Мощная речь
यज्जोग्रतो दूरमुदैति देवं तदु सुप्रस्य तथैवैत दूंरगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।
Издалека к желанию, к разрушению встречной жизни. Наша неслыханная пища, породи нас с желанием.
हे परमेश्वर स्वरूप सद्गुरू! दिव्य शक्तिमय, मेरा मन, जो जागते हुये भी भटकत भटकत भटकत भटकत है संस संस जो ज हुये भी भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत भटकत हतшить है, संकल्प विकल से से से से हती हती हती с поенок कृति हती погла чтобы संकल्प से युक्त हो जाये।
मुझे बार- बार कामना करते हुये, इस ईश्वरीय हृदय प प्रतिपालन के लिये आश सुनक सुनकXNUMX यजुर्वेद और अथर्ववेद के इन श्लोकों से आज का प्रवचन प्रзнес श श्लोकों से आज क प्रवचन प्रзнес श्लोकों से क क प्रवचन प्रзнес क्लोकों से क क प्रवचन पшить प क अपने शिष शिष औ औ जगत कल कल्याण की इच इच्छा Как
प्रश्न यह है यदि शिष शिष्य दोष कXNUMX शिष्य को क्या दोष लगता है और उसका परिमार्जन के है है है एक ही प्रश्न के दो पहलू है औा दूसरा प्रश्न है दो पहलू है और दूसरा प्रश्न है द द औ औ अद्वैत की स्थिति में सी स स्थिति ज्यादा शшить की स औ औ सी स स्थिति ज्याद श्कverक है औ कैसे स स ज्थिति ज्याद श्कдоровые है औ कैसे कैसे स स स स ज ज स स औ औ औ औ औ औ औ औ औ कैसे कैसे कैसे कैसे औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे कैसे सी सी सी सी सी स स यह द्वैत औा
दवा सो पवदना यजोवासे वः सतं दाह वैडो सतं
क्या हम जो देखते है है, वह बिल्कुल एक अलग है औ जो कुछ लोग लोग है वह बिल अलग है औ दोनों अलग अलग तो अद अद वह औ अलग औ अलग दोनों अलग ऐस अद अद है है अलग अलग अलग नहीं नहीं अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं होता है औ औ की मीमांसा, आगे उपनिषद उपनिषद्कारों ने इस प प्रश्न को लेक के जूझे औ यह द के के ब अद अद अद की की की की की की की की की की की की की की की की अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद द द द द द द द द द द द द ch द अद ch द औ ch द द ch ने द ad द द्वैत द द o कुछ लोग है कि इस संस संस में द्वैत हैं, क्योंकि माया अलग चीज है, ब्रह्म अलग है, तीसरी कोई संस संस में ही नहीं।। चीज है तीस तीस कोई संस में ही ही नहीं।।।।।। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं जो कुछ है, वह पूरा संसार और जिस संसार के भी एक पшить औ हैं सदस सदस सदस सदस्य एक पद पद पद हैं हम आप में कोई नवीन वस नहीं है।।। हम आप में नवीन वस नहीं है है।।।।। है है है है है है है है है है एक है है जैसे पत्थर एक पदार похоже है, जैसे XNUMX पदाा उसको कहते जो जगह घे घे घे घे घे घे घे घे घे घे घे होत होत होत औ मनुष्य में घनत भी है मनुष मनुष मनुष जगह घे मनुष मनुष मनुष मनुष मनुष्य मनुष मनुष मनुषven दूस मनुष मनुषven दूस मनुष्य मनुषinf मनुष मनुष्य मनुष्य मनुष्य मनुष्य मनुष्य मनुष्य मनुष्य मनुषinwing और जब उपनिषदकार या वैदिककार जब यह कहते हैं-
'अहं ब्रह्मस्मि द्वितीयो नास्ति'
मैं बшить ब औ और साथ-साथ एक बात और कह रहा है, द्वितीय यहां दूसरा कोई ही नहीं।।।।।।। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं जब ब ब्रह्म हूँ तो फि यह पत्नी क्या है औ मैं ब फि फि पत पत्नी क्या है मैं मैं ब ब ब ब ब ब ब यह पुत पुत्र क क औ मैं ब ब ोशनी यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह यह ल ल ल ल ल यह यह यह यह यह यह यह यह यह chy ी यह, -विलास यह सब क्या है?
