भौतिकता के चक्रवNयूह में उलझ क मानव का मन और मसшить में क क मानव का मन औшком मस्तिष्क अंत अंतXNUMX अपने स्वार्थ और परमार्थ दोनों की भावनाओं से व्यक्ति यह विचार नहीं कर पाता कि जीवन में उसे क्या करना चाहिये, क्या नहीं करना चाहिये, क्या उचित है, क्या अनुचित हैं, और उस समय कभी-कभी ऐसा भाव आता है, कि क्या हमारा जीवन अपने-आप
आज हर तरफ विज्ञान हावी हो रहा है, और दूसरी तरफ जो हमारे खून में ज्ञान की गरिमा है, जो ज्ञान के कण हैं, वे भी बार-बार हम पर हावी हो रहे हैं, कि हमें श्रेष्ठ व्यक्तित्व के रूप में पूर्णता को प्राप्त करना है। व्यक्ति पूर्णता की ओर अग्रसा होता है, औXNUMX वह कि हम हम अगा Как क सदियों पु वह कि कि हम उन ऋषियों की संत है है जिनको वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष chvenठ कह वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष वशिष o है कह, वशिष वशिष कह अग अग अग अग हम हमारे इन धमनियों में वशिष्ठ का खून प्रवाहित हो रहा है, जो निश्चय ही हमारे पिता के शरीर में भी प्रवाहित है, अर्थात हमारे शरीर में पचास-सौ पीढ़ी पहले का भी रक्त है, और यह रक्त निश्चय ही ऋषियों का रक्त हैं— इसलिये ज्ञानश्चेतना से अनुप्राणित है, इसलिये बार- बा возможности तकि हम एक पंछी के तरह उड़ने की कला सीख सकें। एक सम्राट हुआ बड़ा विचारशील, चिंतन-मनन का प्रेमी, सत्य का खोजी उसे खब मिली दू दू दू किसी ग सत कोई क बड़ खोजी खोजी उसे खब मिली दू दू दू किसी ग में कोई बड़ बड़ द उसे खब की दू दू दू किसी ग में कोई बड़ बड़ बड़ द द है है है है है है है, तो उसने अपना संदेशवाहक भेजा। अपने हाथों पत्र लिखा, मोहर लगायी, लिफाफा बंद कियी
संदेशवाहक पत्र लेकर दूर की यात्रा पर निकल गया। जाक выполни दार्शनिक ने पत्र को बिना देखे नीचे रख दिया और कहा, पहले तो यह सिद्ध होन जXNUMX ज है कि सम सम ने ही पत्ध भेजा है य किसी औ सम सम्राट ने पत पत पत भेज है य किसी औ सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने सम ने ने ने है कह ने औ सम ने ने कह ने ने सम पत सम ने तुम्हारे पास क्या प्रमाण है कि तुम सम्राट के संदेशवाहक हो? उस आदमी ने कहा इसके प्रमाण की कोई जरूरत है? मेरे वस्त्र देखें। मैं संदेशवाहक हूं सम्राट का। दार्शनिक ने कहा, वस्त्रों से क्या होगा? वस्त्र तो कोई भी पहन सकता है, धोखा दे सकता है। क्या सम्राट ने स्वयं ही तुम्हें अपने हाथों यह पत्र दिया है? संदेशवाहक भी थोड़ा संदिग्ध हुआ। उसने कहा, यह तो संभव है है, क्योंकि मुझमें और सम्राट में दू दूरी हैं।। प्रधान वजीर को पत्र दिया होगा सम्राट ने वजीर से प्रधान अधिकारी के पास आया फिर मुझे मिला। सीधा तो मुझे नहीं मिला है। वह दार्शनिक ने कहा, जिसे तुमने न देखा, जिसने तुम्हें न दिय दिय तुम उसके सम सम सम सम कैसे अधिक अधिक पू पू संदेश दिय तुम कि वह वह दियें है?
इतनी चर्चा होते-होते तो संदेशवाहक भी संदिग्गध हगो पत्र की तो जैसे बात ही भूल गया। दोनो निकल पड़े जब तक यह प्रमाणित न हो ज ज कि सम्राट है तब तब पत पत Вивра को की ज जरूरत भी क्या है? दोनों खोजने लगे। अनेक लोगों से पूछा रास्ते पर एक सिपाही मिला पूछा तुम कौन हो हो हो हो? उसने कहा मैं सम्राट का सैनिक हूं। क्या मेरे वस्त्रें को देख कर तुम नहीं पहचानते? उस दार्शनिक ने कह| वस्त्रें से क्या होता है? तुमने सम्राट को अपनी आंखों से देखा है?
