जो भी है है, वह आश से जीवित है औ जो भी मृत है है, वह निराशा से मृत है।।।।।।। यदि हम छोटे बच्चों को देखे, जिन्हें अभी समाज, शिक्षा और सभшить सबसे पहली बात दिखाई पड़ेगी-आशा, दूसरी बात-जिज्ञासा, और तीसरी बात-श्रद्धा। निश्चय ही ये गुण स्वाभाविक हैं। उन्हें अर्जित नहीं करना होता है। हाँ हम चाहे तो उन्हें खो अवश्य सकते है। फि выполнительный
इसलिए मैं कहता हूँ वस वस्त्रों को क करों और उसे देखो तुम स स्वयं हो।। सब वस्त्र बंधन है और निश्चय ही परमात्मा निर्।सी क्या अच्छा न हो कि तुम भी निर्वस्त्र हो जाओ? मैं उन वसшить की ब बXNUMX उन्हें छोड़ कर तो बहुत से व्यक्ति निर्वस्त्र हो बहुत से व्यक्ति निर्वस्त्читанный कपास कमजोर धागे नहीं, निषेधात्मक भावनाओं की श शшить उन्हें जो छोड़ता है वही नि निा
मैं यह क्या देख रहा हूँ? यह कैसी निराशा तुम्हारी आंखों में है? और क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है कि जब नि नि नि होती हैं तब तब हृदय की अग अग बुझ ज ज है औ व स हृदय की वह अग बुझ बुझ ज है औ व स अभीप अभीप अभीप अभीप सो ज है है क क व स अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप अभीप हों हों हों हों।।। क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क है है क क क निराशा पाप है, क्योंकि जीवन उसकी धारा में निश्चय ही ऊा ऊ खो देत ध ध ध ध ध ध है। निराशा पाप ही नहीं, आत्मघात भी है है, क्योंकि जो श्रेष्ठतर जीवन को प में संलग्न नहीं है उसके च अन अन अन ही मृत ओ बढ़ ज ज च च च च च च च च च च च च च च च च च च च ज संलग संलग ओ ओ बढ़ बढ़ ज ज ज ज बढ़ बढ़ बढ़ ओ ओ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ है है है बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ बढ़ है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है बढ़ ज यह शाश्वत नियम है कि ऊप ऊप नहीं उठता, वह गि गि जाता है औ जो आगे नहीं बढ़त उसको धकेल दिय दिया जाता है।।।।। मैं जब को पतन में ज जXNUMX देखत हूँ ज ज जXNUMX पतन की प Вишен विधेयात्मक नहीं हैं घाटियों में जान| वह ही निषेध छ छाया है औ जब तुम्हारी आंखों नि निराशा देखत हूँ तो स्वाभ ही कि मे मे मे प chvlow पीड़ पीड़= पीड़ पीड़= पीड़ पीड़= पीड़ grटियों wlम पीड़ पीड़ मдолвли
आशा सूर्यमूखी के फूलों की भांति सूा की ओ ओ देखती है और निराशा? वह अंधकार से एक हो जाती है। जो निराश हो जाता है, वह अंत अंतर्निहित विराट शक्ति के प्रति सो जाता है औ उसे विस विस क देत देत जो वह है, औ जो हो सकत है है। जो वह है बीज जैसे भूल जाए कि क क्या होना है और मिट्टी के स क क एक होक होक पड़ औाए ऐस ऐस वह मनुष जो नि नि नि नि नि डुब ज ज ऐस ऐस। मनुष मनुष जो नि नि नि डुब ज ज ऐस। वह मनुष मनुष नि नि नि में ज ज ज ज। मनुष मनुष नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि नि है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है नि नि है है नि ऐस है है है ऐस ऐस है। ऐस ऐस है। ऐस ऐस।। ऐस ऐस।। ऐस।। वह उच्चता की और बढ़ना ही भूल गया और परमात्मा, गुरू को दोषी ठहराने लगा है।
