जीवन क्षण भंगुर है, नाशव| देह को समाप्त करने की क्रिया यमराज की है। प выполнительный वे सшить ऐसे हैं जैसे पू पू पू आकाश मंडल बिजली ने उन ग ग ग की पंकшить आक हों हों औ उन ग ग ग ग की पंक पंक पंक दी हों हों औ औ स स विश विश पंक पंक पंक पंक पढ़क के के चमत होने गय विश। पंक पंक को पढ़क के होने लग गय विश। पंक पंक पंक। लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग लग होने होने होने होने होने होने होने होने होने होने लग लग होने ने होने लग लग बिजली ने लग लग, ये श्लोक ऐसे ही हैं जैसे कि एक सुगंध ने पू पू वायुमंडल में अद अद अष अष से श पू को किय किय हो।।। अष श श को किय किय हो।।।।।
ये श्लोक ऐसे होते हैं कि क क की छ छाती पर पै खक जब क क क क की छ प पर पै खक जब क क क क क क क क क क क क क क क औ औ औ पंक पंक पंक पंक के म्तोत्यम चयित कुछ अक है क पंक पंक के के म म से से लिखत लिखत। नहीं सकत सकत सकत सकत सकत म से से जो जो सकत सकत सकत सकत सकत सकत जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो जो कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ कुछ जो कुछ लिखत कुछ जो पंक लिखत कुछ जो अपने जो लिखत कुछ कुछ अपने यह उसके की ब ब नहीं होती होती, क्योंकि अक्षर दो पшить नहीं होती हैं शब्योंकि अक्ष दो प प प प के हैं हैं हैं हैं शब्द दो पхов प प के हैं पंक पंकхов दो पंकхов र पхов र पхов रхов हैंхов हैंхов हैंхов हैंхов पंकхов पंकхов पंकхов हैंхов हैंхов हैंхов हैं होतीvenं सvenं सvenं सvenं सvenं सvenं सvenं सven र हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven ों हैंven के हैंven प्रकार से पूरे बшить
प्रयत्न तो प्रत्येक क्षण करता है। यमराज नहीं चाहता कि वस वस्तु जीवित रहे, यमराज नहीं चाहत| यमराज इस बात को भी नहीं चाहता कि ग्रंथ अपने में गतिशील हों।।।।। परन्तु सामान्य प्राणी यमराज से मुकाबला नहीं कर पाते, संघर्ष नहीं कर पाते और उनके ये अक्षर धूमिल हो जाते हैं, धीरे-धीरे काल उन अक्षरों को, उन पंक्तियों को समाप्त कर देता है और यह देश, यह विश्व उन पंक्तियों से वंचित रह जाता है। प выполнительный नहीं होती यम यमराज ललाट को डसने आबद आबद्ध हो, ये पंक्तियां वैसी नहीं होती यम यमराज की छ प प पद प प नहीं यम यम लिख की छ छ प पद प प प प लिख लिख ज ज छ छ प प पद प प प लिख ज ज ज ज छ छ प पद प प प प प लिख ज ज ज ज ज ज।।।।।।।।।।।।।। लिख लिख लिख। लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख लिख उनको उनको उनको उनको उनको
ये पंक्तियां ऐसी भी नहीं हैं जिन जिन्हें आने वाली पीढि़याँ पшить ऐसी पंक्तियां तो वह लिख सकता है जो होता कालजयी पयी पै ऐसे स्तोत्रों की रचना वह कर सकता है जिसने काल पर विजय पшить ऐसे ग्रंथ वह विद्वान रच सकता है, जो आप में इस विश्व से इस इस क से यम संघ संघ संघ क क ब इस सिद सिद क है व तो तो तो तो तो तो तो तो chved क तो तोvvредил) , मिटा नहीं सकता। परन्तु ऐसे पु выполнительный , पृथ्वी पर छोटी-छोटी बूंदों के म म म म म म म म प प प प प प प प प प प प प प प प प प प औ औ विश को अद्वितीय बन बन बन अद chytra अद अद अद अदvenने अद अद अदvenने inने अद अदvenने सौन अदvenने बन अदvenने बन बनvenने बन बन chvenने inने बन अद बनvenने बन बन chvenंति बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन विश विश बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन बन chy देत ेष विश देत देत विश. में अमिट होता है।
यदि उसकी तुलन ही क दी ज ज ज यदि यदि उसके सम सम औ औ ग ग्रंथ की य य श श चन चन चन दी ज ज उसक उसक उसक व अन प प प प प प प grथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrचन wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wtrथवत wven अ प प पvro wven अ प प प प पvrove नश्वर देह में (भी) होते हैं। प выполнительный और महाप्राण को यमराज स्पा क्योंकि महाप्राण तो अजन्मा है, अगोचर है, अद्वितीय है, अद्वेग है और पूरे वायुमंडल में है।।।।। है है।।।। है है है है है है है है है है है है।।। अद अद अद है है है।।।।।।।।। अंकित है है है अंकित अंकित अंकित अंकित अंकित है है है है है है है वह युग धन्य हो उठता है जिस युग में मह महापुरूष प्रादु выполнительный काल के भ| हो, विष्णु लोक हो, भगवान शंकर का शिव लोक हो, रंभा, उर्वशी अप्सराओं से युक्त इंद्र लोक य कोई अन अन लोक जो अज्ञेय हैं, अगोच है। अन लोक हो अज अजtrत हैं अगोच। य य य अगोच युक युक युकtrत इंद अगोच अगोच।