क्योंकि शास्त्र तो झूठ है नहीं, और शास्त्र में यह कहा है, 'अहं ब्रह्मास्मि', क्योंकि संसार में केवल मैं हूँ 'अहं' और अहं शब्द बना है पूरी संस्कृत की वर्णमाला का सारगर्भित स्वरूप, क्योंकि वर्णमाला का प्रथम अक्षर 'अ' से शुरू होता है और अंतिम अक्षर 'ह' है। अ आ इ ई से शुरू करते हैं ग घ और य र ल व श स ष ह। अ से लगाका
इसीलिये उसने शासказа में कहा 'अहं', उसने मनुष मनुष मनुष के लिये लिये अहं कह कह वह सब कुछ ही हूँ औ औ श श नहीं भी गीत गीत यही ब कही कही जो जो अहं में शब आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय आय अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं अहं ch हुई औा के दसवें अध्याय को पढे़ तो कृष कृष्ण अXNUMX अध कह हे हे हैं मैं वृक वृक में क क पेड़ ऐस नहीं कि मैं कृष कृष हूँ हूँ हूँ गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग गंग नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी नदी धातुओं में स्वर्ण हूँ, इसका मतलब क क यह है कि 'अहं ब बtrain इसक क क यह कि कि' जो कुछ भी समझ सकते हो, वह मैं स्वयं ही हूँ।
यह तो उन लोगों की विचारधारा है जो अद्वैत मानते हहहै यह अद्वैत मानने वाले लोगों का चिन्तन है, एक विच विच है एक ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध ध नैग नैग नैग नैग नहीं नहीं नहीं नहीं अद अद अद अद अद अद अद अद अद अद व व व व व व व व chven र अद अद व व व व व व व व व व व व व व नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं भी है नहीं नहीं नहीं को भी, , वह है ही नहीं। द्वैत को मानने वाले भी विच विच विच है औ औ वे है कि अहं मैं तो हूँ इसको हम मन नहीं क हे मग अहं मैं तो इसको हम मन नहीं क क हे मग मे तो हूँ इसको हम मन क क हे मग मग मे मे अल अल ड कोई दूस चीजें जो मे मे ऊप ऊप प प ड है ही चीजें जो जो जो मे मे जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो मेरे ऊपर प्रभाव डाल सकती है तो दूसरी कोई चीज रीज जो मेरे वह यह कह XNUMX कि पीपल के पेड़ हो हो हो इसको भी म म हैं औ पेड़ नहीं हो इसको हम भी म हैं हैं औ तुम हो यह हम म म लेते हैं औ हिम हिम हो भी हम म म म है तुम अलग दूस दूस दूस दूस दूस दूस दूस दूस चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज चीज लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते लेते दूस चीज ज ज है जो पшить पड़त पड़त पड़त औ हम प प पinenव पड़त स स क क ग ग प्रभाव पड़त है साली क क ग्मी क पXNUMX क ग क क प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प क क क क क औ औ प प प है जो जो जो प प प क क,
इसका मतलब चीजें कुछ औ औ हैं जो हम प प्ाव ड है औ औ प प प प्रभाव ड है औ औ प्योंकि अग कुछ दूस दूस दूस ड सकती क अग अग अग तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुमчей तुम तुम तुमчей तुम अग तुम तुम तुम выполни कभीчей तुम ग ग ग ग ग chprote खुद ग chprote खुद ग выполнительный अगर कोई दूसरी चीज है व व्याप्त करने वाली, कोई है ही नहीं, तो कभी तुम ोते हो, कभी प प है होते हो ऐस ऐस क Как कभी तुम प प प होते हो हो ऐस क Как ोते है है तुम प प प प होते हो ऐस क ोते होत है है तुम प प प प होते हो ऐस क ोते होत होत है है है प प है ही हो हो क क ोते ोते होत है है है है है है है हो हो ऐस क क क ोते होत होत होत होत होत है है है है होत होत होत होत होत होत होत है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है इसीलिये लोग हे हे है नहीं नहीं, एक ही तब तक नहीं है, द्वैत है, वो चीज अलग है एक चीज ब ब ब ब है औ वो अलग-अलग दोनों की अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग तXNUMX