यह समाचार उतना दुखद नहीं है जितना कि आशा का मा ना ना क्योंकि आशा हो प परमात्मा को पा लेन कठिन नहीं औ यदि आश आश आश न हो प पXNUMX आशा क आकXNUMX आशा ही प्ा है जो उसकी सोई हुई शक शक शक शक शक को जग है औ औ उसकी निष निष निष हुई शक्तियों जग जग क औ क उसकी निष निष निष निष चेतन सक सक सक सक क क क क क क मैं कि कि आश भ भ भ क क आस क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस आस दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश दश सक सक दश chy जग आस आस क जग भ आस यह भी कि आशा ही समस्त जीवन-आरोहण का मूल प्राण है? पर आशा कहाँ है? मैं तुम्हारे प्राणों में खोजता हूँ तो वहाँ निराशा की ew आशा के अंगारे न हो तो तुम जीओगे कैसे? निश्चय ही तुम्हारा यह जीवन इतना बुझा हुआ है कि इसे जीवन भी कहने में असम असम असम असम हूँ आज आज्ञा दो मैं कहू कि म म गए हो हो! असल में तुम कभी जीए ही नहीं। तुम्हारा जन्म तो जरूर हुआ था, लेकिन जीवन तक नहीं पहुँच सक सका! जन्म ही जीवन नहीं है। जन्म मिलता है, जीवन को पाने के लिये।
इसलिए जन्म को मृत्यु छीन सकती है लेकिन लेकिन को कोई भी मृत्यु छीन नहीं सकती।।।।। जीवन जन्म नहीं है और इसलिए जीवन मृत्यु भी नही। हहह जीवन जन्म के पूर्व है और मृत्यु के भी अतीत है। जो उसे जानता है वही केवल भय और दुखों के ऊपर उहठ ४ाा पाल किन्तु जो निराशा से घिरे है, वे उसे कैसे जानेंग॥? Закрыть जीवन एक संभ| है औ उसे सत्य में परिणित करने के गु गुरू साधना चाहिए। निराशा में साधना का जन्म नहीं होता, क्योंकि निराशा तो बोझ है औ उसमें कभी भी किसी क जन्म नहीं होता। इसीलिए मैंने कह|
मैं कहता हूँ, उठो और निराशा को फेंक दो। उसे तुम अपने ही हाथों से ओढ़े बैठे हो। उसे फेंकने लिए औ कुछ कुछ नहीं क करना है सिवाय तुम फेंकने को र राजी हो जाओ।।। Закрыть मनुष्य जैसा भाव करता है, वैसा ही हो जाता हैं। उसके ही भाव उसका सृजन करते है। वही अपना भाग्य-विधाता है। स्मरण रहे कि तुम जो हो वह तुमने ही अनंत ब ब च च च है भी हो वह ही अनंत ब ब च च च है है विच विच तुमने अनंत अनंत ब है देखो, स स में खोजो खोजो तो तो तो के के के के तो तो तो तो तो तो तो दिखेग दिखेग दिखेग दिखेग दिखेग o स्वयं के आत्म-परिवर्तन की कुंजी को पा जाओगे। अपने ही द Вивра ओढें भावों और विचारों को उतार कर अलग कर देना कठिन नहीं होता है।।।।।।।। वस्त्रों को पहनने भी जितनी कठिनत कठिनता होती है उतनी उन उन उत उत उत में नहीं होती है, क्योकि वे है भी नहीं।।।।।।।।।। नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं सिवाय तुमшить हम अपने भ भावों में अपने ही हाथों से कैद हो ज ज है अन अन्यथा वह जो हम हम भीत भीत है ही स स्वतंत्र है।।।।।।