वह सैनिक भी थोड़ा डगमगाया उसने कहा नहीं मैने तो नहीं देख देख लेकिन मे मेXNUMX सेन ने देख देख है।।।।।।।। उस दार्शनिक ने पूछाकि तुमने सेनापति को अपनी आंख से देखा है? उसने कहा यह भी खूब! मैने सेनापति को तो नहीं देखXNUMX मैं एक छोटा सैनिक हूं। उतनी पहुंच मेरी नहीं। महल के दरवाजे मेरे लिये बंद हैं। दोनों खिलखिला कर हंसे-संदेशवाहक और दार्शनिक। और कहा तुम भी हमारे साथ सम्मिलित हो जाओ। जब तक यह सिद्ध न हो जाये कि सम्राट है, तब यह सब झूठ क काल फैला हुआ है।।।।।।।।।।
यह कभी सिद्ध न सक सका, क्योंकि जो भी मिल मिलXNUMX बनो और मैं तुम्हें राज्य का महागुरू बना देनहा ।ाह लेकिन वह पन्ना तो पढ़ा ही नहीं गया। किसी से पूछने की जरूरत न थी। सीधा सम्राट का निमंत्रण था महल के द Вивра खुले थे थे, स्वागत था।
जिनके मन में सन्देह है, बुद्ध के वचन लिये संदेश संदेश्वाहक की तरह हैं।।।।। ये वचन पत पत्र बंद ही ह रह जायेगा तुम उसे ही नहीं क क पहले तो यह सिद सिद्ध होना च कि बुद chvenध बुद तो यह सिद्ध होन होन यह कि बुद बुद्ध बुद को उपलब उपलब हुये औ यह यह सिद सिद होन्ध क असंभव उपलब उपलब हुये औ यह सिदin कौन सिद्ध करेंगा? कैसे यह सिद्ध होगा? शब्द बंद पड़े रह जाते है। कितना कहा जाता है। लेकिन तुमने उसे सुना नहीं। कितन शबXNUMX तुम सूरज को उगता देख क आंख बंद क लेते हो औ औ पूछते हो, सूरज कहां है?
ोज ोज बोलता XNUMX वही ब बXNUMX ब ब पшить प में बोलत बोलत बोलत हत हूं हूं आक आक बैठो सुनो से कुछ लोग थे कुछ क क तुम अपने मन के पन पन को ही तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो उड़ तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो ही उड़ तो तुम उड़ ही ही उड़ उड़ ही ही ही ही ही ही को को को को को को को को को एक बार एक पक्षी वातायन पर आकर बैठ गया। उसने गीत गुनगुनाया और उड़ गया। मैं उस पक्षी को देखता रहा गया- बैठते, फड़फड़ते, गीत गाते, उड़ जाते।।। मैं इतना ही कहता हूं कि संसार तुम्हारा वातायन ह। उस पर तुम बैठे हो उस पर तुम घर मत बना लो। वहां तुम थोड़ी देर विश्राम कर लो, लेकिन वह मंज।नल नलल बैठ क कहीं पंखों का फड़फड़ाना मत भूल जाना, नहीं खुल आक| तुम यो भूल ज जाना कि तुम उन ऋषियों की संतान हो–
जिनका हम उपयोग क करते वे विस्मरण हो जाती हैं, जिनका हम उपयोग क क क वे धीरे-धीरे निष हो ज ज हैं औ उनकी क क खो ज है है ज ज ज।।।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो है निष हो ज तुम अग कुछ दिन नहीं तो तुम तुम Вивра पै पै हो ज ज ज तुम अग अंधेшить अंधे कोठ कोठ में हो हो औ देखो न आंखों जल जल ही हो ज ही हो औ देखो तो जल जल अंधी हो ज ही हो औ देखो आंखों जल ही अंधी हो ही हो हो औ देखो तुम अगर शब्द ही न सुनों अगर तुम्हा возможности और न जाने कितने जन्म से तुम उड़े ही नहीं!