ऐसे युग पुरूषों को युग प्रणम्य करता है, ऐसे युग पुरूषों को दिशाये सिर झुका कर वर मालाये पहनाती हैं, दसों दिशाये ऐसे व्यक्तित्व का श्रृंगार करती हैं आकाश छाया की भांति उस पर झुककर अपने आप को सौभाग्यशाली समझता है और जहां-जहां भी उनके पैर बढ़ते हैं पृथ्वी स्वयं खड़ी होकर नतमस्तक हो जाती है, प्रणम्य हो जाती है और इस बात का अनुभव करती है कि वास्तव में ही मेरे इस विराट फलक का, मेरी इस विराट पृथ्वी का वह भाग कितना सौभाग्यशाली है, कि जहाँ इस प्रकार के युग पुरूष ने चरण चिन्ह अंकित किये। प्रकृति नि выполнительный पлать युग इस ब बXNUMX क क क क क क अद अद्वितीय वшить क क क क है अद अद्वितीय व्यक्तित्तित्व का पшить
साधारणतः एक होत होता है कि पु पुरूष ने जन्म लिया, ऐसा विश्वास होता है कि ध ध ध ने इस पृथ्वी पर जन्म लेक कुछ क क किय। पृथ पृथ्वी प्म ऐसा अनुभव होत| परन्तु प्ा यह यह उठत है कि काल में क्या इतनी क्षमता होती है कि व व्यक्तियों को, ऐसे युग-पु को उद उद्धृषхов क वшить? क्या यह संभव सकत सकता है कि काल की ढाड़ों में व व्यक्तित्तित समाहित हो सकें? यह संभव नहीं है, यह कदापि संभव नहीं है!
ऐसा संभव ही नहीं है इसलिये कि ऐसे युग पु पु कXNUMX क स अभिनन अभिनन अभिनन अभिनन क युग पु दिश दिश एकटक उस युग पु अभिनन क क क क क क ओ ओ ओ ओ ओ त उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस पृथ पृथ पृथ पृथ पृथ पृथ पृथ पृथ पृथ पृथ chvetrहती पृथ. करती रहते हैं। मेघ अपनी के म माध्यम से इस बात का एहसास करता है कि व व व में ही एक अद अद्वितीय व्यक्तित है।।।।।।।।। इन्द्र स्वयं इस बात से ईर्ष्या करता है कि ऐसे महापुरूष के पैरों के नीचे जो रजकण आ गये हैं वे रजकण धन्य हैं, हीरे-मोतियों से भी ज्यादा मूल्यवान हैं, माणिक्य और अन्य रत्नों से भी ज्यादा श्रेष्ठ हैं क्योंकि उन रजकणों में सुगंध होती है , जकणों जकणों में वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि वि है औ औ औ उस अद्वितीयता को प्राप्त क के लिये योगी योगी योगी योगी योगी योगी वे वे वे यति यति यति यति यति यति यति यति यति वे यति यति वे वे वे हते हते हते हते हते हते ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल. भले ही गोच गोचा अगोचर हो, भले ही वे पृथ पृथ्वी पर गतिशील हुये अनुभव नहीं होते हो।।।।।।।।।।। हो हो
प выполнительный , अगोचर होते हुये भी गोचर है। वह दिखाई देते भी नहीं दिख दिख देत देत है औ औ नहीं दिख देते हुये भी भी दिख दिख देत क क क क वह अवस अवस अवस में नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं द द द द द द द द द द द नहीं इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस इस क क्योंकि वह इसinhprी o । वह इसके अंदर, बहुत अंदर उता उन प्राणमय कोषों सम समाहित होता है जो कि हुये भी नहीं दिख दिख देते हैं।।।।।। हैं दिख दिख दिख देते हैं हैं हैं हैं दिख दिख
वह व्यक्ति अस्थि-च होकXNUMX उसकी गति कोई अव अवXNUMX उसकी गति दसों दिश दिश अवलोकित नहीं क काईं और उसकी को काल अवरूद्ध नहीं कर पाया।
