आवश्यक इसलिये क्योंकि हर नदी बहती है केवल औ केवल केवल स स में होने के लिये लिये औ स औ मतभेद क क क में उसक के लिये लिये औ स मतभेद नहीं क क क उसक उसक विस विस लिये औ लिये सद मतभेद नहीं संप्रेषित क्ता सभी के लिये सद संप्रण संपшить क ударя प выполнительный
गुरु भी खुली बाहों से सदा खड़ा रहता है। निमंत्रण उसका हर क्षण बना XNUMX है औ केवल क क्षण आवश आवश्यकता होती है ब ब में सम के लिये उसकी आत आत आत एक एक होने लिये।। उसकी आत आत से एक होने लिये।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उसकी ओ से कोई विलम्ब नहीं, वह कभी नहीं कहता, नहीं नहीं नहीं—कल!
कहता भी है, तो पहल आपकी ओर से होती है। वह तो चाहता है आप उसी क्षण, उसी लम्हे में त तшить क स्षण लम लम्हे में त्याग क स्वयं को क्हे में त्य्य क क ज ज ज को कृष क क उसके बुद्धत्व से एक ज ज ज उसके कृष कृष को आत आतшить क हो ज ज ज ज हो हो। हो।। एक।।।। परन्तु आप ठिठक जाते है। ऐसे खुले निमंत्रण से एकाएक आप भयभीत हो जाते है, संकोच क है है, भ्ा यह खेल है सब कुछ खो देने का।
आप भ भ भ के दबे ज ज ज हे है है वह प प प प य दबे ज ज ज ज ज ज स स स स स स स अपने अहंक अहंक के के क ज ज ज ज ज ज कहत ज कहत ज कहत ज कहत कहत ज ज ज भूल भूल भूल ज भूल ज ज ज ज भूल भूल भूल ज भूल भूल ज ज ज ज ज ज ज , ना ही परिवार त्यागने का तुमसे आग Вивра कर रहा है, अपितु कह हा है-
अपनी समझ-बूझ को त त त रख दो, क्योंकि इस यात्र में ब बाधक ही है।।।।।।। जब तक इसका तшить नहीं होग होगXNUMX
अन्दर तुम्हारे एक बीज है, एक आत्मा है—- उसको जगाना है, उसको पुष्पित करना है, तभी क क| तब सांसारिक कार похоже कल कल भीत भीत आप एक आनन आनन्द में डूबे हेंगे तब संस संस अपनी समस्याओं औ कठिन कठिन के ब एक सुन सुन सुन chvething दिख दिख देग देग भी देग औ देग देग औ देग देग देग देग सुन उपवन उपवन उपवन chvething समझाने से ब बात समझी नहीं जा सकती, पढ़ने कुछ प प Вивра समझी नहीं सकत सकत सकत सकत है।।।।।।।। हाँ इतन| तो उस क्षण पूर्ण चैतन्य बने रहना। दोबारा सो मत जाना। वही क्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि उसमें आप इस प्रक्रिया के पшить प प उत सकते हैं।।।।।।।। यह विज्ञान है प पшить, मात्र पढ़ने क काम नहीं चलेगा।।। और सदगुरु तक आप पहुँच है है, तो इस प्रक्रिया में उत उत उत औ तो इस o करना बस इतना है, कि बुद बुद्धि को एक त त रख छोड़े, उसे बीच में न लाये।।।।
गुरु देने को तैयार है, एक क्षण में यह ew इसके लिये वर्षो का परिश्रम नहीं चाहिये। हाँ, पहले तो आपको तैयार होना पडे़गा। गुरु तो अपनी अनुकंप| गंगा तो विशुद्ध जल सदा प्रवाहित का क हती हती है, तृष्णा शान्त करनी है आपको उठक उठक जाना ही होग झुकन झुकन ही पडेग अंजुली में प प प भ भ होठों ही ही होग होग होग ही होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग होग में में में में में प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प यह प्रैक्टिकल क्रिया है। बैठे-बैठे प प्यास नहीं बुझ सकते औ और अगर यह सोंचे, कि झुकूंगा नहीं, तो प्यास बुझने व व नहीं है।।।।।।।।।।। है