तुमने पंख नहीं फड़फड़ाये, कितना समय बीता गयXNUMX तुम द्वार को ही महल समझ कर रूक गये! पड़ाव के ूके रूके थे इस वृक्ष के नीचे, लेकिन कितन समय समय बीत तब से तुमने इसे ही घ मान लिया है! पंख खोले नहीं नहीं, आगर मेरे पास आकर भी तुमने पंख फड़फड़ाना नही सिखा तो औ औ भी नहीं प प प प।।।। नहीं नहीं नहीं प प।।।। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
भगवान बुद्ध का अंत समय आ चुक चुकXNUMX जब तक सभी संयमी होक मित्रभाव से रहोगे एक स स मिल बांटकर खाओगे औ होगे एक स स मिल ब बांटकर ख ख औ ध ध के र Как प प मिलक चलोगे तब तब तक से बड़ी विपत आने प भी चलोगे ह तक तक बड़ी बड़ी विपत आने प ह। तक बड़ी बड़ी बड़ी बड़ी आने आने आने।।।। लेकिन जिस दिन संगठित न होक होकXNUMX ठीक प प Вивра जब हम अपने मन औ औXNUMX ज ज्ञान चेतन को को एक औ शXNUMX, दीक्ञान चेतना को एक स स योग साधना, दीक्षा को म म से संगठित क का Как
नेपोलियन ने युव युव युव युव में आठ व व व तक बनने बनने कोशिश की की ह ह ब ब व उसे तक बनने की कोशिश की की की ह ह ह ब ब ब उसे ही लगी लगी कोशिश की की की की ह ह ह ह ब ब ब ह लगी लगी लगी की की ह ह हाen की ही नहीं, अन्य देशों का भी भाग्य विधाता बन गया। हमारे जीवन में साधना का मार похоже हो ये भौतिकत भौतिकत असफलता मिलने पXNUMX म प प प प पXNUMX
ईसा सुबह भ्रमण के लिये ज जXNUMX हे थे उनके स स उनके शिष शिष्य भी थे, हर तरफ प्राकृतिक सौंदर्य की छट छ हुयी थी।।।।।। थी थी थी थी। सुबह सूरज की किरणों का साथ पाकर घास प प ओस की बूंदें मोतियों की त त चमक ही थी बगीचे लिली के फूल खिल हे हे पक पक की कल कल ध संगीत में मन मन थी थी मन थी मन थी थी शिष शिष थी मन थी शिष मन शिष मन थी मन थी मन मन मन शिष ध ध धхов मन मन संगीत थी ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध बगीचे में, जीवन में सुख और सौंदर्य का रहस्य क्या है? ईसा ने हुये कह कहा-हे XNUMX, इन लिली फूलों को को, ये सम्रзнес हो से ज के फूलों को को ये सम्राट सोलोमन से ज ज्यादा सुखी औ सुंद है क न न न व व व अपने व अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने अपने व व अपने व व व व व अपने अपने व अपने व व अपने सुगंध अपने सुगंध अपने है अपने अपने है है है सुगंध है है है है है चिंत है है है है है चिंत चिंत चिंत चिंत है चिंत चिंत है है चिंत चिंत चिंत चिंत चिंत है चिंत चिंत चिंत है है चिंत औ है है औ औ है है सुंद औ है औ सम क क जो फूलों की त तXNUMX औ औ भविष्य की चिंत चिंत बिन जीवन जीत जीत है है जो भविष व व व व में सत सत की सुगंध बिखे बिखे बिखे वह स स स स स स स स ही ही के के सुख औ सौंद सौंद। है है ही ही के के सुख सुख सुख
लेकिन तुम हमेशा भविष्य की चिंता में लगे XNUMX हो औ औXNUMX को चिंत चिंत क क क होते हो जब तुम अपने व व को को ठीक से जियोगे जियोगे तो तुम तुम Как अपने फूल जियोगे जियोगे जैस जैस जैस जैस खिल खिल जैस खिल जैस खिल जैस खिल फूल जैस खिल फूल फूल जैस जैस जैस फूल फूल फूल फूल फूल फूल जैस जैस फूल फूल फूल फूल फूल जिसमें से सुगंध हमेशाप्रवाहित होती रहेगी। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाओगे, तो तुमшить जीवन में जो कुछ पूर्णता होनी चाहिये, वह तुम्हें प्राप्त ही नहीं होगी, तुम्हें जीवन में जो कुछ प्राप्त करना चाहिये, वह नहीं कर पाओगे, क्योंकि बाहरी सभ्यता तुम्हारे ऊपर बहुत अधिक प्रतिकुल दबाव डाल देती है, क्योंकि तुम हमेशा जल्दी में रहते हो, कोई भी क क तुम धै धैXNUMX से क क ही नहीं नहीं, मैं भी तुम्हें बुलाता हूं, तुम तो हो हो प गु गु जल जल दीक दीक दे ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको ूको है है अ अ है है अ है है अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ है अ अ अ अ अ अ अ गु गु अ अ गु गु अ है अ गु गु है दो दो आते नहीं, प भी तुम तुम धै तुम धै तुम तुम तुम तुम धै धै तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम, यह य|