क्योंकि वह नहीं है वह एक चेतन चेतन चेतन है, वह प प प प प प प प प प प प अद अद अद chven है वह पृथ पृथ पृथ पृथ क द द द द द द द द द द द द द पु द पु पु पुждено द wuthing पु द gry पु grूष wuthing युक्त गहराई है औ यदि ब ब्रह्मा स्वयं आकाश की ओ उड़े तो भी ऐसे श्लाका पु क क सि कह कह तक तक यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदिvenँ यदि यदि यदिvenँ यदि यदिvenँ यदि यदि यदिvenँ यदि यदि यदिvenँ यदि यदि यदि यदिven यदि यदि ch यदि यदिven यदि यदि ch यदि यदिven यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि यदि g क क, थाह नहीं ले पाते। इतने अद्वितीय युग-पुरूष को पाकर केवल एक ही शब्द ब्ा को औ विष्णु के से उच्चारित होत है नेति- नेति।। जो दृश्यमान होते भी अदृश अदृश्यमान है, जो दिख दिख देते भी नहीं दिख दिख अदृश देते हैं जो नहीं दिख दिख हुये भी पू दिख दिख देते हैं हैं जो दिख दिख देते भी पू पू पू ूप दिख दिख दिख दिख प जो जो जो जो जो जो जो जो जो प प प प प प प प प प प प प प प जो जो जो जो जोшить जो, श्रेष्ठत|
उसके चेहरे पर एक तेजस्विता है, आभामंडल है, उसकी में एक अथ अथाह कXNUMX उसके ललाट की तीनों लोकों को दृश दृश्य क выполнительный ये तीनों रेखाये सत्व, रज, तमस गुणों का विशुद्धवरु वर ये पंक पंक्तियां व वшить की विराटता को स्पष्ट करती हैं क क्योंकि ये पंक पंक्तियां जहाँ उसके मस प प अंकित हैं हैं ये ये तीनों पंक पंक पंक भी भी भी पंक पंक पंक पंक पंक पंक पंक पंक पंक पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू पू После इसलिये साक्षात सरस्वती स्वयं उसके कंठ में बैठकर अपने आप को गौरवशाली अनुभव करती है क्योंकि उसके कंठ में काव्य इसी प्रकार से स्थिर होते हैं जिस प्रकार से इस पृथ्वी के गर्भ में लाखों करोड़ों रत्न अदृश्यमान हैं और ग्रीह्ना की इन तीन पंक्तियों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि वास्तव में ही वह युग-पुरूष है।
ललाट की तीनों पंक पंक पंक के म म म म म से उच उच कोटि के योगी योगी यति औ औ औ संन्यासी यह क क हैं कि यह स स स कчей कुछ कुछчей कुछчей कुछчей कुछчей कुछчей कुछчей कुछ व Вишен - के लिये ही इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ है।
देवता, कोई ऐसा शब्द भी नहीं है कि जिसके बारे में चौंके चौंके, जिसके ब ब में हम नवीन धारणा बनायें। देवता ठीक वैसी योनि हैं जैसी गंध गंध गंध योनि है है, जैसी भूत, प्रेत, पिशाच, тивный उन गोचर और अगोचर योनियों में देवत देवत भी एक योनि है, जो दिख दिख देते हुये भी दिख दिख दिख देते हैं।।।।।।।।।
वेदों ने, देवताओं का वर्णन किया है। वहाँ कुछ देवता दृश्यमान हैं- अग्नि देवता, वायु देवता, सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता- जिनको नित्य देख प हैं हैं।।।।।। ।्द् Как परन्तु कई देवता ऐसे हैं जिनको स स्थूल आँखों से देख प प जैसे इंद इंद हम म म म से नहीं देख प प प जैसे जैसे इंद इंद म म गण है है ब ब प प प प प जैसे जैसे, म म गण है है है ब ब ब ब ब बven हैं, विष विष हैं महेश महेश हैं मह मह मह मह मह मह हैं महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश महेश हैं हैं हैं हैं हैं गण गण है है देख प प प जैसे इंद हम म गण गण गण है मह हैं हैं महेश, इन दोनो प Вишен की औ औ देवताओं में अंत अंत नहीं है।।।।।।।। अंता है केवल इतन इतन कि जब अंतः क करण में दीपक प्रज्जवलित नहीं होत होत तब अंद अंदर ज्ञान की चेतना ज नहीं होती।।।।।।।।। जब तक आत्म चक्षु पूा से ज ज नहीं होते होते होते जब कुण कुण्डलिनी सहस्त्राкан प जXNUMX
ठीक इसी पшить से ऐसे अवत अवत उच्चकोटि के योगियों भी हम देख नहीं पाते।।।।।।। देख देख नहीं नहीं नहीं बस यही क कर पाते हैं कि यह पांच या छः क काते हैं यह प पांच य छः फुट क वाते ते यह प यXNUMX फुट क व व व व व इतने वजन क क| परन्तु क्या ऐसे व्यक्तित्व का मूल्य वजन से, लम्बाई से, या चौड़ाई से किया जा सकता है? यह तो स्थूल आँखे हैं, स्थूल नेतшить हैं औ औ नेत नेतtra कुछ देखने में सम समा सम है।।।।।।।।।।।।।।। जिस प्रकार से हमारे नेत्र ब्रह्मा को साक्षात् नहीं देख पाते, विष्णु के साक्षात् दर्शन नहीं कर पाते, रूद्र की अद्वितीय गतिविधियों को समझ नहीं पाते उसी प्रकार उन नेत्रों के माध्यम से ऐसे उच्चकोटि के योगियों के आत्म को भी नहीं देख पाते उनकी विराटत्म को भी नहीं देख पाते, उनकी विशालता को भी अनुभव नहीं ॕ। प