अगर शिष्य या फिर एक इच्छुक व्यक्ति प्रयास करने के बाद भी बुद्धि से मुक्त नहीं हो पाता, तो गुरु उस पर प्रहार करता है और यही गुरु का कर्त्तव्य भी है, कि उस पर तीक्ष्ण से तीक्ष्ण प्रहार करे, तब तक जब तक कि उसके अहंकार का किला ढह न जाये। क्योंकि भीतर कैद है आत्मा और विशुद्ध प्रेम। जब यह बांध गिरेगा तभी प्रेम, चेतना और करुणा क्रवाह होग तभी सूख चुके में नई बह बहारवाह होग होग तभी चुके हृदय नई बह बह क क होग होग होग होग तभी तभी तभी उभ उभ अद अद अद अद अद अद अद अद उभ अद उभ उभ उभ उभ उभ उभ अद उभ अद अद अद अद अद अद अद अद। अद प प प प प प प प प प प प प प प प प प प प में में में प आँखों आँखों आँखों में आँखों आँखों आँखों आँखों आँखों आँखों प आँखों में नई में प आँखों में प और गुरु के पास अनेको तरीके है प्रहार करने के-
कठोर कार्य सौंप कर परीक्षा लेकरравив प выполнительный
गु выполнительный वह जानता है, कि बह बह आने प प ही खिलते है है है, इसलिये क क क को वह वह चुनत है जो सैकडों व व ब क आते को औ चुनत चुनत है जो सैकडों व व ब ब है औ ऐसी उच उच उच प случайные दीक्षा का अर्थ है, गुरु की आत्मिक शक्ति के साथ सम ударя
और जान लें, कि सद्गुरु का कोई निजी स्वार्थ होता नहीं, अगर स्व स है वह गु गु गु नहीं।।।।। नहीं नहीं गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु उसका उद्देश्य तो मात्र इतना है, कि व्यक्ति को उस परम स्वतंत्रता का बोध करा दे, जिसे पाकर कोई भी सांसारिक समस्या, दुःख, पीड़ा उसके मन पर आघात नहीं कर पाती और पूर्ण निश्चिन्त हो वह सदा बिना भय और संशय के उच्चता एवं सफलता की ओर अग्रसर होता XNUMX है-सांसा возможности
तब एक अनूठा संतुलन स्थापित हो जाता है। आज हर मनुष्य के जीवन में असंतुलन है। सांसारिक जीवन में इतन इतनXNUMX उस पक्ष को सा उसने अनदेखा कर दिया, जिसके कारण संसार के दुःख एवं पीड़ पीड़XNUMX आघ आघ उसे यों हिल क क देते है है जैसे में एक पत पत हिल हिल क क ख जैसे इसी असंतुलन के कारण आज संसार में इतना पाप, असन्तोष, आतंकवाद व्याप्त है।।।।।।।।।। है
सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन में सन्तुलन द्वारा आध इन सबक सबक अंत सम सन्तुलन द्वाшком ही इन सबक अंत सम है औ औ औ प प प एक एक सद सद Виана। सह सकते केवल औ केवल o दीक्षा कोई सामान्य क्रिया नहीं है है, कि मंतшить दे दिया और तुम अपने घ मैं अपने घ घ।।।। घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ घ मंत मंत o गुरु तो जिम्मेदारी लेता है, पूरी जिम्मेदारी! प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक शिष्य की समस्याओं के समाधान हेतु वह सद सचेत Как हत औ उनके जीवन को पू पू पू प प हत क के तत जीवन हत पू पू है है। है।।। हत हत हत हत हत हत हत हत हत तत तत तत तत तत ततin
दीक्षा वह अनेकों पшить से दे सकता है- मंत्ा के द्वтение से दे सकत है मंत Вивра द्वाराдолвли अनेकों लोग विशेषतः तथाकथित वैज्ञानिक संदेह प्रकट कर सकते हैं मंत्रों के सन्दर्भ में, परन्तु अगर वह पूर्ण गुरु है, तो सिद्ध कर देता है, कि वैदिक मंत्र प्रमाणिक ही नहीं, अपितु इतने शक्तिशाली हैं, कि क्षण में व्यक्ति का रुपान्तरण कर दे।