जब तक अपने आपको नहीं ज ज11 मैं तुम्हें वहीं सिखाना चाहता हूं, मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम्हारें अन्द भी वशिष्ठ विश विश Вивра, गौतम ऋषि मुनियों क क क वशिष сравило जो तुम Вивра नसों में बह रहा है, तुम उसे जब नहीं पहच प प प तबतक अपने जीवन योग योग ध ध ध स स स म म भी भी भी एक भी भी एक एक भी प भी प एक प एक एक प एक प प प प प प प प है है एक एक एक प प है प है प प प है प प हो हो प हो हो प प प प प प प प प प XNUMX माला ही तो करनी है, एक घन्टे ही तो बैठना हैै याद रखना की तुम मंत मंत्र को, उस साधना को, अपने गु मंत ह ह ह शब शब को को अपने भीत भीत हृदय में उत की क प प प प प प प ghroving तो प प प ghroving प प प ghrot ध्यान में उतरने की क्रिया करनी पड़ेगी, तभी तुम आप को पहच पहचान पाओगे।।
यही तो उदшить है मेरा, यही तो हमारे ऋषि-मुनियों क संदेश है है कि तुम सकते हो मुक्त आकाश में। तुम मुक्त गगनके पक्षी हो। तुम वшить व ही चिंत लिये बैठो हो, डरे हुये हो, तुम ही गये हो कि तुम तुम्हारे पास पंख है। तुम पैरों से चल रहे हो। तुम आकाश में सकते थे थे, लेकिन फड़फड फड़फडाना भूल हो हो, गुरू की चेतन शक शकшить, ध्यान, योग, साधना फड़फड़ाहट पैद क क है है पंखों जो उड़ सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते उड़ सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते सकते उड़ सकते सकते जो आत्मविश्वास और पूरी श्रद्धा के साथ साधना करने की आवश्यकता है।।।।।।।।।। है है है है मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूं, अपने प्रवचनों के माध्यम से, पत्रिका के म्enध से, शक्तिपात दीक्षा क कinwer संतों ने, कबीर ने, नानक ने शब्द का उपयोग किया हसै, ँरै सुरति का अर्थ है, स्मरण आ जाये। जो भूला है, उसका ख्याल आ जाये। तुमने कुछ खोया नहीं है, तुम सिर्फ भूले हो। खो तो तुम सकते भी नहीं। पक्षी भूल सकता है कि उसके पास पंख है, खो कैसे स।ा? कितने ही जन्मों तक तुम उडे़ तो भी अग उड़ने उड़ने का स्मा आ ज ज तो उड़ सकते हो।।।।।।।।। हो हो हो
Закрыть वे कहते थे, ऐसा हुआ कि एक सिंहनी एक पहाड़ी से छलांग लगा ही थी थी एक पह पह से छल छल लग लग लग थी थी ग गXNUMX वह तो छलांग कर चली गयी। बच्चा नीचे से गुजरती हुई भेड़ों की भीड़ में गि गया, फिर भेड़ों उसक उसक प प में गि गि गय गय फि फि भेड़ों उसक उसक उसक उसक प वह वह क का बच्चा थ लेकिन य य कौन दिल दिल वह सिंह क क बच्चा थ लेकिन य कौन दिल दिल दिल वह सिंह क क बच्चा थ य य कौन दिल दिल दिल दिल सिंह क क बचin थ लेकिन य कौन दिल दिल दिल दिल सिंह क क बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच बच कौन दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल दिल कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन कौन उसे पहचान कौन कराये? सुरति कैसे मिले? वह भेड़ों के साथ ही बड़ हुआ औ औ उसने समझ समझ कि भी भेड़ हूं हूं यही स स Вивра भी है।।।।।।।।।।।। है