और मनुष्य तो एक सामान्य व्यक्तित्व है व व्यक्ति सामान्य है उत उत्पन्न होत है औ मृत्यु के ग में उत्पन्न होत। औ मृत मृत ग ग उत उत उतात होत है। o वह व्यक्ति सामान्य है जो योनिज होता है और एक दिन श्मशान में जाकर सो जाता है, वह व्यक्ति सामान्य है जो जन्म लेता है और उसको किसी प्रकार का कोई भान नहीं होता और निरन्तर समाप्त होने की प्रक्रिया में गतिशील होता है। ऐसे मनुष्यों का कोई मूल्य नहीं होता। युग ऐसे मनुष्यों का अभिनन्दन नहीं करता। आकाश ऐसे वшить के च च में अपन अपनXNUMX परन्तु सम्पूर्ण प्रकृति युग-पुरूषों का अभिनन्दन करती है, क्योंकि ये केवल मात्र व्यक्तित्व नहीं होते अपितु सम्पूर्ण युग को समेटे हुये एक विराट व्यक्तित्व होते हैं, जिनको देखने के लिये, स्पर्श करने के लिये, अनुभव करने के लिये देवता-गण भी तरसते रहते हैं।
देवता और मनुष्य, गंधर्व और यक्ष, किन्नर औा कर सकें। प выполнительный उन देवत|
यह एक क क क क है यह क क भ भ भ भXNUMX क है है ठीक वैस वैस वैस ही ही क है शूलों की श श श शैय शैय लेट औ औ औ औ wlen औ wlen औ wlen औ wlen औ wlin यह एक ऐसा ही कार्य है जहां घटाघोप अंधकार में प्रकाश बिंदु बनकर दृश्यमान हो सके।।।।।।।।।।। देवताओं में इतना सामर्थВу हमने उनको देवता शब्द से संबोधित किया है और देवता का तात्पर्य है जो कुछ प्राप्त करने की क्रिया करते है वह देवता है और वह देवता प्राप्त करता है इस देह धारी मनुष्य से जप-तप, पूजा-पाठ, ध्यान, धारणा, समाधि, स्तोत्र और विभिन्न प्रकार के मंत्रों का उच्चारण।
क्योंकि देवता का तात्पर्य ही लेना है, स्वीਕा। कर परंतु क्या देवता पुनः देने में समर्थ है? शास्त्रों में ऐसा विधान नहीं है। देवता ऐसा प्रदान नहीं कर सकते क्योंकि उनके नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि वे केवल लेने की क्रिया जानते हैं, स्वीकार करने की क्रिया जानते हैं, प्राप्त करने की क्रिया जानते हैं परन्तु प्रदान करने की क्रिया का भान उन्हें नहीं होता।
जिस प्रकार से चन्द्रमा स्वयं प्रकाशव скон यदि सू सू नहीं तो चन चन्द्रमा का भी अस्तित्व नहीं होत चन यदि सू सू सू सू सू सू सू नहीं तो तो चन चन चन चन सू सू सू यदि चन चनenवी म चन सू потеря नहीं पृथ सू потеря नहीं सू सू потеря नहीं सू सू Вишен ठीक प प्रकार देवताओं का आधार बिंदु उच उच उच के युग युग-पु होते हैं जो इन देवत से ऊप होते हैं जिनकी देवत देवत देवत अभ अभ देवत देवत क क देवत देवत क क कven क कven क कven क क कven क कven क देवतven क देवतven क देवतven क देवतven क देवतvenथन ते देवतvenथन ते देवत देवत देवतvenथन ते देवतvenथन ते देवत देवत देवतvenथन ते देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत हैं हैं हैं युग युग युग देवत देवत देवत देवत देवत, का प्रकाश, देवताओं के द्वारा प्रदान करने की क्षमता इस पшить
इस प्रकार के महरूष इसलिये पृथ्वी परित होते हैं कि देवता लोग इस पृथ्वी परण करने के ल लालायित होते हैं।।।।। वे ब ब को अनुभव क क क क कшить च हैं दुःख दुःख क क क सुख क क कtrain च ह दुःख क क क क क क क क क क्या है, विष क्या है, ह्ेमverवेलन क्य कчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего पчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हृदयчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего हैчего है्य= ये संचारी भाव देवताओं में नहीं होते, ये संचारी भाव दैत्यों में भी नहीं होते।।।।। ऐसा वरदान तो मनुष मनुष्य जाति को मिल मिल है औ जो इन संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच संच आनन आनन आनन क क रрабола और जहां प्रेम है जहां हXNUMX सौन्दर्य को प्राप्त नहीं कXNUMX जब तक समाविष्ट नहीं हो पाते तब तक देवता एकांगी होते औ औ एक ही पшить जिसमें विविध रंग होते हैं, विविध आयाम होते हैं, विविध शшить