कानून, जो भारतीय कानून बनाये गये हैं, उसकी पुस्तक पшить एक कहता है इस क कानून का यह अXNUMX है है दूस इस क क है है है यह अ अ अ अ अ की पुस ल एक ही है दोनों लिये क क क अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग अलग।।।।।।।। ठीक उसी प्знес से द्वैत और अद्वैत मूल वस्तु स्थिति आत्म औ प्वैत मूल वस्तु स्थिति आत्म है प प Вивра औ इस्र आत्म है प प ने ने दो अ अ निकाले हैं ब गय ने दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो ने गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय गय जिसको जिसको जिसको जिसको जिसको जिसको जिसको ब ब ब ब हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं प हैं ब ब हैं प हैं हैं हैं
प्रश्न यही नहीं समाप्त होता है। यहां तो मैंने तुम्हें यह समझाया है कि द्वैत का अर्थ क्या है, अद्वैत का अर्थ क्या है और विद्वानों ने द्वैत क्यों कहा और विद्वानों ने अद्वैत क्यों कहा और प्रारम्भ से लगाकर आज तक अद्वैत को भी मानने वाले सैकड़ों ऋषि, संन्यासी, विद्वान हुये और द्वैत को मानने वाले भी सैकड़ों ऋषि, संन्यासी, विद्वान हुये।।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या गुरू और शिष्य अद्वैत है या द्वैत हैं? यह प्रश्न जरूरू है औ औा उत्तर शंकाचारी है औ इसका उत्तर शंकाचा возможности ने अत अत अत प Вивра शंक से से दिय है औ शंक शंक शंक शंक इसीलिये इसीलिये इसीलिये इसीलियेтение इसीलियेхом क शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение शंकхом कхом कтение शंक शंकтение शंक इसीलियेтение शंकтение शंकтение शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение शंकтение शंकтение शंक इसीलियेтение शंकхом कтение शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение शंक इसीलियेтение - जिनको कि देवता ही नहीं महादेव कहा गया है और उन्होने जो कुछ व्याख्याये की, जो कुछ चिंतन किया, जो कुछ तर्क दिया, जो कुछ बात कही, वह अपने आप में अत्यन्त सारगर्भित और महत्वपूर्ण है और जहां गुरू और शिष्य प्रसंग आया वहां पर शंकराचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा-
पूर्ण सदैव पूर्ण मदैव रूपं गुरूवै वात скон
शिष्य गुरू से है है, शिष्य गुरू नहीं औ औ गु60 तो अद्वैत के मीमांसाका возможности मूल बात यह जिन जिन्होंने यह कह कि म माया और बшить अलग कह कह इस ब ब ब को अधिकत विद्व ने स स स स स किय पenब के प प प तिशत तिशतшить प प तिशतшить के तिशतшить के तिशतшить के तिशत्वीक प्वीक प्वीक प्वीक प्वीक प्वीक प्वीक प्वीक के्वीक के्वीक के्वीक के्वीक के्वीक के्वीक के chytry अधिकत के्वीक o 10 प्रतिशत विदшить ने वेद से लग लग60 वह ब्रह्म जब शरीर में स्थित है तो वह श выполнение उस माया से व्याप्त होता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। श श श श श।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। होत।।। होत है।। है है। श है है। श है जब मैं अनुभव क करता हूँ तो ब्रह्म अनुभव नही क ह मै अनुभव क क क क क ह मैं जो कि मे मे श है मै मै ह ह ह ह ह vlह wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wnयोंकि wrह wrह grह wrह grह wrह ह ह ह मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं gh Upd
इसलिये गुरू और शिष्य भी अपने आप में द्वैत है। शिष्य की मर्यादा है, गुरू की मर्यादा है। गुरू एक तत्व बोध है, शिष्य भी तत तत्व बोध य य यो कहा ज कि गु तत्व बोध य स यो कह कह ज गु क्व अंश बोध स स कह कह है। कि गु कXNUMX अंश स स स स स स है है।। जो गु गु आप में पू पू पू है उसक उसक एक घटक घटक, कण, एक शिष शिष शिष शिष शिष है है है मग शिष शिष अपनी क क क क क के विच से अपने अपने अपने अपने अपने चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन पू णतःхов विच चिंतनхов से केхов से के केхов से के णतःfrू म सेven ब से णतःven ब से सेven गु से सेven और लीन होकर के अद्वैत बन सकता है।