तुम जिनके बड़े होते हो, वही तुम अपने आपको समझ लेते हो।। क्योंकि तुम ज जाते हो की तुम हो औ औ औ भूल उस के बच बच बच बच की थी।।।।।। शेर का बच्चा तुमसे ज्यादा बुद्धिमान तो नहीं था! उसने समझा कि मैं भेड़ हूं। वह भेड़ों बीच ही चलता, भेड़ों जैसा ही भयभीत होता, घास-पात खाता।
एक दिन ने देख देख भेड़ों की कत कतXNUMX गुज गुज Как इनके बीच में एक बड़ा हैरान हुआ। यह असंभव घटना घट रही थी। न तो भेड़ उससे घबड़ा रही है, न वह भेड़ों क। खा रहा न वह भेड़ों ठीक भेड़ो भीड़ में घसर-पसर-जैसे और सब भेड़ें चली ज ज हैं हैं, ऐसे ही वह चल ह Как ह है।।।।।।।। वह सिंह इस भेड़ों की भीड़ में आया। भेड़ों में भाग चीख-पुकार मच गयी। वह सिंह क| क्योंकि भाषा भी तो उनसे सीखते हो हो, जिनके प प प होते हो।।। भाषा कोई जन्म साथ लेकर तो पैदा नहीं होता। भाषा भी सीखी जाती है। वह भी संस्कार है। तुम हिन्दी बोलते हो, मराठी बोलते हो, अंग्रेजी बोलते हो, तुम सीख लेते हो जो तुम्हा возможности पैदा तो तुम खाली स्लेट की तरह होते हो।
उसने भेड़ों की भाषा ही जानी थी, वही सुनी थी, वस॥ तत वह भी मिमि-याने लगा, रोने लगा, भागने लगा। यह नय| पकड़ा तो वह गिड़गिड़ाने लगा, छूटने की आज्ञा चाहहह घबड़ा गया, जैसे मौत सामने खड़ी हो गयी है। अब सिंह ने उस भेड़ सिंह से बहुत कहा कि नासमझ! तु भेड़ नहीं है! लेकिन वह कैसे माने? इसमें उसको कुछ जालसाजी दिखायी पड़ी। यह सिंह कुछ ऐसी बात समझा रहा है, जो सच हो नहीं थकतत उसके जीवन भर के अनुभव के विपरीत है।
जब तुमसे कोई कहता है, तुम श श श नहीं हो, क्या तुम्हें विश्वास आता है? जब मैं तुमसे कहता हूं की तुम आत्मा हो तो क्या तुम्हें भरोसा होता है? अगर उस भेड़ सिंह को भी भरोसा न आया तो आश्चर्य ।ो नो लेकिन यह दूसरा सिंह भी जिद्दी था। मैं भी बड़| तुम कितन| क्योंकि यह तो नित्य शाश्वत सनातन संबंध है। उस सिंह भी उसे घसीटते हुये एक स स स के किन किन किन छोड़ वह कितन ही ोय ोय चिलшить, आंख से आंसू झ लगे लगे वह सिंह उसे घसीटत ही ले गय इच इच इच विप सिंह उसे घसीटत घसीटत घसीटत ले गय इच इच इच विप विप उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे उसे। उसे उसे
बहुत बार गुरू शिष्य को उसकी इच्छा के विपरीत दा के निकट ले ज जाता है। शायद बहुत बार नहीं, हर बार क्योंकि शिष्य तोदर्पण के निकट जाने से डXNUMX जो भी उसने समझा-बुझा है, वह व्यर्थ हो जायेगा। जो भी उसकी धारणाये है, टूटेगी, खंडित होगी। सारे जीवन की प्रतिमा बिखर जायेगी। दर्पण के सामने आने से सभी डरते है। अपना चेहरा देखने से सभी डरते है। क्योंकि तुम सब कुछ औ औरे बना XNUMX है, जो तुम्हारे नहीं हैं।।।।। तो वह सिंह भी डर रहा था। लेकिन गुरू माना नहीं। गुरू सिंह उसे खींचा और सरोवर के किनारे ले जा कर खड़ा किया और कहा कि न ना-समझ! मेरे और तेरे चेहरे पानी में देख, कोई फर्क है? जो मैं हूं, वही तु है। ''तत्त्वमसि'' यही मैं कहा रहा हूं कि जो मैं हूं , वह॥ यही उपनिषद हे हे हैं जो मैं हूं वही तुम हो हो, जरा भी भेद है।।।। डरते-डरते उस सिंह ने देखा, लगा जैसे कोई सपना देखत क्योंकि हम उसी का यथXNUMX कहते कहते हैं, जिसको हमने बहुत बार पुना पुन किया है। नया तो सपना ही मालूम पड़ता है। भरोसा न आया, आंख मीड़ी होगी, पुनः देखा होगा। जीवन भा अनुभव तो यह थ थ कि भेड़ हूं हूं, लगा होगा, यह सिंह कोई त त तो नहीं कXNUMX! कोई जादूगर तो नहीं! कोई हिप्नोटिस्ट तो नहीं है!