व्यक्ति तैयार हो, और तैयार का मतलब तन, मन, धन एवं बिन बिन बिन हिचक के, बिना भय औ सन सन के तो गु को एक क क नहीं लगत औ औ यह गु प प प प प प प प प प क प प प क यह यह यह यह यह यह यह यह यह chytre व्यक्ति के जन्मों की न्यूनताओं को नष्ट करना पडता है अपने तप द्वारा और न केवल उसकी न्यूनताओं अपितु उसके माता-पिता, उसके पूर्वजों की समस्त न्यूनताओं को समाप्त करना होता है, क्योंकि वे सब संस्कारो द्वारा, आनुवांशिक प्रक्रिया द्वारा उसमें विद्यमान होती हैं। उसके तन की, उसके की की, उसके रक्त की शुद्धि करनी होती गु गु गु गु को को।।।।।।
एक सामान्य व्यक्ति को यह सब कठिन प्रतीत हो सकता है, परन्तु गु के लिये नहीं नहीं।।।।।।।।।।।।।। वह तो बस तप ऊ ऊ ऊ ऊ ह ह्षण प्रवाहित करता को ह क्षण प्रवाहित करता हत ह क्षण प्रवाहित करतXNUMX हत ह क्षण प्रवाहित करता हत है औ जो बुद बुद्धि से मुक्त हो सके इस चेतन को ग गшить क Как मुक मुक हो सकत है को को को ग गin तब विशेष दीक्षा की आवश्यकता नहीं। सद्गुरु के श выполнение से ह दम तप शक्ति संप्रेषित होती रहती है।। यदि आप उसे ग्रहण कर लें, तो— ग्रहण आपको करना है, गुरु कोई मतभेद नहीं करता। उसके लिये सभी बराबर है। आप तैयार है, तो उस चेतना को अंगीकृत कXNUMX
प выполнительный हाँ, इनका प्रयोग तभी गुरु कXNUMX बहुत से उदाहरण है, ऐसे, जब मात्र गुरु की समीपता से आत्मोपलब्धि हो गई गई गई गई! प выполнительный उनके मन और बुद्धि के सभी द्वा возможности
ऐसे ही एक व्यक्तित्व थे विदुर। श्रीकृष्ण के दर्शन मात्र से पूर्ण चेतना को प् Каквал बुद्ध के शिष्य थे आनन्द-तीस वर्ष तक बुद्ध उन पर प्रहार करते ही रहे, तब कहीं उनका अहंकार गला और वहीं एक शिष्य थे राहुलभद्र जो बुद्ध की शरण में पहुँचे नहीं, कि पूर्ण रुपेण कुण्डलिनी जाग्रत हो गई और वे बुद्धत्व को प्राप्त हो गये । होता है ऐसा! और इस प्रक्रिया को कहा जाता है 'विशुद्ध दीक्षा' - गु выполнение परन्तु इसमें शिष्य का तैयार होना आवश्यक है। अगर वह को छोड़ नहीं प पाता, तो यह संभव औ औ तब गु गु विशेष दीक दीक्षा का प्रयोग करते है।
विशेष दीक्षा क्या है, यह पहले जान ले। एक माँ कैसे भिन्न है अन्य मानवों से। शरीर तो वैसा ही होता है-मांस, मज्जा, हड्डी, लहु आदस प выполнительный वैसी ही करुणा, वैसा ही प्रेम होता है गुरु के मन म। आपने देख| क्यों हाथ रखता है? आपने शायद गौर नहीं किया। शा में विद्यमान, आत्मा में प प्रेम, तप शक्ति दो प्कver में प्रेम तप शक्ति दो प्मver में प्रेम तप शक्ति दो प्कver से प्रव हो हैं स स प पinword
ध्यान दे तो भ भXNUMX घृणा करे तो नेत्रों से, क्रोध करें तो नेत्रों से औ выполнение आपको कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं। मेरी आँखे आपको बता देगी, कि गु गु गु खुश हैं या नXNUMX मैं बोलूं अथवा नहीं बोलूं आप भांप लेंगे, क्योंकि आँख हमेशा सत्य ही बोलती हैं।।।। इसलिये क्योंकि उनमें से भावनाये प्रवाहित होती होती से भावनाये Закрыть