क्या निराशा से बड़ी और कोई कैद है ? 🤗 ! क्योंकि पत्थरों की दीवारें जो नहीं कर सकती, वह निराशा करती है।।।।।।।। दीवारों को तोड़ना संभव है लेकिन लेकिन नि निXNUMX नि выполнительный
निराशा की इन जंजीरों को तोड़ दो! उन्हें तोड़ा जा सकता है, इसीलिए ही मैं तोड़ने कह ह रहा हूँ।।।।। उनकी सत्ता स्वप्न सत्ता मात्र है। उन्हें तोड़ने के संकल्प मात्र से ही वे टू। जाएंत जैसे के जलते ही अंधक टूट टूट जाता है, वैसे संकल संकल संकल के ज ज ही स स्वप्न टूट ज है औ फि फि नि नि के होते ही जो चेतन चेतन को घे लेत लेत उसक न आश ही जो आश आश चेतन चेतन को है आश आश जो जो आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश आश को को को को को को को को को को को को को को को को घे घे घे घे घे घे घे घे
निराशा स्वयं आरोपित दशा है। आशा स्वभाव है, स्वरूप है। निराशा मानसिक आवरण है, आशा आत्मिक आविर्भाव। मैं कह रहा हूँ कि आशा स्वभाव है। क्यों? क्योंकि यदि ऐसा न हो तो जीवन-विकास की ओर सतत् गति आरोहण की कोई संभ संभावना न ह जाए। बीज अंकु बनने को तड़पता है, क्योंकि कही प प्राणों के अंत अंतшком क्योंकि कही प्राणों किसी अंत अंत अंत्थ केंद्ा
अपूर्ण को पूर्ण के लिए अभीप्सा आशा के अभाव में कैसे सकती सकती है? और पदार्थ की परमात्म| सत्य को पाने को, स्वयं को जानने को स्वरूप प प्enठित को को सब वस स Виана में प्रतिष्ठित होने को सब वस वस्त्रों को नग नग हो ज आवश आवश है वस वस वस वस वस chvenयोंकि выполнить परमात्मा की उपलब्धि के पू पूXNUMX उससे ही प्रमाद और आलस्य उत्पन्न होता है।
संसार में विश्राम के स्थलों को ही प्रमादवश गंतव्य समझने की भूल हो जाती है।।।।।।।। परमात्मा के पूर्व और परमात्मा के अतिा इसे अपनी समग्र आत्मा को कहने दो। कहने दो कि परमात्मा के अति выполнительный
प выполнительный संकल्प और साध्य जितना ऊंचा हो, उतनी गह गह गह गह स स्वयं की सोयी शक्तियां ज हैं स स स स की ही तुम तुम्हां शकागती क प प प है ऊंच ही तुम तुम्हां शक क प प प प है है ही तुम तुम तुम o आकाश को छूते वृक्षों को देखो! उनकी जड़ें अवश्य ही पाताल को छूती होगी। तुम भी यदि आकाश छूने की आशा और आकांक्ष|