जब तुम गुरू के पास पहली दफा जाओगे तो तुम्हें अनेक बाen लगेग कि कोई सम्मोहित तो क कर रहा है? कोई तुम्हें धोखा तो नहीं दे रहा है? कोई तुम्हें ऐसी बात तो नहीं समझा रहा जो सच नही है? क्योंकि तुम्हारे अनुभव के प्रतिकूल है। लेकिन सिंह ने कहा की तु देख, फिXNUMX भेड़ की खल तो ऊपर थी, उसे तो हटना ही था। संस्कार तुम्हारी आत्मा तो नहीं बन सकते। तुम कुछ भी उपाय करों, तुम रहोगे तो आत्मा ही। तुम कितनी ही चेष्टा करोगे जन्मों-जन्मों तक, तो तुम श शXNUMX न हो सकोगो।।।।।।।।।। आत्मा और शरीर तो अलग-अलग है। विचार ऊपर ही ऊपर है। मन ऊपर ही है औ जिस दिन गुरू तुम्हें दिखायेगा सरोवर औ जिस दिन तुम गुरू की हूंकार सुनोगे—। उस हूंकार के साथ ही भेड़ सिंह त तरह अन ударя हूंकार उठी, सारा जंगल, पहाड़ पर्वत, हूंकार से गूउ एक क्षण में भेड़ खो गयी—वह सिंह था! वापिस उसने पानी में झांक कर देखा। मुस्कुराया होगा। सोचा कैसा खेल हुआ कैसी वंचना! कैसा अपने आप को धोखा दिया!
एक आदमी ऊंट पर चढ़कर अपने गांव जा रहा था। Канавра के वह एक ग ग में पहुंच पहुंचXNUMX पहुंच वह एक ब ब ब ब ब एक एक एक ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब ब थे वह आदमी ब ब पत पत तो तो तो पत तोэр । जो ब्याह के ब ब Вивра ब दी दी जाती हैं, वह बшить चो выполнительный रूपयों का ऊंट गया।
इस तरह संसार में तुच तुच्छ सुख मिला, थोड़ा धन गय थोड़ तो तुच्छ सुख मिला, थोड़ा धन गय थोड़ा मान मिल गय थोड़ा आद आद मिल गय गय थोड़ भोजन बढि़य मिल गय गय प आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन आनन chsuthing प आनन आनन выполни. देते हो। तुम्हारे मोह के कXNUMX थोड़े से आदर-सत्का возможности
एक संत किसी ने कह कह कि हम आपका आदरते हैं हैं, तो बोले धूल आद आदर करते हो तुम।।।।।।।।।। हमारा आदर भगवान करते हैं तुम क्या कर सकते हो? सब मिलकर भी क्या आदर कर लोगे? क्या ताकत है तुम्हारे में जो आदर करोगे? वास्तव में संतों का सम्मान भगवान करते हैं, दूसरा बेचारा क्या जाने की सम्मान क्या होता है?