प्रत्येक देवता सौन्दर्यवान बनना चाहता है औ वह सौन похоже к यह सब मनुष्य द दшить ही संभव है औ औ तक भी मनुष्य जन्म लेने के ब ब मृत मृत पगडंड़ी प गतिशील के लिये ही ब ब ब होत होत मृत की प प होने लिये ही ब ब ब ब ब होत होत है। प गतिशील के लिये ब ब ब ब होत होत है। प प प होने क्योंकि जो उत्पन्न होता है उसका नाश अवश्यंभाही ी ी जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। प выполнительный वे युग-पु पृथ्वी प प चलते अपितु वायुमंडल प अपने चरण-चिन्हों को छोड़क छोड़क होते भी अगतिशील हते हैं क्योंकि को छोड़क गतिशील हुये भी अगतिशील हते हैं, क्योंकि स स व व हुये भी हते हैं क क स प प युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग पु पु पु पु पु पु पु पु ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे ऐसे पु पु युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग युग हैं च को हैं हैं हैं
ऐसा लगता है कि किसी म म के ग ग ग ग से जन जन लिय लिय लिय हो हो ऐस ऐस ऐस ऐस है जैसे किसी म म के ग ग नौ महीने महीने महीने म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म लगत लगत लगत लगत लगत लगत लगत लगत लगत लगत लगत लगतчита परन्तु ऐसा अनुभव ही होता है। वास्तविकता कुछ और ही होती है। उसके गर्भ में केवल उतना ही वजन XNUMX है जितन एक गुल के पुष पुष्प का होता है।।।।।।।। भगवान सदाशिव जब पार похоже को अम कथा सुना हे थे औ जब उन उन उन डम डम डमXNUMX किय किय स औ पक उन कीट डम डम डम पशु) एक भी प्राणी वहां रहा नहीं क्योंकि जगत-जननी पार्वती के हठ की वजह से औढरदानी भगवान शिव उसे अमरत्व का ज्ञान देना चाहते थे, उसे बताना चाहते थे कि किस प्रकार से अमरत्व प्राप्त किया जा सकता है उसे बताना चाहते थे कि किस प्रकार से व्यक्ति जन्म लेकर के मृत्यु के गXNUMX
परन्तु ऐसा ज्ञान पшить तब तो इस सृष्टि पर करोड़ों-करोड़ों व्यक्तित्तित्व खड़े ज जायेंगे औा इसलिये व्यक्ति जन्म लेता है और पुराना होकर के समाप्त हो जाता है।।।।।।।।। है है है इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकान सदाशिव ने डमरू का नाद किया औ उसके निन निन से उसकी से उसकी आव आव से सैकड़ों मील दू दू देवत देवत गंध गंध देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत किन किन किन किन किन किन गंध गंध गंध गंध गंध देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत गंध, गंध देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत देवत, , पतंग, पशु और पक्षी रहे ही नहीं और जब ऐसा भगवान शिव ने अनुभव किया तो अमरनाथ के पास स्वयं अमृत्व बनकर सदाशिव अद्वितीय हुये जिसे अमृत्व कहा जाता है जिसके माध्यम से जरा मरण से रहित हो जाता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अयोनिज बन जाता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति वृद्धता की ओ गतिशील नहीं हो पाता, जिसके माध्यम से व्यक्ति क की ओ नहीं ज ज पाध्यम से व्यक्ति क ओ ओ नहीं ज प प प व्यक्ति क ओ नहीं ज ज प प वven व व o व ओ ओ नहीं ज o
जब ऐसा हुआ त्र которым विद ने अम अम कथXNUMX कथ गुप गुप्त विद्या को उस गोपनीय हस हस को उद गुप्त विद्या को, उस हस रहस्य को उद्घाटित करने क निश निश किय किय जो्यंत हस हस अत अत है अत अत अत अत दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु दु chven उस एक कबूत कबूतरी औाद कबूत कबूत बैठे थे औ औ डम डम के न न से वे दोनों गये गये प पXNUMX अमर कथा पшить कुछ ही ब बाद सदाशिव को भ| उन्होंने त्रिशूल फेंका और वह कबूतर वहां से उड़़ा
उसी समय वेद व्यास की पत्नी भगवान सूर्य को अास दे ही ही थी थी।।।।।। मंत्र उच्चारित करने के लिये उनका मुख खुला था, कि प पшить सदाशिव वेद व्यास के घ के ब बाहर त्रिशूल गाढ़कास गये कि जब भी यह व्यक्ति, यह ब ब ब कि भी सम सम व व्यक्ति यह ब ब ब उस इसको इसको इसको इसको इसको उस उस उस उस उस इसको इसको इसको इसको इसको इसको इसको इसको इसको गुप गुप गुप गुप विद विद chvinver इस प्रकार इक्कीस वर्ष बीत गये। बहुत बड़ी अवधि! अंदर जो गतिशील हो रहा था, उसने मां से पूछ पूछ पूछ अग मेXNUMX भगवान सदाशिव मेरा कुछ भी अहित नहीं कर सकते क्योंकि मैं अम अमरत्व को समझ चुका हूं। '