जितनी तुम्हारी अभीप्सा की ऊंचाई होती है, उतनी तुम तुम्हारी शक्ति की गहराई भी होती है।।।।।।।।।। है है है है क्षुद्र की आकांक्षा चेतना को क्षुद्र बनाती है। तब यदि मांगना ही है तो परमात्मा को मांगो। वह जो तुम होन होना चाहोगे, पшить क्योंकि प्रथम ही अंततः अंतिम उपलब्धि बनता ह। मैं जानता हूँ कि ऐसी प प выполнительный लेकिन ध्यान में रखना कि जो परमात्मा की ओ उठे वे भी कभी ऐसी ही प выполнение से घि घि थे।।।।।।। घि घि थे थे।।।। घि घि घि घि घि घि घि घि घि घि घि घि थे थे थे थे थे।।।।।।।।।।।।।। घि प выполнительный प выполнительный लेकिन ध्यान में रखना कि जो परमात्मा की ओ उठे वे भी कभी ऐसी ही प выполнение से घि घि थे।।।।।।। घि घि थे थे।।।। घि घि घि घि घि घि घि घि घि घि घि घि थे थे थे थे थे।।।।।।।।।।।।।। घि
परिस्थितियों का बहाना मत लेना। परिस्थितियां नहीं, वह बहाना ही असली अवरोध बन जान जान जान परिस्थितियां कितनी प प्रतिकूल हो, वे इतनी प्रतिकूल कभी नहीं हो सकती हैं कि प परमात्मा के म म में सकती हैं कि परमात्मा के म म में ब हैं कि परमात्मा के म म में ब हैं प परमात्मा के म म में ब हैं ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज जXNUMX! वैसा होना असंभव है। वह तो वैस वैस होग होग जैसे की कहे कहे अंधे अंधेXNUMX इतना घन कि प प प प प प प के जल में ब बXNUMX बन गय है।।।।।।। है है है है है है।।।।।।।।।।।।।।।।।।
अंधेरा कभी इतना घना नहीं होता और न प परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल होती है कि वे पшить तुम्हारी निराशा के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं ही वस्तुतः तुम्हा возможности जिसमें पल-पल परिवर्तन है उसका मूल्य ही क्या? परिस्थितियों का प्रवाह तो नदी की भांति है। उसे देखो, उस पर ध्यान दो, जो नदी की ध ध में अडिग चट चटшить चट भ नदी की ध ध में अडिग) वह कौन है? वह तुम्हारी चेतना है, वह तुम्हारी आत्मा है, वह अपने अपने वास्तविक स्वरूप में स्वयं हो! सब बदल जाता है, बस वही अपरिवर्तित है। उस ध्रुव बिंदु को पकड़ों और उस पर ठहरों।
लेकिन तुम आंधियों के साथ कांप XNUMX क्या वह शांत और अडिग चट्टान तुम्हें नहीं दिख दिख पड़ती जिस प प तुम खडे़ औ औ तुम तुम हो? उसकी स्मृति को लाओ। उसकी ओ आंखे उठते नि निराशा आशा में परिणत हो ज है औ और अंधकार आलोक ज जाता है।।।।।।।।।।।। स्मरण ा कि जो समग्र हृदय से, आशा और आश्वासन से शक्ति हृदय से आश आशा औ्वासन से शक्ति औ संकल्प से प्रेम औ्रver से स स सत потеря द क потеря दчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कчего कшли. पाप के मार्ग पा सफलता प पXNUMX
Закрыть हम अपनी नि निराशा में अपनी ही आंख क क लेते है है, यह बात दूसरी है।। निराशा को हटाओं और देखो, वह कौन सामने खड़ा है ! क्या यही वह सूर्य नहीं है जिसकी खोज थी ? क्या यही वह प्रिय नहीं है जिसकी प्यास थी ? क्राइस्ट ने कहा है, मांगो और मिलेगा। खटखटाओ और द्वार खुल जाएंगे। वही मैं पुनः कहता हूँ क कшить धन्य हैं वे लोग जो द्वार खटखटाते है! और आश्या है उन लोगों प प प प्रभु के दшить प ही खड़े है औ आंख बंद किये है औ औ Как हे हे है!