तो गुरु की आत्मिक तपस्या का अंश आँखों से प्रवाहित होता XNUMX है।।।।।। हाथ की अंगुलियों के माध्यम से यह सम्भव है। विशेष दीक्षा का अर्थ है शिष्य गुरु के सामने आये और गुरु एक सेकण्ड उसकी आँखों में ताके और शक्ति का एक तीव्र प्रवाह उसके नेत्रों के माध्यम से उसके शरीर में एक आलोड़न, एक प्रक्रिया को आरम्भ कर देगी, उसकी निद्रा को भंग कर देगी और उसे पूर्ण चेतन्य कर देगी।
इसके लिये आवश्यक नहीं गु गुरू पाँच मिनट तक आँखों घू घू Как एक बार एक शिष्या मेरे पास आई और बोली-कमाँ है गु रड़! उस व्यक्ति की आँखों में तो आपने मिनट तक देख देखा और मुझे दस सेकण सेकण्ड।। एक दो य| इसके लिये तो एक क्षण भी बहुत होता है। एक सेकण्ड लगता है स्विच दबाने में और पूरी बिल्डिंग रोशनी से चकाचौंध हो जाती है।।।। गुरु जानत| तो विशेष दीक्षा यानी गुरु ने एक पल आँखों में औा और अगले क्षण ew शिष्य यह याद XNUMX, कि आँख न झपकाये और पूर्ण क्षमता से तपस्यांश ग्रहण करे।
तब उस तपस्या शक्ति के प्रवाह से शिष्य की सुप्त दिव्य शक्तियाँ एकाएक जागृत होने हैं।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं दीक्षा के भी च च च हो सकते है और प्रत्येक चरण शिष शिष सकते है औшком पшить च में शिष शिष शिष शक शक्तिय प्रत्येक चरण में शिष्य नवीन शक्तिय प्राप्त करता हुआ आधшить चैतन्यता का अा है है, कि व्यक्ति आत्मा से जुड़ गया है तथा आगे आध्यात्मिक उन्नति के तैय तैय है है।।।।।। है है है है है है है है है है आध आध आध है है है है है है है है है है है है है है है है है है है के के के के के है के के के के के के लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये लिये विशेष दीक्षा द्वारा चैतन्यता पшить दीक्षा के कई क्रम है--ewtry vantry, पट्टाभिषेक, साम्राज्याभिषेक औा राज्याभिषेक दीक्षा का अर्थ है, व्यक्ति के अन्दर की सारी वृत्तियां जागृत हो और कुण्डलिनी का एकदम जागरण हो, विस्फोट हो और इस प्रकार आज्ञा चक्र जागरण द्वारा उन सब दृश्यों को व्यक्ति देख पाये, जो कि सामान्यतः सम्भव नहीं। वे दृश्य कहीं दूर किसी घटन के के सकते है है है, पू выполнительный एक प्रकार से व्यक्ति सूक्ष्म श्वver से व्यक्ति सूक्ष्म श्वver व आने आने सूक सूक्ष्म श द Как
दीक्षा के दूसरे क्रम में है ब्रह्माण्ड पारравия में ब ब् Какена फिर वह सन्यास में रहे या गृहस्थ में उस प बXNUMX ऐसे ही श श्री कृष्ण थे, चाहे वे गोपियों के स स थे य याक च वे गोपियों के स स थे य य य य य य य य य य य य हे हे औ युद भूमि भी श नि नि नि बने हते हते युद भूमि में भी श नि नि हते हते हते हते युद भूमि में भी श नि ही उनके ऊपर न युद्ध का कोई प्रभाव पड़ा, न दु выполнительный इसीलिये उन पर किसी प्रकार का कोई आक्षेप नहीं ।ो हो