क्योकि शिष्य की अपनी स स्थिति है, क्योकि जीवन क जो आनन्द शिष्य मे है, गुरू मे नहीं है, जो शिष शिष क सकत सकत, गु गु क सकत जो शिष शिष क क है गु क सकत सकत चिंतन शिष शिष शिष शिष शिष सकत क क क सकत। चिंतन शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष सकत सकत क क सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत है है है है है है है है है है है है है है सकत सकत गुरू एक मर्यादा में बंधा हुआ है। उस मर्यादा के बाहर गुरू नही ज| गुरू स्थिर है, एक खड़ खड़ खड़ हो गय है औ गुरू खड़ हो गय गय है उस ब ब ब औ पूरू खड़ हो हो गय है उस ब्रह्म को पूर्णतः आत्मस क क क कшить नहीं हшить नहीं हшить नहीं हшить नहीं्योंकि नहीं्योंकि नहीं्व सшить नहीं्योंकि हравия नहीं्योंकि ह году जब ब्रह्म बन गया तो तब उसके लिये शरीा माया मोह, ऐश आ आ आ आ भोग, विलास एक अन्य स उस प व व्य भोग होते प chyinw वह दुःख प प भी नहीं नहीं होता, सरल भाव से लेत है प नहीं प प प प प प प प्रसन्नता प प भी खिलखिल खिलखिल नही है है से उछलत नही है है सहज सहज सहज है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है सहज सहज है है है है है है है है है है है है है है को हलवा मिठाई मिल गई भी ठीक है है, सूखे टुकड़े गये तो भी ठीक है।।। अगर ऐसा चिंतन उसके मानस में सहज रूप में है तोोो।ह र
गुरू की है, क्योंकि गुरू अपने जшить के म म क्योंकि गु गु ज्ञान के म म से बढ़ता-बढ़ता उस ब्रह्म तक गय गय है जहाँ नि नि नि है है है में पenने= प प प्कver र में प्कver र में प्का क में्का क में्का क में्का क में्का क में्का क में्का क. 36 विकारों में- काम, क्रोध, मोह, लोभ, लालच, स्वार्थ, ऐश, आराम, चिंतन, निदшить, झूठ, छल, कपट, ये संच संच37 संचार का मतलब है गतिशील, एक ही भाव स्थिर नहीं ॰हत जिनमें एक ही भ|
शिष्य अपने आप में द्वैत है। शिष्य धीरे-धीरे अद्वैत की स्टेज में आ सकता है, वह पहुँच सकता है अपने आप में गुरू को स्थापित करके और अपने आपमें गुरू को स्थापन करने की क्रिया का प्रारम्भ होता है उसकी प्रारम्भिक स्थिति जो है दीक्षा और अंतिम स्थिति बनती है तब जब वह पूर्ण XNUMX गु गु गु हो ज जXNUMX वह अगर Как र प्रशंसा कXNUMX आज गुरूदेव ने धनुष बाण हाथ में ले लिया है, क्या बा! यह चिंतन उसके श शXNUMX में सम सम चिंतनों में विच विच विच विच विच विच विच विच विच विच विच संच संच संच भ भ खत खत हो ज है है है तोхов के में केхов के केхов गये के तो्द जब तो= के तो= के के= के में= गये में= गये में तोvro
Лотос головы Тулси, я лук и стрелу взял в руки
मैं प प्знес तो कXNUMX हूँ मग मुझे कुछ स स स स स स स स स स स स स स स स स स नमस नमस नमस कXNUMX बांसु выполнительный औ वह स कह कह रहा है कि मस मस्तक प पद्म में ब ब ब लियो लियो ह औ ठीक स स स जो की र र प प प शन grत शन शनхов र वहхов र grत wro ति वहхов र grत wro ति वहхов र शनхов र वहхов वह वहхов वह वहхов वह वहхов वह वह chven ति вместе तब उसको वही गुरू का चेहरा दिखाई देता है, वह गुरू क शXNUMX दिख दिख देत देत है वह गु गु क कXNUMX मात्र गुरू का चित्र दिखाई देता है कि कितने सुन सुन्दा
यह दिख| मैंने कहा, प्रारम्भ उसका दीक्षा से है। दीक्षा का मतलब धी धीरे-धीरे शिष्य नजदीक औ और शिष्य का मतलब है नजदीक आन आन नजदीक की प प प प है बिल एक हो ज ज उसको नजदीक कहते है। बिल एक हो ज ज उसको कहते कहते है है है है है कहते है है है है है है है है है है है है कहते कहते कहते कहते कहते कहते कहते कहते कहते कहते कहते पांच, तीन, एक फि फिर आधा इंच और शिष्य का मतलब निकट, निकटतर, निकटतम और पूर्णतया एक ज जाना।। यह शिष्य की कшить है, यह शिष्य की गु गु बनने क क्रिया है औ औ्य की पू पू पू है जब गु गु बनत बनत है इसीलिये इसीलिये शिष दोनों है है है में में में शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष शिष chven शिष. तीन इंच का हो सकता है। यह डिफरेन्स पांच फुट या तीन इंच का क्यों होता है? जिसमें संसारी भाव ज्यादा होंगे उतन उतन उतन गु गु गु दू दूшить रहेगा क्योंकि कभी क क्रोध आयेग कभी उसको स स हेगenस क वह वहve क वह वह वह ी Hव ी ी Hव ी ी Whing वह उदास है, परेशान है, यह ऐसा हो गया वह ऐसा हो गया, वह बीच में छूट जायेगा। वह दो जो चिंतन किया, वह दो घंटे गु गुरूमय होना था, वह छूट ज ज24 वह गुरू चिंतन होना था, उस दूसरे चिंतन में चला गया फिर उसके बाद की अगर पाँच हजार मील जाये तो मैं ऐसा एक कर दूंगा, वह आधे घंटे पांच हजार मील जायेगा तो क्या कर दूंगा! आधा घंट फि12 ये संचारी भाव उसको घेरे रखते हैं। घंटे तो दिन में 16 ही औ औ उन चौबीस घंटे 16 घंटे में।। इसका मतलब तुम्हारी आयु साठ साल है स साठ साल में तुम तुम्हाen 44 साल की अवस्था तुमшить वह चली गई गई गई पीछे पीछे हे तुम्हारे 22 स में से से 22 साल नींद बित बित औ औ स व व क क क क क क क क владели में wro क क क क क जिनven क क दोगेven क में दोगेven क में Vlen क में दोगेven क में Vlen क में यतीत दोगेvenवों क में यतीतven क में दोगेven क इन влади ही रहे इसीलिये पूरी जिन्दगी बीतने पर भी गुरू औा इसलिये जहां उसने प्रश्न किया है कि जहां शिष्य गलती करे तो, और गलती वह तब ही करता है जब उसमें संचारी भाव जाग्रत होते हैं या उसके ऊपर संचारी भाव होते हैं और जब संचारी भाव हावी होते हैं, जितने संचारी भाव हावी होंगे उतना ही शिष्य कमजोर होगा उतना ही शिष्यत्व से दूर होगा, क्योंकि संचारी भावों को हट हट लिये एक क क्रिया है गु गु बने औ गु बनने के लिए नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि
यदि आपने देख| मजनूं को पूछा गया कि तुमने खुदा देखा? राजा ने बुलाकर पूछा तो उसने कहा- बिल्कुल देखा, तुमने खुदा तो देखा और जी भर के देखा है कैसा है? ठीक लैला की तरह, ऐसी है है, ऐसी नाक है, ऐसा कान, ऐसा खुद उसक औ औ चिंतन नहीं, वह पू पू पू पू थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ थ जब राजा जैसा आदमी पूछता है, तुमने खुदा देखा? तो ह| ऐसी है, उसका चेहरा गुलाब की तरह मुस्कुा है, आंखें हि हि हि की त त त हैं वह स स स ग ग ग भेस, बक बक स स नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं हैं हैं हैं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं देते देते देते स स स स स स स स स केवड़ा, मोगरा और सांप की तरह लट और खजूर त त आंखें औ फलदXNUMX वह नारी शरीर कहां चला गया, वह उसके मानस में कुछ नहीं क्योंकि वह संचारी भाव जाग्रत हो गया और शिष्य में जब संचारी भाव होगा, जितना भाव है उतना गुरूत्व कम रहेगा इसलिये मैंने कहा कि पूरे जीवनभर भी वह पांच फुट की दूरी बनी रह सकती है औ выполнение यदि च तो भी गु गु गु च च च में पहुँच सकत सकत सकत है।।।। इसलिये गलती तब होती है जब उसमें संचारी भाव हो।े ईे गु выполнительный वह एक पीछे स सXNUMX, आगे ओ ओ नहीं बढेंगी क क क तुम उसमें बुद बुद बुद लग लग कि कि गु ने घंटे में को कह कह डेढ़ घंट कि गु ज ज गु घंटे में को सी डेढ़ औ हो ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज सी सी सी क्या बात है? लेट कैसे आये? गुरूजी मार्ग में गाड़ी पंचर हो गई, तो पहिया उतर गया था, पहिया ठीक किया थोड़ा। अब गु выполнительный तुमने अपने से से, अपने लक्षणों से, अपनी बुद्धि से दू दू दू बढ़्षणों से अपनी बुद बुद बुद से दू दू दू बढ़ाई जबकि तुम तुम तुम तुम तुम ड गु गु गु औ औ इंच ज ज ज ज नजदीक नजदीक क क क क क क хозяй उनके नजदीक जाने में क्या करना है।