साधक की यात्रा जिन पै पैरों से होती है उन दो पै पै की सूचन सूचना शांति के आखिरी हिस्से में।।।।।।।।।। है है हिस हिस हिस हिस हिस है है है है साधक का एक पैर तो संकल संकल्प और साधक का दूसरा पैर है समा साधक का संकल्प प्राथमिक है। वह कहाँ जाना चाहता है, क्या होना चाहता है, उसके लिये संकल्प शक्ति का होना जरूरी है। लेकिन यह भी ध्यान रखना है साधक के संकल्प ही काथफन ही कानफन गुरू के बिना, गुरू के संकल्प के बिन बिन एक य य य गु गु नहीं संकल संकल के बिन बिन इंच इंच य य य य य य य य य य य य य य य म म म से य य लेकिन गु के संकल संकल संकल्प म म से य य य नहीं सकती संकल संकल संकल्प म म से य य हो उसे गुरू परमशक्ति का सहारा भी लेना होगा। व्यक्ति की शक्ति उतनी कम है, न के बराबर कि गुरू क का सह ब ब तो य अग गु गु क क सह सह न तो तो य य य य नहीं सकती सकती।।।।। सकती सकती सकती सकती सकती सकती हो हो तो तो तो तो नहीं हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो
एक ज्ञान है भ भ तो देत देत है मन को बहुत ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज क क क क क कXNUMX एक ज्ञान है जो को भ भरता नहीं, खाली करता है हृदय को शून्य का मंदिर बनाता है। एक ज्ञान है, जो से से मिलता है और एक ज्ञान है अनसीखपन अनसीखपन से मिलता। जो सीखने से मिले, वह कूड़ा-करकट है। जो अनसीखने से मिले, वही मूल्यवान है। सीखने से वही सीखा जा सकता है, जो बाहर से डाला ज। तता अनसीखने से उनका जन्म होता है, जो तुमшить जीवन मिट्टी का एक दीया है, लेकिन ज्योति उसमें मृणमय नहीं चिन्मय की है।।।। दीया पृथ्वी का, ज्योति आकाश की, दीया पदार्थ का, ज्योति परमात्मा की।।।।।।।।।।। दीया एक अपूर्व संगम है। इसे ठीक समझ लेन लेना, क्योंकि तुम भी मिट्टी के ही हो हो, तुम की की स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ह ह दीया जा है है लेकिन ज्योति के होने लिये ज ज ज ज है ज्योति के बिन दीये क क क्या अर्थ? ज्योति खो जाये, दीये का क्या मूल्य? ज्योति न हो तो दीये का क्या करोगे?
ज्योति की स्मृति बनी रहे, ज्योति निरंतर возможности जिन्होंने भी आत्मा को जाना, वे श выполнение को धन्यवाद देने सम समा हो सके।।।।।।।।।।।।। सके सके जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना वे या तो शरीर की मान कर चलते रहे, ज्योति दीये का अनुसरण करती रही और निरंतर गहन से गहन अचेतना और मूर्च्छा में गिरते गये या जिन्होंने आत्मा को नहीं जाना, उन्होंने व्यर्थ ही शरीर से, दीये से संघर्ष मोल ले लिया। जो साथी हो सकता था, उसे शत्रु बना लिया।
जिन्हें तुम सांसारिक कहते हो, वे त त त के हैं हैं, जिनके भीत भीत कXNUMX प पहले त के हैं हैं हैं जिनके भीत भीत क क कXNUMX प प क क क दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये दिये औ बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग बैलग ग ग बैलग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग ग जिन्होंने क्षुद्र को क कर लिया है औाट को पीछे पीछे उनके जीवन अग अग अग ही दुःख हो तो आश्चा नहीं।।।।।।। कीचड़ से कमल पैदा होता है। तुम्हारे शा के कीचड़ से तुम्हा возможности