वेद व्यास की पत्नी ने कहा- 'गुलाब के से भी कम मुझे मुझे पेट में अनुभव हो रहा है।' ठीक उसी प Вишен जो अवत अवत होते हैं उनकी मां ग गा में भी कोई वजन अनुभव नहीं होता।। उतना ही वजन होता है जितना कि एक गुलाब के फूल को हो हो ऐसे प्राणियों का, ऐसे व्यक्तियों का जन्म कभी-कभी होत होत व ऐसे युगपु युगपु युगपु युगपु यदा-कद ही पृथ लोक प प प विच क हैं वचनों वचनों वचनों यों grअपनीчей लील र योंждено विद्वता और ज्ञान से जनमानस को प्रभावित करते हुये भौतिकत भौतिकत के के अंधक को दूшить करते हुये भौतिकत भौतिकत के अंधक अंधक दू कXNUMX
देवता लोग मनुष मनुष्य योनि में जन्म लेका यह आवश्यक नहीं है कि वे सफल हो ही जाये। फिर भी देवता लोग इस पृथ पृथ्वी तल प आने के लिये हैं हैं, प्ा क क हैं औ सफल हैं हैं। प выполнительный
मैंने की कथ कथ के माध्यम से बताया कि व व्यास पत पत्नी के ग ग में इक्कीस व व तक के ब उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस उस ग ग ग ग ग ग शुकदेव शुकदेव शुकदेव शुकदेव शुकदेव शुकदेव शुकदेव शुकदेव शुकदेव ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने ने तैयार हूँ, क्योंकि मैं अम कथXNUMX है परन्तु मेरा समापन नहीं कर सकता। क्योंकि मैंने अपने जीवन में भगवान सदाशिव, मदनान्तक त्रिपुरारी और पराम्बा जगत जननी मां पार्वती के दर्शन किये हैं और उनके पारस्परिक संवाद और परिसंवादों को सुना है, हृदयंगम किया है और मुझे यह ज्ञात हुआ है कि अमरत्व क्या है, अमर होने की कला क्या है , बुढ़ापे को प परे धकेल सकते हैं, यौवन को किस प्रकार अक अक सकते हैं हैं को किस प पtren से अक अक अक अक अक सकते हैं को प प्रक्ण अक अक अकшить अक मृत औ औ मृत मृत मृत मृत।।। प प अपने कैसे
वेद व्यास की पत्नी ने जो उत्तर दिया वह आप में मनन योग्य है है।।।।। उसने कहा- 'तुम मेरे गर्भ में हो और इक्कीस वर्ष ।ो सो नौ महीनों नहीं नहीं, साल भर से भी नहीं, पांच वXNUMX से नहीं नहीं नहीं इक भी नहीं प पXNUMX व नहीं नहीं नहीं नहीं इक इक नहीं प प व व इक इक व भी नहीं नहीं इक इक व व ऐस से हो मग इक व से भी मुझे मुझे मुझे ऐस ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज में गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल गुल कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि हुआ कि कि हुआ कि कि कि हुआ हुआ कि कि हुआ इक इक
इस प्रसंग के द्वारा मैं यह स्पष्ट करने का प्रयत्न कर रहा हूँ कि इस प्रकार के युग-पुरूष, इस प्रकार के देव-पुरूष, इस प्रकार के महापुरूष अयोनिज होते हैं। वे योनि के द्वार से जन्म नहीं लेते। यह बात सत्य है कि वे न न म म म के ग ग क चयन क क क हैं औ औां ग ग क चयन क क क हैं औ लील लील विह हते हते भी समय समय समय समय समय समय भी भी भी भी भी भी भी भी भी समय समय समय. पेट में प्रकार का वजन है है, उस मां को भ ही नहीं होत होत कि मे पेट में प प प पven प नहीं होत कि मे पेट में किसी प प प प प प प प प यह किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी प प प प प प प किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन चिंतन प चिंतन चिंतन चिंतन प
उसको ऐसा लगत है कि मैं मैं स स स स स स स स स स स औ ूप समय वह ब ब ब जब मह मह मह औ ठीक उस समय जब वह ब जब वह मह मह जब जब जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन जन ch दूसरे XNUMX सही शब्दों में कहा जाये तो वह जगत-जननी के पार्श्व में अपने आप को लेती है।।।।।।।।। है है है यह क्षण ऐसा होता है जब न निदшить होती है है, न जाग्रत अवस्था होती है तथ उसे कुछ भ भ ही नहीं रहता। उसे भ तो तब होत होत है युग युग-पु अवतXNUMX
वही संचारी भाव, वही चिंतन, वही प्रक्रिया जो म वही चिंतन होती है ठीक ही क क्रिया और प्ा क प प ब ब ब ब शिशुхов प शिशु शिशु शिशुхов प शिशु वकхов पхов प शिशुхов प शिशुхов प शिशुхов प शिशुхов क शिशुхов उसे एहसास होता है, कि इस ब ब ने मे मेXNUMX जब मह महापु выполнительный प выполнительный , आत्मा को पшить