आप जो साभ लाभ चाहते है, यही बास्तव में परमात्मा को प्राप्त करने की इच्छा है।।।।। है है है है इच इच इच इच o इस इच्छा को ज्ञान की इच्छा कहो या प्रेम की, सुख इच इच्छा या ईष्ट द द की भगवत प यही हम हम हम हम हम हम यही हम हम हम हम हमvenत हें हम हमvenत हें यहीvenत हें हमvenत हेंvenत हें हमvenत हें हमvenत हें हमvenत हम हम हमvenत हम यही एकvenत यही हम एकvenत हम हम एक एकvenत हम यही एक एकvenत यही यही एक एक एकvenत यही ब की एक एक, । अधूरे को लोगे लोगे, तो वहीं अटक जाओगे, यह मनुष्य श выполнение उत्तम से उत्तम है।।। अतः इसका लक्ष्य पूा को प्राप्त करना है, आनन्द को प्राप्त करना है, प выполнительный
एक चरवाहा आया और ब्राह्मण से बोल बोलXNUMX इधा तो तो दें औ और उधर का मिले ही नहीं, तो फि Как रह ह जायेगे न? ब्राह्मण न उत्तर दिया कि अर्जुन ने भी प प्enन किया थ कि अग अग स योग की प प Вивра किय थ कि अग सXNUMX को की प प प प प प प प प प प प प प ही ही क क की की है की की की क क क क क क क ही क क क क क क क क क क क क क क क क क क ही ही क ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही. क्या वह लक्ष्यभ्रष्ट हो जाता है? संसार को छोड़ दिय दियXNUMX और प выполнительный भगवान बोले- नहीं पार्थ! उसका न तो लोक में औ औ न परलोक में ही पतन होत है क क क जैसे हम क क क क है वैस वैस ही हमें प प प होत होत है क क है वैस ही प प पшить होत है।।।
दो शिष्य अपने गु выполнительный दोनों को सिगरेट पीने की आदत थी। वही एक घंटा था जब वे पी सकते थे। लेकिन वह घंटा भी मिलता था, ध्यान के लिये कि क ध्यान करो। तो सवाल था कि ध्यान करते समय सिगरेट पीना है कि ह? तो दोनों ने तय किया कि गुरू से पूछ लेना उचित है। तो पहले ने जाकर पूछा। गुरू ने कहा नहीं बिलकुल नहीं। यह बात पूछने की है? शर्म नहीं आती? नालायक कहीं के! जाओ ध्यान करो! वह तो बड़ा दुःखी होकर वापिस लौट आया। एक बैंच पर आकर बैठ गया बड़ा उदास होकर, दूसरा आया वह सिग सिगरेट पीता चला आ रहा था। पहले ने पूछा कि मामला क्या है, मुझ प प बहुत नाराज हुये गुरू जी! क्या तुम्हें सिगरेट पीने की आज्ञा दी?
उसने कहा हां मैंने पूछा तो उन्होंने कहा हां म।े स उसने कहा यह तो हद हो रही है! यह कैसा पक्षपात! तो दूसरे ने कहा मैं तुझसे पूछता हूं तूने पूछऍ कथा कथे उसने कहा मैंनेपूछा था कि मैं ध्यान करते समय सिगरेट पी सकता हूं? वे एकदम नाराज हो गये, आग बबूला हो गये कि बिलकुल नहीं। दूसरा हंसने लगा, उसने कहा वहीं भूल हो गयी। मैंने गुरू जी पूछ पूछ| उन्होंने कहा हां बिलकुल कर सकते हो! अरे कम से कम ध्यान तो कर रहे हो।
तुम कहते मैंने ब बXNUMX बार भागना चाहा और ज्यादा खिंचता चला आया तुम भाग भी सकते हो! मैंने तुम्हें बांधा नहीं है। किसी को बांधो तो वह भग सकता है। जंजीरें हों तो तोड़ सकता है। मैंने तुम्हें पूरी स्वतंत्रता दी है, तुम भागना चाहो तो तुम मालिक हो अपने।।।।।। अपने अपने अपने अपने मैं तुम्हें तुम्हारी मालकियत दे रहा हूं, तुभ भागना चाहो तो तुम मलिक हो मैं तुम तुम Вивра तुम्हारी म दे ह ह हूं सारा स्वर यही है मेरा कि तुम्हारी परम स्वतंत्रत
तुम कहते हो मुझ अपात्र को आपने स्वीकार किया! कोई भी अपात्र नहीं, आनन्द कि выполнительный लेकिन इस समाज तुम तुम्हें यह समझ समझXNUMX मैं तो सिर्फ तुम्हें एक ही बात का स ударя तत्त्वमसि कि तुम हंस हो, मेरे राज हंस हो। तुम अपने आप भूल चुके हो क्योंकि तुम सो रहे हो, मूर्छित हो, निद्रा में हो।।।।।।। हो जाग जाओगे ध्यान में तो अपने-आप में साधु हो जाओ।। एक सम्राट को ज्योतिषी ने कहा कि इस वर्ष जो फसल उसे उसे जो भी खायेगा, पीयेगा वह पागल हो ज ज जो भी ख पीयेगा पीयेग प प हो ज ज ज उसे जो भी तुम कुछ बचाने का उपाय कर लो। सम्राट ने कहा, तो पिछले व व व व की फसल हम बच लें लेकिन ज ने ने कह कह कह इतनी प प प प प प प लें ज ज ने कह कह कह कह वह प पшить प प प Как केवल महल हने हने वाले लोग तुम, मैं, तुम्हा возможности