कीचड़ से दुश्मनी मत करना, अन्यथा कमल पैदा ही नन हो कीचड़ और कमल में कितना वि विरोध दिखाई पडे, भीतर गहरा सहयोग है।।। कीचड़ कितना ही कीचड़ लगे, कहां, संबंध तो तो नहीं मालूम पड़ता! कमल सुंदर, अपूर्व सुंदर, अद्वितीय रेशम-सा कोमल! कहां कीचड़ गंदी दुर्गन्ध भरी! कहाँ कमल सुव सुवास, दोनों कोई तो न नXNUMX दिख नहीं पड़त पड़त औ अग कोई तो न न दिख औ कोई क क औ अग अग तुम ज ज हो औ औ कोई कीचड़ क ढे़ लग दे औ औ कमल फूलों क क क ढे़ औ कोई दोनों दोनों संबंध संबंध संबंध संबंध दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख दिख तो तुम भी कहोगे कि इन दोनों में कैसा संबंध? कहा कीचड़, कहां कमल! लेकिन तुम जानते हो, कीचड़ से कमल पैदा होता है। मृण्मय में चिन्मय का जागरण होता है।
कीचड़ से कमल पैदा होता है, इसक इसकXNUMX इसका अर्थ यही हुआ कि कीचड़ ऊपXNUMX इसका अर्थ हुआ कि दुा ऊप ऊपर का परिचय है, सुगंध भीतर का परिचय है।।।।।।।।।। है है
एक प्राचीन कथा है। एक ब| तीनों ही जुड़वा पैदा हुये थे, इसलिए उम्र से तय किय किया सकता सकता था। तीनों एक-से बुद्धिमान थे। तो उसने अपने गुरू से सलाह ली। गुरू ने उसे एक गुर बताया।
उसने बेटों से कह कि मैं ती तीXNUMX ती ती ती तीXNUMX पहले बेटे ने सोच कि इन बीजों को बच बच्चे उठा लिये, कोई जानवर खा गया, ऐसा सोचकर उसने उन को तिजोड़ी बंद क कर दिया। तिजोड़ी में बंद करके रख दिया और निशि्ंचत हो गया। लोहे की तिजोड़ी चोरों का भी क्या डर! और कौन चोर लोहे की तिजोड़ी तोड़ कर बीज चुराने आय! वह निश्चित रहा। बाप आयेंगे तो, लौटा देंगे।
दूस выполнительный क्या करूं? बीज जीवित कैसे रहें? उसने सोचा बाजार में बेच दूं, तिजोड़ी में रूपय। रय। बाप जब वापस आयेंगे, बाजार से बीज खरीद कर लौटाथेा
तीसरे ने सोचा कि बीज का अर्थ ही होता है, होने काी स बीज का अर्थ ही होता है जो होने को तत्पर है, जिसके भीत कुछ होने को मचल हा है।।।।।।।। तो उसने दिये हैं हैं, मतलब साफ़ है इन इन्हें उगाना है, जिसने XNUMX, वह न न है है।।।।।।। ये तो को र थे थे, ये फूल बनने को र र औ औ एक से क क क पैद पैद होते है।।।।।।।।।।।। पता नहीं, पिताजी कब लौटे, तीर्थ लंबा है, यात्रा में वा व लगेंगे उसने बीज बो दिये।।।।।।।। दिये दिये
तीन वर्षों बाद पिता वापस लौटा । पहले बेटे को उसने कहा। पहले बेटे ने तिजोड़ी की चाबी दे दी। खोली गई तिजोड़ी, सभी सड़ चुके थे थे, न हवा लगी, न सू सू ोशनी लगी औ औ किसी ने प प ध्यान ही दिय दिय व व तक तिजोड़ी पड़े पड़े सड़ बीज। दिय व व तिजोड़ी पड़े पड़े सड़ बीज।।।।। बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज बीज कोई लोहे की तिजोड़ीयों में बंद करने को थो।ही! उन्हें तो खुला आकाश चाहिये, हवा चाहिये, रोशनी चाहिये, पानी चाहिये तो ही जिंद जिंदXNUMX ह हैं।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं वे सब गये थे औ जिन बीजों से फूलों की अपू अपूXNUMX सुव पैद हो सकती थी थी उनकी उस तिजोड़ी से सि सिXNUMX