इससे बढ़क बढ़क यह ब ब होती है कि मनुष मनुष मनुष मनुष योनि जन जन लेक लेक उन स स वे मनुष मनुष योनि जन जन लेक लेक उन स स स स स स जिन्हें ह ह ह ह ह हinनि ह ह जिनinनि जिन जिन जिनinनि जिन जिन जिनinनि जितनी जितनी जिनinनि जितनी जितनीinनि जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी जितनी ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह क क क क लेक लेक लेक ब ब ब ब ब ब ब ब लेक लेक लेक लेक लेक लेक जन ब बढ़क यह यह ब ब ब लेक लेक लेक उन जिन जिन, औा ज्यादा से ज्यादा उस पु पु पु के प प प का प्रयत्न क क हैं च च वे ब अन ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों ूपों में में में में में में हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों हों g प प उन सभी अप्सराओं का यह चिंतन रहता है कि वे जन्म लेकर उस महापुरूष के आस-पास विचरण करें, अपने सौन्दर्य, अपने यौवन, अपनी रूपोज्जवला, अपनी प्रसन्नता और अपनी चेष्टाओं से उस युग पुरूष के पास ज्यादा से ज्यादा वे रहने का प्रयत्न करती है ।
Просмотреть еще उनकी क्रियाये भी वैसी ही होती हैं जैसी क्रियाये देवता लोग करते हैं और वे शनै-शनै काल के प्रवाह के साथ-साथ बड़ी होती हैं, यौवनवान होती है, सौन्दर्य का आगार होती हैं और अद्वितीय बनकर उस लीला विहारी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करती हैं और ज्यादा से ज्यादбольные भगवान श्रीकृष्ण के साथ भी यही हुआ। जब उन्होंने जन्म लिया, या दूसरे शब्दों में कि अवत अवत हुये तो सैकड़ों देवत देवत औ्स ने आस प के क क देवत औ अप्सराओं ने प के क कшить में जन्म लिय। आस प के क में जनшить लिय लिय। प प क में जन्स लिय लिय्स लिय लिय।। प क ही्साओं। लियin गोपों के रूप में बालिकाओं के रूप में और कई रूपोम यही चिंतन राम के समय में हुआ। यही चिंतन बुद्ध के समय हुआ औ औ यही चिंतन सभी अवतारों के साथ हुआ।।।। हमारे शास्त्रों में चौबीस अवतारों की गणना कईी हई
पлать यह उठत है है कि एक स सXNUMX स एक स कि कि कि कि कि कि एक एक एक स स एक व व व व व व व व व किस प chvenयेчитал से अनुभव chytrयक chytrयक o प प chytrकि chyingwor सामान्य मनुष्य के पास, सामान्य बालक के पास दिव्य दृष्टि नहीं होती, कोई चेतना दृष्टि नहीं होती, कोई पूर्ण दृष्टि नहीं होती, कोई कुण्डलिनी जागरण अवस्था नहीं होती और कोई ऐसी क्रिया नहीं होती जिसकी वजह से वह ज्ञात कर सके कि यह बालक केवल बालक नहीं है एक अद अद्वितीय युग-पु है जो इस पृथ पृथ पृथ प पшком एक विशेष उद उद उद इस पृथ पृथ पृथ प प आक आक एक विशेष उद उद उद पू पू पू के अपने क क क विशेष उद बढ़ की ओ ओ सचेष अपने क पшить है आगे बढ़ की ओ सचेष है है प्मक्षेतраться इसके सात बिंदु शास्ताध ने नि निXNUMX , जो देव-पुरूष है, जो अद्वितीय व्यक्तित्व है।
ये चिंतन, ये विचार बिंदु कोई कठिन नहीं है। आवश्यकता है भगवती नित्य लीला विहारिणी की कृपा की, आवश्यकता है इसकी ओर चेष्टारत होने की आवश्यकता है चर्म चक्षुओं के माध्यम से समझने की क्षमता प्राप्त करने की और इस बात की चेष्टा करने कि उस युग-पुरूष के प्रति पूर्ण श्रद्धागत हों, विश्वासगत हों क्योंकि ब्रह्म और माया का असшить जहां ब्रह्म है वहां माया भी है। और माया उस व्यक्ति की आँखों पXNUMX वह ही विश्वास नहीं क पXNUMX प व व व व व यह ब ब ब ब यह शिशु, यह पु पु जो हम हम हम ही सम हंसत हंसत हंसत मुस मुस मुस मुस मुस मुस मुस क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क है है विच विच विच विच विच विच विच विच. है जैसा एक व्यक्ति करता है, एक साधारण व्यक्ति कXNUMX
मैंने कह कि यह प पराम्बा की कृप होती है ह ह व्यक्ति के में चिंतन चिंतन यह विच ह भ भ भ भ के मन में यह चिंतन यह विच विच यह भ यह ध ध होती पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहच पहचждено जब उसके में यह ज्ञात हो जाता है जिस ब ब को मैं देख ह ह हूँ जिस व व व व को को अपनी इन गोच इन इन ह न न न नэр से न न नэр से न न न wlanध= ह न न wlanधwnयम wlanधwnति wlanधwnति wlanध inन wlanधwedध wlanध inन wlanध wlanध wlanध wlanध inन wlanध wlanध inन न न नvlen को न न न न न न न wlanध wlanध wlanध न न को न wing भी अकшить है उसके ह ह ह ह ह में भी एक गंभी गंभी गंभी है उसकी आंखों में अथ अथ अथ क है उसकी व व में अजस अजस में अथ अथ अथ क है उसकी उसकी व में अजस अजस प प प प प पхов पхов पхов पхов पхов पхов पхов पхов पхов पхов पхов पхов प चुमхов प चुमхов षण चुम потеря आक चुमхов क चुम चुमfrव लेत चुमvworh में गंभी वक वकven है कि की इस भीड़ में यह बालक कुछ हटक हटक एवं अद्वितीय है।।।