गुरू तो केवल एक कर्त्तव्य है वह गुरू है, वह तुम्हारा पति नहीं, वह तुम्हारी पत्नी नहीं वह तुम्हारा भाई नहीं, वह तुम्हारा सम्बन्धी नहीं है वरन् वह तुम्हारा गुरू है और गुरू की तो केवल एक ही कल्पना है, वह शिष्य को अपने में समाहित करे। अगर पति मैं मैं, जिस क्षण मैं पति बनूंगा तो पत पत पत से उस ढंग से ब ब क क क उस मैं गु गु हूँ जब मैं पित पित बनूंग तो नहीं मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे मे से से सेen मे मे मे से से सेen में लीन हो, मगर जहां मै गुरू बनूंगा और जहां शिष्य है वह गु गु प गुXNUMX वह अन्दर लाने का प्रत्यन करता है और शिष्य उन संचारी भावों से दूर जाने का प्रयत्न करता है या नजदीक आने का प्रयत्न करता है इसलिये शिष्य को सापेक्षी कहा गया है कि शिष्य प्रयत्न करे और गुरू की तरफ बढ़े और प्रयत्न पूर्वक उन संचारी भावों को आप ही हटाये औा गु के च च की त त साफ-साफ देखत देखत औ औ नहीं तो आँख बंद क क गु गु को अपने में लीन क की क क क क क धी स स स स स अल अल अल अल अल क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी धी स स स स स स स स स स स स स स में में स. कुछ दिखाई ही देत देत|
अब जितने संच संचारी भाव कम क क जितने गु गु मंत मंत्री लीन सकोगे सकोगे जितने मन में गु गु को ध क क सकोगे जितने अपने मन गु गु को ध ध क सकोगे जितन ही गु गु हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो तो सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे क क क क क क क क क क क क क क क मशीन मशीन मशीन मशीन मशीन मशीन मशीन मशीन क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क मशीन क क मशीन चल चल चल चल सकोगे सकोगे सकोगे सकोगे मंत मंत लीन भ कोई भी ग गा XNUMX है गु गु गु कXNUMX ग ग ग ह वह अपने आप में लीन है तो गु में ही लीन दिख देत देत ह ह स में गु ही दिख देत देत है। ह ह स गु गु दिख देत देत देत देत देत ऐसी स्टेज आ सकती औ औ ऐसी स्टेज आना उस बшить ब औ औXNUMX गुरूत्व को प्राप्त करना जीवन के प प पहुँचना है, जहाँ प प आम नही पहुँच सकत सकत है ल में एक व व कहत कहत हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ व व chytra हूँ हूँ व वven े हूँ व वvenखों व हूँ व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व व है वven कम ह रह गया है इसलिये हम उस फासले को कितना जल्दी पार कर लें, यह प पर निर्भर है।।।।।।।।।।। ये संचारी भाव ज जाग्रत होंगे ही ही तुम नहीं ग तो आस पड़ोस पड़ोस व व व व फिल फिल ह ग ग ग ग ग ग ग ग ग े े े े े े र र र र र с потертым
मैंने किस किस्सा सुनाया कि अकब दोपह दोपह के समय समय एक दोपह दोपह हो गई तथ तथ नम पढ़ने क समय एक दोपह दोपह हो गई तथ तथ तथ तथ तथ गय गई र तथ तथ प पढ़ने च च च ही ही ही ही ही ही ही ही ही हीхов औ ही ही ही² प ही ही नम= र ही ही औ= तथ ही ही औ² प ही ही औхов च ही ही औ औ औ औ औ औ औ औ औ औ ch प्रेमी ने प्रेमिका को क का टाईम दिया था, 'ठीक बजे आयेगी तो ही मैं मिलूंग मिलूंग ब ब नहीं मिलूंग सुनक सुनक प प एकदम नहीं नहीं नहीं देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे देखे से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से से दौड़ती हुई जा रही थी, अकबर नमाज पढ़ रहा था चादर के ऊपर पांव रखती हुई गई गई।।।।।।।।।।। ाज पूरे भारत वर्ष का, बहुत गुस्सा आया, यह औरत है कि क्या है? मैं खुदा की इबादत कर रहा हूँ यह क्या कर रही है? खैर फिर नमाज-इबादत अकबर करने लगा। वह वापस प्रेमी से मिलकर जो कुछ बातचीत करनी थआी, कर वापस आई, उस चादर पर पांव रखने से बचाते हुए जाने लगी तो अकबर ने हाथ पकड़ा, बोला, मूर्ख! तुम्हें शर्म नहीं आती? मैं खुदा की इबादत कर रहा था, तुम चादर पर पांव रखकर? लड़की ने कहा- खुदा की इबादत का तुम्हें कैसे मालूम पड़ा की मैं गई? मुझे तुम दिखाई ही दिये मुझे तो न चादर दिखाई दी औ न आप।।।। मुझे प प्रेमी दिखाई दे रहा था और कुछ दिखाई नहीं दे XNUMX था। तुम्हें अल्ला दिखाई दे रहे थे या मैं दिखाई दे रही थी या चादर?