बाप ने कहा-तुमने संभाला तो, लेकिन संभाल न पाये। तुम मेरी सम्पत्ति के अधिकारी न हो सकोगे। तुम नासमझ हो। जितना मैं तुम्हे दे गया था, उतने भी तुम वापस यपस न ।र कर ये बीज तो समाप्त हो गये, इनमें अब एक भी नही है है, अब बोओगे तो कुछ भी पैद न होग यह यह र बोओगे तो कुछ भी पैद न होग यह यह र है औ मैं तुम तुम बीज गया थ यह र है औ तुम तुम बीज गय थ थ तो र औ औ तुम बीज दे गय थ थ। र र औ बीज दे दे गय थ थ थ थ।।। दे गय गय गय थ थ बीज थे जीवंत, उनमें संभावना थी बहुत होने की, उनकी सारी संभावना खो गई है है, सिर्फ राख है, इनसे भी नहीं सकत सकता।।।। सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो ये मृत्यु हैं।
दूसरे बेटे से कहा। दूसरा बेटा भागा XNUMX लेक लेक बीज ख खXNUMX क ले आय आय आय आय आय आय उतने ही बाप ने कहा तुम थोड़े कुशल हो, लेकिन तुम भी काफी नहीं, क्योंकि जितना दिया था उतना भी लौटाना भी कोई लौटाना है! यह तो जड़बुद्धि वाला व्यक्ति भी कर लेता। इसमें तुमने बुद बुद्धिमता न दिखाई और बीज का तुम राज न।।।। बीज का मतलब ही यह है कि जो ज्यादा हो सकता था। उसे तुमने रोका और ज्यादा न होने दिया। तुम पहले वाले से योग्य हो, लेकिन पर्याप्त नहीं।
तीसरे बेटे से पूछा कि बीज कहाँ हैं? तीसरा बेटा बाप को भवन पीछे पीछे ले गया जहाँ सारा बगीच फ़ूलों औ बीजों से भरा था।। थ था। उसके बेटे ने कहा, ये रहे बीज। आप दे थे थे, मैने सोचा इन्हे बचा का खने में हो सकती है।।।। इन्हें बाजार में बेचना उचित नहीं क क्योंकि आप सु выполнительный बाजाструв । हजार गुने करके आपको वापस लौटाता हूँ।
Закрыть परमात्मा ने तुम्हें जितना दिया है कम से उतन उतना तो लौटाना।। अगर बढ़ा न सको— बढ़ा सको तब तो बहुत अच्छा हैं।
एक अंधेरी रात की भ| इतना ही होत तब भी ठीक थ थXNUMX इतना भी बन बना XNUMX कि मैं अंधक अंधक अंधक हूँ, तो खोजत खोजत है है तड़पत तड़पत है प प प लिए लिए प खोजत खोजत खोजत है है तड़पत टटोलत टटोलत टटोलत टटोलत प प गि गि के उठत उठत उठत उठत है गु गु गु गु गु गु गु गु गु गु खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत खोजत है है है है है है है है है म है म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म म, समझ ले तब सारी यात्रा समाप्त हो जाती है। मृत्यु को कोई समझ ले जीवन, तो फिर जीवन का द्वार बंद ही हो गय गय गय गय गय गय।।।।।।।। हो
जब भी ज्ञान का जन्म होता है, तभी करूणा का जन्म हा हो हो क्यों? क्योंकि अब जो जीवन ऊ ऊXNUMX वासना बन ही थी कह कहां जायेगी? ऊर्जा नष्ट नहीं होती। कभी धन पीछे दौड़ती थी, पद के पीछे थी थी, महतшить प्रकाश का जलते, ज्ञान का उदय होते, वह सारा अंधकार, वह भोग, महतшить
ऊर्जा क्या होगी? जो ऊा काम वासना बनी थी थी, जो ऊर्जा क्रोध बनती थी, जो ऊ ऊXNUMX ईा ईा बनती थी थी उस ऊ ऊ ऊ ऊ क उस शुद्ध शक क क क उस ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ क क क क क क क क क क क क कven वह सारी शक्ति करूणा बन जाती है। महाकरूणा का जन्म होता है। धन की वासना अकेली नहीं है। पद की वासना भी है। तुम पद पाने के लिये धन का भी त्याग कर देते हो। चुनाव में लगा देते हो सब धन, कि किसी तरह मंत्री हो Закрыть तुम्हारी सभी कामनाएं अधूरी-अधूरी हैं। हजार कामनाये है और सभी में ऊर्जा बंटी है। लेकिन जब सभी कामन| तुम एक अदम्य ऊर्जा के स्रोत हो जाते हो। एक प्रगाढ़ शक्ति!