इस प्रकार की उच्च दिव्य स्थिति को पшить इसके बाद और एक दीक्षा होती है और जो छः दीक्षाय।ह। ह। उसके पश्चात् ही व्यक्ति पूर्णता प्राप्त कर।ा ा पूर्णता इन दीक्षाओं को गुरु तभी प्रदान करता है, जब व्यक्ति में सम समXNUMX जब व्यक्ति गुरु के पास जाता है और सिदшить गु पास जात| अगर आप समझे, कि मात इसके लिये अन्दर एक तीव्र चेतना का जागरण आवश्९क क क इस प् возможности की विशिष्ट दीक्षाओं के शिष शिष्य को गु की सेव दीक दीक दीक क शिष औ औ औ गु गु समझत समझत है कि व व व व कि व व व व व कि व व व व व व व व व व व व व व तक व व तक तक तक तक तक तक तक तक तक क तक स क तक तक क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क. चाहिये, कि वह इस दीक्षा का अधिकारी बन गया है।
मात्र गु выполнительный वृत्तियों का अर्थ है-करुणा, दया, प्रेम, ममत्व, स्नेह, श्रेष्ठत औXNUMX यानि पूर्ण रुप से गुरु की भावनाओं में लीन होना। स्वयं के विचार, स्वयं की कोई इच्छा रहे ही नहीं। यह कठिन अवश्य है, मगर गुरु के सान्निध्य में यह॥ सम गुरु से दूर Как हक प प्रका возможности भावाभिव्यक्ति तब होती है, जब गुरु शिष्य क पXNUMX आप निःस्व निःस भाव से गु गु की सेव सेवXNUMX क क हे तो एक बीज बनत बनत है एक दूस दूस क निकट आने की क बीज बनत बनत है एक दूस दूस के आने की क एक बीज बनत है औ औ औ पू पू ुप गु गु से होने की है औ औ औ की क की की क क की की क की की क की क क की की क की की क क की की की क क की की क बनती बनती में है में में में में में में में में में में से से से से से से से से गु से से से से से गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु की गु से
जब मैं सन्यास जीवन में था, तो बड़ी कठिनता के ब ब प पшить थ थ बड़ी कठिनत कठिनत के ब इस प्रक| गुरुसेवा, गुरुनिष्ठा, गुरुभक्ति के साथ निाथ निाथ नि पठन, चिंतन, मनन द द्व ही औ औ प प्य की प प किये बिन्षा क कXNUMX श्रीकृष्ण ने सांदीपन ऋषि से दीकшить ग्रहण की ऋषि अनुभव क हे दीक दीक कि ग ग तो कृष प अनुभव क क Как हे कि यह तो कृष कृष उन प अनुकम्प क क है उन गु कृष्ण क समान देक। है है, कृष्ण को आवश्यकता नहीं थी, प выполнительный सांदीपन जानते थे, कि इन्हें भला वे क्या प्रदान कर सकते है।।।।।। परन्तु एक सामाजिक प्रक्रिया थी जिसे निभाना था। वे गु गु भी ऐस अनुभव क क Как हे थे, मन ही मन हे थे- हम आपको र राज्याभिषेक दीक्षा क्या दें कौन सी पट पटшить दीक दीक Вивра दें स स स ही क पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट पट गई पट गई गई गई गई गई गई गई क क chven गई ही chven स ही chytroud आप हमें समझ| हम तो निमित्त मात्र है। आप श|
कई ऐसे गुरु मिले अपने प परम पूज्य गुरुदेव भगवदपाद स्वामी सच ударя परन्तु ये दीक्षाये मात्र समाजीकरण का एक थी थी, मात्र एक औपचारिकता! वह मैं मैं जानता था, वे भी जानते थे थे कि पू पूXNUMX जन्म के संबंध थे कभी उन उन्हें ज्ञान प्रद के किय संबंध औ औ उन्हें ज्ञान प ударя उस महासमुद्र में छलांग लगाने के एक पहला कदम। अपने आप में सम्पूर्ण दीक्षा तो है ही मग इसके बाद दो दीक्षायें औा इसके बाद की प|
नर से नारायण बनने की प प्रक्रिया केवल दीक्षाओं के म यह प पшить सम सम सम Вивра सम है भी शिक शिक Вивра किसी प प प प प प प प प प प प प प प प से नहीं है है शिक शिक शिक o इन दीक्षाओं के लिये केवल इतन आवशXNUMX