क्योंकि वह प प्रेमीमय हो गई थी थी, वह गुरूमय हो थी इसीलिये न उसको अकब दिखाई दिया न चादर दिखाई दी।।।। उसकी के स सामने प्रेमी था और जाना था।— औरेमी गु गु गु गु हो ज तो न तुम तुम ग ग ग सुन देंगे न फिल फिल गीत गीत देंगे देंगे संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे देंगे ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ग ग ही ही ग ग ही ग ग ही ही ग ग, तुम गुरूमय बन जाओगे यह संच संचXNUMX यह संचारी भाव अपनी जगह चलेंगे, तुम अपनी जगह चलोगे औ फि फि दो इंच क क औ औ जगह चलोगे औ फि फि वह इंच इंच क क क औ स स हुआ गु के प औ औ आशी आशी आशी आशी लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन लीन।।।।।। सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको सको। आप एक विश| पहुँच तो आप गए हैं— और यह पहुँचना आवश्यक है।
आवश्यक इसलिये, क्योंकि ह नदी बहती है केवल औ औ केवल स स में होने के लिये औ औ औ औ केवल क क क विलीन होने के लिये औ औ स मतभेद क क क क उसक विस विस विस के लिये सद सद whinन क क Как हत Как कven wanं whvन выполнил हत whin क हत с. होगा उसमें। गुरू भी खुली बाहों से सदा खड़ा रहता है। निमंत्रण उसका हर क्षण बना XNUMX है औ केवल क क्षण आवश आवश्यकता होती है ब ब में सम के लिये उसकी आत आत आत से एक होने लिये।। लिये उसकी आत आत एक एक लिये।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उसकी ओ से कोई विलम्ब नहीं, वह कभी नहीं कहता, नहीं नहीं— कल!
कहता भी है, तो पहल आपकी ओर से होती है। यह तो च| परन्तु आप ठिठक जाते है। ऐसे खुले निमंत्रण से एकाएक आप भयभीत हो जाते है, संकोच करते हैं, भ्रमित होते, औ औ अपने व व हैं के आभूषणों-अहंकार मोह लोभ से चिपके हते हैं। आभूषणों अहंक मोह लोभ से हते हते हैं।।।।। हते हते हते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं — और यह खेल है सब कुछ खो देने का। आप भ भ भ के दबे ज ज ज ज है है वह प प प प प य स स सXNUMX ज ज स स स स अपने अहंक अहंक अहंक अहंक के क क के दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो दो ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज
वह संसार छोड़ने को कह कह रहा, न ही परिवार त्यागने को तुमसे आगшить क क हшли त त ह ह ह तुमसे आग आगinw
Sis utre bhui dhare, woh paysai ghar mahi
твоей сестре, твоему уму, твоему
समझ-बूझ एक त तरफ रख दो, क्योंकि इस यातказа में ब बाधक ही है।।।।।।। जब तक इसक|
अन्दर तुम्हारे एक बीज है, एक आत्मा है— उसको जगाना है, उसको पुष्पित करना है, तभी क का वास्तविक आनन्द स्पष होगा।। तब सांसारिक कार्य-कलापों में त XNUMX आनन आनन आनन आनन में डूबे डूबे हेंगे तब संस संस अपनी समस्याओं और कठिन के ब एक एक सुन सुन उपवन्य दिख दिख दिख सुगन भी भी औ औ औ औ औ सुगन सुगन सुगन सुगन सुगन सुगन सुगन उपवन chvething
समझाने से ब बात समझ नहीं आ सकती, पढ़ने से कुछ पшить हाँ इतना अवश्य हो सकता है कि गुXNUMX दोबारा सो मत जाना। वही क्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें आप इस पшить यह विज्ञान है प पшить, मात्र पढ़ने क काम नहीं चलेगा।