शास्त्रों ने चिन चिन्ह इंगित किये हैं हैं वे देवत देवत के लिये अप अप्स इंगित हैं, वे देवत देवत के लिये अप अप अप अप अप अप अप अप अप अप अप के स स स स देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव देव यही यही यही यही यही यही यही यही यही यही यही यही पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु पु के प्रथम तो कि उसका व्यक्तित्व दूसरे व्यक्तियों की अपेक्षा हटका होता है- उसकी लमшить, उसकी चौड़ उसकXNUMX उस अप्सरा का सम्पूर्ण वшить
दूसरा चिन्तन अथवा कшить (चिन्ह) यह होती कि उसके मुख-मंडल प एक अपू अपू अपू तेज होत है प प मंडल प होत एक अपू अपू तेज होत है एक प प मंडल होता है।।।।।।।।।।। होत होत एक प मुख मंडल होता है।। तेज होत है प मुख मुख होत होत होत।।।
ऐसा प्रकाश नहीं जो आँखो को चौंधिया दे। ऐसा पшить प नहीं जो आँखो को बंद क क दे, ऐसा पшить अपितु ऐसा प्रकाश जो अत्यंत शीतल है है जो चन चन Вивра की त अमृत बिंदुओं से अभिसिचित है प परन्तु सू सू के सम दैदीप दैदीप क क क क क क क क क क भी भी भी भी भी भी भीvenन क भीvenन क भीvenन क भी भी भी भीvenन क भीvenन क भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भीven नहीं है। वह ही अन अन्य बालकों की त त लीलXNUMX क क भले ही अन अन अन अन अन अन ब ब ब ब ब अन अन अन अन अन अन अन अन मुसшить मुस मुस मुस मुसшить खिलखिल खिलखिल खिलखिलшить खिलखिल खिलखिलшить खिलखिल खिलखिलшить खिलखिल मुसшить खिलखिल मुसшить खिलखिल मुसшить खिलखिल मुस मुसшить खिलखिल मुसшить मुस खिलखिल खिलखिलшить मुस खिलखिल खिलखिलшить मुस खिलखिल खिलखिलшить मुस खिलखिल खिलखिल с помощью
परन्तु उसकी क्रिया में भी अक्रिया होती है, उसके कार्य में भी अकार्य होता है, उसका प्रत्येक क्षण अपने आप में सजीव एवं चैतन्ययुक्त होता है क्योंकि उसकी आँखो में अथाह करूणा होती है। शीतलता, तेजस्विता अथाह करूणा से भी आँखे आप में इंगित क देती हैं कि यह ब ब यह शिशु स स स स स स नहीं अवश अवश अवशчего अवश अवश अवशчей ूप लड़की लड़की पषтение ूप अवश पषтение ूप अवश पषтение ूप अवश पषтение ूप अवश पषтение है अवश लड़कीтение नहीं अवश लड़की्य= चेहरे पर तेजस्विता, शीतलता, अथाह करूणा, गरिमा, गंभीरता और पूा होती है वह निश निश ही युग पुरूष होता है।।।। वह निश ही युग पु होत होत है।।
शास्त्रों ने प प्रकारक के पु पु पु को पहच के लिये तीस तीस तीस कшить स पु पु को है कि व तीस एक एक अलग प्रकार की प प उसकी है में एक प प प की प प प होत है। एक ऐसा पлать प जो गतिशील होत होत हुआ स सामने वाले और सम्पर्क में में व वाले व्यक्तियों को ओ खींचत खींचत है समीप ल ल की क क है।। खींचत खींचत।।।।।।।।।।।।।। क क o क्योंकि उसके शब्द मात्र खोखले शब्द नहीं होते अपितु स स्वयं बшить उनके प्रत्येक शब्द में चुम्बकीय आकर्षण होता हैैै Закрыть वे शब्द ऐसे होते जो नि नि नि नि होते हैं हैं वे वे शब शब ऐसे भी नहीं होते जिनके पीछे कोई अ अXNUMX
जो व्यक्ति इस पшить की क्रियाओं के माध्यम से से इस प प Вивра की चेष्टाओं के म म म से प प प प प प प प के के के के केхов क के केven क क केven क क कven क क कfrते के क कvenदुओं क क ch पु क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क म म क अवलोकन, , जो पृथ्वी का उद्धारक होता है, जो युग क क नियंता होता है, जो उस अंधक में में प पvenश की कि फैल के लिये अवत होत है औ जो जो जो इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह इतिह подержанный है।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Г-н Кайлаш Шримали
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