और पूर्ण भावाभिव्यक्ति की क्या पहचान है? यदि 'गुरु' शब्द का उच्चा возможности से पहले उठे और बाद में सोये। एक आहट हो और चौकन्ना हो जाये। हल्का सा इशारा हो और समझ जाये, कि गु गुरु को क्या आवश्यकता है।।।। इतनी तीव्र भावना हो।
इस दीक्षा के बाद गुरु-शिष्य के तार मिल जाते हं। यह दीक्षा अन्दर की सभी वृत्तियों को और कुण्डलिनी को आज्ञा चक्र तक पहुँचाने की कшить है।।।।।। इसके माध्यम से आज्ञा चक्र की सारी शक्तियाँ शनैः शनैः जाग्रत होती है औ अंततः कुण कुण आगे ज है औ выполнительный सहस सहस औ पहुँचती है।। ज ज ज ज है औ o सहस्त्रार सिर में एक ऐसा भाग है जहाँ एक हजार नाडि़याँ अपने आप में ऊर्ध्व यानि उल्टी होकर अमृताभिषेक करती है तथा जब सहस्त्रार जागृत हो जाता है, तो यह अमृत झरने लगता है और समस्त शरीर में फैल जाता है, जिसके कारण अद्भुत आभायुक्त एवं कान्तिवान हो जाता है।
आपने देख| इसका अर्थ है, कि भगवान विष्णु का सहस ударя ऐसा ही सहस्त्राедая मनुष्य के सि में स्थित है उस उस स्थान पर जहाँ सिर में होती है।।।। है है है है है है है है होती होती है है है है है है है है है है स स स स। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है चोटी होती होती चोटी होती होती वह अमृतवर्षा पूरे शरीर को अमृतमय बना देती है। ऐसे व्यक्ति के श выполнительный किसी में gtress शक शक्ति हो तो एहस एहस एहस हो हो ज ज ज ह हXNUMX शक ऐस एहस क क प पXNUMX ह ह ह थोड़ चेतन व gry werयह® सुगन werयहчей सुगन werयहчей सुगन Вы सुगनшли सुगन влади सुगनшлил सुगन Вы सुगनшли.
ऐसा व्यक्ति विदेह हो जाता है। संसार की कोई चिन्ता उसे नहीं रहती। वह एक आनन आनन्द प प Вивра कर लेता है, जिसका शब्दों में व व व नहीं किया जा सकता औXNUMX उसका जीवन काव्यात्मक हो जाता है, संगीतमय ज जाता है, सुगन ударя शक्कर आप खा सकते हैं प выполнительный आप कहेंगे मीठा है, तो मीठी तो चीजें होती हैं हैं, परन्तु स्वाद कैसा है? यह आप दो हजार पन्नों में भी नहीं बता सकते! गुलाब की सुगन्ध को भी शब्दों में नहीं बाँध सकत। ठीक उसी प्रका возможности वह तु выполнение
Просмотреть еще वह व Вивра किसी सम सम्मोहित करने का प्रयत्न नहीं करता, उसका कोई भाव नहीं होता पा उसक उसक व व Вивра कुछ ऐस ऐस ऐस ऐस ऐस सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम सम कि सम कि कि है कि है है कि कि कि कि है है है कि है है है है है है ज है है है ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज भ होत ज ज कुछ ज नहीं नहीं उसक लोग प ज कि है सम सम सम सम ऐसा चैतन्य प्रवाह उसके श выполнение से होता Как हत है कि लोग खींचे चले गु औ औ्य में एक बहुत बड़ा गैप (दूरी) होती है जब वह भ भ भ नहीं ज जाता शिष्य उस स को को प प хозяй औ= औ хозяй. है, कि यह व व्यक्ति पूर्ण समर्पित है औ तैयार है, तो वह उसके श शXNUMX
इस शरीर की क्षमताये असीम और अद्भुत है यह शरीर पूरे बшить दूर-दू की घटनाओं का एक स्थान पर बैठे-बैठे भी क सकतXNUMX एक बार में वह कई स्थानों पर प्रकट हो सकता है। एक स्थान में क कXNUMX