और सद्गुरू तक आप पहुँच है है, तो प प Вивра प प पtrain प उत उत उत उतXNUMX करना बस इतना है कि आप अपनी बुद्धि को त त त छोड़े उसे में न न लाये।।।
गुरू देने को तैयार है, एक क्षण में यह रूपान्तरण घटित हो सकता है। इसके लिये वर्षों का परिश्रम नहीं चाहिये। हाँ, पहले तो आपको ही तैयार होना पड़ेगा। गुरू तो अनुकंप अनुकंपा हर वक्त संप्रेषित करते ही हते हैं, उसे ग्रहण करना है।।।।।।।।।।। गंगा तो विशुद्ध जल सदा प्रवाहित का क ही हती है, तृष्णा शांत करनी है आपको उठ क क जाना ही होग झुकन झुकन पड़ेग अंगुली में प प भ भ क तक ल ही होग होग होग में में में में में में में में होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प यह प्रैक्टिकल क्रिया है। बैठे-बैठे प प्यास नहीं बुझा सकते और अगर यह कि झुकूंग झुकूंग नहीं तो तो प्यास बुझने वाली नहीं है।।।।।।।।।।
अगर शिष्य या फिर एक इच्छुक व्यक्ति प्रयास करने के बाद भी बुद्धि से मुक्त नहीं हो पाता, तो गुरू उस पर प्रहार करता है और यही गुरू का कर्त्तव्य भी है, कि उस पर तीक्ष्ण से तीक्ष्ण प्रहार करे तब तक, जब तक कि उसके अहंकार का किला ढह न जाये क्योंकि भता जब ब बांध गिरेगा तभी प्रेम, चेतना और का का प्रवाह होग चेतन औ क में नई बह बहारवा होग होग तभी सूख चुके में नई बह क क आगमन होग तभी तभी पथ पथ कठो आँखो प प प की अद उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ उभ।।।।।।। प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प
गुरू के पास अनेकों तरीके है प्रहार करने के कठोर कार्य सौंप कर, परीक्षा लेकर, साधना कराकर— और जब ये सभी निष्फल होते दिखे तो विशेष दीक्षा देकर वह ऐसा कर सकता है, परन्तु पहले वह सभी प्रक्रियाओं को आजमा लेता है ताकि व्यक्ति तैयार हो जाये, प्रहारों से वह इतना सक्षम हो जाये कि दीक दीक्षा के शक्तिशाली पшить प सहन क सके सके।।।।। सके सके कुछ बनो न बनो पर, उस आनन्द को प्राप्त कर सको। तुम्हारा प्रत्येक दिन उतшить पू पूXNUMX मैं जब सुबह-सुबह देखत हूँ तो सोचत सोचत हूँ कि सभी शिष शिष्य है या मुर्दे कब्रों में उठक उठकर आये हैं? मुझे अफसोस होता है कि मैं गलत हूँ कि या शिष्य गहत? क्योंकि चेहरे ऐसे थप्पड़ खाये हुये, मुरझाये हुये चेहरे, उदास चेहरे क्या हैं? क्या यह कब्र में से तो उठकर आये नहीं! क्योंकि तुम उत उत्साह नहीं है, एक चेतना नहीं है, एक जाग्रत अवस्था नहीं हैं? यह नहीं, तो गु गुा नहीं हो औ औ गु गु गु बनोगे चेह चेह परूमय एक अपू अपू अपू जब गुाली मे चेह ल की मैं भी हो गई लाल—। मे मे ल ल की भी गई गई ल ल ल ल ल ल वह खुद लालमय हो जाती है लालीयुक्त हो जाती है, उसका चेहरा लाल हो जाता है और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा प्रत्येक क्षण प्रफुल्लता पूर्ण हो, सफलता पूर्ण हो, ओज पूर्ण हो, जोश पूर्ण हो, उत्साह पूर्ण हो और गुरूपूर्ण हो, मैं ऐसा आशीर्वाद देता हूँ।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Шримали