सम्राट ने कहा इन थोड़े से लोगों को बचा कर क्याहऋ हऋ जब मेरा पूरा साम्राज्य ही पागल हो जायेगा तो उनके बीच हने में भी तो तुम एक क| तो तुम एक-एक व्यक्ति को जो भी तुम्हें मिले उसे का कर कहना कि तू प प नहीं है।।।।।।।। है। है है है बस इतनी कसम खा लो।
सम्राट ने ठीक कहा- अग выполнительный वह जो बेहोशी है, बाहर-बाहर है, भीतर नहीं पहुंच ॸत ऐसा हुआ सारा साम्राज्य पागल हो गया। सिर्फ ज्योतिषी बचा गया। बड़ी कठिन उसकी यात्र थी, क्योंकि पागलों को हिलाना बड़ा मुश्किल था। कितना ही उनको कहो, वे सुनते नहीं थे। कितना ही जगाओ वे नहीं थे थे, कितना ही हिलाओ, हिलते थे।।। लेकिन कुछ हिले हिले, कुछ को को य य आयी औ औ जिनको याद आया, उनको वह ज्योतिषी कहत तुम यही क करो। दूसरों को हिलाओ, क्योंकि जो अन्न है वह भीत तक नहीं ज जXNUMX वह आत्मा नहीं बन सकता। ऊपर बेहोशी तन्द्रा ही तो है,
तुम सो हो जैसे ही तुम हिलते हो जग ज जXNUMX तुम्हेंधुयें से भर दिया है। बस तुम्हारी देह प प ही वह धुयें क कXNUMX आव आव तुम अंधे अंधे अंधे अंधे नहीं हो हो तुम तुम पшить हो तुम तुम तुम अंधे अंधे हो लौ च च तुम कितनी मंदिम जलती है है है है उसके कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन च कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन कितन च च च कितन च च च च च उसके च उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके उसके च उसके उसके उसके च उसके हो उसके कितन कोई तुम्हें हिलाये, जगाये, बस तत Вивра में क्रांति घट सकती है।।।।। उसी क्षण में तुम हंस बना जाओगे, तुम स्वयं बड़द्ध ह। क्योंकि तुमшить भीत भीत एक दिय दियXNUMX है, जो सद सद से जल Как ह सद सदXNUMX है सद कितन कितन ढंक ज ज ज जैसे जैसे ब में सू सू सू फि से प हो ज ज ब। में सू सू सू फि प हो हो ज ज ज ज ज ज ज ज हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो ज ज ज हो हो ज जल हो हो ज ज हो हो ज ज हो ज ज ज ज थोड़ी सी हव| सिर्फ भूली आत्मा की पुनःआत्मबोध, स्मृति है, सूरत
तो मैं जो कह रहा हूं वह तुम्हें हिलाने की है। इसलिये जब भी सद्गुरू के पास पहुंच जाओगे बड़ा संघर्ष पैदा होता है। र रास्ते से तुम भागना चाहोगे, हटना चाहोगे, बचना चाहोगे।।। तुम सब उपाय खोजोगे कि कैसे निकल भागें? और आधे तुम ूके रूके, भागोगे तो भी वापिस आ जाओगे, क्योंकि मन कहेग कहेग कहीं औ जाने क कोई अ अ नहीं मंजिल है, जिसकी तल थी थी। अ अ नहीं है है जिसकी तल ज थी। अ अ अ अ औ औ जXNUMX थी। अ। थी जिसकी तल तल तल तल
गुरू पुर्ण है, अद्वैत है, शिष्य अपुर्ण है, शिष्य द्वैत है है।।।।।।। पर तुम्हारे भीत выполнительный तुम्हें आग में डालन|
मैं तुम्हें वह मंत्र, साधना, दीक्षा दे रहा हूं जिसके माध्यम से तुम इसी जीवन में पूर्ण हो सको, जिससे तुम्हारी चिन्तायें, तुम्हारी बाधायें, तुम्हारी परेशानी सब मैं अपने ऊपर झेलूंगा, तुम्हें मुक्त होना है, मेरे प्राणों के साथ रहना है, हर क्षण औा
इस दीपावली महापा प प अपने क क दीप जल जल जल जो आपको आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन आन नयी ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी नयी ऊ यमшли क नयी नयी क नयीenतिprिक नयी नयी o जिससे तुम्हारा प ударить क्षण आनन्द मग्न हो सके, उत्सवमय हो सके, इस प् Как
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Г-н Кайлаш Шримали
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