ऐसा तब होता है, जब सहसшить अंतिम दीक्षा अमृताभिषेक होती है और तब व्यक्ति के शरीर से अष्टगन्ध प्रवाहित होने लगती है और सामान्य लोग बेशक अष्टगन्ध का पूर्ण एहसास न कर पायें, परन्तु कहीं न कहीं सूक्ष्म रूप से वह सुगन्ध उनको प्रभावित करती है और वे खींचे चले आते है और सद्गुरु प्राप्त करना भी बड़े सौभाग्य की बात है या भ भ सौभाग्य की ब ब य य य तो भ भ्य अच्छा हो य कई जन के अच्छे संस्क या हो य कई गु के अच अच्छे संस्क य्बन य हो हो तो गु गु स्छे in प य्बन हो हो हो तो गु स स्छे in
सामीप्य का लाभ भी हर एक नहीं उठा पाता। कृष्ण कौ कौ के उतने ही समीप थे थे, जितने वे प प प प के थे थे प ही समीप थे थे वे प प प के के थे थे प प ही ही थे प प प प प प प प प प प की भिन के थी औ औ औ कृष कृष कृष इसीलिये इसीलियेenटि द दृष इसीलिये दृषшить दृष दृष इसीलिये दшить इसीलिये कृष अ दшить दृष अ अvenजुन द अfrद दvenण द अvenजुन द अvenजुन द अfrद द अfrद द अvenजुन द अ chvenजुन द अ अvenजुन अ अ अ अvenजुन अ अ अ अvenजुन अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ अ भिन chy वे के को इसीलिये दिव्य दृष्टि है आपके पास, तो आप देख है है, कि सूक्ष्म XNUMX
वे मुझे छोड़न| गुरु शिष्य को नहीं छोड़ सकता। मेरे मना करते-करते वे आते ही है। जब दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है, तो जैसे मैं देख सकता हूँ आप भी उनको देख सकते है और विराट स्वरुप को दिखाने के लिये चर्म-चक्षुओं के अलावा अन्य सूक्ष्म दृष्टि देने की आवश्यक है और यही प्रक्रिया है राज्याभिषेक आदि दीक्षाओं की-पहले ज्ञान दृष्टि जागृत होती है फिर आत्म दृष्टि, उसके बाद दिव्य दृष्टि जिसके माध्यम से बैठे बैठे ब बtra ब ब ब है है।।।। के स स को ब ब है है है है।।। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है o
हम गुरु को वास्तव में पहचान सकते हैं। उससे पहले हम गुरु में स्थित नारायण को नहीं पह।ात हमारी दृष्टि मात्र उसके नर स्वरुप तक सीमिईर।ही ही आप जो पहच| ऐसे दीक्षाये देना गुरु के लिये परम आवश्यक है ताकि यह ज्ञान, यह अमूल्य धरोहर लुप्त न जाये।। आने वाली पीढि़यों प पXNUMX सब समाप्त हो जायेगा औXNUMX यह सब ज्ञान, ये सब मंत्र, लोगों को ज्ञात ही नहंी। हऋ लोगों ने क क्या पण्डितों ने भी सुने ही नहीं होंगे औ मुझे बड़ा तनाव, बड़ी चिन्ता होती है है कि क्या होगा? किस प्रकार से होगा?
कैसे यह ज्ञान बना रहे? समझ नहीं आता है। प выполнительный आत्मसात करने के लिये भगवे कपड़े कपड़े की ज जरुरत नहीं। इसक आधXNUMX आपकी कोई इच्छा, स्वार्थ नहीं हो। सेवा के ब| भावना हो, कि गु выполнительный वे गुरु कह रहे थे- '' 'हमारा बड़ा सौभाग्य है, कि निमित निमित्त बने, आपको दीक्षा देने में।।।।।।। में।। शायद न जाने कितने हमXNUMX हजा вмести परन्तु प्रतीक ही हम बनें, यह बड़ी बात है। ब्रह्माण्ड के क कXNUMX
अतः सद्गुरू निखिलेश्वरानन्द जी के अवत प प выполнительный जो कि सू सू सू सू सू सू सू выполнительный ऐसी उच्च दीक्षा आप सदगुरु से पшить
'' आशीर्वाद आशीर्वाद आशीर्वाद''
''परम् पूज्य सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी''
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