जब भी क क| तब तुम्हारा सारा जीवन जो बंधे हैं उन्हें मुक्त करने में लग जाता है।।।।।।।। जो कारागृह में हैं, उन्हें खुला आकाश देने मेता लग ।ग लग जिनके पैर जाम हो गए हैं, उनके पैरों को फि फि देने में लग जाता है।।।।।
जीवन बीतत| दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि देखने के लिये बड़ी सजगत चXNUMX जब भी कोई मरता है तो मन सोचता है, मौत रोज दूसरे कहे की ी ी मैं तो कभी मरता नहीं, कोई और मरता है। लेकिन हर मौत तुम्हारी मौत की खबर लाती है। जो पड़ोसी को हुआ है, वही तुम्हे भी हो जानेवाला हहै
आखि выполнительный कितना ही धन कमाओ, कितना ही पद-प्ा तिष मिले मौत कुछ स सापफ़ कर देती है।।।।।।।।।। मौत सब मिटा देती है। तुम्हारे बनाये सब घ घXNUMX सब डूब जाता है।
जिसे यह होश आन शुXNUMX मौत का स्मरण धर्म की प्राथमिक भूमिका है। अगर मृत्यु न होती तो संसार में धर्म भी न होता। मृत्यु है और जब तक मृत मृत्यु को झूठलाओगे तब तुम तुम्हारे जीवन में ध ध ध ध की कि कि न उत उत उत।। मृत्यु को से समझो क क्योंकि उसके आधार पर ही में क्रांति होगी।।।।। तुम्हे अगर पता चल जाये कि आज सांझ ही म जाना है तो क आज स ही म म जXNUMX है तो क क क सोचते हो म्हाen क्या तुम उसी भांति दुकान जाओगे?
उसी प्रकार ग्राहकों का शोषण करोगे? क्या उसी भांति व्यवहार करोगे, जैसा कल किया था? क्या पैसे पर तुमшить पकड़ वैसे ही होगी होगी जैसे एक क्षण पहले तक थी? क्या मन में वासना उठेगी, काम जागेगा? राह से गुजरती कार मोहित करेगी? किसी का भवन देख कर ईर्ष्या होगी? नहीं सब बदल जाएगा।
अगर मौत का पता चले कि आज ही सांझ ज जाने वाली है तुम तुम आज ही स हो ज जाने है है तुम तुम्हारे जीवन का सा अर्थ, तुम्हारे क क क स स पXNUMX प तुम्ह तुम जीवन ज ज ज औ औ तुम तुम्हा जीवन ज तुम्हा जीवन ज तुम्हा जीवन ज तुम्हा जीवन ज तुम्हा जीवन ज तुमinw मौत का जरा सा भी स्मरण तुम्हें वही न हने देगा जो तुम हो औ औ जो हो बिल बिल बिल गलत।।।।। हो हो हो।।।। बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल।।। बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल बिल क्योंकि सिवाय दुःख औ और तुम्हा возможности फल लगते है निश्चित, केवल दुःख के लगते हैं। फल लगते हैं निश्चित तुम्हारी आशाओं के नही नही, न तुमшить फल लगते हैं तुमшить
शरीर को ही अग अग देखा तो तुम कीचड़ प Как ूक औ औ से अप अपरिचित रह गये।।।।।। अगर तुमने शरीा कमल तो पैदा होता है कीचड़ के सहयोग से। इस सहयोग का नाम ही योग की कला है। योग अस्तित्व की दई के बीच एक को खोज लेने की कला है जहाँ दो दिख| इसलिये में निा कहता हूँ, तुम्हारे भीतर छिपा क काम ही तुम्हारे भीतर का Как ज जायेगा। तुम्हारे भीतर की कीचड़ तुम्हारा कमल बन जायेगा।
Его Святейшество Садхгурудев
Г-н Кайлаш Чандра Шримали
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