्यादा ध्यान दे रहा है, उसे सज सज सज सज सज सज संव क्या क दे भी क क को लेकिन लेकिन लेकिन देह के के भीत महत महतшить श को के ह हшли के ह हшить श महत हшли. वह ठीक प प्रकार का ह है पत पत्तों को पानी दें दें, परन्तु जड़ शुष शुषшить हने औ आशरन क कि वृक वृक पल होग्क हने दें औ आशा करें वृक वृक वृक पल्क हने हने औ औ आश आश क कि वृक वृक होग्क होग्क। हने औ औ आश आश क वृक वृक पल्लवित होग्क होग होग्क। होग्क। होग्क पल होग्क पल होग्क पल होग्क पल होग्क पल होगшить पत औ औ औ आश दें दें क औ औ शुष होगшить
अभिषेक क| जीवन में अभिषेक क| यह क्रिया देह से ऊप उठने की क्रिया है, जिसमें मंत्र औा
साधक जीवन में रहते हुये सिद्धाश्रम के दर्शन क र सके, सद्गुरूदेव के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त ह ो सके और भौतिक जीवन व्यतीत करते हुये भी पूर्ण शि वमय रहे सके, आनन्दमय रह सके, यही जीवन की पूर्णता है, जो गुरू तत्व पूर्ण स्थापन से ही आ सकता है।
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